प्रेम भारतीय संस्कृति में ही निषिद्ध रहा हो, ऐसा नहीं है. विकसित और आधुनिक देशों की संस्कृति भी इसे बुरा मानती रही है. कैथलिक ईसाइयों में प्रेम और विवाह पर ऐतराज़ था. वैलेंटाइन ने कहा था मनुष्य को प्रेम की अभिव्यक्ति का अधिकार है. तब से चौदह फरवरी प्रेम दिवस के रूप में जानी जाती है. प्रेमियों के लिए प्रेम के इज़हार का यह अच्छा अवसर समझा जाता है. जो प्रेम में नहीं हैं, वे भी चौदह फरवरी को आतुर से नज़र आते हैं. शायद वैलेंटाइन वीक का असर हो.
विदेशी उत्पाद, पहनावे, भाषा का हमारे देश में ऐसा असर है कि प्राथमिक कक्षा के बच्चे भी वैलेंटाइन वीक का मतलब जानते हैं. सात फरवरी रोज़ डे, आठ फरवरी प्रपोज़ डे, नौ फरवरी चॉकलेट डे, दस फरवरी टेडी डे, ग्यारह फरवरी प्रॉमिस डे, बारह फरवरी किस डे, तेरह फरवरी हग डे, चौदह फरवरी वैलेंटाइन डे.
सुबह स्कूल जाने से पहले कक्षा एक की विद्यार्थी अपाला बगीचे से पांच लाल गुलाब तोड़ लाई. दादा, दादी, मां को देते हुए अभिराम को गुलाब पकड़ाया, “पापा, आज रोज़ डे है लो. एक गुलाब क्लास टीचर को दूंगी.”
अभिराम ने उसे गोद में उठा लिया, “रोज़ डे का मतलब जानती हो?”
“हां, फूलोंवाला दिन. दस फरवरी को टेडी डे है. मेरे लिए टेडी लाना. हग डे को तुम्हें हग मैं फ्री में दे दूंगी.”
अभिराम, अपाला को देखता रहा. बचपन भोला होता है. बच्चे वैलेंटाइन डे को उत्सव की तरह मनाकर भूल जाते हैं. सज गए बाज़ार और सड़कों-पार्कों में युवाओं की बढ़ गई आवाजाही देखता है, तो याद आ जाता है कभी वह कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी था. वैलेंटाइन डे पर सहपाठिनी निष्ठा को ग्रीटिंग कार्ड के साथ सुर्ख लाल गुलाब देना चाहता था, पर असमंजस हो रहा था. सहपाठियों ने दबाव बनाया, “पसंद करते हो, तो व़क्त न गंवाओ. यही मौक़ा है. स्कूल को एक साल और बचा है, फिर तो हम कहां और तुम कहां.”
अभिराम का असमंजस कायम था.
“निष्ठा कैसा रिएक्ट करेगी?”
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“सब जानते हैं, उसका रुझान तुम्हारी ओर है. तुम भी जानते हो.”
“जानता हूं, पर श्योर नहीं हूं.”
“तुम दोनों को लेकर पूरी क्लास बातें बनाती है. मेमने का दिल है, तो निष्ठा से दूर रहो.”
अभिराम ने साहस किया.
उसकी भेंट को निष्ठा ने ऐसी निष्ठा से स्वीकार किया जैसे जानती थी यह होना है. कहीं से किसी आनंदमार्गी की बारीक आवाज़ आई, “हैप्पी फोर्टीन्थ फैब…”
विद्यालय के लिए यह प्रेम-प्रसंग अपवाद नहीं था. चोरी-छिपे काफी कुछ चलता रहता था. पढ़ाई की उम्र में पढ़ाई से अधिक दीगर हरकतें करने की इच्छा होती है, जो उम्र पढ़ने की है, वही बेवकूफ़ियां करने की है. स्कूल आवर्स का लाभ ले एक छात्रा, एक छात्र के साथ भाग गई थी, जिसका कुछ अता-पता नहीं. एक छात्रा के गर्भपात की सूचना है. भौतिक शास्त्र के जगदीश सर जिन्हें विद्यार्थी जमाल गोटा कहते थे, ने लैब में एक छात्रा को छेड़ा था. उसे मीटर ब्रिज का कनेक्शन समझाते हुए तारों को मीटर ब्रिज से कम जोड़ रहे थे, छात्रा के हाथों को अधिक छू रहे थे.
