कहानी- उसे जीने दो (Short Story- Use Jeene Do)

“आज अपने दोस्त का निमंत्रण उकी ने स्वीकार कर लिया यह पता चलते ही तुमने आसमान सिर पर उठा लिया. याद है वो तीस साल पहले जब तुम्हारी बहन की सहेली घर आई थी. तुम सज-संवर कर तैयार हो गए थे और स्वागत कक्ष को मोगरा-चंदन से सुवासित कर रखा था. रसोई में तुमने मैगी और ब्रैड के पकवान बनाए, मधुर गीत वाले कैसेट टेपरिकॉर्ड पर लगा दिए. आज जब ख़ुद अपनी बेटी की उमंग है, तो तुमको आवारापन लग रहा है…”

“उकी अब जागो.” कहकर मां ने उसे बार-बार झिंझोडा और अंततः जगा दिया.
“उफ़्फ़!” कहकर उकी पुनः सोने लगी, तो मां हंसकर बोली, “हो गया सात दिनों तक सब नाचना, कूदना, दावत, उत्सव अब फिर से अनुशासन में आ जाओ.”
“अच्छा मां…” कहकर अनमने मन से उकी ने बिस्तर छोड़ दिया. ब्रश करते हुए उसे अंशुल के बारे मे सोच-सोचकर गुदगुदी-सी हो रही थी. जिस समय मां ने जगाया था, उस समय सपने में अंशुल और वो एक कमरे में एक साथ थे. किशोरावस्था में कदम रख चुकी उकी का मन हिरनी जैसा कहां-कहां भागता-फिरता था. मन कहता कि सुबह से शाम तक और रात से सुबह तक बस अंशुल के साथ ही रहे. एक दिन उसने सपना देखा कि दोनों अठारह साल के हो गए और
वो दोनों अपने शहर से अपने-अपने लैपटॉप दो जोड़ी कपड़े और एक रजाई लेकर आ गए अनजान कस्बे में. वो दोनों बस एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे और महानगर के कोलाहल से दूर अपने प्रेम से एक-दूसरे को भिगो देना चाहते थे. इसलिए वो किसी पहाड़ी कस्बे में जाकर वहां एक धर्मशाला में रात को ठहरे.
उकी ने अंशुल से पूछा, “घर में तो ठाठ-बाट थे. खाने-पीने, सोने-जागने के अलावा कुछ करने को न था. अब यहां पर क़िस्मत न जाने कितने रंग-रूप दिखाने वाली है.”
“संसार में सब कुछ मेहनत से संवर जाता है.”अंशुल उसको हौले-हौले से सहलाकर ख़ुद भी गहरी नींद के आगोश मे चला गया. सुबह जब उसकी नींद खुली, तो बाहर लोगों की आवाज़ सुनाई दी. अंशुल उठकर आया, तो एक युवक को कुछ परेशान-सा पाया. पता लगा कि उसको एक ज़रूरी काग़ज़ भेजना है, पर साइबर कैफे वगैरह सब बंद हैं. अब एक ऐसा काम जिसकी भाषा उसको समझ नहीं आ रही है.
“मेल पढना-लिखना आता है, पर ये देखो यह कुछ अलग काम है.” “अरे, नहीं मेरे लिए आसान है.” कहकर उसने वो काग़ज़ लैपटाप पर लिखा और सुना दिया.
“अरे, बिल्कुल यही भाषा सटीक.”
“लीजिए, आपका ईमेल आईडी बता दीजिए.” और पलक झपकते ही अंशुल ने मेल कर दिया.
“पहुंच गई आपकी चिट्ठी.” अंशुल ने कहा.
“हां… हां… मेरे फोन पर आया संदेश.” कहकर वो व्यक्ति आग्रह करके कुछ रुपए उसे थमा कर वहां से चला गया. उकी भी जाग गई थी. उसने अंशुल से कहा, “सचमुच हुनर की कद्र होती हैं.” और धीरे-धीरे वे दोनों अपने-अपने काम में सफल हो गए. वे प्यार में डूबकर आनंद से जी रहे थे. अभी वो उस दिन वाला सपना आगे जा रहा था कि मां ने जगा दिया…


