Short Stories

कहानी- नेवता (Short Story- Nevta)

दीदी ने सशरीर भाई के पहुंचने की ख़ुशी का ज़रा भी आनंद नहीं लिया? मैं ख़ुद न जाकर पांच हज़ार का चेक भेज देता, तो दीदी ज़्यादा ख़ुश होती? इसका मतलब तो यही है कि अगर कोई ग़रीब भाई खाली हाथ बहन के घर चला जाए, तो उसकी बेइज़्ज़ती निश्चित है. दीदी के इस व्यवहार को क्या समझें! भाई-बहन का रिश्ता ख़त्म हो गया? संबंध सिर्फ़ पैसों पर टिका है. अपनी डबडबाई आंखों को रुमाल से पोंछा.

नेवते का सामान ख़रीद लिया है. लड़की को देने के लिए अलग से साड़ी रख ली. सिन्दूर, चूड़ी, टिकुली सारे सुहाग चिह्न पत्नी ने सब कपड़ों के ऊपर रखकर कायदे से पारदर्शक पॉलीथीन में लपेट दिया है. सारी तैयारी हो चली है. दो दिन बाद ही ट्रेन पकड़नी है. हावड़ा से सीधे बनारस जाना है. दीदी की लड़की की शादी है. चार पुत्रों के बीच यही एक बेटी है, सो बड़े मनुहार से दीदी ने आने को कहा है. जाना ज़रूरी है, न जाऊं तो मामा की रस्म कौन निबटाएगा! आखिर सात बहनों में अकेला भाई ठहरा. इस साल की सारी छुट्टियां खत्म हो चली हैं. बड़ी मुश्किल से तीन दिन की छुट्टी मिली है.
शादी में नहीं जाता तो ही अच्छा था. इधर घर के ख़र्च बढ़ गए हैं. इस साल बेटे का एडमीशन कॉलेज में करवाया, बेटी कॉलेज की तरफ़ से दार्जिलिंग घूमने गई है. उसके हाथ में जैसे-तैसे एक हज़ार रुपए दिए. उसकी मांग तो कुछ ज़्यादा ही थी, परंतु मैंने किफ़ायत से चलने का उपदेश दिया तथा गैरज़रूरी सामान न ख़रीदने की ताक़ीद की. घर का ख़र्च अलग है. इस महीने का राशन जुटाना बाक़ी है. इस बीच दीदी की चिट्ठी आई. पढ़कर ख़ुश होने की बजाय मन चिंतित हो उठा. कितना भी कटौती करूं, पंद्रह सौ रुपए ख़र्च हो ही जाएंगे. महंगाई हर साल सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है और हम मध्यमवर्गीय लोगों का जीना मुहाल कर रखा है.
इस आकस्मिक परेशानी से मुझे पत्नी ने उबारा, मेरे हाथों में पांच सौ रुपए का नोट रखा और अपनी दो नई साड़ी बक्से से निकाल कर देती हुई बोली, “मुंह लटकाने से कोई फ़ायदा नहीं, शादी में तो जाना ही है. चाहे जैसे भी हो, दीदी की यही एक बेटी है. बाकी का जुगाड़ आप कर लें. लोकाचार चाहे ख़ुशी मन से निभाएं या दुखी होकर, समाज, घर-परिवार में रहना है तो निभाना ही पड़ेगा…”
“बेटा, न हो तो एक साड़ी कम कर दो. लड़की को अलग से साड़ी देना कोई ज़रूरी नहीं. नेवता में धोती के साथ साड़ी बहू ने रख दिया है… पार्वती बेटी के घर तो तू अगर ऐसे ही पहुंच जाए, तो बहन के लिए ख़ुशी की बात होगी. इमली घोटाई पचास रुपए दे देना. इतना क्या कम है. अब जाने की टिकट तू कटा ही ले…” पास बैठी मां ने सलाह दी.
उनकी बात सुनकर पत्नी हड़बड़ाए स्वर में कह उठी, “नहीं-नहीं अम्माजी, लड़का-लड़की को हम गहना-गुरिया तो दे नहीं रहे, ऐसे में साड़ी कम करना ठीक नहीं. लड़की को अलग से कुछ देना ही चाहिए, समझिए मामी की तरफ़ से ये उपहार हुआ, जैसी दीदी की लड़की तरुणा वैसे हमारी नीरजा… सच कहूं अम्माजी तो मेरी भी ख़ूब इच्छा हो रही है शादी में जाऊं. बनारस कभी गई नहीं. मंदिर घूमने की साध बरसों से है. शायद इस शादी के बहाने बनारस घूमना लिखा हो. ऐसे तो न जाने कब घर से निकलना हो. क्यों जी! मैं भी आपके साथ चलूं? क्या दीदी ने सपरिवार आने को नहीं लिखा?” पत्नी ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा.
“अच्छा तो अब शादी में बटालियन लेकर चलूं. एक तो वैसे ही पैसे की जोड़-तोड़ लगी है, ऊपर से देवी-देवताओं के दर्शन के लिए तुम्हारा मन छटपटा रहा है. इस बार मैं अकेला जाऊंगा. देवताओं की कृपा रही तो एक दिन बनारस भी देख लोगी. मात्र तीन दिनों की छुट्टी में बड़ी भागमभाग होगी. आख़िर में दीदी के घर कितने घंटे रहूंगा! दो रात तो ट्रेन में निकल जाएगी. मैं दीदी को कहूंगा कि शादी के बाद वे कलकत्ता आएं. काफ़ी दिन हो गए उनसे जमकर बातें नहीं हुईं… बचपन में हमने कितने मौज-मजे किए हैं. क्या दीदी को याद होगा?”

