आजकल जैसे की सोच होती है, पढ़ी-लिखी बहू आए. अगर नौकरीवाली आती है, तो ससुरालवाले को पुराने सोच को बदलने की ज़रूरत होती है. क्योंकि सर्विस वाली बहू के रहन-सहन और व्यवहार में अंतर होता है, घरेलू बहू की अपेक्षा.
कहने को, “आधुनिक विचारोंवाले सोच के हैं सब” ऐसा ही लड़कीवालों से कहा जाता है.
पर एक समय के बाद ही एहसास हो जाता है कि ससुरालवाले कितने आधुनिक है.
ऐसा ही दीपा के साथ हुआ. जब लड़की देखने गए, तो होनेवाली सास ने कहा, “तुम सर्विस तो करोगी, पर क्या घर और बाहर दोनों को मैनेज कर पाओगी?”
तभी दीपा ने कहा, “आंटीजी समय और परिस्थितियों को देखकर सब एडजस्ट करना पड़ता है.”
इतना सुनते ही सास बोली, “वो सब तो ठीक है, पर ज़्यादा ज़िम्मेदारी भी अकेले ही बढ़ जाती है. तुम्हें तो मेरे बेटे से सामंजस्य बना कर चलना पड़ेगा. फिर आगे तुम्हारी ज़िंदगी है. तुम लोगों को अपने हिसाब से रहना है.”
यह भी पढ़ें: नई दुल्हन के लिए संकोच-शर्मो-हया किन मामलों में ज़रूरी, किनमें ग़ैरज़रूरी! (Dos And Don’ts For Newlywed Bride)
फिर दीपा ने भी कहा, “गृहस्थी की गाड़ी अकेले नहीं चलती. पति-पत्नी तो एक-दूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एक-दूसरे का साथ देते हुए सामंजस्य बना कर चलना पड़ता है, तभी गाड़ी सही से बढ़ती है.”
फिर रिश्ता भी तय हो गया. शादी में सब रस्मों में आधुनिक सोच समझ आ रही थी.
और सासू मां हमेशा कहतीं, “हमारे यहां पर्दा नहीं होता, पर रीति-रिवाज़ को हम लोग मानते हैं. “
शादी के बाद ससुराल में दीपा को एक सप्ताह रहना पड़ा. तभी उसकी समझ में आ गया कि सासुजी कहती कुछ… करती कुछ…
जब पहली रसोई बनाने की रस्म हुई, तब जो नेग मिलते, तो उन्हें लगता कि बहू सभी नेग में मिले उपहार और लिफ़ाफ़े हमारे पास रखवाएं.
धीरे-धीरे समय बीत रहा था. कभी पूजा के कारण, कभी रीति-रिवाज़ के नाम पर रोक-टोक लगाए जा रही थीं.
दीपा भी संस्कारी बहू की तरह सब बातें मान रही थी. अति तब होने लगी, जब उसे राहुल से बात करने से भी रोका गया. राहुल उनका बेटा है, जिसके साथ उसने सात फेरे लिए. खैर… अब वह जब भी किसी से बात करने की कोशिश करतीं, तभी मांजी टोक देतीं, “तुम्हें तो शर्म-लिहाज है ही नहीं. कुछ दिन तो नई बहू जैसी रहो!”
अब दीपा जो ख़ुशियों के पंख लगाए आई थी, तब उसे लगा कि धीरे-धीरे उसके पंख कुतरे जा रहे हैं.
यहां शादी में भाई-बहन और भी बहुत से रिश्तेदार थे. पर उसने सोचा कि कौन सा हमेशा मुझे रहना है. इस तरह दीपा चुप रही. समय बीतता गया.
अब दोनों बहू-बेटा जाने लगे, तो पैर छूकर आशीर्वाद लिया. तभी उनके मुंह से आशीर्वाद निकला, “सदा ख़ुश रहो.”
दीपा ने तुरंत कहा, “मम्मीजी ख़ुश रहने देंगी, तभी तो ख़ुश रहेंगे.”
इतना सुनते ही सास तुनक कर बोली, “मैंने तेरे साथ क्या कर दिया, जो ऐसा कह रही है.”
राहुल बोला, “मम्मी, आपने रीति-रिवाज़ के नाम पर इतनी रोक-टोक लगाई कि हम परेशान हो गए.”
फिर दीपा भी बोली, “मम्मी, केवल आधुनिकता पहनावा से नहीं होती, बल्कि सोच भी बदलनी पड़ती है. माना यहां पर्दा नहीं होता है. आपने ये बात इसलिए भी मानी, क्योंकि आप जानती थीं कि नौकरीवाली बहू कैसे पर्दा करेगी!
मम्मी, आपको अपनी सोच को भी बदलना होगा, तभी तो सही मायने में मेरी मां बन पाएंगी.”
आज सासू मां को समझ आ गया कि बहू-बेटे को यहां रहना है नहीं, इसलिए उन पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है. रीति-रिवाज़ जितने सीमित हो, उतने ही अच्छे, ताकि बहू-बेटे के साथ मधुरता बनी रहे.
– अमिता कुचया
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
अक्षय कुमार इन दिनों 'बड़े मियां छोटे मियां' को लेकर सुर्ख़ियों में हैं. उनका फिल्मी…
बोनी कपूर हे कायमच चर्चेत असणारे नाव आहे. बोनी कपूर यांचे एका मागून एक चित्रपट…
ईद के मौके पर टीवी एक्ट्रेस समबुल तौकीर ने हाउस पार्टी होस्ट कर ईद सेलिब्रेट…
अनियमित जीवनशैलीने सर्व माणसांचं आरोग्य बिघडवलं आहे. ऑफिसात 8 ते 10 तास एका जागी बसल्याने…
नुकताच स्वामी समर्थ यांचा प्रकट दिन पार पडला अभिनेता - निर्माता स्वप्नील जोशी हा स्वामी…
"ऐसे नहीं पापा, " उसने आकर मेरी पीठ पर हाथ लगाकर मुझे उठाया, "बैठकर खांसो……