विद्यार्थी तब तक स्ट्राइक पर बैठे रहे, जब तक सर को स्कूल से रुखसत न कर दिया गया. कुछ लड़के स्कूल के समीपवाली पान की दुकान में सहज उपलब्ध गुटखा, ड्रग्स का सेवन करते हैं. तमाम विकार हैं, पर इस अंग्रेज़ी माध्यम निजी स्कूल की प्रसिद्धि ऐसी है कि वेटिंग चलती है.
प्रेम की घोषणा विधिवत हो गई.
दोनों इस तरह मिलन-मुलाकात करने लगे जैसे घोषणा की प्रतीक्षा में घड़ियां गिन रहे थे. एक-दूसरे को निहारने लगे. टकराकर निकलने लगे. मूवी, रेस्टोरेंट जाने लगे, नोट्स का आदान-प्रदान करने लगे.
छात्राएं निष्ठा से पूछतीं, “प्रेम में कैसा महसूस करती हो?”
“अच्छा लग रहा है. मैं ख़ुश हूं.”
“ग्रेट!”
छात्र अभिराम से पूछते, “प्रेम में कैसा महसूस करते हो?”
“ख़ुद से नई पहचान हुई है. मैं ख़ुश हूं.”
“ग्रेट!”
दोनों ने ख़ुशी-ख़ुशी कक्षा ग्यारह उत्तीर्ण की. अभिराम के नोट्स के कारण निष्ठा के नतीज़े में काफ़ी सुधार देखा गया. एक-दूसरे को देखे बिना गर्मी की छुट्टियां काटे नहीं कट रही थीं. किसी तरह स्कूल खुला.
बारहवीं.
अंतिम साल…
अभिराम प्रेम में था. उसे सब कुछ अच्छा लग रहा था. हिंदी विषय में कमज़ोर होने के कारण उसने मासिक टेस्ट में हमेशा की तरह मात्राओं की ग़लती की थी. शिक्षक ने डांटा, “कक्षा एक के विद्यार्थी तुमसे बेहतर होंगे. जाओ उनसे मात्रा सीखो.”
क्लास हंस रही थी, लेकिन वह सचमुच कक्षा एक में चला गया और एक घंटे बाद हंसता हुआ लौटा. छमाही परीक्षा में केमिस्ट्री पेपर के दिन फिजिक्स पढ़ आया, लेकिन ख़ुश होकर पेपर दिया. देर से आने के कारण पांच विद्यार्थियों के साथ प्लेग्राउंड के चबूतरे पर हाथ ऊपर कर खड़ा रहने की सज़ा मिली. बाकी छात्र लज्जित थे. वह हंस रहा था.
वह प्रेम में था.
पहला-पहला प्यार था…
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निष्ठा को अपने विषय में काफ़ी कुछ बताने लगा, “मैं सिंगल चाइल्ड हूं.
मम्मी-पापा डॉक्टर हैं. मुझे भी बनाना चाहते हैं. बहू भी डॉक्टर चाहिए.”
“यह शर्त है?”’
“वे ऐसा सोचते हैं.”
“मैं न बन पाई तो?”
“मैं मदद करूंगा. एग्ज़ाम के बाद मैं पी.एम.टी. की कोचिंग के लिए भोपाल जाऊंगा. तुम भी चलो.”
“मम्मी और भैया नहीं जाने देंगे. पापा नहीं हैं. पैसों की कमी रहती है. मैं डॉक्टर न बनी, तो तुम्हारे मम्मी-पापा मेरा पत्ता साफ़ कर देंगे.”
“मैं उन्हें मना लूंगा. उनकी भी लव मैरिज है.
पापा इसी शहर के हैं, मम्मी पहाड़ की हैं. मैदानी पापा की पहाड़ी मम्मी से लव मैरिज हो गई तो हम दो मैदानी की क्यों नहीं होगी?”
“तुम्हें भरोसा है?”
“हां, मैं जान लड़ा दूंगा. फिल्मों में तो बचपन वाला इश्क़ सफल हो जाता है, हम तो अठारह टच कर रहे हैं.”
“असल ज़िंदगी अलग होती है अभिराम. हीरो पता नहीं कौन सी शक्तिवर्द्धक दवा खाता है कि प्रेम के लिए पैरेंट्स से लड़ लेता है. बीस-तीस को अकेले पटक देता है. खाना बनाना न जाननेवाली हीरोइन के लिए कुलीगिरी कर महंगे होटल से खाना लाता है. हीरोइन आगा-पीछा सोचे बिना पिता का करोड़ों वाला बंगला छोड़ फटे हाल हीरो के साथ फरार हो जाती है.”
