कहानी- माथे पर बिंदी… (Short Story- Mathe Par Bindi)

ये कौन-सा समाज है, जहां औरतों पर हो रहे ज़ुल्मों और अत्याचारों को रीतियों और नियमों का नाम दे दिया जाता है और बेचारी औरतें इन रूढ़ियों के पैरों तले दबे-दबे अपना दम तोड़ देती हैं. ये कौन लोग हैं, जो तय करते हैं कि एक औरत क्या पहनेगी, कैसे रहेगी, कैसे श्रृंगार करेगी, क्या खाएगी, कितना बोलेगी, कितना हंसेगी. अरे! बाहर निकलिए इन दकियानूसी, रूढ़िवादी सोच से, जहां नियम बनाकर एक औरत को ही दूसरी औरत के ख़िलाफ़ खड़ा किया जाता है और उन्हें दबाया जाता है.

प्रिया पूरे दो साल बाद अपने देश आ रही थी. इतने साल बाद घर आने की ख़ुशी अलग ही होती है. पढ़ाई पूरी होने के बाद विदेश में ही नौकरी लग गयी थी प्रिया की और वो वहां पर ही सेटल हो गई थी. घरवालों से मिलने की जल्दी तो थी ही प्रिया को, उससे भी ज़्यादा जल्दी थी सीमा से मिलने की. पक्की सहेलियां थी दोनों. बचपन से ही एक-दूसरे के साथ खेलकर बड़ी हुई थीं. एक ही स्कूल, एक ही कॉलेज एक दिन भी एक-दूसरे से मिले बगैर, बात करे बिना नहीं रह पातीं. हम तो शादी भी ऐसे ही घर में करेंगे, जिस घर में दो भाई हों, ऐसा कहतीं. लेकिन हमेशा ऐसा होता तो नहीं, शादियां तो संजोग से होती हैं न. सीमा की शादी उसी शहर में रहने वाले विकास से हो गई और प्रिया चली गई विदेश.
बचपन से ही तरह-तरह की बिंदियां लगाने का शौक था सीमा को. जब भी बाज़ार जाती ख़ूब सारी बिंदियां उठा लाती. आंटी से ख़ूब डांट पड़ती. क्या करोगी इतनी सारी बिंदी का, पूरा घर भर दोगी. मगर वो नहीं सुनती. स्वभाव से एकदम ज़िद्दी. हमेशा अपने ही मन की करती. हालांकि रंग-बिरंगी बिंदियां उसके दमकते चेहरे की सुंदरता पर और चार-चांद लगा देती थी. सीमा हमेशा बोलती, “देखना प्रिया, जब मेरी शादी होगी तो शादी के बाद कितनी तरह-तरह की बिंदी लगाऊंगी.”
मैं हंस पड़ती, “हां, शादी तो एक तेरी ही होगी हमारी थोड़ी न. हम थोड़ी न बिंदी लगाएंगे.” बस इसी नोंक-झोंक के बीच सीमा की शादी भी तय हो गई. सबसे सुंदर दुल्हन लग रही थी सीमा अपनी शादी में. लाल जोड़ा, माथे पर बिंदी, हाथों में चूड़ियां, दुल्हन के लिबास में एक अलग सा ही नूर था उसके चेहरे पर. आख़िरी बार तभी देखा था उसे. अतीत के पन्नों में पूरी तरह डूबी हुई प्रिया अपनी दोस्ती के उन जीवंत पलों को याद कर बहुत उत्साहित महूसस कर रही थी. अब पूरे दो साल बाद देखूंगी सीमा को. अब तो और भी सुंदर दिखने लगी होगी. एकदम सजी-धजी जैसे किसी अप्सरा की तरह. मुझे यूं अचानक देखकर, तो चौंक ही जाएगी. यही सब सोचते-सोचते कब एयरपोर्ट आ गया पता ही नहीं चला प्रिया को. सबसे पहले बाज़ार जाकर सीमा के लिए लाल रंग की साड़ी और बिंदियां ख़रीदी. बिंदी देखकर सीमा बहुत ख़ुश हो जाएगी.

