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कहानी- ये मिडल एज वाला प्यार!.. (Short Story- Yeh Middle Age Wala Pyar!..)

गीता शर्मा

मुझे हंसी आ गई उसके बचपने पर. हां, वैसे देखा जाए तो बच्चा ही तो है वो, मेरी कविता का हमउम्र और मैं ये क्या एहसास पाले बैठी हूं उसके लिए. मन में ग्लानि भी होती है, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो एक अरसे बाद फिर धड़कने लगा है.

ये मिडल एज भी अजीब होती है, न जवानी छूट पाती है और ना बढ़ती उम्र स्वीकार होती है. और ऐसे में जब कोई ऐसा मिल जाए, जो आपको ये एहसास कराता रहे कि अभी तो मैं जवान हूं तब तो पूछो ही मत.
इन दिनों मेरा भी बस यही हाल था. 45 की हो चली थी मैं. अकेली थी, क्योंकि शादी के कुछ वक़्त बाद ही पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. बच्चे थे नहीं और फिर दोबारा शादी का मन नहीं बना पाई. लेकिन अब न जाने क्यों प्यार का कीड़ा रह-रह कर मुझे काटने लगा.
अब प्यार कहूं या आकर्षण, पता नहीं. पर जॉगिंग के वक़्त उसका रोज़ मुझे यूं छिप-छिपकर देखना पहले तो अखरता था, पर अब अच्छा लगने लगा था. उस पर उसका अक्सर इस गाने की ये लाइन गुनगुनाना- तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल, बड़ी मुश्किलों से फिर संभलता है दिल… मुझे रह-रहकर किसी की याद दिलाता था. उसकी पर्सनैलिटी, उसका अंदाज़ भी मुझे बीते दिनों में ले जाता है.
अरे, ये क्या सोच रही हूं मैं… आजकल मैं मन को समझाती कि अरे दीपा पागल हो गई है क्या?.. ये कोई उम्र है प्यार करने की, जो जवानी में नहीं किया, वो अब क्यों? और वो भी ख़ुद से इतनी छोटी उम्र के लड़के से!
ख़ैर, ये जो भी एहसास था, बड़ा मज़ेदार था. तभी डोरबेल बजी. मैंने दरवाज़ा खोला, तो हक्की-बक्की रह गई. सामने वो ही था.
“आज आप जॉगिंग के लिए नहीं आईं? मैंने बहुत मिस किया आपको, क्या मैं अंदर आ सकता हूं.”
“हां, क्यों नहीं आओ.” शुक्र है उस वक़्त घर में मेरी हाउस हेल्पर मीना थी, वर्ना एक अनजान लड़के को ऐसे कैसे अंदर आने देती.
“मीना, दो कप कॉफी बना ला.” मैंने मीना को कहा और उस लड़के से रू-ब-रू हुई, “तुम्हें मेरा पता कैसे पता चला?”
“दिल से खोजो तो भगवान भी मिल जाते हैं. बस आपकी फ़िक्र हुई, इसलिए चला आया. अगर आपको बुरा लगा हो, तो मैं चला जाता हूं.” उसने मेरी आंखों में आंखें डालकर कहा.

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“अरे नहीं, बैठो और अपने बारे में कुछ बताओ.” मैंने जानकारी हासिल करनी चाही, तो वो बोला, “जी मैं नमन. इस शहर में नया आया हूं, अपनी न्यू जॉब जॉइन करने के लिए. इस अनजान शहर में कोई दोस्त और रिश्तेदार नहीं. आपको देखा, तो पता नहीं क्यों आपसे एक अलग ही अपनेपन वाली फीलिंग आई. ऊपर से आप हैं भी इतने ख़ूबसूरत कि किसका ध्यान नहीं जाएगा आप पर.” उसकी बातें सुन मैं झेंप गई.
कॉफी पीते हुए और भी बहुत सी बातें हुईं. उसने बताया कि वो एक पीजी ढूंढ़ रहा है. मुझे ख़्याल आया कि मैं भी तो अपना ऊपर का कमरा किराए पर देना चाह रही थी. मैंने उसे बताया तो वो झट से एडवांस देकर चला गया.
मीना ने मुझे ज़रूर टोका था कि ऐसे ही किसी पर इतनी जल्दी भरोसा करना ठीक नहीं, पर मैंने उसे कहा कि इसे मैं जानती हूं.
वो रात मेरी न जाने कैसे बीती, बस अगले दिन का इंतज़ार था. सुबह हुई और डोरबेल बजी. नमन ही होगा, ये सोचकर मैंने झट से दरवाज़ा खोला, पर ये तो दूधवाला था. ख़ैर आज संडे है, तो शायद वो देर से सोकर उठा होगा, इसलिए हो सकता है दोपहर तक आए. इसी तरह पूरा दिन उसके इंतज़ार में गुज़र गया. मुझे लगने लगा कि मीना सही कह रही थी, है तो वो एक अजनबी ही, उस पर भरोसा करना सही है क्या?
“हेलो मैम, सॉरी मैं लेट हो गया. सामान पैक करने में टाइम का पता ही नहीं चला. वैसे दरवाज़ा खुला क्यों रखा है आपने? कोई भी अनजान शख़्स अंदर आ सकता है. आज के समय में किसी पर इतना भरोसा करना ठीक नहीं…” नमन बोले जा रहा था और मैं मन ही मन सोच रही थी कि ये कहीं मुझे अपने बारे में सचेत तो नहीं कर रहा..? क्या पता क्या इरादा है इसका. अपने इस बचकाने से प्यार के चक्कर में कहीं लेने के देने न पड़ जाएं.
“मैम क्या हुआ? आप कुछ बोल नहीं रहीं.” नमन की आवाज़ से मेरी तंद्रा भंग हुई.


