“ओफ्फो! कितना परफ्यूम लगाओगी?.. तब से फिस्स फिस्स लगी हो.” मैंने प्रिया को टोकते हुए सोचा, कौन सी ऐसी पार्टी है कोचिंग की, जिसके लिए ये घंटे भर से तैयार हो रही है?.. मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी, लेकिन दादी सास तुनक गईं, “ना लगाया करो तुम अपनी भाभी का इत्र! इनका सामान बड़ा क़ीमती होता है…” उनकी बात अनसुनी करते हुए मैंने प्रिया की बेचैनी पर गौर किया, कुछ तो गड़बड़ है!
मांजी और विशाल दिल्ली गए हुए थे, किससे कहूं?
“मैं भी हज़रतगंज तक जा रही हूं, कोचिंग तक ड्राॅप कर दूंगी…” मैंने दांव फेंका.
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प्रिया हड़बड़ा गई, “नहीं भाभी! वो… वो… आप मुझे शिवानी के यहां छोड़ दीजिए. सब सहेलियां वहीं से कोचिंग जाएंगी.”
शिवानी के घर उसे छोड़कर, थोड़ी दूरी पर गाड़ी पार्क कर दी. लगभग १०-१५ मिनट बाद एक काले शीशों वाली इनोवा शिवानी के दरवाज़े रुकी. दोनों लड़कियां फुर्ती से अंदर घुसीं और गाड़ी फुर्र!
बिना एक पल गंवाए मैंने अपनी कार इनके पीछे दौड़ा दी. ये जा कहां रही हैं, कोचिंग तो इधर है ही नहीं.
गाड़ी पूरा लखनऊ पार करके सीतापुर रोड की तरफ़ बढ़ चुकी थी. दिमाग़ काम नहीं कर रहा था. अगर गाड़ी को ओवर टेक कर भी लूं, तो क्या पता कितने लोग हों अंदर? हथियार हुए उनके पास तो? हे ईश्वर! मदद करना… अपनी गाड़ी उनकी गाड़ी के सामने ले जाकर रोक दी.
“बाहर निकलो सब!” लोगों की भीड़ जुटने से मेरी हिम्मत बढ़ चुकी थी. डरी हुई लड़कियों के साथ तीन लड़के भी नीचे उतरे… नशे में धुत्त. इससे पहले कि लोगों के फोन के कैमरे हरकत में आते, उनको लेकर मैं निकल चुकी थी.
पूरे रास्ते दोनों रोती रहीं. घर आकर, थोड़ा सामान्य होने पर विशाल को फोन करके सब बताया, लड़कियों से भी पूछताछ की…
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“भाभी, वो लड़के भी हमारी कोचिंग में हैं. हम सबका चुपचाप वॉटर पार्क जाने का प्लान था. लेकिन वो लोग कहीं और ले जाने लगे, ड्रिंक भी कर रहे थे. आप नहीं आतीं तो… साॅरी भाभी…” प्रिया फिर सुबकने लगी.
दादी सास पीछे खड़ी घूर रही थीं, “चल क्या रहा है आज? इतनी देर तक हमें छोड़कर सब कहां गायब रहे… माफ़ी किस बात की?”
“अम्माजी, वो इत्र वाली शीशी थी ना, वो इसके हाथ से छूटकर गिरने वाली थी…” मैं बात घुमाने लगी.
प्रिया ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया, “भाभी ने आकर संभाल ली और ख़ुशबू को उड़ने से बचा लिया.”
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