कहानी- जादुई डायरी (Short Story- Jadui Diary)

“उफ़! इतने ख़तरनाक सपने! किसी से शेयर भी नहीं कर सकता… हं… अच्छा-ख़ासा मज़ाक बन जाएगा. वैसे मज़ाक तो मैं बन ही गया हूं. यह बॉस ने मुझे कैसी मुसीबत दे दी है?” अमित डायरी उठाकर बाहर फेंकने को तत्पर हुआ, पर फिर रूक गया. उस दिन भी वह पूरे दिन परेशान रहा. शाम को मां को आया देख उसे थोड़ी तसल्ली मिली. मां थोड़े-थोड़े दिनों में उसे संभालने आ जाती थी. लेकिन इस बार तो वे भी शिकायतों का पुलिंदा लेकर आई थीं.

सर्वे रिपोर्ट लेकर अमित सशंकित मन से बॉस के केबिन में दाख़िल हुआ और धड़कते हृदय से रिपोर्ट उनके आगे रख दी.
“‘वंडरफुल! माइंड ब्लोइंग!” रिपोर्ट पढ़ते ही बॉस के मुंह से प्रेरक शब्दों की बौछार-सी हो गई.
“बहुत अच्छा लिखते हो तुम!”
“सर, राइटिंग मेरी हॉबी है.”
“अच्छा, अब से रिपोर्टिंग का काम तुम ही देखोगे.”
अमित को समझ नहीं आया यह पुरस्कार था या दंड.
“शाम को घर आना. तुम्हारे लिए एक तोहफा है.”
निर्धारित समय पर अमित बॉस के घर पहुंच गया.
“यह लो जादुई डायरी.” लाल कवर की एक चमचमाती डायरी उसे थमाते हुए बॉस बोले.
“गत वर्ष मैं काम के सिलसिले में म्यांनमार गया था. वहां एक महंत ने मुझे यह डायरी दी थी. कहा था इसमें अपने मन की कोई भी बात जिसके बारे में आप जानना चाहते हैं लिखकर अपने सिरहाने रखकर सो जाओ. रात को सपने में आपको भविष्य का सब कुछ नज़र आ जाएगा… तब से यह डायरी ऐसे ही रखी है. मैं तो अकेला प्राणी हूं. उम्र हो चली है. कुछ जानने करने की इच्छा ही नहीं बची है… शायद यह तुम्हारे कुछ काम आ जाए.”
खाली डायरी के पन्ने पलटता, उधेड़बुन में डूबा अमित घर लौट आया. राइटिंग का शौक होने के कारण मन में कहीं पत्रकार बनने की दबी-दबी-सी इच्छा थी. सोचा क्यूं न इसी के बारे में लिख दूं. देखें, क्या होता है? सोचता हुआ वह सो गया.
सवेरे अंगड़ाई लेकर उठा, तो रात के सपने की याद अभी तक जेहन में ताज़ा थी. क्या सचमुच मैं इतना बड़ा पत्रकार बन सकता हूं? सपने में उसने स्वयं को चोटी के स्थापित पत्रकारों में पाया था. वह बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों से साक्षात्कार कर रहा था. लोग उसकी वार्ता सुनने के लिए उमड़े पड़ रहे थे. उसकी भाषा शैली, कार्य शैली ने चहुं ओर समां सा बांध दिया था.
‘क्या सचमुच मुझे इस नौकरी से इस्तीफा देकर स्वयं को पत्रकारिता के क्षेत्र में स्थापित कर लेना चाहिए?’ पूरे दिन उसके दिमाग़ में यही प्रश्न घुमड़ता रहा. जब वह बॉस को इस्तीफा देने जाएगा, तो क्या वे कहेंगे नहीं कि वह डायरी मैंने तुम्हें इसलिए दी थी क्या? यहां तक कि जब वह उन्हें फाइल देने गया, तब भी उसके दिमाग़ में यही बात घूम रही थी. इसलिए यकायक जब बॉस ने उससे डायरी के बारे में पूछ लिया, तो वह हड़बड़ा गया, “ज… जी….वो…”
“अरे कोई बात नहीं. ऐसी चीज़ों पर यक़ीन मुश्किल से ही आता है. अब मेरे पास भी तो इतने समय तक पड़ी रही. मैंने उसमें कुछ लिखा?.. अच्छा, वो मीटिंग का ऐजेंडा तैयार कर लेना.”
रात को सोने जाते वक़्त भी अमित उलझन में ही डूबा रहा. ‘यह मैंने क्या आफ़त मोल ले ली है? अच्छी-ख़ासी नौकरी को छोड़ने की सोचने लगा हूं… चलो, आज इसमें लिखकर देखता हूं, इसी नौकरी में मेरा क्या भविष्य है?” डायरी सिरहाने रखकर अमित गहरी नींद में सो गया.
अचानक स्वयं को सूटेड बूटेड एमडी की कुर्सी पर बैठा पाकर वह हैरान रह गया. सामने रखी लंबी-चौड़ी टेबल पर उसकी नेमप्लेट सुशोभित थी. कंपनी के सभी बड़े अधिकारी उसके सामने सिर झुकाए बैठे थे. और वह सभी को निर्देश दे रहा था. ऑफिस से बाहर निकलते ही ड्राइवर ने उसकी लंबी-सी कार का गेट खोला. घर पहुंचते ही उसका बेटा “डैडी-डैडी” करता आकर उससे लिपट गया. पीछे-पीछे बेटे की मम्मी भी, “अरे सुन तो…” की पुकार लगाती आ रही थी. वह उसकी एक झलक देख पाता, इससे पूर्व ही उसकी आंख खुल गई.

यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)


“ओह! शक्ल तक नहीं देख पाया.” मायूसी में लिहाफ़ हटाकर वह बाथरूम में घुस गया. तैयार होते वक़्त भी उसका दिमाग़ सपनों में ही घूमता रहा.
“उफ़! इतने ख़तरनाक सपने! किसी से शेयर भी नहीं कर सकता… हं… अच्छा-ख़ासा मज़ाक बन जाएगा. वैसे मज़ाक तो मैं बन ही गया हूं. यह बॉस ने मुझे कैसी मुसीबत दे दी है?” अमित डायरी उठाकर बाहर फेंकने को तत्पर हुआ, पर फिर रूक गया. उस दिन भी वह पूरे दिन परेशान रहा. शाम को मां को आया देख उसे थोड़ी तसल्ली मिली. मां थोड़े-थोड़े दिनों में उसे संभालने आ जाती थी. लेकिन इस बार तो वे भी शिकायतों का पुलिंदा लेकर आई थीं.
“ये रहे सारे फोटो और उनके बायोडाटा. अब जल्दी से चुन ले. शादी कर और मुझे रोज़ के इन चक्करों से मुक्ति दिला. कब तक मैं तुझे संभालने आती रहूंगी?”
“एक उलझन से तो निकल ही नहीं पा रहा और तुम यह दूसरी उलझन लेकर आ गई.” अमित ने हताशा से कहा तो मां घबरा गई.
“अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.” मां को घबराते देख अमित ने डायरीवाली बात उनके सामने खोलकर रख दी.
“ओह, यह बात है. मैं तो डर ही गई थी. बेटे, जादू-वादू कुछ नहीं होता. यह सब मन का वहम है. इंसान जो कुछ खुली आंखों से देखता और समझता है, वही आंखें बंद होने पर भी उसकी आंखों के सम्मुख तैरता रहता है.”
“चलो, वहम ही मान लो, पर मैं कामयाबी की जिन बुलंदियों को छूना चाहता हूं वे किस क्षेत्र को अख़्तियार करने पर मिलेगी? मैं सचमुच वह सब कुछ पा लेना चाहता हूं, जो मैंने सपने में देखा था. वह पावर, वह शानोशौकत… सब कुछ अपनी मुट्ठी में पकड़ लेना चाहता हूं…” कहते हुए अमित की आंखें चमक उठीं. बेटे की आंखों की चमक देखकर मां सिहर उठी. एक अनजाना-सा भय उसकी आंखों में उभर आया. जिसके चलते उसकी आंखें नम हो गईं और भावुकता के कारण आवाज़ में हल्का-सा कंपन उभर आया.
“तू जब छोटा-सा था न अमित, तुझे सीने से लगाकर मन को एक अजीब-सी शांति मिलती थी. ऐसा लगता था दुनिया में कोई तो ऐसा है, जिस पर मेरा पूरा अधिकार है. जो पूरी तरह मेरा अपना है. मुझ पर निर्भर है. फिर तू बड़ा होने लगा, अपने काम ख़ुद करने लगा, तेरे अपने यार-दोस्त बनने लगे. घंटों तुम्हें मेरा ख़्याल ही नहीं आता था. तब मन को थोड़ा धक्का लगा था. पर तब यह सोचकर ख़ुद को समझा लिया था कि साए की ओट से निकलकर ही तू भविष्य में मेरा साया बन पाएगा. शायद हर मां अपने बच्चे को बड़ा और आत्मनिर्भर बनते देखकर अपने मन को यूं ही तसल्ली देती है.
फिर तू इतना लंबा हो गया कि मुझे सिर उठाकर तुझसे बात करनी पड़ती थी. तेरे सिर पर हाथ फेरने के लिए हाथ ऊंचे करने पड़ते थे. मुझे लगा शरीरों के बीच यह बढ़ती दूरी दिलों के बीच की दूरियां भी बढ़ा रही है. मेरा अंदेशा ग़लत नहीं था. आज तुम्हारी आंखों में जो चमक मैं देख रही हूं, मुझे आभास हो गया है इन दूरियों ने अब विराट रूप ले लिया है. तू भी अब मुझसे बहुत दूर चला जाएगा… बहुत, बहुत दूर…” मां की धीमे-धीमे कहीं खोती जा रही आवाज़ ने अमित को चौंका दिया. उसने मां को कंधों से पकड़कर ज़ोर से हिला दिया.
“कहां खो गई मां? क्या हो गया है तुम्हें? मैं कहीं नहीं जा रहा. यहीं हूं तुम्हारे पास.” अमित मां को सीने से लगाकर उनकी पीठ सहलाने लगा. मां की हालत देखकर वह बहुत घबरा गया था.
“मैं ठीक हूं. रात बहुत हो गई है. अब सो जाते हैं.” थके कदमों से मां जाकर अपने बिस्तर पर लेट गई. लेकिन अमित की आंखों की नींद उड़ चुकी थी. मां का भावुकतापूर्ण अजीबोग़रीब व्यवहार उसकी सोच को थमने ही नहीं दे रहा था. इतने अस्वाभाविक ढंग से वे पहली बार पेश आई थीं. मां का एक-एक शब्द उसके कानों में हथौड़े की भांति गूंज रहा था. मां ने ऐसा क्यूं कहा कि अब तू भी मुझसे बहुत दूर चला जाएगा. इस ‘भी’ का क्या मतलब है?.. लगता है मां और पापा के संबंधों में बहुत दूरियां आ गई हैं. मां ख़ुद को अकेला महसूस करने लगी है. प्रमोशन पर प्रमोशन पाते पापा घर में सुख-सुविधा के सामान के साथ एक और चीज़ में भी वृद्धि करते जा रहे थे. वह थी मम्मी के चेहरे पर चिंता की लकीरें और अकेलेपन के एहसास से असमय ही उभर आई चेहरे की झुर्रियां.
