Short Stories

कहानी- रंगरेज़ मेरे… (Short Story- Rangrez Mere…)

सोहम के दिल में आया कि सामने खड़ी, इस भोली-भाली लड़की की आंखों में ठहरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछ दे, लेकिन नहीं… यह ज़ल्दबाज़ी हो जाती. अभी तो इस रिश्ते की शुरुआत ही हुई थी. सोहम ने बस इतना ही पूछा, “इस कोशिश में मुझे क्या मदद करनी चाहिए अब?”

आज दूसरी बार वही हुआ… लिफ्ट का दरवाज़ा बंद होने को था कि सामने से भागती हुई आती लड़की का दिखना और लिफ्ट खुली रखने के लिए दूर से ही “प्लीज़ प्लीज़” कहना… सोहम ने आज फिर लिफ्ट के दरवाज़े पर हाथ लगाकर रोक दिया.
“थैंक्स…” हाथों में दो झोले थामे वो मुस्कुराई, सोहम जानता था लड़की का फ्लोर कौन-सा है. बटन दबाते ही एक दूसरा ‘थैंक्स’ आया, कुछ और शब्दों के साथ!
“थैंक्स… वैसे आप सोहम हैं ना, शर्मा आंटी के बेटे, जो
बैंगलुरू में रहते हैं. मैं उस दिन ही पहचान गई थी. आंटी अक्सर आपकी बात करती हैं. आपकी पढ़ाई की, आपकी हाई फाई जॉब की… मैं अनु, आपके फ्लैट के ठीक नीचे वाले फ्लैट में रहती हूं.”
अनु ने जॉब वाली बात के बाद आगे क्या कहा याद नहीं. सोहम तो बस वहीं अटक गया था, हाई फाई जॉब! गले में खुश्की आ गई. वो शब्द वहीं अटके रह गए.
‘कैसे बताऊं पापा-मम्मी को ये सच्चाई, बेटे की वो नौकरी जो उनके लिए सबसे ख़ास बात थी, उनका गुरूर था, वो अब रही कहां? कितने ही लोग कंपनी से निकाले गए. उनमें से एक नाम सोहम का नाम भी तो था. ये एक ऐसा ज़हर का घूंट था, जो सोहम ने अकेले पिया था.
कुछ दिन कमरे में अपने को ़कैद करके काटे, फिर वर्क फ्रॉम होम का बहाना बनाकर घर आ गया. यहां भी चैन कहां था? मां परेशान थीं, रिश्तों की बात करने में, सपने देखने में!
“देखो ये फोटो, कितनी सुंदर लड़की है. ख़ूब अच्छा पैकेज भी है.” मां ने फोटो सोहम की ओर बढ़ा दी. वो खीज गया था.
“लुक्स, सैलरी? बिना इन सबके इंसान बेकार है एकदम? बस यही सब मायने रखता है न?” जवाब पापा ने दिया था, “मायने तो रखता है. बिल्कुल रखता है, तुम खिसिया क्यों जाते हो हर बात पर?”
सोहम बिना जवाब दिए अपने कमरे में जाकर बैठ गया था अपने आपको कोसते हुए! क्यों
आया था यहां? घर में ऐसा क्या था, जो ख़ुश होने जैसा था? बातें बोझिल लग रही थीं. मौसम उबाऊ लग रहा था और मन, मन तो जैसे पैर लगाकर भागने पर उतारू था. सोहम ने तुरंत फोन निकालकर अपने फ्लैटमेट को कॉल किया था, “आज रात ही निकलूंगा, यहां कुछ नहीं कहा जा सकता… कोई मुझे समझेगा नहीं, दम घुट रहा है… पहले सोचा था होली मनाकर आऊंगा, पर अब लग रहा है त्योहार जैसा कुछ नहीं होता.”
फोन को बिस्तर पर फेंककर सोहम खिड़की पर आ खड़ा हुआ था. होली आने में क़रीब दस दिन बाकी थे, लेकिन सड़क पर अबीर-गुलाल के ढेर से लदे ठेले, दुकानों पर पिचकारियों के जमघट लग चुके थे. लड़ते-झगड़ते बच्चे और उनको दुलारकर शांत करातीं उनकी मां. सोहम ने आंखों के कोने छुए, वहां नमी थी. कहां गया वो बचपन, वो ज़िद? क्यों नहीं जाकर लेट सकता मां की गोदी में? क्यों नहीं कह सकता कि जॉब नहीं रही?
कुछ हसरतें पूरी नहीं होतीं, स़िर्फ बेचैनी बढ़ाती हैं. सोहम ने अपने सूटकेस में सामान लगाना शुरू किया ही था कि नीचे वाली बालकनी से कुछ आवाज़ आई. ऐसे जैसे कि कोई सुबक रहा हो! नीचे वाले फ्लैट में जो लोग रहते हैं, उनको वह जानता था. सोहम ने झांककर देखा. अरे, ये तो वही लड़की, लिफ्ट वाली, क्या नाम बताया था, हां अनु! ख़ुद को रोकते हुए भी सोहम पूछ बैठा, “हेलो, एक्सक्यूज़ मी!”