यह भी पढ़ें: महिलाओं के हक़ में हुए फैसले और योजनाएं (Government decisions and policies in favor of women)


घर पहुंचते ही सबसे मिलकर बोली, “मैं सीमा से मिलने जा रही हूं. बहुत दिन हो गए हैं. कितने समय से बात भी नहीं हुई उससे.”
“बाद में मिल लेना थोड़ा आराम तो करे ले. अभी-अभी आई है. ठीक से बात भी नहीं हुई.” मां ने कहा.
“नहीं मां, बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी.”
“अरे, पर सुन तो…”
“आती हूं थोड़ी देर में…” कहकर प्रिया निकल गई.
सीमा के घर पहुंचकर दरवाज़े की घंटी बजाई, तो सीमा की सास ने दरवाज़ा खोला.
“नमस्ते आंटी, सीमा है? मैं उसकी बचपन की दोस्त प्रिया.”
“आओ, अंदर आओ. तुम बैठो, मैं अभी बुलाती हूं सीमा को. सीमा तुम्हारी सहेली आई है. नीचे आ जाओ.”
मन ही मन सोचने लगी कि आते ही कितनी डांट लगाएगी मुझे और पता नहीं जीजू क्या कहेंगे, कैसे मिज़ाज होंगे उनके. सीढ़ियों से सीमा को नीचे के हॉल में आते हुए देखा, तो आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. पैरों तले ज़मीन खिसक गई. सफ़ेद साड़ी, न माथे पर बिंदी, न हाथों में चूड़ियां,सूनी मांग. बस, मुझे देख आकर रोते हुए गले लग गई और बोली, “बहुत देर लगा दी आने में. कहां थी तुम. जब मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तुम क्यों नहीं थी प्रिया. तुम्हें कभी अपनी सहेली की याद नहीं आई. ज़िंदगी ने जो इतना बड़ा ग़म मुझे दिया, वो मैं किसके साथ बांटती. तुम्हारी कमी हर पल खलती रही. तुम मेरे साथ क्यों नहीं थी प्रिया.”
“ये सब कैसे सीमा?” प्रिया ने पूछा.
“विकास एक सड़क दुर्घटना में नहीं रहे. बहुत ख़ुश थी मैं उनके साथ, मानों मेरी ख़्वाहिशों को पंख लग गए हो. वो मेरी छोटी से छोटी ज़रूरत का ख़्याल रखते. तुझे पता है वो भी मेरे लिए रंग-बिरंगी बिंदियां लाया करते थे, क्योंकि वो जानते थे कि मुझे कितनी ख़ुशी मिलती है बिंदी लगाने से. पर ये क्या हो गया प्रिया अभी तो हमने अपने नए जीवन की शुरुआत ही ठीक से नहीं की थी और ये दुखों का पहाड़ मेरे ऊपर टूट गया. मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ प्रिया. मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था. मुझे किस बात की सज़ा मिली है.”
“मुझे माफ़ कर दो सीमा. मुझे इन सबके बारे में कुछ भी नहीं पता था. सोचा था घर आकर दोनों मिलकर ख़ूब घूमेंगे, शॉपिंग करेंगे, जीजू के कान पकड़कर पूछूंगी कि कहीं वो मेरी प्यारी सहेली को परेशान तो नहीं करते है. लेकिन यहां आकर तुम्हें इस रूप में देखूंगी सपने में भी नहीं सोचा था.”
“क़िस्मत का लिखा कौन टाल सकता है प्रिया, पर अब तुम आ गई हो, तो थोड़ा दुख तो हल्का होगा.”
“अच्छा! सीमा अब से मैं रो़ज़ तुम्हारे पास आऊंगी. हम ख़ूब बातें करेंगे.”
जाते हुए प्रिया ने कहा, “ये लाल साड़ी और बिंदियां लाई थी तुम्हारे लिए.”
“अब ये मेरे लिए नहीं हैं. तुम वापस ले जाओ.”
“लेकिन बिंदी, वो तो तुम्हें पसंद थी न.”
“हां पसंद थी, पर अब समाज मुझे इसे लगाने की इजाज़त नहीं देता.”

