Short Stories

कहानी- पराया धन‌ (Short Story- Paraya Dhan)

“तुम वहां गाना गाने गई थीं या बहुओं की बुराई करने? तुम्हें तो बुराई करने का मौक़ा मिलना चाहिए. यहां रहना है, तो ठीक से रहो. यहां ऐसा नहीं चलेगा, समझीं.” बेटे की कर्कश आवाज़ ने उन्हें महसूस करा दिया था कि वे बेटे के यहां रह रही हैं. बेटे की शादी के बाद भी मां के लिए बेटे अपने होते हैं, लेकिन बेटों के लिए मां पराई हो जाती है. बेटे मां के साथ रह सकते हैं, लेकिन मां बेटे के साथ नहीं.

“नानी एक कहानी सुनाओ न.” नीरज ने कहा. “नानी मुझे भी.” नीरू ने नानी के पास लेटते हुए कहा. नीरू और नीरज दोनों ही नानी से लिपट कर लेट गए और बार-बार कहानी सुनाने का आग्रह करने लगे.
“एक राजा था…”
“राजा-रानी की कहानी नहीं सुनेंगे.” बच्चों ने नानी की कहानी को बीच में ही काटते हुए कहा, “अब न राजा होते हैं, न रानी. हम तो कोई दूसरी कहानी सुनेंगे.” बच्चों ने ज़िद की. नानी परेशान, आज तो गप्पें मारने को नहीं मिलेगा, ये बच्चे बड़े चालाक हो गए हैं.
“अच्छा! एक बुढ़िया की कहानी सुनो. एक थी बुढ़िया…” “नानी, वह बुढ़िया आपके जैसी थी?” नीरू ने उत्सुकता से पूछा.
“हां भाई, मेरे जैसी ही थी.” नानी ने कहानी शुरू की.
“हां नानी फिर…”
सावित्री को याद आया, नन्हीं नेहा कैसे चुपचाप बैठकर कहानी सुना करती और बीच-बीच में भाइयों की चपत भी खाती जाती.
“उस बुढ़िया के दो बेटे थे, बड़े ही प्यारे दुलारे और एक बेटी भी थी. वे दोनों भी तुम दोनों की तरह कहानी सुनते थे.”
“और बेटी नहीं सुनती थी नानी?” नीरू ने आश्चर्य से पूछा. “सुनती थी, लेकिन वह अक्सर बैठकर कहानी सुनती थी, क्योंकि मां के दोनों ओर तो भाई लेट जाते थे. वह मां के लिए पराया धन थी. मां की छाती से लिपटकर कहानी सुनने का सौभाग्य उसे नहीं मिलता था. उसके हिस्से में मां का हाथ पकड़ना ही आता, जिसे वह सावधानी से पकड़े रहती और तन्मयता से मां के हाव-भाव भी देखती जाती.” सावित्री को याद आया, नन्हीं नेहा कैसे चुपचाप बैठकर कहानी सुना करती और बीच-बीच में भाइयों की चपत भी खाती जाती.


यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)

“नानी वे बच्चे मां को बहुत प्यार करते थे?”
“हां बेटे.”
“लेकिन…”
“लेकिन क्या नानी?”
“शादी के बाद वे मां को भूल जाते हैं.”
“वह कैसे नानी..?” बच्चों ने आश्चर्य से पूछा.
नानी को याद आया उनके बड़े बेटे महेश ने उन्हें जरा-सी बात पर कैसे आड़े हाथों लिया था?
“उस बुढ़िया को गाने का बहुत शौक था…” नानी ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा.
“क्या वह बहुत अच्छा गाती थी?”
“हां… अच्छा… बहुत उसके बिना तो गाने की महफ़िल ही नहीं जमती थी.”
“क्या वह लता मंगेशकर से भी अच्छा गाती थी?”
“अरे, लता मंगेशकर क्या गायेगी उसके सामने?”
नानी का इतना कहना भर था कि बच्चे हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए.
“नानी, लता मंगेशकर से अच्छा क्या कोई गा सकता है?”
“अरे बेटा! जो तुम्हारी लता मंगेशकर से कोई सोहर, सगुन, मंगल, सुहाग गवाए तो जानें, अरे जानते हो यह सब कितना मुश्किल होता है..? ढोला तो आंतें तक बाहर खींच लेवे, तब जाके पूरा होवे है.”
“ये सब रेडियो पर नहीं आता?” बच्चों ने तर्क किया,
“तुम्हारे इस मुंए रेडियो में कोई ढंग की चीज़ कभी आवे है.”
“अच्छा, नानी फिर क्या हुआ?”
“फिर एक दिन वह बुढ़िया गाने चली गई और जो गाना शुरू किया, तो सारी महिला मंडली दंग रह गई.”
“मां, आप तो बहुत अच्छा गाती हो, आपकी बहू तो नहीं गाती.” किसी ने कहा.
“अरे बहुएं तो मरी गोबर का ढेर हैं… कुछ न जानें… न गाना, न बजाना.” सास सुलभ अहम् से सावित्री ने कहा, सावित्री को दुख था कि उनकी एक भी बहू गाना-बजाना नहीं जानती थी. महेश की बहू पढ़ी-लिखी थी, उसे सास के शब्द तीर की तरह लगे और वह क्रोध से लाल हो गई. भरी महफ़िल में अपना अपमान वह सह न सकी और अपने घर वापस आ गई. सावित्री लड्डू लेकर ख़ुशी-ख़ुशी घर लौटीं. आज बहुत दिनों बाद उन्हें ऐसा मौक़ा मिला था. आजकल तो गाने-बजाने का फैशन ही समाप्त हो गया है. भला, इसके बिना भी कहीं मज़ा आता है.
मां के घर में कदम रखते ही महेश ने चीखकर कहा, “तुम क्यों गई थीं वहां?”
“गाना था, चली गई तो क्या हुआ? उन्होंने बुलाया भी तो था.”
“तुम वहां गाना गाने गई थीं या बहुओं की बुराई करने? तुम्हें तो बुराई करने का मौक़ा मिलना चाहिए. यहां रहना है, तो ठीक से रहो. यहां ऐसा नहीं चलेगा, समझीं.” बेटे की कर्कश आवाज़ ने उन्हें महसूस करा दिया था कि वे बेटे के यहां रह रही हैं. बेटे की शादी के बाद भी मां के लिए बेटे अपने होते हैं, लेकिन बेटों के लिए मां पराई हो जाती है. बेटे मां के साथ रह सकते हैं, लेकिन मां बेटे के साथ नहीं.