यह भी पढ़ें: समझदारी की सेल्फी से सुधारें बिगड़े रिश्तों की तस्वीर (Smart Ways To Get Your Relationship On Track)

मैं अपनी रौ में कहता जा रहा था, पत्नी कब रसोई में चली गई, पता ही न चला, वहां से खुटुर-पुटुर बर्तनों की आवाज़ आ रही थी. मां को देखा, बेटी के नाम पर चेहरा चमक उठा था. पिताजी को गुज़रे वर्षों हो गए थे. मां का अपनी बेटियों से मिलना बहुत कम हो गया था. अब मुझे घर-गृहस्थी और ऑफिस के कामों से फ़ुर्सत कहां, जो मां को घुमाता फिरूं. सारी बहनें बिहार, उत्तर प्रदेश में ब्याही हैं, वे भी व्यस्त हैं अपने घर-परिवार में. बस चिट्ठियों के माध्यम से अपना हालचाल एक-दूसरे को पहुंचाते रहते हैं. कभी-कभी तो ६-७ महीने गुज़र जाते हैं जवाब देने में.
आने-जाने का टिकट करवा कर निश्चिंत हो गया. पत्नी का ग़ुस्सा क्षणिक था. वो मेरी अर्द्धांगिनी है. समस्या समझती है. मैंने वादा किया, लौटते वक़्त उसके लिए ढेर सारी चूड़ियां ख़रीद लाऊंगा. बाज़ार घूमने का समय तो मिलेगा नहीं, अलबत्ता बनारस स्टेशन से ही ख़रीद लूंगा. फल-फूल, मूंगफली, पूड़ी-सब्ज़ी के साथ चूड़ियां भी ख़ूब बिकती हैं. चूड़ियों के नाम पर पत्नी ने प्यार से अपनी दोनों गोरी बाहें मेरी गर्दन में डाल दीं. थोड़ी देर के लिए मुझे ऐसा लगा, मानो पत्नी की दोनों कलाइयां लाल, पीली, हरी चमकीली चूड़ियों से भरी खनखना रही हों. मैंने उसे ज़ोरों से भींच लिया. पत्नी इस अप्रत्याशित हमले से कसमसा उठी.
“माप बता दो. चूड़ी वाले से क्या कहूंगा.” पत्नी ने पुनः अपनी कलाई आगे बढ़ाई और धीमी आवाज़ में बोली, “सवा दो की माप लाना और हां भूलना नहीं. मुझे तुम्हारे साथ-साथ चूड़ियों का भी इंतज़ार ‘रहेगा…”
बांहों से छूटने का प्रयास करती हुई बोली, “छोड़िए भी… कहीं अम्माजी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी, तीन दिन का विरह भी सहा नहीं जा रहा है…”
अम्माजी सुनकर मैं शिथिल हो उठा. सच कहीं देख लिया तो. मैंने मुग्ध दृष्टि से पत्नी को देखा. सूटकेस उठाया और मां को प्रणाम करके घर से बाहर निकल गया. एक रिक्शा लिया तथा हावड़ा स्टेशन की ओर चल पड़ा. रात भर ट्रेन में रहा और दूसरे दिन शाम को बनारस पहुंचा. दीदी के घर पहली बार आया हूं. इसके पहले जीजा पटना में पोस्टेड थे, वहां भेंट-मुलाक़ात होती रहती थी.
जेब से पते वाला काग़ज़ बाहर निकाला तथा रिक्शे पर बैठ गया. दीदी ने चिट्ठी में लिखा था, घर तक पहुंचने के लिए पांच-छह‌ गलियां तय करनी पड़ेंगी. टैक्सी वहां तक नहीं जाती, सो रिक्शेवाले ने मुझे क़रीब एक घंटे घुमाते-फिराते दीदी के द्वार पर छोड़ा. जीजा का नेमप्लेट देखकर तसल्ली मिली. कहीं भटक जाता, तो बनारस की गलियां घूमता रहता और शादी बीत जाती.
घर को ख़ूब सजाया गया था. अंदर से गाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. ढोलक पर किसी मंजे हुए हाथ की थाप थी, जो गाने के साथ मिलकर दिल को आंदोलित कर रही थी.
‘सरिता कहां भूल आए प्यारे ननदोड्या…’ का अंतरा चल रहा था. मैं विमुग्ध बाहर खड़ा सुन रहा था, ‘पान खाए ननदी और दोना चाटे ननदोड्या…’
“अरे, साले साहब आप ! कब से खड़े हैं? चलिए अंदर चलिए. आपकी दीदी तो सुबह से देवदत्त नहीं आया कि रट लगा रही हैं…” जीजा ने मेरा हाथ थामते हुए कहा तथा एक नौकर को आवाज़ दी, “इनका सूटकेस उठाकर मेहमान खाने में रख आओ.”
मैं जीजा के साथ आगे बढ़ गया. पसंदीदा गीत सुनने में व्यवधान आ पड़ा. गीत-संगीत का माहौल मेरे घर में बरसों से है, खासकर शादी के मौके पर मैं खुद बहुत अच्छी ढोलक बजा लेता हूं. सात-सात बहनों की शादी में ढोलक बजा कर खूब समां बांधा है. गांव की लड़कियां कमर पर हाथ रखकर जो ठुमके लगाती थीं, उसे याद कर अभी भी इच्छा होती है, काश! शहर में भी गांव जैसा माहौल पैदा किया जा सकता!

