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कहानी- मुझे चांद चाहिए (Short Story- Mujhe Chand Chahiye)

“दवाई क्यों देंगे रिया? डॉल को चोट लगी है क्या?” उसकी सहेली चिंता से भर गई.
“नहीं, डॉल को बुखार है,” रिया की आवाज़ अजीब सी हो गई, “पता है इसको क्यों बुखार है? इसकी मम्मा इसको छोड़कर जा रही है. अब इसके साथ नहीं रहेगी… इससे कभी-कभी मिलने आएगी…”
मैं उसकी बात सुनते ही फूट-फूटकर रो पड़ी. मेरी छोटी-सी बच्ची इतना दर्द चुपचाप सह रही है. ये है मेरी सफलता?

“आज चलकर कुछ कॉटन‌ के कुर्ते, साड़ियां ले लो… चेन्नई में उमस बहुत रहती है. इन कपड़ों में उबल जाओगी.” शरद मुझे गुदगुदी करते हुए हंसाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मैं निर्विकार भाव लिए बैठी रही. शरद ने हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया.
“देखो सीमा, तुम कितने सालों से इस प्रमोशन का इंतज़ार कर रही थी ना.. अब क्यों परेशान‌ हो? पुणे से चेन्नई है ही कितनी दूर? दो घंटे की फ्लाइट है. हर शनिवार-इतवार आ जाना… रिया के लिए मैं और मां हैं ना.”
मैं ‘हां’ में सिर हिलाती रही और शरद की बातों में छुपी उदासी को महसूस करती रही… मेरे स्थानांतरण से शरद भी दुखी हैं, लेकिन मेरे सपने को बचाने के लिए एक बार भी नहीं कहा कि ‘मत जाओ’…


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ताउम्र वही‌ सपना, बार-बार देखा… मेरे सामने सीढ़ियां हैं, फूलों से ढकी, घुमावदार… मैं एक-एक सीढ़ी पर पैर रखती हुई आगे बढ़ती जा रही हूं, सामने चांद बांहें फैलाए हुए मेरी राह तक रहा है… आज वो सीढ़ियां मुझे दिख रही हैं, प्रमोशन मिल चुका है, कुछ सालों बाद कंपनी के नामी-गिरामी लोगों में मेरा नाम गिना जाएगा… फिर भी पैर रुक क्यों रहे हैं?
“चलो, हम लोग डॉल को दवाई देकर सुला देते हैं…” रिया के कमरे से उसकी और सहेलियों की आवाज़ आ रही थीं. ठीक ही तो कह रहे हैं शरद, रिया अब इतनी छोटी भी नहीं… अपने पापा और दादी के साथ रह लेती है, हर सप्ताहांत तो मैं आ ही जाऊंगी.
“दवाई क्यों देंगे रिया? डॉल को चोट लगी है क्या?” उसकी सहेली चिंता से भर गई.
“नहीं, डॉल को बुखार है,” रिया की आवाज़ अजीब सी हो गई, “पता है इसको क्यों बुखार है? इसकी मम्मा इसको छोड़कर जा रही है. अब इसके साथ नहीं रहेगी… इससे कभी-कभी मिलने आएगी…”

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मैं उसकी बात सुनते ही फूट-फूटकर रो पड़ी. मेरी छोटी-सी बच्ची इतना दर्द चुपचाप सह रही है. ये है मेरी सफलता? मैं भागकर शरद के पास गई और लिपट गई,
“मैं नहीं ले रही हूं प्रमोशन… पुणे ऑफिस में ही रहूंगी, मैं नहीं रह सकती एक भी दिन तुम लोगों के बिना…”
“लेकिन सीमा, तुम्हारा करियर, तुम्हारा सपना, चांद नहीं चाहिए..?” शरद ने मेरा सिर सहलाते हुए पूछा.
“मैं शायद ठीक से सपना समझ नहीं पाई. सारी सीढ़ियां मैं चढ़ चुकी हूं… मेरा परिवार है, नौकरी है, हम सब ख़ुश हैं… चांद मुझे मिल चुका है.”

– श्रुति सिंघल


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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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