लघुकथा- कमला की पहल (Short Story- Kamala Ki Pahal)

“अरे वाह कमला, ये तो बहुत अच्छा किया तूने. तुझे तो ‘सुपर मां’ का ख़िताब मिलना चाहिए.” और सारी महिलाएं ज़ोरदार तालियों के साथ कमला के इस फ़ैसले का स्वागत करने लगीं.
और वही बैठीं मिसेज़ शर्मा शर्म से लाल हो अपना मुंह नीचे की ओर झुका के बैठ गईं, जिन्होंने लोक लाज के कारण अपनी इकलौती बेटी को ससुराल के कष्ट सहने को मजबूर कर दिया था.

छोटी-सी नन्हीं बच्ची को गोद में लिए कमला अपनी बिटिया के साथ चली आ रही थी. यहां पूस माह की दोपहरी में धूप सेंकती कुर्सियों पर तमाम बड़े घर की महिलाएं बैठी हुई थीं जहां कमला काम करती थी. तभी उन्हीं महिलाओं में से एक ने कमला को टोका, “अरे कमला, दो दिन से काम पर क्यों नहीं आई? कहां गई थी बिना बताए? और ये पूनम को सुसराल से क्यों ले आई? अभी तो इसकी बेटी महीनेभर की भी नहीं हुई.”

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तभी कमला अपने बुंदेली अंदाज़ में बोली, “अरे दीदी, का बताएं दामाद मारत हतो और गाली-गलोच सो अलग… आप लोग तो जानती हो, अगर पति इज्ज़त न करे, तो सासरे बारे तो ठीकई आएं, जेई से रिपोर्ट करा आए सबकी और पूनम को संगे लिवा लाए. बहुत हो गओ. कहां तक सहती बिटिया… पूनम ने फोन करो कि ‘बहुत मारो आज अम्मा! दहेज के ताने दे रहे सब… सो अचानक से जावो हो और आप लोगन को बता न पाए.”
“अरे वाह कमला, ये तो बहुत अच्छा किया तूने. तुझे तो ‘सुपर मां’ का ख़िताब मिलना चाहिए.” और सारी महिलाएं ज़ोरदार तालियों के साथ कमला के इस फ़ैसले का स्वागत करने लगीं. कमला ने बेटी के दर्द को समझा. उसे न केवल ससुराल की अत्याचार व प्रताड़ना से बचाया, बल्कि साथ ले आने का कठोर फ़ैसला भी किया.

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और वही बैठीं मिसेज़ शर्मा शर्म से लाल हो अपना मुंह नीचे की ओर झुका के बैठ गईं, जिन्होंने लोक लाज के कारण अपनी इकलौती बेटी को ससुराल के कष्ट सहने को मजबूर कर दिया था. मगर अब क्या हो सकता था? मायकेवालों से मदद की भीख मांगते-मांगते उनकी बेटी अब दुनिया को अलविदा कह चुकी थी.

पूर्ति वैभव खरे

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