यह भी पढ़ें: 35 छोटी-छोटी बातें, जो रिश्तों में लाएंगी बड़ा बदलाव (35 Secrets To Successful And Happy Relationship)


अनु की भीगी पलकें ऊपर उठीं, सोहम को खिड़की पर देख हड़बड़ा गईं.
“आप ठीक हैं? कोई हेल्प?”
ना में गर्दन हिलाते हुए, आंसू पोंछते हुए अनु अंदर भाग गई थी. उसके बाद सोहम से कुछ भी पैक करते न बना. कभी उस लड़की के दुख का कारण सोचता, कभी अपना दुख एक बार फिर हावी हो जाता. कुछ न सूझा, तो थोड़ी देर लेटा रहा. फिर सोसायटी के गार्डन में आ गया. ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर, सोहम लिफ्ट के पास थोड़ी देर खड़ा रहा. जो घटना दो बार हुई, आज वो तीसरी बार हो जाए तो? सोहम ने आसपास देखा. कोई भी लड़की नहीं थी, जो भागकर इस ओर आ रही हो! लेकिन वो कौन थी, जो पीछे बने मंदिर के पास वाली बेंच पर बैठी थी. कोई तो वजह थी, जो सोहम को उस ओर खींच ले गई.
“हाय! क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?”
अनु ने तुरंत खिसककर जगह बना दी थी, सोहम सीधा मुद्दे पर आया, “पता नहीं, मुझे कहना चाहिए या नहीं, लेकिन अकेले रोने से अच्छा है, अपने दुख बांट लीजिए, किसी से भी…” कहने को तो सोहम कह गया. फिर अपनी बचकानी लाइन पर ख़ुद ही झेंप गया. समझाना जितना आसान है, अमल करना उतना ही मुश्किल! वो ख़ुद बांट पाया क्या?
अनु ने बेंच का रंग खुरचते हुए कहा, “दुख बांटा नहीं जाता. स्वीकार किया जाता है. वही कोशिश कर रही हूं.”
सोहम का ईगो हर्ट हुआ था, ऐसा लगा जैसे अनु ने उस पर ही उंगली उठा दी हो. टूटते ईगो की भरपाई करने के लिए सोहम ने थोड़ी और समझदारी दिखाई, “हां, बांटने से कोई फ़ायदा भी तो नहीं! कोई और समझ ही नहीं पाता है.”
अनु ने फिर बात काट दी थी, “ऐसा नहीं है. हम अपने दुख को ख़ुद ही नहीं एक्सेप्ट कर पाते. अपने मन में कहीं छुपाकर ढंक देते हैं. जो ख़ुद नहीं देखना चाहते, वो दूसरे कैसे देख पाएंगे?”
अनु इतना बोलकर चुप हुई, फिर सोहम की आंखों में देखकर बोली, “त्योहार जैसा कुछ तो होता ही है ना! अपने लिए ना सही, अंकल-आंटी के लिए गुलाल से दोस्ती कर लीजिएगा. कोशिश कीजिए, मैं भी कोशिश ही कर रही हूं.”
सोहम को याद आया, फ्लैटमेट से की बातें अनु ने बालकनी पर सुनी होंगी. सोहम बिना कुछ बोले वहां से चला आया था. बिना जले दर्द महसूस नहीं होता. ख़ुद तो किसी छोटी सी बात पर बिलखकर रो रही होगी, मुझे ज्ञान देने में कितना आगे है. अनु की बातें मन को और बेचैन कर गई थीं. थोड़ी देर इधर-उधर टहलने के बाद ही सोहम घर लौट पाया था. मन ही मन भूमिका बना रहा था कि कल जाने की बात कैसे उठाए? ऑफिस से अर्जेंट कॉल आया या फिर दोस्त की तबीयत ख़राब, क्या कहना ठीक रहेगा? मैदे का थैला पकड़ते हुए मम्मी ने इशारा किया था, “वो रखा है फोन तुम्हारा. तुम नीचे छोड़ आए थे. अभी अनु देने आई थी, वो जो नीचे वाले फ्लैट में रहती है. बड़ी सीधी लड़की है बेचारी.”
सोहम ने ‘बेचारी’ शब्द पर अटककर फोन उठा लिया था, “फोन वापस कर गई, तो बेचारी हो गई?”
मम्मी ने तुरंत समझाया, “तुमको नहीं पता क्या? दो महीने पहले ही तो पापा-मम्मी नहीं रहे इसके. तब से दीदी-जीजाजी के पास आकर रह रही है. क्या बताएं, इसकी हिम्मत देखकर तो…”
मम्मी कहती जा रही थीं, सोहम को आगे कुछ सुनाई ही नहीं दिया. अपने कमरे की ओर बढ़ते हुए सोहम को सब याद आता जा रहा था. कितनी आसानी से उसने अनु का दुख माप लिया था. उसकी तकलीफ़ को तौलकर हल्का मान भी लिया था. एक लाइन बार-बार गूंज रही थी, “दुख को स्वीकारना ही सबसे बड़ी बात है…”
सोहम ने एक बार फिर खिड़की से बाहर बाज़ार की रौनक़ देखी, गुलाल के ठेले देखे, दुकानों की पिचकारियां भी. तुरंत फोन उठाकर फ्लैटमेट को मैसेज किया, “होली मनाकर ही आऊंगा यार.”