“तुम अपने रूम में जाकर रेस्ट करो. मैं चाय बनाकर लाती हूं.” इतना कहकर मैं किचन में चली गई.
अगली सुबह ब्रेकफास्ट बनाकर मैं ऑफिस के लिए तैयार हुई, तो देखा नमन भी रेडी है.
“गुड मॉर्निंग मैम, चलिए ब्रेकफास्ट के बाद मैं आपको ड्रॉप कर दूंगा. मेरे ऑफिस के रास्ते में ही है आपका ऑफिस भी.” नमन ने कहा.
उसकी बाइक से उतरते हुए मेरी ऑफिस कलीग निशा ने मुझे देखा. तब तो उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन लंच के वक़्त उससे रहा नहीं गया. वो बोली, “वाह दीपा, आज एक अलग ही ग्लो है तेरे चेहरे पर, क्या बात है, कौन था वो हैंडसम बॉय?”
“निशा, तू भी न, वो मेरा पेइंग गेस्ट है. ऑफिस जा रहा था, तो उसने मुझे भी ड्रॉप कर दिया.” मैंने थोड़ा शर्माते हुए जवाब दिया.
यूं ही कुछ दिन मन को गुदगुदाते हुए निकल गए. इसी बीच मेरी भांजी का फोन आया कि वो कुछ दिन के लिए मेरे पास आ रही है. बस फिर क्या था, मैं लग गई उसके स्वागत की तैयारियों में.
“मैम, आज कोई स्पेशल आ रहा है क्या? इतना कुछ बनाया है आपने?” नमन ने पूछा, तो मैंने जवाब दिया, “मेरी बड़ी बहन की बेटी कविता आ रही है कुछ दिनों के लिए.”
मैं कहीं कवि ना बन जाऊं तेरे प्यार में ऐ कविता… ये गाना गुनगुनाते हुए नमन अपनी ही मस्ती में रूम में चला गया. मुझे हंसी आ गई उसके बचपने पर. हां, वैसे देखा जाए तो बच्चा ही तो है वो, मेरी कविता का हमउम्र और मैं ये क्या एहसास पाले बैठी हूं उसके लिए. मन में ग्लानि भी होती है, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो एक अरसे बाद फिर धड़कने लगा है.
“मासी, मैं आ गई.” कविता की आवाज़ से मैं चौंक गई.
“डोरबेल की आवाज़ ही नहीं आई, दरवाज़ा किसने खोला?”

