बात उस समय की है जब हवाई जहाज इतने प्रचलित नहीं थे और विदेश जाने के लिए समुद्री जहाज से जाना होता था, जिसमें लंबा समय तो लगता ही था, रास्ते में अनेक प्रकार की कठिनाइयां भी आती थीं.
उसी काल के एक विद्वान पंडित समुद्री जहाज द्वारा कहीं दूर देश जा रहे थे. उन्हें अपने ज्ञान और विद्वता पर बहुत नाज़ था. सफ़र लंबा था और एक रात ज़ोर का तूफ़ान आया, जिससे जहाज़ में कुछ ख़राबी आ गई. कप्तान ने जहाज़ को एक द्वीप के पास लंगर डाल खड़ा कर दिया.
पता चला कि तूफ़ान के कारण जहाज़ में कुछ अधिक ही ख़राबी आ गई है, जिसे ठीक होने में समय लगेगा.
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पंडित जी ने सोचा क्यों ना इस समय का उचित उपयोग किया जाए और द्वीप के वासियों को धर्म की शिक्षा दी जाए. उन्हें ईश्वरीय ज्ञान देकर उस तक पहुंचाने का मार्ग बताया जाए, ताकि वह अपना परलोक सुधार सकें.
पंडित जी जहाज के कैप्टन से इज़ाज़त ले कर एक छोटी नाव द्वारा द्वीप तक जा पहुंचे. वहां उनकी मुलाक़ात तीन द्वीपवासियों से हुई. वह अनेक वर्षों से उस सूने द्वीप पर रह रहे थे. अच्छी बात यह थी कि वह भी उसी भाषा में बोलते थे, जो पंडित जी स्वयं बोलते थे.
अतः उनसे बातचीत करना सरल हो गया.
पंडित जी ने उनसे ईश्वर और उनकी आराधना पर चर्चा शुरू की. उन्होंने द्वीपवासियों से पूछा, “क्या आप ईश्वर को मानते हैं?”
वे सब बोले, “हां…“
पंडित जी ने आगे पूछा, “आप ईश्वर की आराधना कैसे करते हैं?”
उन्होंने बताया कि हम अपने दोनो हाथ ऊपर करके कहते हैं कि हे ईश्वर हम आपकी संतान हैं, आपको याद करते हैं, अतः आप भी हमारा ध्यान रखना.”
पंडित जी ने कहा, “यह प्रार्थना तो ठीक नहीं है.”
इस पर उनमें से एक ने कहा, “तो आप हमें सही प्रार्थना सिखा दीजिए.”
पंडित जी ने उन्हें सही तरीक़े से कुछ मंत्र बोलने सिखाए.
तब तक जहाज बन गया और पंडित जी अपने सफ़र पर आगे बढ़ गए.
तीन दिन बाद पंडित जी जहाज के डेक पर घूम रहे थे कि उन्होंने देखा वह तीनों द्वीपवासी जहाज के पीछे पानी पर दौड़ते हुए आ रहे हैं और उन्हें रुकने का इशारा कर रहे है.
पंडितजी ने हैरान होकर जहाज रुकवाया और अपने शिष्यों को जहाज पर चढ़वाया.
ऊपर आ जाने पर पंडित जी ने उनसे आने का कारण पूछा. तब वे बोले, “बाक़ी सब तो हमें याद है, परन्तु आपके द्वारा सिखाया वह मंत्र हम अगले दिन ही भूल गए, इसलिए आपके पास उसे दुबारा सीखने आए हैं. मेहरबानी करके हमारी मदद कीजिए. हम वादा करते हैं अब हम उसे नहीं भूलेंगे.”
पंडित जी ने कहा, “ठीक है, पर यह तो बताओ कि तुम लोग पानी पर दौड़ कर कैसे आए हो?”
द्वीपवासियों में से एक ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा, “हम आपके पास जल्द से जल्द पहुंचना चाहते थे, सो हमने ईश्वर से विनती करके मदद मांगी. हमने कहा- ‘हे ईश्वर! दौड़ तो हम लेगें, बस आप हमें गिरने मत देना!’ और हम दौड़ कर आ गए.”
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अब पंडित जी सोच में पड़ गए.. उन्होंने कहा, “आप लोग और आपका ईश्वर पर विश्वास धन्य है. आपको अन्य किसी प्रार्थना की, किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं. आप पहले कि तरह ही प्रार्थना करते रहें.”
सच है- ईश्वर पर सच्चा विश्वास, ईश्वर की आराधना प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है!
– उषा वधवा
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