यह भी पढ़ें: जानें दिल की दिलचस्प बातें (Know Interesting Facts About Your Heart)


इस ज़रूरी मैसेज के बाद, एक ज़रूरी काम भी बचा था. दुख को सामने लाने का काम! सोहम रसोई में जाकर खड़ा हो गया था, “मम्मी! मुझे आपको कुछ बताना है. मेरी जॉब दो महीने पहले चली गई है.”
मैदे का थैला पकड़े मम्मी के हाथ अचानक रुक गए थे.
“चली गई है मतलब?”
“मतलब… नहीं है अब, ढूंढ़ रहा हूं दूसरी…”
बस वो इतना ही बोल पाया था. इसके आगे कुछ बोलने को बचा नहीं था या फिर मम्मी सुनना ही नहीं चाहती थीं. दो मिनट पहले तक जो त्योहार की हलचल थी, वो कौन से कोने में जाकर छुप गई थी? उसके बाद के कुछ घंटों तक जो कुछ भी होता रहा, सोहम उसका हिस्सा था ही नहीं.
पापा आए, मम्मी ने कुछ उनसे कहा. उसके बाद भी कुछ हुआ होगा. सोहम चुपचाप कमरे में लेटा रहा. शाम गहराकर रात में बदल गई. घर का अंधेरा भी बढ़ गया. न तो किसी ने चाय के लिए आवाज़ दी, न आकर कमरे की लाइट जलाई.
वो हड़बड़ाकर बाहर आया, तो देखा पापा-मम्मी चुपचाप बैठे हैं. टीवी तो बस कहने के लिए चल रहा था, देख कोई नहीं रहा था. सोहम बिना कुछ कहे वहां से निकल गया था. लिफ्ट का दरवाज़ा खोलते हुए हाथ रुक गए. सीढ़ियों की ओर रुख किया, जैसे ही नीचे वाली फ्लोर पर आया, वही हुआ जो वो चाहता था. सामने का दरवाज़ा खुला हुआ था और अनु अपनी दीदी के साथ गमले में शायद पानी दे रही थी. सोहम को देखकर जैसे ही मुस्कुराई, उसने टोक दिया, “रात को पानी नहीं देते पौधों में.”
“पानी नहीं दे रही थी… कोई बच्चा इसमें चुइंगम खाकर फेंक गया है, वही अलग कर रही थी.”
सोहम और उसकी दीदी के साथ थोड़ी-बहुत बातें हुईं, पहले से परिचित थे. सोहम थोड़ी देर और रुकना चाहता था वहां. बात करना चाहता था. थोड़ी देर और घर से बाहर रहना चाहता था.
घर जाने के नाम से मन के भीतर कुछ दरक रहा था. काश! वो पूरी रात यहीं रुककर इसी तरह बातें कर सकता अनु से, उसकी दीदी से…
“अंदर आओ न. चाय पीते हैं. तुम पहले तो बहुत पीते थे.”
दीदी की बात सुनकर सोहम ने ‘हां’ कहने में देर नहीं लगाई. चाय पीते-पीते पुराने क़िस्से खुले, बहुत सी बातें हुईं, कहकहे लगे… अचानक उसकी दीदी ने पूछ लिया, “और बताओ, जॉब के क्या हाल? सब बढ़िया?”
सोहम ने एक सेकंड का टाइम लिया, एक नज़र अनु को देखा और लंबी सांस खींच कर बोला, “वो वाली तो नहीं रही. अब दूसरी ढूंढ़ रहा हूं.”
दीदी चौंककर बोली, “सीरियसली? चलो कोई बात नहीं. ये अच्छा है कि तुम इस बात से परेशान नहीं हो.”
सोहम ने कनखियों से अनु की ओर देखते हुए कहा, “पहले परेशान था. खुलकर कह भी नहीं पा रहा था, फिर किसी ने समझाया कि दुख जब तक एक्सेप्ट नहीं किया जाता, तब तक ज़्यादा परेशान करता है.”


