Short Stories

लघुकथा- दहलीज़ का बंधन… (Short Story- Dahleez Ka Bandhan…)

“जो लौट रहा है वो इस घर का बेटा है, भाई है. मेरा रिश्ता तो उसी दिन ख़त्म हो गया था जिस दिन उन्होंने दूसरी औरत से रिश्ता जोड़ा और इस घर के बाहर पैर रखा. दहलीज़ के बंधन सिर्फ़ औरतों के लिए ही होते हैं क्या?..”

“ये क्या भाभी आप बैग में कपड़े क्यों पैक कर रही हो? कहां जा रही हो?”

“रामनगर के कॉलेज में नौकरी के लिए आवेदन दिया था वो मंज़ूर हो गया है. दो दिन बाद जॉइन करना है. शाम की गाड़ी से निकल रही हूं.”

“आपको नौकरी करने की क्या ज़रूरत है और शाम को तो भैया वापस आ रहे हैं.”

“अब अपना पेट भरने के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी न. मां-पिताजी पर बोझ बनकर तो रह नहीं सकती अब.”

यह भी पढ़ें: ‘वो मर्द है, तुम लड़की हो, तुमको संस्कार सीखने चाहिए, मर्यादा में रहना चाहिए…’ कब तक हम अपनी बेटियों को सो कॉल्ड ‘संस्कारी’ होने की ऐसी ट्रेनिंग देते रहेंगे? (‘…He Is A Man, You Are A Girl, You Should Stay In Dignity…’ Why Gender Inequalities Often Starts At Home?)

“भाभी..! अपना पेट भरने के लिए मतलब? दो साल तक आपने कितनी जद्दोजेहद करके क्या कुछ नहीं किया भैया को उस औरत के चुंगल से छुड़ाने के लिए. और अब जब सब कुछ ठीक हो गया, भैया की भी अक्ल ठिकाने आ गई कि उसने सिर्फ़ पैसों के लिए उन्हें फांस रखा था, और वो अब घर वापस आ रहे हैं तो आप…”

“परिवार की बदनामी हो रही थी. अम्मा-बाबूजी बुढ़ापे में इस तरह बेटे की करनी का दुख भोग रहे थे. लोग कैसे-कैसे ताने देते थे उन्हें. फिर कल को तुम्हारी शादी में कितनी अड़चने आती? मैंने इस घर के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है बस. तुम्हे तुम्हारा भाई और अम्मा-बाबूजी को उनका बेटा लौटा दिया.”

“और आपका पति… भाई और बेटे के अलावा वो आपके पति भी तो हैं न…”

यह भी पढ़ें: नौकरी के मामले में शादीशुदा महिलाएं हैं आगे, मगर बेटे को लेकर नहीं बदली सोच (More married women than single women are working)

“जो लौट रहा है वो इस घर का बेटा है, भाई है. मेरा रिश्ता तो उसी दिन ख़त्म हो गया था जिस दिन उन्होंने दूसरी औरत से रिश्ता जोड़ा और इस घर के बाहर पैर रखा. दहलीज़ के बंधन सिर्फ़ औरतों के लिए ही होते हैं क्या?..”

विनीता राहुरीकर

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Usha Gupta

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