मैं मां के जीवन, उनके स्वभाव, उनके व्यवहार, उनके त्याग, उनके स्नेह की एक-एक बात याद रखने की कोशिश करता हूं कि मेरी पत्नी दुखी होकर न जीए. वह कभी अपना मन न मारे. उसे अपनी मर्ज़ी से जीने के लिए, अपने शौक पूरे करने के लिए मेरी मृत्यु तक इंतज़ार न करना पड़े.
रात के साढ़े दस बज रहे थे, अंजलि ने मुझसे पूछा, “सोम, मैं इस ड्रेस में मोटी तो नहीं लग रही?” मैंने लैपटॉप से नज़रें हटाकर कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं, तुम मोटी हो ही कहां जो लगोगी, कितनी मेंटेन्ड तो हो.” अंजलि के चेहरे पर मुझे एक ख़ुशी की लहर दिखाई दी.
“सच कह रहे हो? कल किटी है न मेरी, अभी शाम को ही यह सिलकर आई है, इसे ही पहनूंगी, अच्छी है न? मुझे पता नहीं क्यों लग रहा है कि मैं इसमें कुछ मोटी लग रही हूं.” मैंने लैपटॉप एक तरफ़ रख ही दिया. उसके पास खड़े होकर उसे चारों तरफ से देखा और प्यार से कहा, “अंजू, बहुत अच्छी लग रही हो, परफेक्ट फिगर है तुम्हारा.”
अंजलि मुस्कुराकर, “थैंक्स” कहते हुए कपडे बदलने चली गई. मैं भी मन ही मन मुस्कुरा उठा, क्योंकि इस नई ड्रेस में वह सचमुच थोड़ी सी मोटी तो लग रही थी, पर वह जो भी पहनती है, उस पर अच्छा लगता है यह भी सच है. पर हां, वह अपने फिगर को लेकर बहुत कॉन्शियस रहती है, मैं जानता हूं कि वह हमेशा पतली और स्मार्ट लगना चाहती है, पर आजकल वह थोड़ी-सी भर गई है. अगर मैंने सच बोल दिया, तो कल से ही खाना-पीना कम कर डायटिंग पर आ जाएगी, जबकि वह खाने की शौकीन है और अब तक अपना पूरा ध्यान रखती आई है, पर समय के साथ कुछ बदलाव तो आते ही है ना! और वैसे भी मैं ऐसे बहुत से झूठ बोलता रहा हूं जिनसे उसे ख़ुशी मिलती है. इतना क्या सत्यवादी हो जाओ कि अपनी ही पत्नी का दिल दुखाऊं? ना, यह मुझे नहीं होता! मैं कोई झूठा इंसान नहीं हूं, पर जब बात अंजलि को ख़ुश करने की आती है, तो मैं ख़ूब झूठ बोलता हूं. सोचते हुए मैंने बच्चों के बेडरूम में झांका. हमारी बीस वर्षीया बेटी सिद्धि और अठारह वर्षीय बेटा नमन सो चुके थे. ग्यारह बजे थे. हम दोनों भी सोने ही जा रहे थे कि अचानक अंजलि को याद आया आया, “सोम, तुम्हें बताना ही भूल गई कि अगले हफ़्ते भइया आएंगे. यहां उनकी कोई मीटिंग है, एक-दो दिन के लिए आएंगे.”
“अरे वाह, बहुत अच्छा!”
अपने से पांच साल बड़े कपिल भइया के बारे में वह और बातें करने लगी. मेरा मूड कपिल के आने की बात सुनकर ख़राब हो गया था, पर प्रत्यक्षतः मैं अंजलि की बातें रुचि लेकर सुनता रहा. थोड़ी देर में अंजलि सो गई. पर आज मैं अपने झूठ बोलने के बारे में सोचने लगा था. अंजलि से बहुत झूठ बोलता हूं मैं. मेरी प्यारी पत्नी है वो. उससे बहुत प्यार करता हूं. मैं उसे कभी दुखी नहीं देख सकता. उसका मायका विल्ली है, यहां मुंबई में ऑफिस के काम से कपिल का आना-जाना लगा रहता है.