अनु अचानक सकपका गई थी. दीदी ने भी ये बात नोटिस की थी. सोहम को लगा जैसे वो बहाने से कप अंदर रखने चली गई थीं. सोहम ने हिचकिचाते हुए पूछा, “अपना फोन नंबर… इफ यू डोंट माइंड…”
अनु ने बिना कुछ कहे फोन नंबर बता दिया था, लेकिन बस दस डिजिट बताकर वो फिर चुप हो गई थी. वैसे भी इतनी देर से उन तीनों की बातों में अनु की भूमिका श्रोता की ही थी. वो घर वापस जाने के लिए उठा, तो दरवाज़े तक दीदी ही आईं, “सोहम, एक मिनट रुको.” उन्होंने अंदर झांककर देखा, अनु नहीं थी. थोड़ा रुककर बोलीं, “पापा-मम्मी के जाने का सदमा हम सबको लगा, लेकिन धीरे-धीरे हमने इस दुख के साथ रहने की आदत बना ली है. कामकाज, गृहस्थी, इन सबमें भी उलझे हुए हैं, लेकिन अनु! उसके लिए व़क्त ठीक उसी पल ठहर गया है, जब वो हादसा हुआ था.”
सोहम ध्यान से पूरी बात सुन रहा था, दीदी ने आगे कहा, “तुम अभी जो बात कह रहे थे. वही उसको समझाओ न. दुख से जितना भागेगी उतना ही…”
इतना कहते हुए उनकी भी आवाज़ भर गई थी. सोहम चाहकर भी नहीं कह पाया कि ये बात तो ख़ुद अनु ने मुझसे कही थी. उसने बस इतना कहा, “हां दीदी, मैं बात करूंगा उससे. आप भी अपना ध्यान रखिए.”
भारी कदमों के साथ सीढ़ी चढ़ते हुए वो घर तक आया था. मन थोड़ा और ख़राब हो गया था. इतनी देर से वह घर से बाहर था, लेकिन एक भी फोन नहीं आया था. नौकरी छूटना क्या इतनी बड़ी वजह थी, जिसके लिए अपने बच्चे से प्यार होना बंद हो जाए? घर का दरवाज़ा खुला हुआ था. बाहर कमरे में पापा तो नहीं थे, लेकिन  मम्मी उसी तरह उदास चेहरा लिए बैठी थीं.
“खाना रखा है तुम्हारा. खा लो.”
“मुझे भूख नहीं है.”
बस इतना कहकर सोहम अपने कमरे में आकर बैठ गया था. जी में आ रहा था कि फफककर रो पड़े और मम्मी से पूछ ले कि हम सबके बीच केवल इस नौकरी का ही रिश्ता था?
उस रात भी भूखा सोया. अगली सुबह भी नाश्ता करने से मना कर दिया. दोपहर के खाने के लिए भी मना करते ही मम्मी के भीतर का लावा फूट पड़ा था, “किस बात का ग़ुस्सा दिखा रहे हो खाने पर?”
सोहम ने भी तुरंत पूछ लिया, “पहले आप बताइए, आप किस बात से नाराज़ हैं? क्योंकि मेरे पास नौकरी नहीं है? अब मैं किसी काम का नहीं, इसलिए आप सब मुझसे बात करना छोड़ देंगे? चला जाऊं अभी इसी व़क्त घर से?” बोलते हुए सोहम की आवाज़ भर आई थी. मम्मी ने एक पल के लिए टिककर उसको देखा, फिर तुरंत आगे बढ़कर गले लगा लिया था.
“बहुत बड़े हो गए हो क्या, जो इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो! बच्चे कभी भी काम के या बिना काम के होते हैं? शर्म नहीं आई तुमको यह सब बोलते हुए?”
सोहम चुपचाप बैठ रहा. आंख में आंसू भरे रहे, छलकते भी रहे… मम्मी ने ही आगे कहा, “बात नौकरी जाने की नहीं है बेटा. ख़राब तो हमें यह लगा कि तुमने कितने दिनों तक यह सब छुपाए रखा. अब बताओ कौन किसके लिए अजनबी है? पापा को भी कितना ख़राब लगा, कल से वो भी भूखे हैं.”
आंसू इधर भी थे, उधर भी. सब कुछ साफ़ हो गया था. सोहम ने पापा के पास जाकर माफ़ी मांगी. सबने साथ खाना खाया. ऐसा लगा जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था. सच ही तो कहा था अनु ने. दूसरों को समझाने से पहले ख़ुद समझना, स्वीकार करना ज़रूरी होता है!
सोहम मन ही मन गुणा-भाग करते हुए एक बात तो तय कर चुका था, जिसकी वजह से वो इतने बड़े भंवर से निकला है, उसको थैंक्स कहना तो बनता है. और थैंक्स कहने का तरीक़ा क्या होगा, वो सोच चुका था.
उसी दिन शाम को सोहम बालकनी से देखता रहा. जैसे ही अनु पार्क जाने के लिए बिल्डिंग से बाहर निकली, सोहम तुरंत घर से निकल गया.