’निष्ठा, माथापच्ची मत करो. प्रेम करो. जब तक तुम्हें दो-चार बार कॉल न कर लूं, मुझे चैन नहीं मिलता.”
अभिराम के पास मोबाइल था. निष्ठा के पास नहीं था, लेकिन घर में लैंड लाइन फोन था. अभिराम दीवानगी में व़क्त-बेव़क्त उसे कॉल करता. कोई और रिसीवर न उठा ले, इसलिए वह टेलीफोन वाले कमरे में पढ़ती. रिंग बजते ही रिसीवर उठा लेती. मां खलल डालतीं, “निष्ठा, इतनी जल्दी रिसीवर न उठाया करो. लोग कहेंगे आवारा लड़की है, फोन के पास बैठी रहती है.”
“कौन लोग कहेंगे?”
“लड़के किसी का भी नंबर लगा कर फ्लर्ट करते हैं. अभी एक दिन मैंने रिसीवर उठाया ही था कि कोई बोला, “पहचाना?” मैंने कहा, “कौन?” कहता है, “तुम्हारा होनेवाला.”
निष्ठा खुल कर हंसी. कहना चाहती थी तुम्हारा होनेवाला अभिराम था, लेकिन कहा, “मां, तुम आज भी इतनी ख़ूबसूरत हो कि लड़कों का फ्लर्ट करने का मन होता होगा. कोई तुमसे फ्लर्ट करने का मन न बना ले.”
होते-होते प्रेम प्रसंग को एक साल हो गया. अभिराम वैलेंटाइन डे को ख़ास बनाना चाहता था. वैलेंटाइन डे बता रहा था प्रेम अब एकांतिक नहीं, सार्वजनिक हो गया है.
“निष्ठा, वैलेंटाइन डे पर कुछ करते हैं.”
“जैसे..?”
“इस स्माल टाउन में सी बीच तो है नहीं कि लहरों में हम छपाक-छपाक कूदेंगे. न ही पहाड़ है, जहां चढ़कर ज़ोर से ‘आई लव यू’ बोलेंगे… हमारा पुष्करणी पार्क ज़िंदाबाद.”
“वहां क्या करेंगे?”
“धूनी रमाएंगे. मुंबई के पार्कों में हग, किस सब होता है.’
“यह मुंबई नहीं है.”
“इसलिए पार्क में थोड़ी देर बैठ कर पेस्ट्री खाएंगेे. तुम्हें गिफ्ट दूंगा. निष्ठा, यह हमारा स्कूल का आख़िरी साल है. ये दिन लौट कर नहीं आएंगे. कुछ ऐसा करना चाहता हूं, जिसे याद करूं, तो जीवन में रौनक़ आ जाए. फिर तो वही रूटीन… वही जॉब… मम्मी-पापा सारे काम करते हैं, प्रेम नहीं करते. वे ऐसे हो गए हैं कि लगता है प्रेम कभी किया ही नहीं था.”
मामला मुहब्बत का हो, तो महबूब का हर प्रस्ताव माकूल लगता है. निष्ठा ने अभिराम को ऐसे गर्व से देखा जैसे क़िस्मतवाली है.
वैलेंटाइन डे!
बाज़ार सज गया.
युवा वर्ग में चहल-पहल बढ़ गई.
कहा गया है प्रेम न हाट बिकाए, लेकिन दुकानों में प्रेम को उकसाने वाले गिफ्ट शान से सजे थे. इस बीच भारतीय संस्कृति के प्रति सजग रहनेवाले एक संगठन ने साफ़ तौर पर चेतावनी दे दी कि जो लोग वैलेंटाइन डे सेलीब्रेट करते यत्र-तत्र पाए जाएंगे, उन्हें खदेड़ा जाएगा. अधिकतर प्रेमियों तक चेतावनी नहीं पहुंची. जहां पहुंची उनके कयास में
दुकानों में तोड़-फोड़, प्रेमियों का अपमान करने जैसी सुर्ख़ियां बड़े शहरों में होती हैं. छोटे शहरों में किसी विरोध-विद्रोह का न आरंभ होता है न अंत. अभिराम व़क्त से पहले पार्क पहुंच गया. दूर वाले एकांत कोने की बेंच में स्थापित हो निष्ठा की प्रतीक्षा करने लगा. इंतज़ार में मज़ा है. प्रेम को व़क्त बर्बाद करने की सनक से लेकर… प्रेम गली अति सांकरी, आग का दरिया जैसा काफ़ी कुछ निरूपित कर प्रेमियों के हौसले तोड़ने के पुख्ता प्रबंध किए जाते रहे हैं. पर प्रागैतिहासिक काल से प्रेमी समुदाय प्रेम को नई ऊंचाई देने की ओर कृत संकल्प रहा है.