अंजलि अपने भाई से बहुत प्यार करती है. वो है ही ऐसी, सबको स्नेह-सम्मान देनेवाली. कपिल की उपस्थिति मुझे बर्दाश्त नहीं होती, मैंने अंजलि को कभी यह महसूस होने नहीं दिया है. मुझसे कई बार पूछती है, “भइया अच्छे हैं ना?” मैं ‘हां’ में सिर हिलाकर कहता, “तुम्हारे मम्मी-पापा, भाई सब अच्छे हैं.” वह ख़ुश हो जाती है, वह मुझ पर, बच्चों अपना भरपूर प्यार लुटाती है, तो उसे तो हक़ है ना ख़ुश रहने का. मैंने उसे यह सच नहीं बताया कि घमंडी, स्वार्थी जैसे लोग मुझे कभी पसंद नहीं आते. अपने पद-धन के मद में चूर कपिल हमेशा अकड़ में रहता है. अपने से नीचे किसी को कुछ नहीं समझता.
मैं और भी ऐसे कई झूठ बोलता हूं, जैसे ऑफिस से आकर कहता हूं, “अंजली तुम कितना काम करती हो.” जबकि मैं जानता हूं कि उसने दिन में अपना समय बुक्स पढ़ने या फोन करने में बिताया होगा. काम तो ज़्यादातर मेड ही कर जाती है. पर जब मैं उसे यह कहता हूं, तो मुझे उसकी आंखों में ख़ुशी दिखती है. वह मेरे झूठ से ख़ुश होती है कि मुझे उसके कामों की वैल्यू है. काम तो वह करती भी है, पर इतना भी नहीं कि बहुत थक जाए. बस, मुझे उसे ख़ुश ही तो देखना है.
कई बार मैं उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहता हूं, “अंजू, अपना ख़्याल रखा करो. हम लोगों की चिंता में अपनी सेहत से लापरवाह मत होना, हर तरह से अपना ख़्याल रखा करो, तुम हो तो सब है.” मेरी इस बात पर वह ख़ुश होकर अपना सिर मेरे कंधे पर टिका देती है और मुझे मन ही मन अपनी बात पर हंसी आ जाती है, क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि वह अपना बहुत ध्यान रखती है. सुबह-शाम सैर पर जाती है, हर महीने पार्लर जाती है, सहेलियों के साथ किटी पार्टी एंजॉय करती है, वीकेंड पर हम लोग मूवी जाते हैं, बाहर खाते-पीते हैं, अंजलि हर तरह से जीवन में ख़ुश है. हमारे बच्चे भी बहुत अच्छे हैं, उसे परेशान नहीं करते, फिर भी मैं अक्सर उसका सिर सहलाते हुए कह देता हूं, “अंजू, थक जाती होगी, अपना ख़्याल रखा करो.” वह बहुत ख़ुश होती है.
मैंने अपने आपसे वादा किया है कि मैं अंजलि को हमेशा ख़ुश रखूंगा. उसकी आंखों में मेरे कारण कभी एक भी आंसू नहीं आएगा. मैं यह किस बात की भरपाई कर रहा हूं, यह सिर्फ़ मेरा दिल ही जानता है या मेरी स्वर्गवासी मां! मेरे इन सब झूठों के पीछे मेरी मां के वो अनगिनत आंसू ही तो हैं, जो सिर्फ़ मैंने देखे हैं. हम तीन भाई-बहनों में मैं सबसे बड़ा था. मुझसे दो साल छोटी मीनू, फिर उससे छोटा सोनू. पिताजी सामंतवादी सोच के, बनारस के घमंडी, सरकारी अधिकारी थे. वे हमेशा पत्नी को पैर की जूती समझनेवाले पुरुष थे.
हम बच्चों के सिर पर उन्होंने कभी स्नेहभरा हाथ नहीं रखा. शायद बड़ी संतान होने के कारण में मां के बहुत क़रीब था. मां के बिना कुछ कहे ही उनके सुख-दुख महसूस करने लगा था. मां को पिताजी ने कभी सम्मान नहीं दिया. हमारे कम हैसियतवाले ननिहाल से कोई आता, तो बिना अपमानित हुए न जाता. ननिहाल से किसी के आने की ख़बर सुनकर ही मां तनाव में आ जाती थीं. पिताजी के ताने उलाहने मां के दिल को चीर जाते थे. मां की आंखों में हमेशा नमी रहती थी. एक नौकर की तरह मां पिताजी के आगे-पीछे घूमती थीं. पिताजी की मुझे कोई अच्छी याद नहीं है और मां! यह शब्द मन में दोहराते ही मेरी आंखें भीगती चली जाती हैं.
