बुक स्टॉल पर नई रीडर्स डाइजेस्ट देखते ही रोनित की बांछें खिल गईं. पन्ने उलटते हुए वह कब उसके एक लेख में खो गया, उसे ध्यान ही न रहा. पूजा की ऊंची पुकार से उसका ध्यान भंग हुआ.
“रोनित आओ, बहुत चटपटे गोलगप्पे हैं. मैं तो आठ खा चुकी हूं. तुम भी लो. ए भैया, थोड़ा पानी डालना.” कहते हुए पूजा ने अपना दोना आगे बढ़ा दिया. रोनित मानो नींद से जागा. उसे तो ख़याल ही नहीं रहा कि उसकी नई-नवेली ब्याहता कब कार से उतरकर खोमचेवाले की ओर बढ़ गई थी. पूजा को चटकारे ले-लेकर गोलगप्पे का पानी सुड़कते देख रोनित का सिर भन्ना गया. यह उसकी अभिजात्य जीवनशैली पर करारा तमाचा था.
“पूजा, घर चलो.” न चाहते हुए भी रोनित की आवाज़ में तल्ख़ी उभर आई थी. आस-पास खड़े लोग घूरकर देखने लगे, तो पूजा फटाफट दोना फेंककर साड़ी संभालती हुई जाकर कार में बैठ गई. रोनित ने खोमचेवाले को पचास का नोट पकड़ाया और कार में बैठ गया. वह बेचारा लौटाने के लिए खुले पैसे गिनता ही रह गया.
“उससे वापस पैसे क्यों नहीं लिए?” पूजा ने भोलेपन से पूछा.
जवाब में रोनित गंभीर हो गया.
“पूजा, तुम अब शहर के एक प्रतिष्ठित खानदान की बहू बन चुकी हो. जाने-माने डॉ. रोनित राजदान की पत्नी इस तरह सड़क पर दोने चाटती अच्छी नहीं लगती.”
“लेकिन मुझे गोलगप्पे पसंद हैं.” पूजा की हसरत भरी नज़रें अब भी पीछे छूटते जा रहे खोमचे पर टिकी थीं. गोलगप्पे और खाने व थोड़ा चटपटा पानी पीने की हसरत मन में दबी रह गई थी.
“कितने गंदे हाथों से ये लोग बनाते और खिलाते हैं. इतना अनहाइजनिक फूड खाकर तुम बीमार हो जाओगी. रोज़ मैं अस्पताल में ऐसे पचासों मरीज़ देखता हूं.” पूजा को रुआंसा होता देख रोनित नरम पड़ गया. नई गाड़ी और नई बीवी के सम्मुख मर्द वैसे ही बिछा-बिछा जाता है.
“तुम्हारा जब मन करे, नौकर से घर पर ही मंगवा लिया करो.”
पूजा कहना चाहती थी कि उसमें यह लज़ीज़ स्वाद और मज़ा कैसे आ पाएगा, पर संकोच के मारे चुप्पी साध गई.
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पूजा एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार से थी. इस तरह के परिवारों में पैसों की कोई तंगी नहीं होती. लेकिन इतना भी नहीं होता कि इंसान बिना सोचे-समझे अंधाधुंध पानी की तरह पैसा बहाए. संक्षेप में वह ज़मीन से जुड़ा रहता है. लेकिन राजदान परिवार कुलीन रईस परिवार था. पूजा के पारिवारिक स्तर से कई पायदान ऊपर. एक शादी में रोनित ने उसे देखा तो उसकी ख़ूबसूरती और मासूमियत पर रीझ उठा. मां ने भी थोड़ी ना-नुकुर के बाद ‘ठीक है, घरेलू-सी लड़की है, दबकर रहेगी’ सोचकर उसकी पसंद पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. वैसे भी उन्हें अपनी क्लब-पार्टियों आदि से फुर्सत ही कहां थी? दो वर्ष पूर्व पति की मौत के बाद तो वे घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त हो गई थी, बल्कि दो-तीन सोसायटियों की सदस्यता उन्होंने ग्रहण कर ली थीं. वे महिलाओं के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती थीं, जिनके लिए समाज में फैली बुराइयों के सम्मुख अपने घर-परिवार की समस्याएं अत्यंत तुच्छ स्थान रखती थीं.