“अरे, तुम भी यहां. कहीं मेरा पीछा तो नहीं कर रही हो?”
सोहम ने हंसते हुए पूछा था. अनु सिर झुकाकर बस, ‘नहीं’ बोल पाई. सोहम ने एक कोशिश और की, “पता है, घर में सब ठीक हो गया. अब मैं इतना हल्का महसूस कर रहा हूं.”
उधर फिर वही सन्नाटा था. सोहम ने गौर किया था कि हर समय अनु ऐसे नहीं रहती थी. कभी सामान्य ढंग से हंसती-बोलती, बात करती थी और कभी ऐसी चुप कि शब्द हों ही नहीं उसके पास. शायद अकेले यहां बैठकर उसकी ये तकलीफ़ और बढ़ जाती होगी या फिर वो जान-बूझकर यहां अकेले बैठती है. अपनी तकलीफ़ के साथ व़क्त बिताने के लिए.

यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: ख़ामोशियां चीखती हैं… (Pahla Affair: Khamoshiyan Cheekhti Hain)


“वैसे अनु, आगे क्या सोचा है? और पढ़ाई या जॉब?”
“अपना सोचा हुआ कुछ होता है क्या?”
अनु का सवाल भीतर तक छलनी कर गया था. पता नहीं उसको ठीक करने के लिए या फिर अपनी बात रखने के लिए सोहम कुछ ऐसा बोल गया, जो उस व़क्त बिलकुल नहीं कहना चाहिए था, “एक बात कहूं अनु? दुख सबके पास होता है, लेकिन अगर उसको पकड़ कर बैठ जाएं, तो वह धीरे-धीरे पत्थर में बदलने लगता है. इतना भारी पत्थर कि जिसको उठाकर दो कदम भी चला नहीं जा सकता. फिर ज़िंदगी का सफ़र कैसे तय करोगी? और फिर यह सही है क्या कि अपने साथ-साथ अपने आसपास जुड़े लोगों को भी अपने दुख से परेशान किया जाए?”
अनु बिना कुछ बोले तुरंत वहां से उठकर चली गई थी. पल भर के भीतर ही सोहम को एहसास हो गया था कि कितनी हल्की बात वो कह गया था. मेरी सिर्फ नौकरी गई थी और उस दुख को पत्थर बनाकर मैं भी तो घूम रहा था. इसने तो जीवन में इतना बड़ा हादसा सहा है. मैं यह बात कह भी कैसे सकता था?
अपनी नासमझी में सोहम कितनी बड़ी ग़लती कर चुका था, यह एहसास उसे हो चुका था. अगले पूरे दिन अनु कहीं नहीं दिखी. उसका नंबर था, लेकिन हिम्मत ही नहीं हो रही थी. जैसे-जैसे होली का त्योहार क़रीब आता जा रहा था, सोहम को रंग फीके दिखाई देने लगे थे. उसने अपने दिल से पूछा, ‘किस बात की तकलीफ़ मुझे ज़्यादा है, किसी लड़की का दिल दुखाने का या फिर किसी ख़ास लड़की का दिल दुखाने की? अनु से ना मिलकर, उसको अपने आसपास ना देखकर जो बेचैनी मुझको हो रही थी, इसका कोई नाम था या बस ऐसे ही?
झिझकते हुए ही सही, एक मैसेज सोहम ने कर ही दिया था, ‘आई एम सॉरी अनु! मुझे पता है, मुझे तुमसे वह सब नहीं कहना चाहिए था. हो सके तो एक बार मिल लो, ज़रूरी नहीं कि सोसायटी पार्क में ही. कहीं बाहर भी हम मिल सकते हैं.’
अनु मैसेज पढ़ चुकी थी! ब्लू टिक
साफ़-साफ़ बता रहा था, लेकिन अनु का जवाब ना आना… इसका क्या कारण था? कुछ कह दे, नाराज़गी ज़ाहिर कर दे, लेकिन इस तरह चुप रहना सोहम के गिल्ट को और बढ़ाता जा रहा था. कुछ दिन और इंतज़ार करने के बाद सोहम सीधे उसके घर चला गया था. उसे लगा था कि अनु ही दरवाज़ा खोलेगी, लेकिन सामने दीदी को देखकर हड़बड़ा गया, “हाय दीदी! अनु है क्या?”
दीदी उदास थीं और उनकी उदासी की वजह जानकर सोहम थोड़ा और परेशान हो गया था. उन्होंने बताया कि अनु अचानक अपने भइया-भाभी के पास अपने होमटाउन वापस चली गई थी, बिना किसी से कुछ कहे.
