लघुकथा- ख़ुशी (Short Story- Khushi)

“काफ़ी ख़ुश दिख रहे हो! क्या नए मकान का लोन मंज़ूर हो गया.”
“नहीं, लोन मंज़ूरी में कुछ वक़्त और लगेगा.”
“इतना अधिक ख़ुश क्यों हो! क्या गांव के प्लाट का बढ़िया ख़रीददार मिल गया?”
“नहीं, अभी उसका बेचना स्थगित कर रखा है?”
“बेहद ख़ुश हो, क्या बॉस ने छुट्टियां मंज़ूर कर दी?”
“अरे नहीं, उन्होंने दो वीक की लीव को कम करके अप्लाई करने को कहा है.”

“बड़े ख़ुश दिख रहे हो! क्या नया इन्क्रीमेंट लगा है, वेतन बढ़ोत्तरी हुई है?”
“नहीं! वह अगले महीने बढ़ेगी.”
“बड़े ख़ुश दिख रहे हो! क्या तुम्हारे बेटे को आईआईटी में प्रवेश मिल गया?”
“नहीं! वह इस बार कंपीट नहीं कर पाया.”
“बड़े ख़ुश दिख रहे हो! क्या भाभीजी का तबादला उस दूर ग्रामीण क्षेत्र से शहर में हो गया है?”
“नहीं! अभी तो उसको दो वर्ष और बाकी है?”
“बेहद ख़ुश हो! क्या प्रमोशन के लिए इस बार एलिजिबल हो गए हो.”
“नहीं, उसके बारे में मुझसे बेहतर मेरा विभाग जानता होगा.”

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“काफ़ी ख़ुश दिख रहे हो! क्या नए मकान का लोन मंज़ूर हो गया.”
“नहीं, लोन मंज़ूरी में कुछ वक़्त और लगेगा.”
“इतना अधिक ख़ुश क्यों हो! क्या गांव के प्लाट का बढ़िया ख़रीददार मिल गया?”
“नहीं, अभी उसका बेचना स्थगित कर रखा है?”
“बेहद ख़ुश हो, क्या बॉस ने छुट्टियां मंज़ूर कर दी?”
“अरे नहीं, उन्होंने दो वीक की लीव को कम करके अप्लाई करने को कहा है.”
“बहुत ख़ुश हो, लगता है मनचाही पोस्टिंग के आसार है?”
“ऐसी बात नहीं है. एचआर ने कहा है कि अगले दो वर्ष तक कोई जगह खाली नहीं है.”
“बड़े ख़ुश दिख रहे हो! फिर आख़िर क्या बात है?”
“कल रात…”
“क्या कल रात…? कोई ख़ूबसूरत वाकया?”


“हां, बेहद ख़ूबसूरत! यार वर्षों बाद बहुत अच्छी और गहरी नींद आई. हृदय और मन इतना प्रसन्न है कि लगता है जीवन में ख़ुशी ही ख़ुशी है. जीवन की बाहरी सभी परिस्तिथियां पहले जैसी है फिर भी. अब तक मैं पैसा, प्रोमोशन, ट्रांसफर, बच्चे का भविष्य, ख़ुद का तबादला, छुट्टियां आदि में ख़ुशिया ढूंढ़ता था, किन्तु आज लगा शांत मन से अधिक सच्ची ख़ुशी किसी चीज़ में नहीं है. लग रहा है, पागलों की तरह नाचूं, गाऊं…सेलिब्रेट करूं…”


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एक फुसफुसाहट सुनाई देती है.
“लगता है, यह सच में पागल हो गया है. बिना किसी कारण ख़ुश हुए जा रहा है.”

– गौतम कुमार ‘सागर’

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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