पूजा एक-दो बार उनके संग कुछ सभाओं में गई, तो उसे उनके भाषण का एक शब्द भी पल्ले नहीं पड़ा. मां ने भी भैंस के आगे बीन बजाना व्यर्थ समझ उसे साथ ले जाना बंद कर दिया. नौकरों से ज़्यादा घुलना-मिलना न मां को पसंद था, न रोनित को. समय काटने के लिए पूजा ने कुछ कलात्मक वस्तुएं बनाकर घर को सजाना चाहा, जो उसने ‘बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट’ कोर्स में सीखा था, तो रोनित ने उसके टेस्ट को देखकर नाक-भौं सिकोड़ ली. देश-विदेश से एकत्रित अपने दुर्लभ कलात्मक नमूनों के सम्मुख उसे पूजा का यह हस्तशिल्प बेहद गंवारू लगा.
खिन्न पूजा ने अब अपने आप को पाक कला में डुबो लिया. घंटों मेहनत करके वह तरह-तरह के पकवान बनाती और मेज सजाकर रोनित का इंतज़ार करती. मरीज़ों से जूझता थका-मांदा रोनित देर रात तक लौटता. उनींदी अवस्था में ही कुछ कौर मुंह में डालता और फिर जाकर बिस्तर पर ढेर हो जाता. पूजा को मां की सीख कि ‘पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है’ खिल्ली उड़ाता प्रतीत होता. वह बुझी-बुझी-सी रहने लगी.
उन्हीं दिनों रोनित को एक सेमिनार में भाग लेने मनाली जाना पड़ा. उसने पूजा को भी संग ले लिया. कई डॉक्टर सपरिवार थे. अतः उन्होंने एक बस कर ली. रास्ते में गिरते बर्फ की ख़ूबसूरत छटा को देखकर पूजा बच्चों की तरह किलक उठी. वह बार-बार रोनित को बस रुकवाने का आग्रह करने लगी. वह बर्फ को छूकर देखना चाह रही थी. देश-विदेश घूम चुके रोनित को उसका यह बचपना सुहा नहीं रहा था. वह साथी डॉक्टर से किसी पेचीदा केस के बारे में वार्ता करने लगा.
तभी पूजा ने ड्राइवर से टॉयलेट जाने के लिए बस रुकवा ली. पन्द्रह मिनट बाद भी जब वह नहीं लौटी, तो रोनित उसे देखने बस के पीछे गया. वह यह देख हैरान रह गया कि अत्यंत उल्लासित पूजा ढेरों बर्फ के गोले बनाने में व्यस्त थी. आक्रोश में रोनित फट पड़ा. पूजा के हाथों से गोले झटक फेंकता हुआ वह उसे बस में ले आया. दहशत और अपमान के अतिरेक से पूजा की आंखें डबडबा आईं. वह बस में उपस्थित लोगों की सहानुभूति और उपहास का पात्र बन गई थी. फिर पूरे रास्ते वह नज़रें झुकाए चुपचाप बैठी रही. उसे गहरा सदमा लगा था. तब से वह खोई-खोई-सी रहने लगी थी. हंसना, किलकना, रूठना, चहकना तो दूर, रोनित उसके चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए भी तरस गया था.
इसी दौरान पता चला कि पूजा गर्भवती है. रोनित ने पूजा के व्यवहार को मातृत्व की ओर अग्रसर परिपक्व और गरिमामयी रूप मानकर संतोष कर लिया. लेकिन प्रारब्ध ने तो कुछ और ही ठान रखी थी. पता चला गर्भ में पल रहे भ्रूण का विकास रुक गया था. ऐसे अल्प विकसित बच्चे को जन्म देना ज़िंदगीभर का दुख मोल लेना था. रोनित ने पूजा को सब कुछ बताकर उसे ऑपरेशन के लिए तैयार किया. वैसे भी पूजा के लिए यह सूचना मात्र थी. उसकी सहमति-असहमति कोई मायने नहीं रखती थी.