पापा की व्यस्तता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी. मम्मी को अपनी कोई बात कहने के लिए भी उनके पीछे-पीछे घूमना पड़ता था. पापा मोबाइल पर बतियाते “हां हू…” करते रहते थे. आख़िर वे झल्लाकर अपनी बात ख़त्म किए बिना ही चली जाती थीं. अक्सर वह उन्हें गुमसुम किसी सोच या किसी किताब में डूबा पाता… लेकिन यह सब ख़्याल उसे आज क्यों आ रहा है?.. यह सब तो उसे बहुत पहले सोचना था. यदि पापा मम्मी को ख़ुश नहीं रख पाए, तो वह ही कहां कुछ कर पाया उनके लिए? अपनी पढ़ाई, अपने दोस्त और अब अपना करियर… मां ने उसे उंगली पकड़ाकर चलना सिखाया, कामयाबी की सीढ़ी पर पहला कदम रखवाया और वह सीढ़ियां फलांगता ऊपर चढ़ता चला गया. ऊपर और ऊपर… एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा कि मां हाथ ऊपर उठाए उसकी उंगली थामने का प्रयास कर रही है.
छी! वह कितना स्वार्थी हो गया था? लेकिन मां तो आज भी मां है. उन्हें उससे कोई शिकायत नहीं है. आज भी वे उसकी गृहस्थी बसाकर उसे ही सुखी बनाने के सपने देख रही हैं. सोते-जागते मां के सपनों में आज भी वह और उसका सुख ही है. लेकिन उसके सपनों में कभी मां आई?.. बचपन से लेकर अब तक की मां से जुड़ी हर बात याद कर अमित का दिमाग़ थकने लगा था. जल्द ही वह नींद के आगोश में समा गया. सवेरे वह देर तक सोता रहा. मां ने ही उसे झिंझोड़कर उठाया.
“उठ, ऑफिस नहीं जाना क्या?”
“नहीं मां, आज मैं छुट्टी ले रहा हूं.”
“क्यों, क्या हुआ? तबियत तो ठीक है?” मां घबराकर उसका सिर, हाथ छूने लगी.
“मुझे कुछ नहीं हुआ मां, मैं बिल्कुल ठीक हूं. बस, आज पूरा दिन तुम्हारे संग गुज़ारना चाहता हूं. परसों तुम चली जाओगी. फिर मैं अफ़सोस करता रहूंगा कि मां से जी भरकर बात तो हुई नहीं.”
“अरे वाह, तू तो एक ही रात में बहुत समझदार हो गया. देखूं तो कल डायरी में ऐसा क्या लिखा था?”
“हा… हा…” अमित हंस पड़ा.
“कल तो डायरी में कुछ लिखा ही नहीं. पूरी रात बस जागती आंखों से ही सपने देखता रहा. अभी सवेरे ही तो आंख लगी थी.”
“और मैंने उठा दिया.” मां की आवाज़ में गहरा पश्चाताप उभर आया. “पहले से क्यूं नहीं बताया कि आज छुट्टी लेनेवाला है.”
“सरप्राइज़ मां, अभी कुछ दिन तुम सरप्राइज़ झेलने की आदत डाल लो.”
“तू क्या कह रहा है, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा. तू फ्रेश हो, मैं चाय बनाकर लाती हूं.”
चाय का घूंट भरते हुए अमित ने प्रश्न किया, “पापा भी इस वक़्त चाय पी रहे होंगे न?”
ऐसा लगा मां के गले में कुछ अटक गया है.
“अं… हां शायद.” उनका संक्षिप्त जवाब था.
“पापा आजकल बहुत व्यस्त रहने लगे हैं न?.. अच्छा, आपको याद है हम एक बार झील के किनारे पिकनिक मनाने गए थे. पापा ने बोट चलाई थी. फिर बीच पानी में जाकर एक चप्पू मुझे पकड़ा दिया था और तब आप डरकर चिल्लाने लगी थीं. मैं और पापा ख़ूब हंसे थे.”
“तुम दोनों को तो तैरना आता है. मुझे तो नहीं आती न! चिल्लाती नहीं तो क्या करती?”
“और मेरी बर्थडे पार्टी, जिसमें पापा ने लॉन में बारबेक्यू का इंतज़ाम किया था. ख़ुद पापा ने कितने टेस्टी कबाब बनाकर सबको खिलाए थे!”
“तुम्हारे पापा को घूमने, खाने-पीने का ख़ूब शौक था. पता है तुम पैदा भी नहीं हुए थे, तब से हम हर संडे शाम को लॉन्ग ड्राइव पर जाते थे. वो भी बाइक पर. चाहे बारिश हो, चाहे कड़कड़ाती ठंड हमारा यह नियम कभी नहीं टूटता था.”
“वॉव, ग्रेट!”
“और जब लौटकर आते छींक-छींककर मेरी हालत पतली हो रही होती थी. तब तुम्हारे पापा अपने हाथों से हमारे लिए गरम-गरम कॉफी बनाकर लाते थे. सच, एक कॉफी में ही मेरा ज़ुकाम छू मंतर हो जाता था… तुम्हारे होने के बाद हमने लॉन्ग ड्राइव पर जाना, तो बंद कर दिया. पर तब हम रात को तुम्हें सुलाकर खुले टैरेस में बैठ जाते थे और वहां कॉफी का आनन्द लेते थे.”