यह भी पढ़ें: अब बेटे भी हो गए पराए (When People Abandon Their Old Parents)

सावित्री की वाणी मूक हो गई. गले में गुनगुनाते भजन न जाने कहां लुप्त हो गए. आंखें आंसुओं से भर गईं. वे क्या बताएं- जाना तो न चाहती थीं, लेकिन ढोलक की थाप उन्हें बरबस अपनी ओर खींच ले गई.
कहानी सुनाते समय भी सावित्री का गला भर आया. पुराने घाव अगर फिर से कुरेद दिए जाएं, तो वे पहले से ज़्यादा कष्टदायी हो जाते हैं.
“क्या हुआ नानी?” बच्चों ने नानी को आंसू पोंछते देखकर पूछा.
“कुछ नहीं, आंख में कुछ गिर गया था.” सावित्री ने बहाना बना दिया. सावित्री फिर वहां ज़्यादा दिन न रह सकी. अपने को अस्तित्वहीन और दीन-हीन नहीं बनाना चाहती थीं वह. सोचा बड़े बेटे के पास चली जाएंगी. लेकिन वे वहां जाने का साहस न जुटा सकीं. यहां बहू नहीं बेटा बोलता है, वहां यह अधिकार बहू ने अपने पास रखा है. वह तो गालियां देने में भी माहिर थी, अतः सावित्री, आज अपने ‘धनों’ को छोड़कर ‘पराये धन’ नेहा के पास ही रह रही थीं.
“नानी फिर उस बुढ़िया ने गाना छोड़ दिया…?”
“अरे… ना बेटे ना, वह अभी भी गाती है, लेकिन अकेले में. अब वह ज़ोर से नहीं गाती, मन में गाती है.”
“मन-मन में गाना क्या होता है?”
“बिना आवाज़ के गाना.”
“बिना आवाज़ के भी कोई गाना होता है?” बच्चों ने आश्चर्य व्यक्त किया.
“हां बेटा, होता है. बिना आवाज़ का गाना ज़्यादा भाव भरा होता है. वह चुपचाप रुला भी देता है और हंसा भी देता है.”
“हमें भी ऐसा गाना सुनाओ.”
“तो पहले आंखें बंद करो, फिर सुनाऊंगी.” नानी ने गुनगुनाना शुरू किया. बच्चे थोड़ी ही देर में सो गए.
बच्चे जब सो जाते हैं, तो उनका भोलापन और भी उजागर हो जाता है. नानी देर तक बच्चों को निहारती रहीं और प्यारी नीरू को कसकर छाती से लगा लिया.
“अरे, क्या हुआ मां? नीरू को इतना प्यार!” नेहा ने आश्चर्य से कहा, क्योंकि मां के लिए नीरज के बाद ही नीरू का नंबर आता था.


यह भी पढ़ें: पहचानें रिश्तों की लक्ष्मण रेखा (Earn to respect relationship and commitment)

“बड़ी प्यारी बच्ची है.” नानी ने प्यार करते हुए कहा.
“पर है तो पराया धन ही.” नेहा ने उल्टी सांस लेते हुए कहा.
“नहीं… बेटी… नहीं. यह तो पाई-पाई संचित कर जोड़ा हुआ धन है. अमूल्य है यह.”
नेहा ने आश्चर्य से पूछा, “और मैं.”
“तू तो मेरा बहुमूल्य कोष है.” दोनों मुस्कुरा कर लिपट गईं.

– कल्पना दुबे

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES


अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

फिल्म समीक्षा: प्यार और रिश्ते की ख़ूबसूरत अलग परिभाषा देती ‘दो और दो प्यार’ (Movie Review: Do Aur Do Pyar)

रेटिंग: *** ऐसा क्यों होता है कि जिस रिश्ते में हमें सबसे ज़्यादा जुड़ाव और…

April 20, 2024

बर्लिनेल येथे जागतिक यशानंतर, आनंद एल राय यांच्या कलर यलो प्रॉडक्शनने आत्मपॅम्फलेट आणि झिम्मा 2 सह प्रादेशिक सिनेमांमध्ये उमटवल अव्वल ( Atmapamflet And Jhimma 2 wins Barlineil Internantion Award)

हिंदी चित्रपटसृष्टीतील उल्लेखनीय योगदानासाठी ओळखले जाणारे चित्रपट निर्माते आनंद एल राय यांनी आता त्यांच्या निर्मिती…

April 20, 2024

“राशी खूप हॉट दिसत आहे ” तमन्ना कडून राशीच्या लूकच कौतुक (Tamannaah Bhatia praises Raashi Khanna’s look in Armani 4 song ‘Achchacho)

अरनमानाई 4' ची सहकलाकार राशि खन्ना हीच सर्वत्र कौतुक होत असताना तमन्ना आणि राशी दोघी…

April 20, 2024
© Merisaheli