निष्ठा ख़ास साज-सज्जा में आई.
अभिराम ने मोह से देखा. स्लीवलेस चुस्त टॉप, छोटे स्कर्ट, ऊंची सैंडिल, खुले बालों में वह दूधिया लड़की अधिक दूधिया लग रही थी. वह अगवानी में खड़ा हो गया. नज़ाकत से उसकी उंगलियां थाम, स्टाइल मारते हुए गिफ्ट दिया, “मोबाइल.”
“मोबाइल!”
“वाऊ! मुझे इसकी ज़रूरत थी, वरना तुम बार-बार मां के होनेवाले बनोगे.”
“सिम डलवा दी है. एक एसएमएस भेजा है. घर जाकर पढ़ना.”
मोबाइल मिलने से निष्ठा को वैलेंटाइन डे में सार्थकता नज़र आने लगी. अदा से बेंच में बैठ गई. अभिराम ने उसे मोबाइल के फंक्शन समझाए. बाद में पेस्ट्री का टुकड़ा उसे खिलाया और उसने अभिराम को खिलाया. पार्क में जो चार-पांच प्रेमी बैठे थे, वे अश्लील अनैतिक गतिविधि नहीं कर रहे थे, तथापि संगठन के कार्यकर्ताओं को देश में बढ़ते वैलेंटाइन के वर्चस्व में ख़तरा नज़र आ रहा था. प्रेमी युगल इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि दरअसल वे भारतीय संस्कृति के गौरव को खंडित कर रहे हैं. अभिराम और निष्ठा ने अप्रत्याशित रूप से कार्यकर्ताओं को ठीक सामने पाया. हॉकी, लाठी, काला रंग लिए हुए कार्यकर्ताओं को देख अभिराम और निष्ठा तुरंत खड़े हो गए.
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उन्हें आघात लगा कि संगठन की चेतावनी के मद्देनज़र कैमरा लिए लोकल केबलवाले नायाब नजारे को सेल्यूलाइड पर उतार लेने पर उतारू हैं. कुछ लोग भाग रहे थे. कुछ तमाशा देखने के लिए दूरी पर खड़े थे.
कार्यकर्ता तत्परता से अभिराम और निष्ठा के चेहरे पर काला रंग पोतने लगे. निष्ठा हथेलियों से चेहरा छिपाने लगी. अत: काला रंग एकसार न होकर चितकबरा हो गया, जो चेहरे को विकृत बना रहा था. कार्यकर्ताओं ने उसके साथ बहुत
ज़ोर-ज़बर्दस्ती नहीं की, जबकि अभिराम के चेहरे को तबियत से पोता. अभिराम चीखा, “क्या बदतमीज़ी है?”
“अंग्रेज़ की औलाद बदतमीज़ी तू कर रहा है. महतारी-बाप सोचते हैं लड़का पढ़ रहा है, पर तू इश्र्क़ में फरहाद बना भागता है. अपना काला मुंह बाप को दिखाना…”
“छोड़ो…”
एक कार्यकर्ता ने उसकी पीठ पर हॉकी से वार कर दिया, “छोड़ेंगे नहीं, सड़क में घुमाएंगे… और लड़की तू… यह तेरा फरहाद तुझे दो रोटी खिलाने के लायक नहीं है… बाप के पैसे से ऐश कर रहा है… तू अपनी इज़्ज़त नीलाम न कर…”
कार्यकर्ताओं को निष्ठा की ओर केन्द्रित देख अभिराम तेज़ धावक की तरह मैदान छोड़ गया. ऐसा संक्रमण काल था, जब उसकी प्राथमिकता निष्ठा नहीं स्वयं की सुरक्षा थी.
“फरहाद भागा जा रहा है… घर जा… कपड़े ढंग के पहना कर…”
समूह अन्य युगलों को ढूंढने आगे बढ़ गया. निष्ठा के आंसू थम न रहे थे, पर पोंछने के लिए रूमाल नहीं. चेहरा छिपाना चाहती थी, पर स्कर्ट इतना छोटा था कि चेहरे तक पहुंच नहीं सकता था. टॉप में बांहें नहीं थीं कि काम आतीं.