प्रिया चुपचाप वापस आ गई. सीमा से मिलने के बाद प्रिया के मन में एक अजीब सी बेचैनी बनी रही. घर आकर मां से पूछा, “मां, क्या पति के इस दुनिया से चले जाने पर पत्नी की ज़िंदगी बिलकुल बेरंग हो जाती है. इतनी कि वो अपनी सबसे प्यारी चीज़ को भी त्याग देती है.”
“हां यही रीत है दुनिया की.” मां ने कहा. लेकिन ये कैसी रीत है… प्रिया सोचने लगी.
अब प्रिया रोज़ सीमा के घर जाती. प्रिया से अपने मन की बात करके सीमा के दिल का बोझ थोड़ा हल्का ज़रूर होता, मगर फिर भी उसके होंठों पर फीकी सी मुस्कान और आंखों से छलके आंसू उसके दर्द को बयां कर ही देते. प्रिया हर दिन सीमा से मिलकर दुखी मन से घर वापस लौटती, क्योंकि अब सीमा, वो पहले वाली सीमा रही ही नहीं थी, जो हर बात पर ज़ोर-ज़ोर से खिलखिलाने वाली, मौज-मस्ती वाली और हमेशा अपने मन की करने वाली थी. अब जो सीमा सामने थी, वो तो ज़िंदगी जीना भूल ही गई थी.
बातों-बातों में एक दिन प्रिया ने पूछा, “सीमा, तुम अपने मायके क्यों नहीं चली जाती हो? ऐसी बेरंग ज़िंदगी से तो बेहतर ही होगा.”
“वो भी कोशिश करके देख ली. मगर तुम्हें तो पता ही है न, शादी के बाद लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि ससुराल ही तुम्हारा असली घर है और आगे की ज़िंदगी उनके हिसाब से ही निभानी पड़ती है. वैसे भी हर माता-पिता समाज के बनाए हुए नियमों के विरुद्ध कहां जा पाते हैं, इसलिए ये ख़्वाहिशों की कब्र में, बंधनों और नियमों में लिपटी हुई ज़िंदगी ही मेरी असलियत है. लेकिन कभी-कभी एक घुटन-सी महसूस होती है. फिर अपनी हक़ीक़त से समझौता कर लेती हूं. खैर, तुम मेरी छोड़ो, कुछ अपने बारे में भी बताओ.”
“मेरे बारे में कल बताऊंगी सीमा. अब में चलती हूं. मां इंतज़ार कर रही होंगी.” कहकर प्रिया घर के लिए निकल गई.
दूसरे दिन प्रिया सीमा के घर गई और बोली, “इधर आओ सीमा.” पर्स से बिंदी निकाली और लगा दी सीमा के माथे पर.
“आईना देखो सीमा, अब तुम वही पहले वाली सीमा लग रही हो.” सीमा ने भी आईना देखा, तो एक हल्की मुस्कान आ गई उसके चेहरे पर. विकास के जाने के बाद तो जैसे वो आईना देखना भूल ही गई थी. लेकिन जैसे ही सीमा की सास आई, उसके माथे पर बिंदी देख कर बुरी तरह चिल्ला पड़ी, “ये क्या कर रही हो? विधवा को बिंदी लगा रही हो. कोई शर्म-लिहाज़ है कि नहीं.”

यह भी पढ़ें: ‘वो मर्द है, तुम लड़की हो, तुमको संस्कार सीखने चाहिए, मर्यादा में रहना चाहिए…’ कब तक हम अपनी बेटियों को सो कॉल्ड ‘संस्कारी’ होने की ऐसी ट्रेनिंग देते रहेंगे? (‘…He Is A Man, You Are A Girl, You Should Stay In Dignity…’ Why Gender Inequalities Often Starts At Home?)


