कहानी- वो औरत (Short Story- Woh Aurat)

कुछ दूर आगे बढ़ी ही थी कि स्ट्रीट लाइट की मद्धिम रोशनी में दूर से कुछ हिलने-डुलने की और हल्की-हल्की कराहने की आवाज़ें आ रही थीं. कुछ अनहोनी की डर से उस सर्दी में भी मेरे चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आ रही थीं और हृदय की धड़कनें कुछ तेज़ हो रहीं थीं. लेकिन एक वही रास्ता था, जिससे मैं वापस घर लौटती, इसी कारण मैं धीरे-धीरे हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ी.

रात्रि के लगभग दो बज रहे थे. शहर लिहाफ़ में लिपटा सुकून भरी नींद की गहरी आगोश में पड़ा था. हाड़ कंपाती और ठिठुरन भरी ठंड में सड़कें ख़ामोश पड़ी थीं. उस ख़ामोशी को कभी सर्द हवाएं सन-सन कर, तो कभी मोटर-कारें घर्र-घर्र कर चीर रही थीं. उसी सन्नाटे में मैं और मेरी स्कूटी अपनी बेटी को रेलवे स्टेशन से ट्रेन चढ़ाकर वापस आ रहे थे.
चूंकि काली स्याह रात थी. डर तो बहुत लग रहा था, क्योंकि बेटी की ट्रेन तो बनारस के लिए निकल चुकी थी, बस मैं और मेरी स्कूटी अकेले वापस अपने घर को लौट रहे थे. कुछ दूर आगे बढ़ी ही थी कि स्ट्रीट लाइट की मद्धिम रोशनी में दूर से कुछ हिलने-डुलने की और हल्की-हल्की कराहने की आवाज़ें आ रही थीं.

यह भी पढ़ें: महिलाओं के हक़ में हुए फैसले और योजनाएं (Government decisions and policies in favor of women)

कुछ अनहोनी की डर से उस सर्दी में भी मेरे चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आ रही थीं और हृदय की धड़कनें कुछ तेज़ हो रहीं थीं. लेकिन एक वही रास्ता था, जिससे मैं वापस घर लौटती, इसी कारण मैं धीरे-धीरे हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ी.
पास आने से कुछ ज़्यादा साफ़ नज़र आ रहा था. ना चाहते हुए भी मैंने अपनी स्कूटी रोकी और आगे बढ़ने की भरपूर हिम्मत जुटाई. पास जाने पर मेरे मुंह से अनायास ही “ओह..!” निकल आई.
मैंने देखा एक विक्षिप्त महिला जिसे ना ख़ुद की सुध है ना उसे मांं बनने का बोध है, वो एक किनारे में लेटी प्रसव वेदना से बस कराह रही है और उस महिला का बच्चा एक गाय के बगल में पड़ा हुआ है. मानो वो बच्चा उस गाय को अपनी मांं समझ रहा हो और उस गाय में भी मानो ममत्व जाग उठा हो, जो बच्चे को बिना हानि पहुंचाए उसे गर्माहट प्रदान कर रही थी, जैसे वह उस बच्चे की मां ही हो.
देखकर ऐसा लग रहा था मानो गाय ने अपने आपको ठंड से बचाने के लिए उस चिथड़े की बगल में शरण लिया था, जो उस विक्षिप्त महिला ने सड़क पर से चुन-चुन कर जमा किया था. जिसकी वजह से उस बच्चे को मानो गाय सी मां मिल गई थी. सहसा मेरा ध्यान टूटा और मैंने अपना घर जाने का इरादा त्यागकर सबसे पहले सरकारी हॉस्पिटल, जो बगल में था वहां जाकर उस मांं और बच्चे को भर्ती कराया.

यह भी पढ़ें: दूसरों का भला करें (Do Good Things For Others)

फिर मैं वापस घर आई. पूरे रास्ते सोचती रही कि उस ह्रदय विहिन मानव से तो ज़्यादा हृदय स्पंदन उस पशु में है, जिसने उस बच्चे को ममतामई शरण दे रखी थी.

  • अर्चना भारती नागेंद्र

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES


अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

महेश कोठारे यांनी केली ‘झपाटलेला ३’ची घोषणा (Director Mahesh Kothare Announces Zapatlela-3)

अभिनेते महेश कोठारे यांच्या संकल्पनेतून तयार झालेला 'झपाटलेला' हा चित्रपट तुफान हिट ठरला होता. आता…

April 11, 2024

बुरे दिन वापस दे दो…. किरण मानेंची पोस्ट चर्चेत ( Kiran Mane Share Post For Current Situation In Maharashtra)

कुठे कुठला उमेदवार हवा होता-नको होता, या वादात आपण सर्वसामान्य माणसांनी अडकायला नको. महाराष्ट्रात या…

April 11, 2024

संकर्षण सोबत लग्न करण्याची इच्छा पण आईने…. अभिनेत्याची चाहतीसाठी खास पोस्ट ( Sankarshan Karhade Share Post For His Fan, Who Wants To Marry Him)

अभिनेता संकर्षण कऱ्हाडे सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असतो. नुकताच त्याने त्याला साताऱ्याला आलेला त्याच्या खास…

April 11, 2024
© Merisaheli