कहानी- चुप्पी (Short Story- Chuppi)

“पहले मैं भी आप ही कि तरह शांत स्वभाव की थी, लेकिन इस समाज के ही कारण मैं बदल गई. अब नहीं सहती मैं बेमतलब की बातें. भाभीजी, जितना आप सहन करोगी लोग उतना ही आपका फ़ायदा उठाएंगे.”
न जाने क्यों? वो मीनू के सामने इस तरह की बातें किया करती और मीनू के मन की शांति, शांति रोज़ इसी तरह भंग कर देती. मीनू चुपचाप उसकी बातें तो सुन लेती, पर शांति की बातें उसके शांत मन में उथल-पुथल ज़रुर मचातीं.

“जहां एक बहस हज़ार फ़सादों की जड़ बन सकती है, वहीं एक चुप्पी हज़ार फसादों से बचा सकती है.” मीनू की मां ने मीनू को बचपन से ही इस तरह के पाठ पढ़ाए थे.
“देख बेटा मौन रहना बेहद मुश्किल काम है, लेकिन यदि व्यक्ति मौन धारण करना सीख ले, तो कई विवादों से बच जाए और सहनशक्ति तो स्त्रियों का गहना होती है. जिस स्त्री में जितनी अधिक बातों को सहने की शाक्ति होती है, वह उतनी ही शालीन और सहज मानी जाती है.”
मीनू के कानों में मां की सिखाई ये बातें अक्सर गूंजा करती. मीनू हर तरह की बातों को सहना जानती. जैसे उसके मायकेवालों ने उसे शालीनता के नाम पर दब्बू बनाकर जीना सिखाया था, उसे ससुराल भी वैसा ही मिला गया था. आख़िर सीधी-सादी गाय जैसी लड़कियां किसको पसन्द नहीं आती? उसकी तेज़-तर्रार सास अक्सर उसे ताने मारती रहती. जिसका जो मन आता मीनू से बोल देता. सबको पता रहता कि वह पलटकर जवाब नहीं देगी.


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घर में बर्तन-झाडू करनीवाली मेड शांति भी जब तक उसके घर में काम करती पूरे समय बोलाती ही रहती, “भाभीजी, ये तेज रहने का ज़माना है. सीधे की इस दुनिया में कोई इज्जत नहीं होती, अपना हक़ लड़कर लेना पड़ता हैं.”
“अरे, मेरी सास तो मुझे एक कहती है तो मैं सौ सुनाती हूं… सम्मान करती हूं मैं उनका, लेकिन बेमतलब की चिकचिक बर्दाश्त नहीं होती भाभीजी!”
“पहले मैं भी आप ही कि तरह शांत स्वभाव की थी, लेकिन इस समाज के ही कारण मैं बदल गई. अब नहीं सहती मैं बेमतलब की बातें. भाभीजी, जितना आप सहन करोगी लोग उतना ही आपका फ़ायदा उठाएंगे.”
न जाने क्यों? वो मीनू के सामने इस तरह की बातें किया करती और मीनू के मन की शांति, शांति रोज़ इसी तरह भंग कर देती. मीनू चुपचाप उसकी बातें तो सुन लेती, पर शांति की बातें उसके शांत मन में उथल-पुथल ज़रुर मचातीं.
यहां घड़ी में दो बज रहे थे, काम से फ़ुर्सत हो सास-बहू आज के अख़बार के अलग-अलग पन्ने पकड़कर पढ़ रही थीं. तभी मीनू की सास का मोबाइल बज उठा.
कुछ देर तक वे बड़ी गम्भीरता से सामनेवाले कि बातें सुनती रहीं, फिर कुछ देर बाद बोलीं, “अरे! ऐसे कैसे? तू डांस अकेडमी में डांस सीखने क्यों नहीं जाएगी?”
“मैं कहती हूं कि वे लोग ऐसा कहनेवाले होते कौन हैं? इस तरह अपनी मर्जी वे तुझ पर नहीं थोप सकते.”
“अरे बेटा, ये गाय जैसी ज़िंदगी जीना बंद कर और अपनी बात रखना सीख. देख तू जब तक अपने निर्णय ख़ुद नहीं लेगी, तब तक ऐसे ही दूसरे तेरे ऊपर अपनी बात थोपते रहेंगें.”
“बोलना सीख मेरी बच्ची! तुझमें काबिलियत है. तू ऐसे पीछे मत हट बेटा.”
यहां सासू मां को फोन पर बातें करते हुए आधा घंटा गुज़र गया.
मीनू उनकी बातों से समझ गई थी कि उसकी ननद का फोन है और उसकी डांस क्लास को लेकर उसके ससुराल में फिर से कोई बवाल खड़ा हुआ है. जैसा कि आजकल आए दिन हो रहा था.
यहां सासू मां फोन काट कर सिर पर हाथ रखकर बैठ गईं .
मीनू धीरे से उठी और अपनी सास के हाथों में अख़बार का एक पन्ना थमाते हुए एक ऐड पर उंगली रख दी, जिस पर लिखा था, “आपके शहर में एक बार फिर कल से हो रहे हैं ऑडिशन. यदि आपकी आवाज़ में है दम तो आज़माए अपनी क़िस्मत.”

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सासू मां ने ऊपर की ओर सिर उठाया तो दिखा की मीनू वहां नहीं थी.
पास के कमरे से निकलती मीनू कंधे पर टंगे बैग को संभालती हुई बोली, मांजी, कल ऑडिशन है तो सोच रहीं हूं कि कुछ अच्छा पहनू, इसलिए कोई अच्छी-सी ड्रेस ख़रीदने मार्किट जा रहीं हूं. बाय मांजी.”
उसकी सासू मां दंग थी. मीनू ने आज उनसे कुछ पूछना तक ज़रूरी नहीं समझा. शायद उनका जवाब वह पहले से ही जानती थी, इसलिए जब पिछली बार यही ऐड दिखाकर बड़े आग्रहपूर्ण तरीक़े से उसने उनकी परमिशन मांगी थी, तब उन्होंने साफ़ माना करते हुए उसे दस खरी-खोटी सुनाई थी.
लेकिन ऐसे-कैसे बिना पूछे जा सकती थी मीनू? ये तो उनका घोर अपमान था.
वे उठीं और तेज आवाज़ में बोलीं, “वहीं रुक जाओ बहू.”
मीनू कुछ घबराई थी, लेकिन फिर भी वह आज अपने फ़ैसले पर अडिग थी.
वह रुकी और उसकी सासू मां ने उसे गले लगाकर कहा, “शाबाश बेटा, यही हिम्मत दिखाने की ज़रूरत है तुम लोगों को. काश! तेरी ननद भी ऐसे ही हिम्मत दिखा सके. बहु, आज तूने अपनी चुप्पी नहीं बल्कि मेरी आंखों पर चढ़ा ग़लत सोचवाला चश्मा तोड़ा है. जाओ और अच्छे से अपने ऑडिशन की तैयारी करो.

  • पूर्ति वैभव खरे

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Usha Gupta

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