“तुमने उससे कुछ कहा था क्या सोहम?”
दीदी के पूछते ही सिर पर गिल्ट का बोझ थोड़ा और भारी हो गया था, “हां दीदी… बस मैंने उससे यही कहा था कि उसको भी अपने दुख को एक्सेप्ट करना पड़ेगा. वह ख़ुद दुखी है और आसपास सबको दुखी कर रही है. यह भी उसको सोचना चाहिए.”
दीदी ने कुछ कहा नहीं, लेकिन साफ़ दिख रहा था कि वह भी यह बात जानकर ख़ुश नहीं हुई थी. उन्होंने ना तो अंदर आने के लिए कहा, ना ठीक से बात की. सोहम जब वापस आने लगा तब वह इतना ही बोलीं, “पता नहीं तुमने ग़लत समझाया या उसने ग़लत समझा. हमें वह परेशान नहीं कर रही थी दुखी होकर, बस हम उसको दुखी देखकर परेशान थे…”
वहां से आकर सोहम फिर से अपने अंधेरों में ़कैद होने लगा था. हड़बड़ाहट में यह कितनी बड़ी ग़लती हो गई थी. अनु से उसने यह सब क्यों कह दिया? उसकी वजह से वह अपने रिश्तों से कट गई. दीदी का घर छोड़ कर चली गई. अगले ही दिन होली थी और एक ग़लती की वजह से कितने लोगों की ज़िंदगी के रंग छिन चुके थे.
“मम्मी मैं आज रात निकलूंगा, कल एक इंटरव्यू है. कल ही पहुंचना है.”
“लेकिन बेटा, त्योहार करके ही जाते.”
“जाना ज़रूरी नहीं होता, तो ज़रूर रुक जाता मम्मी.”
मम्मी से झूठ बोलकर सोहम उनसे तो बच सकता था, लेकिन अंदर की हलचल किस कदर बेचैन कर रही थी, यह वह जानता था. सोहम ने पैकिंग करके एक बार अपने कमरे से नीचे वाले घर की बालकनी की ओर देखा. काश! उस दिन की तरह अनु यहां बैठी दिख जाती, तो जाने से पहले उसे एक बार माफ़ी तो मांग लेता.
रात दो बजे की बस थी, मन न होने के बावजूद भी होलिका दहन की पूजा में  शामिल ही होना पड़ा. अग्नि के चारों ओर परिक्रमा लगाते, प्रसाद चढ़ाते हुए सोहम के मन में स़िर्फ अनु ही थी. बार-बार यही इच्छा मन में उठती रही कि बस एक बार उससे मिल लेता, उससे माफ़ी मांग लेता और शायद वह सब कह सकता है, जो उसके लिए महसूस कर रहा था.
पूजा करके सोहम लिफ्ट की ओर आ ही रहा था कि तभी मम्मी को साथ न पाकर पीछे मुड़कर देखा. एक बार तो उसे अपनी आंखों पर विश्‍वास ही नहीं हुआ, क्या यह सच था, जो वो देख रहा था? या फिर सपने मूर्त रूप लेकर यहां सामने आकर खड़े हो गए थे? क्या यह सचमुच अनु थी, जो मम्मी से हंस-हंसकर बातें कर रही थी?
सोहम तेज़ी से उसकी ओर बढ़ा. उसकी आंखें कितनी बदली हुई लग रही थीं! कहां गई वह उदासी, जो उसकी आंखों का स्थाई भाव बनकर रह गई थी? यह उसको हुआ क्या था? अचानक मम्मी ने प्यार से अनु का  कंधा थपथपाकर कहा, “अब आ गई हो, तो जाओ होलिका माता के दर्शन कर लो.”
सोहम भी पूजा की थाली लिए उसके साथ-साथ फिर से उस पवित्र अग्नि के पास बढ़ गया, “अनु! एक मिनट रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.”
आग की लपटों की रोशनी से दोनों के चेहरे लाल हो गए थे. अनु ने एक बार देखा, फिर नज़रें झुका लीं, “आप मुझसे यही पूछेंगे ना कि मैंने आपके मैसेज का जवाब क्यों नहीं दिया? मैं वापस आने का इंतज़ार कर रही थी कि मैं आपसे मिलकर आपको थैंक्स कह सकूं.” सोहम हड़बड़ा गया था, “किस बात के लिए थैंक्स कह रही हो? मैं तो तुमसे माफ़ी मांगना चाहता था. मैंने उस दिन तुमसे वो बातें कहीं, जिनका कोई मतलब ही नहीं था.”