“भाग गया भगोड़ा. डंडा पड़ते ही इश्क़ ठंडा पड़ गया. वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट करने चला है… क्रांतिकारी बनने… अब तो मेरी जूती भी इससे इश्क़ नहीं करेगी…”
निष्ठा किसी तरह घर पहुंची. सीधे वॉशरूम में गई. चेहरा साफ़ कर अपने कमरे में इस तरह घुसी रही जैसे ज़माने से छिप जाना चाहती है. देर बाद कमरे से ही सुना बाहर से लौटा उसका बड़ा भाई विकल्प, मां से कह रहा था, “मां, इश्क़बाज़ लड़के-लड़कियां पुष्करणी पार्क में वैलेंटाइन डे मना रहे थे. संगठनवालों ने उनके चेहरे काले कर दिए.”
“चेहरे काले कर दिए? यह तो अच्छी बात नहीं है.”
“वैलेंटाइन डे से वातावरण बिगड़ रहा है. सुपर चैनल की न्यूज़ देखूंगा.”
ठीक आठ का व़क्त था. निष्ठा ज़मींदोज हो जाना चाहती थी.
लोकल न्यूज़ बुलेटिन रहस्योद्घाटन कर रहा था. “मां, यह निष्ठा है? साथवाला लड़का कौन है? अपनी दुलारी का कांड देख लो. स्कूल पढ़ने नहीं, चोंच लड़ाने जाती है. कपड़े क्या पहने हैं? मां, तुम देखती नहीं यह कितने तंग कपड़े पहनती है? अब तो हर कोई मुझसे पूछेगा, जिसका मुंह काला हुआ तुम्हारी बहन है..? निष्ठा है कहां?..”
करवट लेटी निष्ठा ने जान लिया बाजू फड़काता हुआ विकल्प कमरे में आ गया है. पीछे मां है. विकल्प ने बिना प्रश्न किए निष्ठा की पीठ पर मुष्ठि प्रहार कर दिया. पापा के बाद उनकी पदवी पर बैठ गया. विकल्प अतिवादी हो गया है. वह समझ रही थी कि विकल्प ऐसा ही कुछ रिएक्ट करेगा. दूसरा प्रहार कर बोला, “परीक्षा होते ही इसकी शादी कर घर से रफ़ा-दफ़ा करो. जो भी लड़का मिले, जैसे मिले, इसकी शादी करो और छुट्टी पाओ. पापा होते तो इसे कंट्रोल करते. बचकानी उम्र का बचकाना प्रेम इसे बर्बाद कर देगा. मैं छिछोरापन नहीं सहूंगा…” विकल्प नीति-अनीति बोलता रहा. मां उसे नियंत्रित करने का प्रयास करती रहीं. निष्ठा ने न अपना बचाव किया, न विद्रोह. जानती थी बचाव या विद्रोह करने पर विकल्प के लात-घूंसे चलेंगे. अभिराम के व्यवहार से वह सदमे में थी. विकल्प उसे उतना ग़लत नहीं लग रहा था जितना अभिराम. यदि इस भगोड़े का मोबाइल पर कॉल आया, तो दो टूक कहेगी- गो टू हेल. अब जाकर ध्यान आया, मोबाइल पार्क में छूट गया है. पूरी तरह लाचार निष्ठा रातभर रोती-छटपटाती रही.
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अभिराम की वही गति हुई, जो इधर निष्ठा की हुई. नहीं जानता पार्क से कैसे भागा, कैसे बाइक स्टार्ट की, कैसे घर आया. सब कुछ जैसे अर्द्धमूर्छित अवस्था में हुआ. मां शहर से बाहर थीं. पापा नर्सिंग होम में थे. घर में मेड खाना बना रही थी. उसने शर्ट की बांह से काफ़ी कुछ चेहरा पोंछ लिया था, फिर भी चेहरा बता रहा था काला किया गया है.
मेड की आंखों और स्वर में विस्फारित, “भैया क्या हुआ?”
“कुछ नहीं.”
अभिराम अपने कमरे में चला गया. अटैच्ड वॉशरूम में चेहरा धोया. बिस्तर पर बैठकर बेचैनी में पैर हिलाने लगा. चेतना में कुछ हरकत हुई- निष्ठा घर कैसे पहुंची होगी? मेरी कायरता पर क्या सोच रही होगी? उसे भरोसा दिलाऊंगा, मेरा प्यार झूठा नहीं है. निष्ठा के नए-नए मोबाइल पर कॉल करना चाहता था, पर साहस न हुआ.