“आप दोनों मुझे रीता आंटी के पास छोड़कर ग़ज़ल नाइट्स में भी तो जाते थे.”
“अरे वाह, तुम्हें तो सब याद है. हां, हम दोनों को ही ग़ज़ल सुनने का बहुत शौक था. एक भी ग़ज़ल नाइट हम मिस नहीं करते थे. और तेरा रीता आंटी के पपी के संग खेलने का शौक भी पूरा हो जाता था. सच… कितने प्यारे दिन थे वे! अब तो जेहन में यादें ही बची हैं. लगता था, दुनिया में मुझ जैसी ख़ुशनसीब शायद ही कोई होगी. सुख-सुविधाओं के साधनों से लदा-फदा मकान घर नहीं कहलाता अमित! घर बनता है आपसी प्यार सामंजस्य से. हमारे प्यारे से घर को शायद ज़माने की नज़र लग गई.
ऑफिस में एक प्रमोशन होना था. उसे पाने के लिए तुम्हारे पापा ने जी जान लगा दिया. उन दिनों उनकी भूख-प्यास सब मर गई थी. लेकिन बाज़ी हाथ नहीं आई. इस निराशा ने उन्हें चिड़चिड़ा बना दिया. ऑफिस का सारा ग़ुस्सा, तनाव घर पर निकलने लगा. साम, दाम, दंड, भेद सब लगाकर आख़िर अगली बार उन्होंने प्रमोशन पा ही लिया. रूतबा, शानोशौकत बढ़ी, तो लालसाएं भी बढ़ने लगी. कार, एसी, ब्रांडेड कपड़े, महंगी साड़ियां घर में आने लगे. तुम्हारे पापा के शौक बदल गए थे या यों कहो कि महत्वाकांक्षाओं की परतों के नीचे दब गए थे. आधे से ज़्यादा दिन ऑफिस में बिताने के बाद भी घर पर भी उनका दफ़्तर चलता रहता था. मेरे साथ तो वे होकर भी नहीं होते थे. मोबाइल या किसी न्यूज़पेपर पत्रिका में ही डूबे रहते.
कल तुम्हारी आंखों में भी यही सब पाने की चमक देखी, तो मैं घबरा गई.
बेटे, तुम अपने पापा की ग़लती मत दोहराना. ये सब चीज़ें तुम्हें क्षणिक सुख दे सकती हैं, सच्चा आत्मसंतोष नहीं. क्या मैं नहीं जानती कि इतना सब कुछ पा लेने के बावजूद भी कहीं भीतर से वे नाख़ुश है. कई व्याधियों ने उन्हें घेर लिया है. सब दिन मित्रों, चाटुकारों से घिरे रहने के बावजूद अंदर से वे बेहद अकेले हैं. मैं नहीं जानती मुझे लेकर वे क्या सोचते हैं?
शादी के आरंभिक दिनों की वे ख़ुशनुमा यादें उन्हें भी सताती है या नहीं? मेरी उस घर में भूमिका मात्र उन्हें समय पर दवा, खाना, कपड़े आदि उपलब्ध कराने की रह गई है. अमित, बेटा तू चाहे कितना ही बड़ा आदमी बन जाना, लेकिन अपने घर-परिवार को कभी मत बिसराना. ज़िंदगी में संतुलन बनाए रखना बहुत ज़रूरी है. जो इंसान शीर्ष पर पहुंचकर भी यह संतुलन बनाए रखता है, वही शीर्ष पर बना रहता है, वरना अंदर ही अंदर असंतोष का घुन उसे खाए चला जाता है. और अंत में वह खोखला होकर निष्प्राण हो जाता है. राइटिंग तेरा शौक है. तू चाहे इसे पेशे के रूप में अपना. अपने इस शौक को हमेशा ज़िंदा रखना. इससे तुम्हें काम करने के लिए नई ऊर्जा मिलती रहेगी.”
‘मां ने कितनी आसानी से मेरी समस्या का समाधान कर दिया था.’ अमित मन ही मन मां का शुक्रगुज़ार हो उठा.
वह पूरा दिन दोनों ने ढेर सारी पुरानी यादों और मनपसंद खाने के साथ बिताया. रात को मां सोने जाने लगी, तो अमित ने मुस्कुराते हुए उन्हें डायरी पकड़ा दी.
“आज आप इसमें अपने दिल की बात लिखकर देखिए.”
“चल हट! मेरी डायरी तो तू है. आज तेरे सामने दिल की सारी बातें खोलकर रख देने से मन बहुत हल्का हो गया है.”
“फिर भी एक बार…”
“अच्छा ला. अभी तक बच्चों की तरह ज़िद करता है.” डायरी मां के सिरहाने रख अमित भी सो गया. सवेरे डोरबेल की आवाज़ सुन मां ने उठकर दरवाज़ा खोला तो हैरान रह गई.
“आप? यहां?”
तब तक अमित भी उठकर आ गया था.
“अरे पापा! वाॅट ए प्लेजेंट सरप्राइज़! मैेंने कहा था न मां कि तुम अब सरप्राइजेज़ झेलने के लिए तैयार हो जाओ.”
“पर…” मां अब भी कुछ समझ नहीं पा रही थी.
“मैं तैयार होने जा रहा हूं, वरना ऑफिस के लिए लेट हो जाऊंगा.” सफ़ाई से कन्नी काटता अमित बाथरूम में घुस गया.
“कल तुमने अमित से जो कुछ भी कहा उसने चुपके से मोबाइल पर रिकॉर्ड कर रिकॉर्डिंग मुझे भेज दी. मैं… मैं… तुमने मुझसे क्यों नहीं कहा यह सब पहले ..?”