बच्चे को खोने के बाद तो पूजा ज़िंदा लाश मात्र रह गई थी. रोनित अब उसे लेकर चिंतित रहने लगा था. उस दिन भी वह अस्पताल के अपने कमरे में अपने अभिन्न साथी डॉ. हितेश से इसी बारे में विचार-विमर्श कर रहा था. रोनित को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था. उसे आश्चर्य हुआ कि वह इतना क्रूर कैसे हो गया था.
“हम ज़्यादा पढ़े-लिखे तथाकथित अभिजात्य वर्ग के लोग दिल से महसूस की जाने वाली बातों में दिमाग़ लगाने का प्रयास क्यों करते हैं? क्यों नहीं समझ पाते कि भावनाओं का सैलाब दिमाग़ के ऊपर से बेपरवाह गुज़र जाता है. केवल प्यार भरा दिल ही उस सैलाब को थाम सकता है. अल्हड़ उमंगों और केवल भावनाओं के ज्वार से आलोड़ित पूजा संयमित होने के लिए मुझमें एक प्यार भरा दिल तलाशती रही और मैंने मर्यादाओं की दीवार खड़ी कर उन लहरों को पीछे धकेलना चाहा. एक उमड़ती, किलोल करती, अपने स्वाभाविक सौंदर्य से सबको मंत्रमुग्ध करती नदी आज एक ठहरे हुए पानी का कुंड मात्र बनकर रह गई है. मैं उसमें नवजीवन प्रवाहित करना चाहता हूं.”
“भाभी को अवसाद से उबारने का एक ही रास्ता है कि वे मां बन जाएं. बच्चे के संग बच्चा बनकर उनकी खिलखिलाहट और मासूमियत लौट आएगी.”
“लेकिन अब यह कैसे होगा?” रोनित के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. “पूजा मुझसे दूर-दूर रहने लगी है. मेरे छूने से वह सिहर उठती है. हिरनी जैसी भयभीत नज़रों से मुझे देखने लगती है. मानो मैं उसका शिकार करने वाला हूं. उसके दिल को छुए बगैर मैं उसके शरीर को कैसे छू सकता हूं? नहीं हितेश नहीं, मैं अपनी पूजा के संग बलात्कार नहीं कर सकता.”
तभी बाहर शोर-शराबा होने लगा. पता चला किसी मंत्रीजी की अवसादग्रस्त पुत्रवधू ने आवेश में आकर अपने हाथ की नस काट ली थी. ख़ून निरंतर बहे जा रहा था. सारे डॉक्टर उसे संभालने में जुट गए. लेकिन उसने दम तोड़ दिया. लड़की की मां रो-रोकर एक ही बात दोहराए जा रही थी, “मेरी फूल-सी बच्ची को इन बड़े लोगों ने रौंद डाला.”
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रोनित को बार-बार सामने पड़ी लाश में पूजा की शक्ल नज़र आ रही थी. वह पसीने से तरबतर हो गया. हितेश ने उसे घर जाकर आराम करने की सलाह दी.
रोनित घर पहुंचा तो पूजा उसे कहीं दिखाई नहीं दी. घबराहट में उसने पूरा घर छान मारा. पीछे दालान से उसे खिलखिलाहटों की आवाज़ सुनाई दी, तो वह तुरंत उधर भागा. पूजा गीली मिट्टी में बैठी थी और एक छोटी-सी बच्ची उसके पांव पर मिट्टी को रख-रखकर घर बना रही थी. रोनित को सामने पाकर पूजा सकपका गई और हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई. उसके साथ ही घर टूट गया. बच्ची बुक्का फाड़कर रोने लगी और ‘गंदे अंकल, गंदे अंकल’ कहती हुई एक ओर भाग गई.
“ये टिन्नी है, माली काका की पोती! छुट्टियों में आई हुई है. साथ खेलने की ज़िद करने लगी तो… मैं अभी पांव की मिट्टी धोकर आती हूं. आप अंदर चलिए.” पूजा को रोनित की नाराज़गी का ख़ौफ़ था तो अपराधी खड़े रोनित को अफ़सोस था कि न चाहते हुए भी क्यों उसके हाथों कुछ न कुछ अनर्थ हो जाता है.