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वो ग़ुस्से में कुल्ला करने लगी.
नाश्ता करते समय उकी ने कुछ सोचा और उसने दादी मौसी के कान में कह दिया, “अंशुल मेरा दोस्त है और हम दोनों शॉपिंग मॉल में मिलने वाले हैं.”
“हां, बिलकुल जाओ, दादी मौसी ने एकदम सामान्य सुर में सहमति दे दी.” तभी उसके पापा वहां आ गए. कहने लगे, “मुझसे और मां से भी तो पूछ लो. और सुनो उकी जवाब है नहीं, बिलकुल नहीं.” उकी को रोना सा आ गया, पर पापा बोलते रहे.
“उकी, अभी पूरा एक हफ़्ता तुम्हारे जन्मदिन के जश्न में बिताया है.” “पर पापा, वो तो आप, बुआ, मौसी और आपके दोस्तों के साथ था. और हर रोज़ अपना आर्ट स्कूल का काम भी किया. मेरा निजी आनंद भी कोई चीज़ है कि नहीं पापा. मुझे नई पेटिंग की पूरे दस हज़ार मिले है यह देखिए.” उकी ने अपना बैक अकाउंट दिखाया.
चौदह साल की बेटी का तर्क सुनकर पिता ने मुंह बनाया, तो उकी पैर पटकती हुई बाहर गमले में लगे फूलों से बातें करने चली गई. उधर दादी मौसी ने उकी के पिता को फटकार लगाते हुए कहा, “तो तू अपना समय भूल गया जब पड़ोसी की हमउम्र वो बेबी थी ना उसको खेल-खेल में सीने से लगा लेता था. कभी गोदी में घुमाया करता था.” यह प्राचीन रहस्य सुनकर उकी के पिता बगले झांकने लगे और यह देखकर आश्वस्त हुए कि आसपास कोई भी नहीं था. उकी बाहर गमले मे लगे फूलों से शिकायत कर रही थी और उसकी मम्मी भी छत पर थी.
“हद हो गई है मौसी. तुम मेरी तीस साल पुरानी कौन-कौन-सी बातें करने लग गई, अब बस करो.”
“हां, तो तू भी सुन ले बेटा यह उम्र ही ऐसी है. आज अपने दोस्त का निमंत्रण उकी ने स्वीकार कर लिया यह पता चलते ही तुमने आसमान सिर पर उठा लिया. याद है वो तीस साल पहले जब तुम्हारी बहन की सहेली घर आई थी. तुम सज-संवर कर तैयार हो गए थे और स्वागत कक्ष को मोगरा-चंदन से सुवासित कर रखा था. रसोई में तुमने मैगी और ब्रैड के पकवान बनाए, मधुर गीत वाले कैसेट टेपरिकॉर्ड पर लगा दिए. आज जब ख़ुद अपनी बेटी की उमंग है, तो तुमको आवारापन लग रहा है. तुम ये जान लो कि एक लालसा होती है, जो जल पीकर शांत होती है, दूसरी पकवान उदरस्थ कर, मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है.
पर दैहिक इच्छाओं का कोई अंत नहीं है. धन, वैभव, मान पाने की तृष्णा और न जाने किन-किन चीज़ों की तृष्णा. तुमको गर्व होना चाहिए कि इतनी सी आयु में उकी अपना सारा काम कायदे से करती है. उसे मनमर्जी करने दो.”
“ओह मौसी, तुम भी ना ज़्यादा ही मॉडर्न हो गई हो.”
“वो तो मैं पहले से ही थी. तेरे पापा पर क्रश था मेरा, इसीलिए तुम्हारे पड़ोस में घर लेकर पूरा जीवन मज़े में गुज़ार दिया. अपने हिसाब से अपनी ज़िंदगी के पन्ने रंग दिए और किसी पर मोहताज़ नहीं हूं.”
“अरे मौसी, ये क्या कह दिया, तो आप और पापा दोनों के बीच…”
“नहीं, बिल्कुल भी नहीं. सिर्फ़ आत्मिक प्रेम और कुछ नहीं.”
“ओह मौसी…”

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“हां बेटा, असल में ये ज़िंदगी है ना, इसका दूसरा नाम ही परिवर्तन है. परिवर्तन से घबराओ नहीं. कुछ परिवर्तन उकी को सफलता दिलाएंगे और कुछ सफल होने के गुण सिखाएंगे.”
मौसी बोलती रहीं, “तूने देखा ना मीनू कैसी गुमसुम-सी हो गई है.” “कौन मीनू?”
“अरे अपनी वो कॉलोनी में इला की बेटी. वो उकी की ही हमउम्र है. पर हर बात में बेटी की जासूसी और कहीं दोस्तों संग पार्टी-पिकनिक न करने देना. इससे अब वो अक्सर डिप्रेशन में रहती है. पूरे सप्ताह में एक दिन ख़ुश बाकी दिन बिल्कुल उदास. मनोवैज्ञानिक से इलाज चल रहा है पर क्या फ़ायदा. उसको मन से कुछ करने ही नहीं देते.”
“तो आपने कुछ नहीं किया मौसी?”
“हां कुछ दिन पहले उसे यहां ले आई बहाना बनाया कि उकी के जन्मदिन की तैयारी का काम है. तब खुलकर रोकर सब बताया उसने.”
“क्या हुआ? क्या बताया ?”
“यही कि लडकों के साथ अच्छा लगता है, पर माता-पिता उनकी छाया से भी दूर रखते हैं. महिला संस्थान में पढ़ों और वहीं काम करो यही कहते हैं.”
“तो मै अब उसको युवा क्लब ले जाया करूंगी आज शाम से ही. शायद कुछ असर हो, वरना हज़ारों रुपए की दवा खाकर परेशान हो गई है. इसीलिए कह रही हूं कि उकी को मत रोको, उसे जाने दो. घर-परिवार से दूर आनंद-उत्सव मनाने दो.”
“ठीक है… उकी तुम जा सकती हो.” यह स्वर उकी की मां के कान में भी गूंजा, वो भी अपने पति के इस फ़ैसले से बहुत ख़ुश हुई. उकी तो उमंग से उछल कर बोली, “पापा यू आर ग्रेट.” और उसने मौसी दादी को गले लगा लिया.

– पूनम पांडे

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Usha Gupta

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