यह भी पढ़ें: राशि के अनुसार चुनें करियर (What Your Zodiac Sign Says About Your Career)


“मां मेरा नाश्ता लगा देना. लेट हो रहा ह़ू.” अमित अंदर से चिल्लाया.
“हां लगा रही हूं. आप इधर मेरे बाथरूम में फ्रेश हो जाइए. आपके लिए भी चाय बना देती हूं.” मां पल्लू खोंसते हुए रसोई में घुस गई. ख़ुशी के अतिरेक में उनके हाथ मशीन की भांति चल रहे थे. तभी पीछे से अमित ने आकर उनके गले में बांहें डाल दी.
“क्यों मां, मान गई न डायरी के जादू को? एक ही रात में पापा खिंचे चले आए.”
“अभी बताती हूं.” मां ने उसके कान खींचे.
“शैतान, मां की बातों की गुपचुप रिकॉर्डिंग करता है.”
यकायक भावुक होकर उन्होंने अमित का माथा चूम लिया.
“मैंने कल ठीक ही कहा था. मेरी जादू की डायरी तो तू है. डायरी ने तो बस सपने ही दिखाए, तूने तो उन्हें हक़ीक़त में बदल दिया.”
ताज़ी हवा का एक झोंका आया और बिस्तर पर पड़ी डायरी के पन्ने फड़फड़ा उठे. तौलिए से हाथ पोछते दो हाथों ने आगे बढ़कर उन्हें थाम लिया.