अगले दिन भी रोनित का अस्पताल में मन नहीं लगा तो वह जल्दी ही घर लौट आया. बाहर से ही उसे कमरे में टिन्नी की उपस्थिति का आभास हो गया था. लेकिन अंदर का दृश्य देख वह सन्न रह गया. एक गंदे से पप्पी को हाथों में उठाए टिन्नी उससे पूजा को गुदगुदी करवा रही थी. वह गंदा पप्पी कभी पूजा को पंजा लगाता, तो कभी चाटता और पूजा हंस-हंसकर दोहरी हुई जा रही थी.
“टिन्नी, फेंको इसे बाहर.” रोनित स्वयं को रोक नहीं सका और चिल्ला पड़ा. घबराई टिन्नी के हाथों से पप्पी छूट गया. इससे पहले कि वह बुक्का फाड़कर रोना आरंभ करे, रोनित ने उसे गोद में उठा लिया.
“इतने गंदे पप्पी के संग खेलोगी तो कई बीमारियां हो जाएंगी. हम तुम्हारे लिए एक अच्छी नस्ल का पप्पी ले आएंगे.” शाम को रोनित टिन्नी और पूजा को बाज़ार ले गया. अपने एक परिचित से उन्होंने एक प्यारा-सा पप्पी ख़रीदा. टिन्नी ने हाथोंहाथ उसका नामकरण भी कर दिया- ‘टमी’. टिन्नी का उत्साह देखते ही बनता था. वह लगातार टमी से बातें किए जा रही थी. पूजा भी ख़ुश नज़र आ रही थी. रोनित ने एक जगह कार रोक दी. “यह शहर का सबसे प्रसिद्ध चाटवाला है.
टिन्नी, मेरा तो मन चाट खाने को कर रहा है.”
“हुर्रे… मेरा भी. चलो आंटी!” टिन्नी पूजा का हाथ खींचते हुए ले गई. तीनों ने भरपेट चाट खाई.
अब तो यह रोनित का शगल बन गया था. वह लगभग रोज़ ही ऑफ़िस से जल्दी घर लौट आता. तीनों या तो लॉन में टमी के साथ खेलते या घूमने निकल जाते. टमी टिन्नी और पूजा से ख़ूब घुल-मिल चुका था, तो दूसरी ओर पूजा भी रोनित से फिर से खुलने लगी थी.
उस दिन मौसम बड़ा सुहावना हो रहा था. आसमान में ठहरी बूंदें कभी भी नीचे बरस सकती थीं. टिन्नी टमी को पास ही के पार्क में सैर कराने ले गई थी. पूजा रोनित का इंतज़ार कर रही थी. उसके आते ही वह उसे टमी की दिनभर की शरारतों का ब्यौरा देने लगी. एक मां अपने शिशु की मासूम हरकतों का पति के सम्मुख विवरण पेश करते हुए जिस तरह उल्लास से बौरा जाती है, बिल्कुल वैसी ही अवस्था इस समय पूजा की थी. वह क्या कह रही थी, रोनित को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. जब दर्शनेन्द्रिय अत्यंत सक्रिय हो जाती है, तो श्रवणेन्द्रिय व अन्य इंद्रियां मंद पड़ जाती हैं. रोनित को नज़र आ रही थी तो बस, हवा के वेग से पूजा के चांद से चेहरे पर झूल रही लट, काजल से सजे उसके फैलते-सिकुड़ते नयन, धनुषाकार भौंहें और गुलाब की पंखुड़ियों से खिलते बंद होते उसके होंठ. तभी हवा का एक तेज़ झोंका अपने संग पानी की बौछार ले आया. पूजा चौंककर संभले, इससे पहले रोनित उसे गोद में उठाकर अंदर ले आया. बेड पर पूजा को लिटाकर वह उसके ऊपर झुक गया. हौले से उसने पूजा की आंखों पर आई लट को पीछे किया, तो पूजा को उसकी आंखों में प्यार का अथाह सागर उमड़ा हुआ नज़र आया. शरमाकर उसने नज़रें झुका लीं.
बारिश के थमते वेग के साथ जवां दिलों में उफनता प्यार का तूफ़ान भी थम गया. दोनों तृप्त एक-दूसरे को निहार रहे थे. नव जीव के अंकुरण की उम्मीद ने दोनों में नवजीवन का संचार कर दिया था.
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