“मतलब था सोहम… और ये बातें मुझे बहुत पहले समझ लेनी चाहिए थीं. आपने जब मुझसे कहा कि मैं अपने दुख से आसपास सबको दुखी कर रही हूं, तब मुझे समझ में आया कि दीदी के साथ भी तो उतना ही बड़ा दुख जुड़ा था. पापा-मम्मी के जाने का दुख भी वह झेलती रहीं और साथ ही मुझे ठीक करने की ज़िम्मेदारी भी लिए रहीं… दीदी की तरफ़ से तो मैंने सोचा ही नहीं और जीजाजी, वह कितने प्यार से मुझे यहां लेकर आए थे और तब से अब तक उन दोनों के पास मुझे ख़ुश रखने के सिवा कोई और काम ही नहीं बचा था. सचमुच मैं कितनी स्वार्थी हो गई थी.”
अनु जैसे-जैसे बोलती जा रही थी, सोहम की हैरानी बढ़ती जा रही थी, “आर यू सीरियस अनु? और मैं यहां इस गिल्ट में कितना परेशान रहा! तुम्हें पता है मैं आज रात निकल रहा हूं बैंगलुरू के लिए. मुझे यहां एक पल भी नहीं रुका जा रहा था. ये त्योहार, ये रंग, ये ख़ुशियां… ये सब मुझे बहुत परेशान कर रहे थे! तुम इस तरह अचानक होमटाउन वापस चली गई.”
“अचानक इसलिए चली गई कि कॉलेज जाकर बात कर सकूं. वहां पर अपना कोर्स फिर से शुरू करने का प्रोसेस पूरा कर सकूं.”
सोहम गौर से उसको देख रहा था, अनु बोलती चली जा रही थी, “आप सही थे सोहम! मैंने अपना दुख एक्सेप्ट किया है और आगे बढ़ने की कोशिश भी कर रही हूं.”
सोहम के दिल में आया कि सामने खड़ी, इस भोली-भाली लड़की की आंखों में ठहरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछ दे, लेकिन नहीं… यह ज़ल्दबाज़ी हो जाती. अभी तो इस रिश्ते की शुरुआत ही हुई थी. सोहम ने बस इतना ही पूछा, “इस कोशिश में मुझे क्या मदद करनी चाहिए अब?”
अनु ने मुस्कुराते हुए कहा, “आज रात की बस की टिकट कैंसिल करा देनी चाहिए पहले तो…”
“और?” सोहम ने आसपास देखते हुए धीरे से पूछा.
अनु ने भी आसपास देखते हुए जवाब दिया, “और रंगों से दोस्ती कर लेनी चाहिए… मैंने कहा था न, त्योहार जैसा भी कुछ होता है…”
सोहम गौर से उसका चेहरा देखता रहा, कितने सारे रंग अनु के चेहरे पर एक के बाद आते जा रहे थे. सोहम ने पूजा की थाली देखी, रोली, चावल और नारियल के साथ ही गुलाबी गुलाल का ढेर भी था. एक चुटकी गुलाल लेकर उसने हाथ आगे बढ़ाया. अनु हंसते हुए चौंकी… कुछ कह पाती उससे पहले ही सोहम ‘हैप्पी होली’ कहते हुए उसको एक नए रंग में रंग चुका था.