संगीता माथुर

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

रणबीर कपूरच्या वाढदिवसानिमित्त आई नीतू कपूरने शेअर केली स्पेशल पोस्ट(Neetu Kapoor Writes Special Post On Ranbir Kapoor’s Birthday)

रणबीर कपूरसाठी आजचा दिवस खास आहे. आज म्हणजेच 28 सप्टेंबर रोजी तो त्याचा 42 वा…

September 28, 2024

भूताला मुक्ती, तर तरुणाला प्रेम मिळवण्यासाठीचा रंजक प्रवास, येतोय नवा मराठी सिनेमा( New Marathi Movie Ek Dav Bhutacha Release Soon)

स्मशानात जन्म झाल्यामुळे सतत भूत दिसणाऱ्या तरूण आणि मुक्ती मिळण्याच्या प्रतीक्षेत असलेलं भूत यांच्यातील धमाल…

September 28, 2024

लग्नाच्या ३ महिन्यांनी सोनाक्षीने केली नवऱ्याची पोलखोल, कोणती सवय आवडत नाही? (Sonakshi Sinha Exposed Zaheer Iqbal After Three Months Of Marriage, Reveals Which Habit of Her Husband Bothers Her)

बॉलिवूडची दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हाने धर्माची भिंत तोडून झहीर इक्बालसोबत लग्न केले. आंतरधर्मीय विवाह केल्यामुळे…

September 28, 2024

आराध्या नेहमीच सोबत का ? रिपोर्टरच्या प्रश्नाला ऐश्वर्याने दिले चोख उत्तर(Aaradhya is My Daughter… Reporter Asked Question to Aishwarya Rai About Her Daughter)

पती अभिषेक बच्चनसोबत घटस्फोटाच्या बातम्यांदरम्यान ऐश्वर्या राय बच्चन अनेकदा तिची मुलगी आराध्या बच्चनसोबत दिसते. पुन्हा…

September 28, 2024

कहानी- दूसरा जन्म (Short Story- Doosra Janam)

सौतेली मां का रिश्ता सदियों से बदनाम रहा है, मैं सोचती थी कि तुम पर…

September 28, 2024
© Merisaheli