यह भी पढ़ें: 40 बातें जो हैप्पी-हेल्दी रिलेशनशिप के लिए ज़रूरी हैं (40 Tips for maintaining a happy and healthy relationship)

परंतु क्या ऐसा संभव है? आधुनिक गीत और डांस के नाम पर ऊलजुलूल हाथ-पैर झटकारने के मध्य ‘एही ठड्यां टिकली हेराये गइले दइया रे…’ जैसे गीत शोभा देंगे? शादी के इस मुहूर्त में दीदी के घर अपने गांव-घर का पुराना चटकदार गीत सुनकर जबरदस्त इच्छा हुई, काश! मैं भी इस गीत-संगीत का हिस्सा बन कर अपने मन की साध पूरी करता…
जीजा के संग मैं मेहमान वाले कमरे में चला आया. एक कोने में मेरा सूटकेस रख दिया गया. कमरे में दरी बिछी थी. थोड़ी देर बाद ही दीदी तीन-चार महिलाओं के संग आ पहुंची. उनकी सास और जेठानी, देवरानी थीं. वे सब हालचाल पूछने लगीं. इसी बीच मैंने सूटकेस खोला और अपना कुर्ता-पाजामा निकाला, ताकि नहा-धोकर फ्रेश हो सकूं. मैंने सोचा, लगे हाथ दीदी को नेवता का सामान भी दे दूं. मैंने पूरा पैकेट निकालकर दीदी के हाथ में थमा दिया. जेठानी थोड़ा आगे सरक आई. दीदी के हाथ से पैकेट लेकर खोलना शुरू किया… साड़ी देखकर बुरा-सा मुंह बनाया और कह उठी, “इकलौते मामा के घर से यही नेवता आया है? का बबुआ! कलकत्ता शहर में इससे बढ़िया साड़ी नहीं मिली? कम-से-कम साड़ी का रंग पसंद करे बदे जनाना को तो साथ ले लिया होता. धोती चादर का कपड़ा भी सस्तईया है. कौन ठिकाना ई नेवता का कपड़ा किसके कपाल पड़े… अच्छा हुआ जो हमने देख कर पहचान लिया. कम से कम हमारे माथे तो नहीं गिरेगा…”
मैं पत्थर की तरह मौन था. सोचा, दीदी मेरी सफ़ाई में कुछ कहेंगी, पर उन्होंने तो झट साड़ी-धोती उठाई और सामने झूल रहे अलगनी पर पटक दिया. वे सब बाहर चली गईं. थोड़ी देर तक मैं दीदी का इंतज़ार करता रहा, ताकि मैं अपनी विवशता बतला सकूं, परंतु वे नहीं आईं. हां, इस बीच एक चाय-नाश्ता दे गया. क़रीब आधे घंटे मैं वहां बैठा रह गया अकेला. समझ में नहीं आ रहा था किससे बाथरूम का अता-पता पूछूं. तब तक वह नौकर दुबारा प्लेट ले जाने के लिए आया, तो मैंने अपनी परेशानी बताई. उसने इशारे से मुझे बाथरूम का ठिकाना बताया, मैं कमरे से बाहर निकला. कुछ अन्य परिचित रिश्तेदारों से भेंट हुई. मेरे दूसरे बहनोई भी दूर-दराज से पहुंचे थे. हां, हमारे ग्रामीण परिवेश में औरतें ज़्यादा आना-जाना नहीं करतीं. सिर्फ़ घर के मर्द रिश्तेदारी निबाहते हैं. सबसे प्रणाम और झटके में हालचाल पूछ मैं नहाने के लिए लपका. वहां शायद अस्थायी इंतज़ाम किया गया था. गनीमत थी कि नल से पानी आ रहा था. वहां न कोई जग था न ही कंघा, तेल, साबुन का अता-पता. मन मसोस कर जैसे-तैसे नहाया. ख़ुद पर ग़ुस्सा भी आया. पत्नी को तेल-साबुन देने से मैंने मना कर दिया था, ताकि सूटकेस हल्का रहे. दीदी के घर में एक वक़्त के लिए तेल-साबुन भी नहीं मिलेगा ऐसा तब कहां सोचा था.