“लेकिन आंटी बिंदी लगाने में क्या हर्ज़ है?” प्रिया ने कहा.
“एक विधवा को बिंदी लगाकर पाप का भागीदार बना रही हो और पूछती हो कि क्या हर्ज़ है. समाज वाले देखेंगे, तो क्या कहेंगे. पति को मरे ज़्यादा समय भी नहीं हुआ और बीबी श्रृंगार कर के घूम रही है. पर आंटी ये सब तो पुरानी बातें हो गई हैं. अब इन पुरानी रूढ़ियों को कोई नहीं मानता.” प्रिया ने कहा.
“नहीं मानते होंगे, मगर हम मानते हैं. कुछ दिन विदेश में क्या रह लीं हमें सिखा रही हो. सीमा हमारे घर की बहू है वो कैसे रहेगी ये हम तय करेंगे तुम नहीं. वैसे भी जब से इस घर में आई है, हमारे घर की सुख-शांति छिन गई. कौन से मुहुर्त में ब्याह के लाए थे इसे. मेरे बेटे को भी खा गई. मनहूस है ये. अब ये वही करेगी, जो हम कहेंगे.” सीमा की तरफ़ बढ़ीं और बिंदी हटा के ज़मीन पर फेंक दी. प्रिया ने दूसरी बिंदी निकाली और सीमा के माथे पर फिर से लगा दी.
“ऐ लड़की…” सीमा की सास बौखलाई. “तुम हमारे घर के मामलों में न पड़ो. सीमा इस घर की बहू है. हर औरत को समाज के बनाए गए नियमों के हिसाब से ही चलना पड़ता है. पति के मरने के बाद जैसे सारी औरतें रहती हैं बहू को भी वैसे ही रहना पड़ेगा.”
“यही तो बात है आंटीजी, इसे आपने बहू ही समझा, अगर बेटी माना होता तो इसकी तकलीफ़ देख पातीं. एक औरत होकर भी एक दूसरी औरत का दर्द नहीं समझ पाईं आप. देखिए इसकी तरफ़, एक ज़िंदा लाश के सिवाय अब ये और कुछ नहीं. चलो सीमा मेरे साथ. मैं तुम्हें इन दकियानूसी, रूढ़ियों में पड़कर अपना जीवन बर्बाद नहीं करने दूंगी. जहां पति के गुज़र जाने के बाद पत्नी को जीते जी मार दिया जाता है. जहां पुरुषों के लिए कोई सीमा नहीं, मगर औरतों के लिए हज़ारों सीमाएं हैं. जहां पत्नी के गुज़र जाने के बाद, तुरंत ही पति को दूसरी शादी के लिए प्रेरित किया जाता है. उन्हें समाज की किसी भी घिसी-पिटी कुरीति के बंधन में नहीं बांधा जाता है, वहीं पत्नी को नीरस जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है. ये कौन-सा समाज है, जहां औरतों पर हो रहे ज़ुल्मों और अत्याचारों को रीतियों और नियमों का नाम दे दिया जाता है और बेचारी औरतें इन रूढ़ियों के पैरों तले दबे-दबे अपना दम तोड़ देती हैं. ये कौन लोग हैं, जो तय करते हैं कि एक औरत क्या पहनेगी, कैसे रहेगी, कैसे श्रृंगार करेगी, क्या खाएगी, कितना बोलेगी, कितना हंसेगी. अरे! बाहर निकलिए इन दकियानूसी, रूढ़िवादी सोच से, जहां नियम बनाकर एक औरत को ही दूसरी औरत के ख़िलाफ़ खड़ा किया जाता है और उन्हें दबाया जाता है. चलो, सीमा जहां प्यार, स्नेह और सम्मान न मिले, वहां से चले जाना ही बेहतर होता है.” सीमा ने भी प्रिया का हाथ पकड़ा और चली गई अपनी आज़ादी की ओर.

ऐसा ही तो होता आ रहा है हमारे समाज में, पुरुषों के लिए कोई नियम नहीं, वहीं औरतों के लिये हज़ारों नियम-कायदे. ऐसी रूढ़िवादी सोच ही औरतों को नरक सा जीवन जीने के लिए मजबूर करती हैं. ऐसा कौन सा तूफ़ान आ जाएगा अगर कोई सीमा पति के गुज़र जाने के बाद बिंदी लगाना चाहे या फिर चूड़ियां पहनना चाहे. क्या पाप है और क्या पुण्य, ये कौन तय करता है. अगर एक औरत चाहे तो वो हर बंधन से मुक्त हो सकती है, बस उसके इरादे मज़बूत होने चाहिए. जीवन-मरण सब ईश्वर के हाथ है. पति के जाने के बाद उसका दोष पत्नी के सिर मढ़ने की बजाय उसकी बिखरी हुई ज़िंदगी को प्यार और स्नेह से संवारते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

विनीता आर्या

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

प्रेरक कथा- राजा की बीमारी (Short Story- Raja Ki Bimari)

साधु ने कहा कि वह जंगल में ही रहना चाहते हैं, वह किसी राजा का…

March 28, 2024

जोडीनं घ्या आनंद (Enjoy Together)

जोडीदारापेक्षा चांगला फिटनेस पार्टनर कोण होऊ शकतो? या प्रकारे दोघांनाही फिटनेस राखता येईल, शिवाय सध्याच्या…

March 28, 2024

जोडीनं घ्या आनंद

जोडीनं घ्या आनंदजोडीदारापेक्षा चांगला फिटनेस पार्टनर कोण होऊ शकतो? या प्रकारे दोघांनाही फिटनेस राखता येईल,…

March 28, 2024

मन्नत आणि जलसापेक्षाही आलिशान असणार आहे कपूरांचं घर? (Ranbir Kapoor Aalia Bhatt New Home Named As Their Daughter Raha Getting Ready In Bandra)

बॉलीवूडमधील क्युट कपल म्हणजेच रणबीर कपूर आणि आलिया भट्ट हे त्यांच्या अफेरपासूनच  फार चर्चेत होतं.…

March 28, 2024
© Merisaheli