Short Stories

लघुकथा- थीम  (Short Story- Theme)

“… हम बाहरी दिखावा और अपने आनन्द के लिए ऐसे-ऐसे चलन प्रचलित कर देते हैं, जो आगे चलकर समाज के लिए अच्छे नहीं होते. हम पुरानी कई बेकार की परम्पराओं और रूढ़ियों का विरोध तो करते हैं, पर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए किस तरह का समाज निर्मित कर रहे हैं? किस तरह के चलन को बढ़ावा दे रहे हैं हम यह कभी नहीं सोचते.”

सरला जी! जब आज किटी की कलर थीम से अलग येलो की जगह ब्लू कलर की वही साड़ी पहन कर आईं, जो वो पहले भी कई बार पहन चुकी थीं, तो शोभा जी ने उन्हें टोक दिया, “आज तो येलो कलर थीम है न! तो फिर आप ये ब्लू कलर में?’
“क्यों! अगर थीम से अलग रहूँगी तो किटी से बेदख़ल कर दी जाऊँगी क्या? हो सकता मेरे पास येलो कलर के कोई पहनने लायक कपड़े न हों तो?” सरला जी ने सहज भाव से कहा.
“अरे! नहीं.. नहीं… आप कैसी बात कर रहीं हैं, आपके बिना कभी किटी हुई है जो अब होगी, आप जो मर्जी पहनकर आएं, मैं! तो बस यूँ ही पूछ रही थी.”


सरला जी को छोड़कर सभी ने पीला रंग पहना हुआ था. किटी पार्टी शुरू हुई और तभी एक-दूसरे के ड्रेस सेंस और कलर थीम को लेकर बातें चल पड़ी.
सरला जी बहुत देर तक सबकी बातें सुनती रहीं और फिर बाद में उन्होंने कहा, “मैं आज आप सबसे एक बात कहना चाहती हूँ- आज मेरी मेड सुनीता बहुत परेशान थी. सालों से मैंने उसकी मेहनत देखी है उसने एक-एक पैसा जोड़कर अपने बच्च्चों की परवरिश की है.”

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सब सरला जी कि बात सुनकर चुप तो हो गए, पर आचनक से सरला जी का किसी कामवाली के बारे में यूँ बात करना, किसी के गले नहीं उतरा. सरला जी उन सबमें सबसे ज़्यादा बुज़ुर्ग थीं, इसलिए सब शांत होकर उन्हें सुनने लगीं.
वे आगे बोलीं, “कुछ दिनों में सुनीता की बेटी की शादी है, वह पहले ही अपने समर्थ से कहीं ज़्यादा शादी में पैसे ख़र्च कर रही है, उस पर उसकी बेटी को अपने मन के अलग कार्यक्रम रखने हैं जैसे कि हल्दी. वो आजकल होता है न सभी पीला रंग पहनते हैं, चश्मा लगाते हैं, पीले रंगों के फूलों से सजावट करते हैं, वो सब उसकी बेटी को भी चाहिए.”
तभी शोभा जी बीच में बोलीं, “देखो! ज़रा इन कामवालियों के बच्चों के नखरे घर में नहीं है आटा पर जूता पहनेगें बाटा.”
शोभा जी की बात पर सभी महिलाएँ हंस पड़ी, तो सरला जी कुछ गम्भीर सी हो गईं और वे फिर बोलीं, “आप सब किस पर हंस रही हैं? सुनीता पर या फिर उसके बच्चों पर या फिर इस दिखावी समाज के चलन पर जो हम बना रहे हैं.
हम बाहरी दिखावा और अपने आनन्द के लिए ऐसे-ऐसे चलन प्रचलित कर देते हैं, जो आगे चलकर समाज के लिए अच्छे नहीं होते. हम पुरानी कई बेकार की परम्पराओं और रूढ़ियों का विरोध तो करते हैं, पर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए किस तरह का समाज निर्मित कर रहे हैं? किस तरह के चलन को बढ़ावा दे रहे हैं हम यह कभी नहीं सोचते.”

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दो पल को सभी महिलाओं में चुप्पी सी छा गई और फिर मिसेज़ शर्मा जो किटी के लिए सब तय करती थीं वह बोलीं, “सरला जी! आपने हमारी आँखें खोल दीं. हम भूल गए की हम पैसे वाले हैं तो क्या! हमारा पूरा समाज तो हर तरह के वर्ग से बनता है. हमें ऐसी बातों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जो समाज के हर वर्ग के लिए हितकारी न हों.


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अब से किटी में कलर थीम नहीं होगी और किटी में ही क्या अब से हमारी पूरी सोसाइटी में पहले की तरह होली-दिवाली आदि में भी ड्रेसकोड या कलर थीम लागू नहीं होगी. आप लोगों के पास जो भी उपलब्ध हो आप पहनकर आ सकती हैं.” फिर क्या वहाँ उपस्थित सभी महिलाएँ जोरदार तालियों से मिसेज़ शर्मा और सरला जी के विचारों का समर्थन करने लगीं.

पूर्ति वैभव खरे

Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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