पिताजी का अचानक हृदयगति रुकने से देहांत हुआ, तो मां रो-रोकर बेहाल हो गई थीं. उन्हें हम तीन भाई-बहनों ने मुश्किल से ही संभाला था.
मुझे मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई थी. मां सोनू-मीनू के साथ बनारस में ही रहना चाहती थी. मैं मुंबई चला आया.
धीरे-धीरे पिताजी के जाने बाद मां को अपने खोल से निकलते देखा मैंने. मां हंसने-बोलने लगी थी. सबसे बड़ी बात जो मुझे पता चली कि मां को पढ़ने का बहुत शौक था. अब कभी कोई पत्रिका, तो कभी उपन्यास पढ़ती थीं. मैंने एक दिन हैरानी से पूछा था, “मां, आप तो पहले कभी कुछ नहीं पढ़ती थीं.” बस इतना ही कहा था, “तुम्हारे पिताजी को पसंद नहीं था.”
“क्या पसंद नहीं था? आपका कुछ पढ़ना उनके क्लब, दोस्तों की महफ़िलों, उनके स्वभाव-व्यवहार, उनकी आदतों से तो अच्छी आदत ही थी यह.”
“अब कुछ मत कहो सोम.”
उसके बाद मैं कहीं भी जाता, मां के लिए किताबें ज़रूर लाता. कितना मन मारकर जी रही थी मां. मां की सहेली की बेटी ही है अंजलि. अंजलि मां को बहुत पसंद थी. मां हमेशा कहती थीं, “अंजलि को हमेशा ख़ुश रखना.” मीनू-सोनू की पढ़ाई-लिखाई, विवाह, अपने सब कर्तव्य मैंने मां की इच्छा से ही पूरे किए. एक दिन वे भी चली गईं. भरी दुनिया में तन्हा महसूस किया मैंने ख़ुद को उस दिन.
बस, जैसे मां को पिताजी के सामने कभी अपनी ज़िंदगी जीते नहीं देखा था, वैसा मुझे अब नहीं देखना था, इसलिए मैं मां के जीवन, उनके स्वभाव, उनके व्यवहार, उनके त्याग, उनके स्नेह की एक-एक बात याद रख यही कोशिश करता हूं कि मेरी पत्नी दुखी होकर न जीए. वह कभी अपना मन न मारे. उसे अपनी मर्ज़ी से जीने के लिए, अपने शौक पूरे करने के लिए मेरी मृत्यु तक इंतज़ार न करना पड़े. वो भी इंसान है, उसका भी जीवन है, उसकी भी ख़ुशियां है, इसलिए अगर अंजलि को ख़ुश रखने के लिए में कोई झूठ बोलता हूं, तो इसमें बुरा क्या है. किसी का कोई नुक़सान तो है नहीं. ये छोटे-छोटे झूठ मेरी पत्नी को ख़ुशी देते हैं, इस झूठ का कोई पाप नहीं!..
– पूनम अहमद
बॉलीवुड मेकर और एक्टर अनुराग कश्यप की बेटी आलिया कश्यप की शादी की रस्में शुरू…
बॉलीवुड की डिंपल गर्ल प्रीति जिंटा (Preity Zinta) ने अपने फिल्मी करियर में कई शानदार…
करीना कपूर (Kareena Kapoor Khan) और शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore) को बॉलीवुड की बेस्ट सास…
बॉलीवुड के मोस्ट पॉपुलर और क्यूट कपल में से एक कैटरीना कैफ और विक्की कौशल…
बॉलीवुड के मोस्ट एलिजिबल बैचलर सलमान खान (Salman Khan) अभी तक सिंगल हैं, लेकिन कई…
Just because hot and sweaty summers are behind us doesn’t mean skincare should take a…