श्रुति सिंघल

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

हास्य काव्य- मैं हुआ रिटायर… (Hasay Kavay- Main Huwa Retire…)

मैं हुआ रिटायरसारे मोहल्ले में ख़बर हो गईसब तो थे ख़ुश परपत्नी जी ख़फ़ा हो…

April 12, 2024

अक्षय कुमार- शनिवार को फिल्म देखने के लिए सुबह का खाना नहीं खाता था… (Akshay Kumar- Shanivaar ko film dekhne ke liye subah ka khana nahi khata tha…)

अक्षय कुमार इन दिनों 'बड़े मियां छोटे मियां' को लेकर सुर्ख़ियों में हैं. उनका फिल्मी…

April 12, 2024

बोनी कपूर यांनी केले ८ महिन्यात १५ किलो वजन कमी (Boney Kapoor Lost 15 Kg Weight By Following These Tips)

बोनी कपूर हे कायमच चर्चेत असणारे नाव आहे. बोनी कपूर यांचे एका मागून एक चित्रपट…

April 12, 2024

कामाच्या ठिकाणी फिटनेसचे तंत्र (Fitness Techniques In The Workplace)

अनियमित जीवनशैलीने सर्व माणसांचं आरोग्य बिघडवलं आहे. ऑफिसात 8 ते 10 तास एका जागी बसल्याने…

April 12, 2024

स्वामी पाठीशी आहेत ना मग बस…. स्वप्निल जोशीने व्यक्त केली स्वामीभक्ती ( Swapnil Joshi Share About His Swami Bhakti)

नुकताच स्वामी समर्थ यांचा प्रकट दिन पार पडला अभिनेता - निर्माता स्वप्नील जोशी हा स्वामी…

April 12, 2024
© Merisaheli