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कहानी- गुलाबी स्वेटर (Short Story- Gulabi Sweater)

घर के अंदर आते ही प्राची निया का गुलाबी स्वेटर देखकर आश्चर्य से भर गई, कैसे, कब, कहां से? जैसे कई सवाल एक साथ उसके ज़ेहन में कूद पड़े.
“वाओ निया ये तो मैजिक हो गया. यह तो हूबहू वैसा ही स्वेटर है जैसा मैंने तुम्हारे लिए चाहा था.”

प्राची पिछले दो हफ़्तों से निया के लिए बर्थडे ड्रेस की मैचिंग का स्वेटर तलाश कर रही थी. लगभग सभी शॉपिंग साइट्स पर उसने स्वेटर सर्च करके देख लिया था, पर उसके मन मुताबिक़ स्वेटर कहीं भी उसे नहीं दिख रहा था. उस स्वेटर के लिए प्राची ने दो-तीन बार बाज़ारों के भी चक्कर काट लिए थे. फिर भी उसे वैसा स्वेटर नहीं मिला था. अगले ही दिन निया का जन्मदिन था और अब भी प्राची को उसकी गुलाबी फ्रॉक से मैच करता मन मुताबिक़ स्वेटर नहीं मिला था. आख़िरकार बेमन से उसने निया के लिए बाज़ार जाकर एक गुलाबी स्वेटर ख़रीद लिया. बाज़ार से घर आती प्राची को अनायास ही सासू मां की कही हुई बात याद आने लगी, “बहू, एक स्वेटर की ही तो बात है, इतना क्यों परेशान हो रही हो? अरे अगर फ्रॉक से स्वेटर की मैचिंग उन्नीस-बीस हो भी जाएगी, तो कौन सा तूफ़ान आ जाएगा? कभी-कभी बाज़ारों में मन मुताबिक़ चीज़ें नहीं मिला करतीं.”
उनकी इस बात पर आंखें तरेरती प्राची ने उन्हें बड़ा ज़ोरदार जवाब दिया था, वह किसी को भी जवाब देने से कभी चूकती नहीं थी, फिर वह चाहे उसकी सास ही क्यों न हो.

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अब उसे अपनी सास को कहें गए अपने शब्द भी याद आ रहे थे, “मांजी, अब यह आपका ज़माना नहीं है. अब बाज़ारों में ही क्या, घर में बैठे-बैठे ऑनलाइन सब कुछ मिलता है, आप देखना मैं बिल्कुल ऐसा ही गुलाबी स्वेटर निया के लिए मंगा कर रहूंगी.” प्राची ने यह बात मांजी को एक मैगजीन में स्वेटर की तस्वीर दिखाते हुए बड़ी अकड़ के साथ कही थी.
प्राची यही सारी बातें याद करती हुई घर आ गई और जैसे ही उसने डोरबेल बजाई, छोटी सी निया ने अपनी मां के लिए बड़ी उत्सुकता से दरवाज़ा खोला. दरअसल, निया जल्द से जल्द अपनी मां को अपना नया गुलाबी स्वेटर दिखना चाहती थी.
घर के अंदर आते ही प्राची निया का गुलाबी स्वेटर देखकर आश्चर्य से भर गई, कैसे, कब, कहां से? जैसे कई सवाल एक साथ उसके ज़ेहन में कूद पड़े.
“वाओ निया ये तो मैजिक हो गया. यह तो हूबहू वैसा ही स्वेटर है जैसा मैंने तुम्हारे लिए चाहा था.”
अब ख़ुशी से भरी प्रश्नवाचक निगाहों से प्राची ने अपने पति कुंतल की ओर देखते हुए पूछा, “आप ढूंढ़कर लाए हैं न?”    
“नहीं, मां!”  कुंतल ने मुस्कुराते हुए कहा.
“मां आप?”

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अब अपनी प्रश्नवाचक ख़ुशी से भरी निगाहें उसने मुस्कुराती हुई सासू मां की ओर कर ली. तभी कुंतल ने अपनी मां के हाथों को चूमते हुए कहा, “प्राची, यह हाथ अब भी बच्चों के मन को और स्वेटर को दोनों को बुनना जानते हैं. एक हफ़्ते से लगातार हमारे ऑफिस जाने के बाद मां निया के लिए स्वेटर बुनने में लगी थीं.”
प्राची तुरंत सासू मां से लिपट गई और स्वेटर की गर्माहट उनके रिश्तों को गर्म कर गई.

पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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