पापा अपेक्षाकृत जल्दी घर आ गए. नर्सिंग होम के अपने चैंबर में सुपर चैनल की न्यूज़ में चिरंजीव के दर्शन लाभ कर लगा उनके साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया है. खुलेआम ठगी. कुछ देर बैठक में बैठकर मानस बनाते रहे. फिर अभिराम को बुलाया. अभिराम हलाल होने की मुद्रा में हाज़िर हुआ, “हां, पापा…”
पापा ने नरमी से बात की, “मैं तुम्हें डॉक्टर बनाना चाहता हूं. तुम रोड रोमियो बन रहे हो.”
“जी..?”
“सुपर चैनल न्यूज़ ने तुम्हारी करतूत पूरे शहर को दिखा दी है. हमारे नर्सिंग होम का नाम है. लोग क्या कहेंगे इतने बड़े सर्जन का पूत मुंह काला करा रहा है…”
पिता से मैत्री संबंध होने के कारण अभिराम उनसे खुलकर बोलता है. यह खुलकर बोलने जैसा प्रसंग नहीं था. गर्दन झुका कर बोला, “वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट कर रहा था.”
“ऐसे बता रहे हो जैसे एक तुम्हीं जवान हुए हो, बाकी सब बेवकूफ़ हैं. प्रेम और पढ़ाई साथ-साथ नहीं होती.”
ज़ुबान फिसल गई, “आपने साथ-साथ…”
“बोलने के पहले थोड़ा सोचा करो. मैं और तुम्हारी मां मैच्योर थे. एम.बी.बी.एस. कर चुके थे. पी.जी. में फैसला लिया. तुम स्कूल में हो.”
“निष्ठा अच्छी लड़की है.”
“कौन अच्छी है, कौन नहीं यह सोचने का व़क्त अभी नहीं आया है. निकम्मे न बनो. चार मार्च से एग्ज़ाम हैं.”
वह लंबी रात थी.
निष्ठा क्या सोच रही होगी जैसी लज्जा ने उसकी भूख और नींद का हरण कर लिया. बाप लोगों की चरित्र लीला समझ में नहीं आती. ख़ुद इश्क़ करते रहे. वह कर रहा है, तो पेट में मरोड़ उठ रही है. इनके समय में वैलेंटाइन डे का चलन होता, तो ये भी मुंह काला करवाते. फिल्मों में बचपन का इश्क़ शान से चलता है. बाप लोग थक-हार कर मंज़ूरी दे देते हैं. पर ये जो असली मां-बाप हैं, इन्हें प्रेम से बैर है. बेटा मर्डर करके आए, ये बचाने में लग जाएंगे.
लेकिन प्रेम में पड़ना इन्हें निकम्मा बनना लगता है. परीक्षा सिर पर है, पर न स्फूर्ति है, न माहौल. परीक्षा देने का मन ही नहीं है.
अभिराम ने निष्ठा के मोबाइल पर कई बार कॉल किया. यह नंबर अस्तित्व में नहीं है. लैंड लाइन पर कॉल करने का साहस न हुआ. विकल्प रिसीव कर सकता है. निष्ठा बताती है स्वभाव से वह लंबे सींगोंवाला बैल है. प्रिपरेशन लीव चल रही है. चार मार्च को निष्ठा के दीदार होंगे.
चार मार्च…
निष्ठा ने अभिराम को देखा तक नहीं, जैसे वह उसकी ज़िंदगी में कभी नहीं था. अभिराम ने पर्ची में- ‘निष्ठा, मैं तुमसे प्रेम करता हूं. साबित करूंगा’ लिख कर मित्र के द्वारा निष्ठा को पर्ची भेजी. अगले पर्चे में उस मित्र ने निष्ठा का जवाब अभिराम को
थमाया- ‘छिछोरपन से प्रेम साबित नहीं होता. बचकानी उम्र का बचकाना प्रेम बकवास है…’
पहले ही प्रयास में अच्छे रैंक के साथ पी.एम.टी. पास कर अभिराम इंदौर चला गया. निष्ठा इसी शहर से स्नातक करने लगी. अभिराम जब इंटर्नशिप कर रहा था, निष्ठा के विवाह की सूचना मिली.
अभिराम भूलते-भूलते बचकानी उम्र के बचकाने प्रेम को भूल गया था, अपाला ने गुलाब प्रस्तुत कर याद दिला दिया. वो जो भी था- पहला-पहला प्यार था.
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