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“मैंने.” नमन ने कहते हुए कविता का सामान उसके कमरे में रख दिया.
“वाह मासी! लड़का तो बड़े काम का लग रहा है. मम्मी ने बताया था मुझे आपने पेइंग गेस्ट रख लिया है. वैसे आपने अच्छे से छानबीन कर ली है ना इसके बारे में.”
कविता के आने से अलग ही रौनक़ हो गई थी घर में. नमन भी काफ़ी घुल-मिल गया था सबसे. मैंने भी ऑफिस से हफ़्तेभर की छुट्टी ले ली थी. देर रात तक हमने ख़ूब बातें और हंसी-मज़ाक़ किया.
“अरे नमन, तुम्हें कल ऑफिस जाना है ना, सो जाओ वरना आंख नहीं खुलेगी सुबह.” मैंने कहा तो नमन ने बताया कि उसने भी छुट्टी ली है. मुझे थोड़ा अजीब और अटपटा लगा.
“मैम, मैं आपको बताना भूल गया था कि मेरे पापा भी मुझसे मिलने आनेवाले हैं. वैसे डोंट वरी, वो होटल में रुकेंगे तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी.”
इतने में ही कविता बोली, “अपने पापा को भी यहीं बुला लो ना, मेरी मासी का दिल बहुत बड़ा है. अच्छा है थोड़ी रौनक़ और बढ़ जाएगी. क्यों मासी?”
“हां नमन, घर के होते हुए होटल में क्यों रुकेंगे.” नमन का चेहरा खिल उठा. कविता के साथ भी वो काफ़ी कंफर्टेबल था. मैंने सोचा कि हमउम्र हैं, इसलिए दोनों सहज थे, पर मुझे एक अलग-सी इनसिक्योरिटी क्यों हो रही थी. ऐसा लग रहा था मेरी रूमानी दुनिया खो रही है. ख़ैर, अपने दिल पर मुझे क़ाबू रखना चाहिए.
अगली रोज़ कविता मेरे साथ किचन में थी कि इतने में नमन भी आ गया और उसने ज़िद की कि आज खाना वो बनाएगा. मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माना, तो कविता ने कहा, “मासी, बनाने दो, कल ही कह रहा था कि मैं बहुत बढ़िया खाना बनाता हूं, आज इसका टेस्ट ले लेते हैं.”
इतने में डोरबेल बजी. मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने खड़े शख़्स को देखकर हक्की-बक्की रह गई. जाना-पहचाना चेहरा, बालों में हल्की स़फेदी, लंबा क़द एक मिडल एज का हैंडसम बंदा मेरे सामने था.
“दीपू… पहचाना नहीं क्या? इतना भी नहीं बदला हूं मैं.”
“रौनक़? तुम?..” तभी पीछे से नमन की आवाज़ आई, “पापा, बहुत मिस किया आपको. लव यू…”
“अच्छा, तो ये तुम्हारा बेटा है, तभी इसे जब भी देखती थी, तो लगता था कि इसे पहले भी कहीं देखा है. तुमसे काफ़ी मिलता-जुलता है. आओ अंदर.”
रौनक़ ने वाक़ई घर की रौनक़ बढ़ा दी थी. वही मस्तमौला अंदाज़ था आज भी, जो कॉलेज में हुआ करता था. काफ़ी लड़कियों का क्रश था वो. मैं भी उसके जादू से अछूती नहीं थी. वो अक्सर मुझे कॉम्प्लिमेंट देता था, जैसे नमन देता है. बिल्कुल बाप पर गया है. ये सब सोचकर मैं मुस्कुरा उठी, तो कविता बोली, “मासी, नमन के पापा कितने हैंडसम हैं ना? आपके तो कॉलेज फ्रेंड थे ना, प्यार कैसे नहीं हुआ आपको उनसे?”
“तू कुछ ज़्यादा नहीं बोल रही. वैसे भी वो मेरे दोस्त नहीं, सीनियर थे कॉलेज में. काफ़ी पॉपुलर थे और फ्लर्ट भी, लेकिन हेल्दी फ्लर्टिंग करते थे.”
“तब तो आपसे भी फ्लर्ट करते होंगे.” कविता की ये बात सुन न जाने क्यों मैं ब्लश करने लगी.
अब मुझे समझ में आ रहा था कि क्यों नमन को देखकर मुझे रौनक़ की याद आती थी. ये आकर्षण नमन के प्रति नहीं, बल्कि रौनक़ से मिलते-जुलते उसके अंदाज़ के प्रति था.
ख़ैर चार दिन गुज़र गए. हम सब साथ घूमे-फिरे. एंजॉय किया. अब कविता और रौनक़ की वापसी भी नज़दीक थी, तो मन उदास हो चला था. फिर वही अकेलापन. नमन के प्रति मेरे मन में जो ऊहापोह की स्थिति चल रही थी, वो रौनक़ के आने से ख़त्म हो गई थी.