मैं दीदी के घर में हूं, इसका उल्लास थोड़ी देर पहले मर चुका था. अब तो यही लग रहा था कितनी जल्दी शादी निबटे और मैं ट्रेन पकडूं, ये मेरी दीदी का घर था या अनजानों का? उसके बाद न तो दीदी ने कोई बात की और न ही जीजा ने. मेरे जिम्मे जो रस्में थीं, बुजुर्गों के कहने पर यंत्रचालित सा निबटाता गया. सिन्दूर दान होने तक सुबह के चार बज चुके थे. मैं बुरी तरह थका था. चुपचाप बिना किसी को बताए मंडप से उठा और कमरे में आकर सो गया. गहरी नींद में कब तक सोता रहा, इसका अंदाज़ा मुझे उस वक़्त लगा जब मेरे छोटे बहनोई ने झकझोरते हुए कहा, “वाह साले साहब! हावड़ा से यहां सोने केलिए आए हैं. उठिए महाराज, कच्ची (बारातियों के दोपहर का खाना) की तैयारी हो गई.”
मैं आंखें मलता हुआ उठ गया. कच्ची के बाद बेटी की विदाई हुई. दीदी की लड़की से कुछ ख़ास बात न हो सकी. दामाद अच्छा मिला था. मैंने सोचा, अब दीदी-जीजा स्थिर हो गए होंगे, तो थोड़ी देर बात कर लूं. परंतु मेरे दुख का पारावार नहीं रहा- मेरे घर से निकलने के वक़्त तक न दीदी ने भेंट की और न ही जूते का फीता बांधते हुए ज़मीन पर झुके जीजा ने आंख उठाकर मुझसे हाय-हेलो कहा.
‘प्रणाम’ कहते हुए मैं तेज़ी से सड़क पर आ गया. रिक्शा लिया और स्टेशन पहुंचा. ट्रेन ठीक समय पर आई. अपनी सीट तक आया और आंखें बंद किए दुख के सागर में डूब गया. दीदी को नेवता नहीं पसंद आया, तो इसे अपने मन में ही रखना था. मेरे सामने क्यों उजागर किया? अपनी हैसियत के अनुसार मुझसे जो बन पड़ा, मैंने किया. कहां तो मां ने एक ही साड़ी ले जाने की सलाह दी थी, वह तो पत्नी ने ज़िद करके एक साड़ी और रख दी थी.
पत्नी साथ आने के लिए कह रही थी. उसकी क्या दुर्दशा होती! मैं तो मर्द था, बाहर-भीतर घूम कर समय निकाल लिया उसका दम कितना घुटता यहां पहुंचने पर? क्या सोचती वो हमारे परिवार के बारे में? यहां तक कि दीदी-जीजा ने मां-पत्नी, बच्चों के बारे में हालचाल तक नहीं पूछा! दीदी को यह भी चिंता नहीं थी कि भाई रास्ते में क्या खाएगा. कुछ नहीं तो कम-से-कम परिवार के लिए शादी की कुछ मिठाइयां ही बांध दी होती…


