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कहानी- रंगविहीन… (Short Story- Rangviheen…)

साड़ी को अपने सीने में भींचे आंखों मे आंसू होने के बाद भी दिल मे एक तसल्ली का भाव तैर गया, शशांक के साथ होने का एहसास भर गया. रंगविहीन नहीं है उसका जीवन, शशांक की यादों का रंग हमेशा उसके अस्तित्व में खिला रहेगा.

पति की मृत्यु के महीने भर बाद शकुन ने सासू मां और अपने दोनों बच्चों के भविष्य को देखते हुए जैसे-तैसे ख़ुद को संभाला और पुनः ऑफिस जाने के लिए ख़ुद को तैयार किया.

बाल गूंथने के लिए ज्यों ही आईने के सामने खड़ी हुई, बिंदी विहीन माथा, सूना गला और सफ़ेद साड़ी में ख़ुद को देख आंसू फिर बह निकले. कितना शौक था शशांक को उसे सजा-संवरा देखने का. चुन-चुन कर कपड़ों के खिले-खिले रंग और प्रिंट लाता था और उन्हीं की मैचिंग के कड़े, चूड़ियां, बिंदियां. पिछले अठारह वर्षों के रंग एकाएक धुल गए. रंगहीन हो गया था जीवन अनायास.

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तभी किसी काम से सासू मां अंदर आईं तो शकुन को देखकर उनकी भी आंखें भर आईं. उन्होंने तुरंत शकुन की आलमारी खोली और एक सुंदर सी, शशांक की पसन्द की साड़ी निकाली और शकुन को देते हुए बोलीं, “मेरा बेटा तो चला गया, पर जब-जब मैं तुम्हारा रंगहीन रूप देखती हूं तो मुझे अपने बेटे के न रहने का एहसास ज़्यादा होता है. इसलिए तू जैसे सजकर इस घर में आई थी, हमेशा वैसे ही सजी रह. तुझे पहले की तरह सजा-संवरा, हंसता-खेलता देखूंगी तो मुझे लगेगा मेरा बेटा अब भी तेरे साथ ही है. और तुझे भी उसकी नजदीकी का एहसास बना रहेगा.”

ड्रेसिंग टेबल से एक बिंदी लेकर उन्होंने उसके माथे पर लगा दी.

साड़ी को अपने सीने में भींचे आंखों मे आंसू होने के बाद भी दिल मे एक तसल्ली का भाव तैर गया, शशांक के साथ होने का एहसास भर गया. रंगविहीन नहीं है उसका जीवन, शशांक की यादों का रंग हमेशा उसके अस्तित्व में खिला रहेगा.

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वह सासू मां के गले लग गई. बहुत कम उम्र से ही सफ़ेद रंग में क़ैद सासू मां रहीं, लेकिन शकुन के जीवन को रंगहीन नहीं होने दिया.

विनीता राहुरीकर

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Usha Gupta

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