नमन के रूम के पास से मैं गुज़र रही थी कि तभी उसके कमरे से कविता की आवाज़ आई. मैंने खिड़की से चुपके से झांककर देखा, तो दोनों काफ़ी क़रीब थे.
“नमन, अब हमको मासी को सब सच बता देना चाहिए. पापा भी यहीं हैं, तो जो सबको ठीक लगेगा, हम वही ़फैसला लेंगे.” कविता की बातों पर नमन ने हामी भरी और दोनों गले लग गए. ये माजरा क्या है भला? मैं इंतज़ार में थी कि ये दोनों क्या सच बतानेवाले हैं. शायद यहां रहते हुए दोनों अट्रैक्ट हो गए होंगे एक-दूसरे से.
शाम को हम सब बैठे थे. नमन और कविता ने कहा कि वो दोनों कुछ कहना चाहते हैं मुझसे.
“मासी, दरअसल मैं और नमन दो साल से रिलेशनशिप में हैं. नमन के पापा यानी रौनक़ अंकल भी ये बात जानते हैं और उनको कोई आपत्ति भी नहीं, लेकिन…”
कविता की बात सुन मैंने कहा, “तो क्या रौनक़ की मम्मी को ऐतराज़ है?”
इतने में ही नमन बोला, “नहीं मासी, आई मीन मैम, कविता की मम्मी यानी आपकी बड़ी बहन नहीं मान रही शादी के लिए?”
एक पल को तो मेरा सिर चकरा गया कि ये सब हो क्या रहा है. फिर ख़ुद को संभालते हुए मैंने पूछा, “आख़िर मानसी क्यों नहीं मान रही.” तो रौनक़ ने बताया, “दीपू, मेरी पत्नी को गुज़रे अरसा हो चुका है और मानसीजी को ये डर है कि मैंने नमन की परवरिश अकेले की है और घर में कोई फीमेल भी नहीं, तो घर का माहौल और नमन न जाने कैसा होगा.”
मेरी हंसी छूट गई. मुझे हंसता देख सब हैरान थे. पर मेरा दिल जानता था कि मैं उन पर नहीं, ख़ुद पर हंस रही थी कि थैंक गॉड, मैंने नमन को अपने अट्रैक्शन के बारे में भनक नहीं लगने दी, वरना वो क्या सोचता मेरे बारे में. बाल-बाल बची और मन ही मन रौनक़ को भी थैंक्स कहा कि उसने मेरी लाज रख ली.
इतने में रौनक़ ने कहा, “दीपू, इसमें इतना हंसने की क्या बात है? हमने नमन को तुम्हारे पास भेजा, ताकि तुम उसको परख सको और वो तुमको इम्प्रेस कर सके.”
“मैं हंस इसलिए रही हूं कि मानसी तो इतनी ओपन माइंडेड है, उसको क्या हो गया. लेकिन आप सब परेशान न हों, अपनी बहन को मनाने का ज़िम्मा मेरा और रौनक़जी अब तो हम समधी बनने जा रहे हैं, तो मुंह मीठा करवाइए.”
मेरी बात सुनकर फिर सब चुप हो गए, तो मैंने पूछा कि माजरा क्या है?
कविता और नमन ने कहा कि हम यहां स़िर्फ अपने रिश्ते के लिए नहीं आए थे, एक और रिश्ता करवाना है. थोड़ा रुककर नमन ने कहा, “आप मेरे पापा से शादी कर लीजिए प्लीज़ और मैम से मेरी मॉम बन जाइए. पापा ने मुझे बताया था कि कॉलेज में आप उनकी क्रश थीं और वो अक्सर आपको देखकर एक गाने की लाइन गुनगुनाते थे- ‘तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल बड़ी मुश्किलों से फिर संभलता है दिल…’ नमन बोले जा रहा था और मैं सोच रही थी कि कैसे किसी को बताऊं कि मैं ये शादी नहीं कर सकती. नमन को लेकर मन में जो एहसास आए थे, भले ही वो अब नहीं, लेकिन इस रिश्ते के लिहाज़ से उनको जस्टिफ़ाई नहीं किया जा सकता.
तभी रौनक़ ने कहा, “पहले तुम लोगों की शादी होने दो. हम अपना जुगाड़ ख़ुद कर लेंगे. शायद दीपा शादी का मन नहीं बना पा रही.”

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ख़ैर, सबके वापस जाने का समय आ चुका था. मैंने भी मानसी से बात करके उसे राज़ी कर लिया था. मैं फिर अकेली हो गई थी. बस मीना आती थी, काम के साथ-साथ ढेर सारी बातें करके चली जाती थी. इसी बीच रौनक़ का फ़ोन आया और उसने मुझसे मेरी ना की वजह जाननी चाही. मैंने बिना किसी लाग-लपेट के उसे सच बता दिया. उसने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. मैं समझ गई थी कि अब वो भी मुझसे शादी के लिए ज़ोर नहीं देगा.
तभी छुट्टी के दिन अचानक रौनक़ घर पर आ गया. उसके हाथों में गुलाब के फूल थे और चेहरे पर मुस्कान. मुझे फूल थमाकर वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा. मैंने हैरान होकर उससे हंसी की वजह पूछी तो बोला, “तुम कितनी स्टुपिड हो. इतनी सी बात के लिए मुझसे शादी के लिए मना कर रही हो. यार तुम नमन के प्रति नहीं, बल्कि उसमें छिपे मेरे व्यक्तित्व के प्रति अट्रैक्ट हुई थी. तुम उसमें मुझे देखती थी, मुझे ढूंढ़ती थी और अब जब मैं सामने हूं, तो पीछे मत हटो. थाम लो मेरा हाथ.” रौनक़ ने मुझे रिंग पहनाई और मैंने भी इंकार नहीं किया.

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