यह भी पढ़ें: गुम होता प्यार… तकनीकी होते एहसास… (This Is How Technology Is Affecting Our Relationships?)

ट्रेन चल पड़ी, मैं विचारधारा में गर्दन तक फंसा था. इससे तो अच्छा था, मैं शादी में शरीक ही न होता और नेवता के रुपए मनीऑर्डर से भेज देता. कितनी मुश्किल और झंझट के बाद मैं बनारस पहुंचा था. कैसे-कैसे जुगाड़ करके पत्नी ने नेवता सजाया था. इतने रुपए ख़र्च करने के पीछे मेरी कितनी लाचारी थी. मैंने शौकिया तो ख़र्च नहीं किए थे? मजबूरी थी.
दीदी ने सशरीर भाई के पहुंचने की ख़ुशी का ज़रा भी आनंद नहीं लिया? मैं ख़ुद न जाकर पांच हज़ार का चेक भेज देता, तो दीदी ज़्यादा ख़ुश होती? इसका मतलब तो यही है कि अगर कोई ग़रीब भाई खाली हाथ बहन के घर चला जाए, तो उसकी बेइज़्ज़ती निश्चित है. दीदी के इस व्यवहार को क्या समझें! भाई-बहन का रिश्ता ख़त्म हो गया? संबंध सिर्फ़ पैसों पर टिका है. अपनी डबडबाई आंखों को रुमाल से पोंछा.
मैं चिंतित हो उठा हूं. मां पूछेगी- बहन ने भाई को विदाई में क्या दिया? नेवता कैसा लगा? बेटी ने मां के लिए क्या भेजा? सब का जवाब है- दीदी ने बहुत कुछ विदाई में दिया था. कपड़े लत्ते, ढेरों मिठाइयां… पर अफ़सोस, जिस गठरी में सब सहेजकर रखा था, उसे किसी चोर-उचक्के ने मार दिया. परंतु चूड़ियों के बारे में पत्नी को क्या जवाब दूंगा?‌

– माला वर्मा

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

अजय-अतुलच्या लाइव्ह कॉन्सर्टमध्ये थिरकल्या नीता अंबानी, ‘झिंगाट’वर केला डान्स, पाहा व्हिडीओ (Nita Ambani Dance On Zingaat In Ajay Atul Live Concert In Nmacc)

मुंबईतील बीकेसी येथे उभारण्यात आलेल्या नीता अंबानी कल्चरल सेंटरला नुकताच एक वर्ष पूर्ण झाले आहे.…

April 15, 2024

जान्हवी कपूरने शेअर केले राधिका मर्चंटच्या ब्रायडल शॉवरचे फोटो, पज्जामा पार्टींत मजा करताना दिसली तरुणाई (Janhvi Kapoor Shares Photos From Radhika Merchant Bridal Shower Party)

सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असलेल्या जान्हवी कपूरने पुन्हा एकदा तिच्या चाहत्यांना सोमवारची सकाळची ट्रीट दिली…

April 15, 2024

A Strange Connection

The loneliness does not stop.It begins with the first splash of cold water on my…

April 15, 2024

‘गुलाबी साडी’च्या भरघोस प्रतिसादानंतर संजू राठोडच्या ‘Bride नवरी तुझी’ गाण्याचीही क्रेझ ( Sanju Rathod New Song Bride Tuzi Navari Release )

सध्या सर्वत्र लगीनघाई सुरू असलेली पाहायला मिळत आहे. सर्वत्र लग्नाचे वारे वाहत असतानाच हळदी समारंभात…

April 15, 2024

कहानी- वेल डन नमिता…‌(Short Story- Well Done Namita…)

“कोई अपना हाथ-पैर दान करता है भला, फिर अपना बच्चा अपने जिगर का टुकड़ा. नमिता…

April 15, 2024
© Merisaheli