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कहानी- स्नेहबंधन (Short Story- Snehbandhan)

“… चाहे इसकी शादी हो या देवरानी की डिलीवरी… हर मौक़े पर कौन से लालच में मैंने एक पैर खड़े होकर काम किया? राहुल के बेटा होने पर कितना उछली थीं मेरी दोनों बेटियां “छोटा-सा भइया आ गया, हम लोग राखी बांधेंगे”… किसको पता था कि कुछ ही दिनों मे ऐसा अबोला छिड़ जाएगा कि एक ही मकान में रहते हुए एक ही परिवार के लोग एक-दूसरे के लिए अजनबी बन जाएंगे!”

भाई को मैं राखी बांध तो रही थी, लेकिन चेहरा उतरा हुआ था!
“दीदी! ऐसा क्या‌ हो गया कि दोनों घरों में बोलचाल बंद हो गई? रिंकी-पिंकी ने राखी भी नहीं बांधी मुन्ने को… हम लोग तो आपके परिवार का उदाहरण देते हैं कि दोनों भाई कितने प्यार‌ से रहते हैं!.. अरे! रो रही हो आप तो… क्या हुआ जीजाजी!” भाई हैरान था.
“रिंकी-पिंकी तो कई बार पूछ चुकी हैं, हम लोगों ने जाने नहीं दिया,” राखी बांधते हुए मैंने कहा.
“बाबूजी अपने सामने ही सारी चल-अचल संपत्ति का बंटवारा कर गए थे… एक प्लाॅट अम्माजी के नाम था, वो उन्होंने अंतिम समय में मेरे नाम कर दिया था… तब तो राहुल कुछ नहीं बोला. क़रीब एक महीने पहले आकर कहने लगा कि भाभी ने अकेले हड़प लिया. इसके भी दो हिस्से होने चाहिए…”

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बताते-बताते उन काली स्मृतियों ने फिर से मुझे घेर लिया, “भाभी ने इसीलिए तो अम्मा की जाते-जाते इतनी सेवा की जिससे प्लाॅट मिल जाए…” राहुल के ये तीखे शब्द आज भी उतना चुभते हैं, जितना उस दिन चुभे थे!
बस मैं ये नहीं पूछ सकी कि जब आए दिन उसकी मित्र-मंडली, “भाभी! आज मटर की कचौड़ी”, “भाभी! गाजर का हलवा” की फ़रमाइश लिए घर में घुसती थी, तब कौन से लालच में मैं दिनभर रसोई में लगी रहती थी? चाहे इसकी शादी हो या देवरानी की डिलीवरी… हर मौक़े पर कौन से लालच में मैंने एक पैर खड़े होकर काम किया? राहुल के बेटा होने पर कितना उछली थीं मेरी दोनों बेटियां “छोटा-सा भइया आ गया, हम लोग राखी बांधेंगे”… किसको पता था कि कुछ ही दिनों मे ऐसा अबोला छिड़ जाएगा कि एक ही मकान में रहते हुए एक ही परिवार के लोग एक-दूसरे के लिए अजनबी बन जाएंगे!”
“पापा… मम्मी! चाचा-चाची आए हैं..,” रिंकी चमकता चेहरा लिए भागते हुए आई… मैंने देखा, दोनों गंभीर चेहरा लिए बैठक में खड़े थे!
“भाभी! ग़लती तो मुझसे हुई है, हो सके तो माफ़ कर देना… दोस्तों और रिश्तेदारों ने मेरा दिमाग़ ख़राब कर दिया था. आज त्योहार के दिन ऐसे अलग-अलग…” राहुल मेरे पैर छूने झुका, लेकिन मैं पीछे हट गई.
“राहुल! कोई फिल्म तो चल नहीं रही है ना कि तुम आकर माफ़ी मांगने लगोगे और मैं सब भूल जाऊंगी! तुम्हारे भाई साहब कितना बीमार रहे, वो सब होने के बाद…” मेरा गला फिर से रुंध गया.

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“हमसे ग़लती हुई थी ना भाभी, बच्चे क्यों दूर रहें आपस में …” देवरानी ने मुन्ना मेरी गोद में बैठा दिया. दोनों बच्चियां पर्दे के दाएं-बाएं से झांकती हुई मेरी ओर आशा भरी निगाहों से देख रही थीं, राखी वाली प्लेट भी सज-संवरकर सुबह से मेरी “हां” की प्रतीक्षा कर रही थी… मैंने दोनों बहनों को पास बुलाकर उसकी सूनी ‌कलाई सामने बढ़ा दी. दोनों दौड़कर आईं, मुस्कुराते हुए अपने छोटे से भाई को राखी बांधी. बच्चे हंस रहे थे, खिलखिला रहे थे… स्नेह‌बंधन‌ जुड़‌ रहे थे. रक्षाबंधन मनाया जा रहा था!

लकी राजीव


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Usha Gupta

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