पौराणिक कथा- दुर्योधन का विश्वास… (Short Story- Duryodhana Ka Vishwas…)

सहदेव के सामने आने पर दुर्योधन ने विनय पूर्वक कहा, “युद्ध तो अब निश्चित हो चुका है. तुम तो त्रिकालदर्शी हो, अतः मैं तुमसे युद्ध शुरू करने का मुहूर्त पूछने आया हूं.”
यह सुन कर कर्ण और दुशासन क्रोध से भर उठे. उन्होंने दुर्योधन को रोकने का प्रयास करते हुए कहा, “भाई तुम किस तरह विश्वास कर सकते हो कि हमारा दुश्मन होने के नाते सहदेव हमें ग़लत मुहूर्त नहीं बताएगा?”

जब दुर्योधन युद्ध शुरु करने का मुहूर्त निकलवाने सहदेव के पास गए...

कौरव और पांडव के बीच युद्ध होना निश्चित हो चुका था. कुरुक्षेत्र के मैदान में शिविर लग चुके थे कि दुर्योधन, पांडव शिविर की ओर जाते दिखाई दिए. कर्ण और दुशासन ने दुर्योधन को अकेले पांडव शिविर की ओर बढ़ते देखा, तो वह भी अपने-अपने अस्त्र उठा कर उसके पीछे चल पड़े.
उधर दुर्योधन को आता देख अर्जुन और भीम भी चौकन्ने हो गए और अपने-अपने शस्त्रों की ओर बढ़े. पर युधिष्ठिर ने उन्हें शांत चित रह कर प्रतीक्षा करने को कहा.


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दुर्योधन ने वहां पहुंच कर बताया कि वह सहदेव से परामर्श लेने आए हैं.
सहदेव के सामने आने पर दुर्योधन ने विनय पूर्वक कहा, “युद्ध तो अब निश्चित हो चुका है. तुम तो त्रिकालदर्शी हो, अतः मैं तुमसे युद्ध शुरू करने का मुहूर्त पूछने आया हूं.”
यह सुन कर कर्ण और दुशासन क्रोध से भर उठे. उन्होंने दुर्योधन को रोकने का प्रयास करते हुए कहा, “भाई तुम किस तरह विश्वास कर सकते हो कि हमारा दुश्मन होने के नाते सहदेव हमें ग़लत मुहूर्त नहीं बताएगा?”


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परन्तु दुर्योधन को पूरा विश्वास था कि सहदेव छल नहीं करेगा.
हुआ भी ऐसा ही.
सहदेव चाहता तो अपने पक्ष के हित में होने वाला मुहूर्त बता सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया. सहदेव ने मुहूर्त ऐसा बताया जब ग्रह और नक्षत्र न पांडवों के लिए फलदाई थे, न कौरवों के.
ताकि युद्ध का जो निर्णय हो, वह उनके अपने बाहुबल पर ही हो.
सहदेव के बताए मुहूर्त के अनुसार ही युद्ध शुरू किया गया था.

– उषा वधवा

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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