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पहला अफेयर: कच्ची उम्र का प्यार (Pahla Affair: Kachchi Umra Ka Pyar)

कच्ची उम्र का प्यार (Pahla Affair: Kachchi Umra Ka Pyar)

सोचा न था इतने सालों बाद आज आपसे इस मोेड़ पर इस तरह से मुलाक़ात होगी. आपको देखकर दिल में फिर वही पहले प्यार की ख़ुशबू महक गई, जिसे मैंने आज तक सहेजकर रखा है. अक्सर सुनते हैं कच्ची उम्र का प्यार भी कच्चा ही होता है... उसमें न सोच होती है, न समझ और न ही परिपक्वता. बस, एक कशिश और शारीरिक आकर्षण का नाम दिया जाता है 16 साल के अल्हड़ प्यार को. आपने भी तो यही कहा था न मुझे, जब आपसे अपने प्यार का इज़हार किया था मैंने.

हमारे छोटे-से गांव में आप नए मास्टरजी के नाम से मशहूर हो गए थे. आपके नाम की ही तरह आपके व्यक्तित्व में भी सूर्य की तरह ही तेज था, प्रकाश था. प्रकाश, कितना सही और सटीक था आपका नाम... ज्ञान से भरपूर, हर अंधेरे से दूर... लोगों की ज़िंदगी में भी प्रकाश फैलाने की इच्छा से ही आप हमारे गांव में आए थे. मैं तो जैसे आपको देखने और सुनने के लिए ही अब स्कूल आने लगी थी. सबकी तरह आप भी प्यार से मुझे छुटकी ही बुलाते थे. आपकी प्रिय शिष्या थी मैं और होती भी क्यों न, आख़िर पढ़ाई-लिखाई में तेज़ भी तो थी.

अपने प्रति आपके इस स्नेह को मैं न जाने कब प्यार समझ बैठी और प्यार के उस सागर में इतनी डूब गई कि मैं यह भूल गई कि आप मेरे मास्टरजी हैं. आपको निहारती रहती, हर पल आपके ही ख़यालों में खोई रहती. और अब तो पढ़ाई भी इसी मक़सद से करने लगी थी कि आप ख़ुश हों, मेरी तारीफ़ करें, मुझ पर ध्यान दें. लेकिन आप न जाने क्यों मुझसे कुछ दूर भागने लगे थे. शायद मेरे मन में पल रहे नए ख़्वाब का आपको आभास हो गया था. एक दिन मैंने ठान लिया कि आपसे जवाब लेकर ही रहूंगी आपकी दिन ब दिन बढ़ती बेरुखी का. परीक्षाएं ख़त्म हुईं और मैं आपके घर पहुंच गई.

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बिना कुछ सोचे-समझे मैंने एक सांस में सब कुछ कह डाला. आपकी बेरुखी से मैं कितनी आहत थी, यह बताने के साथ-साथ अपने दिल में पनप रहे उस कोमल, मधुर एहसास से भी आपको उसी व़क़्त वाक़िफ़ कराना मुनासिब समझा मैंने. कह दिया कि आपसे प्यार करती हूं. अपने जीवनसाथी के रूप में आपको ही देखती हूं. किसी और की कल्पना तक नहीं कर सकती, लेकिन आपने मेरे इस प्यार को कच्ची उम्र का आकर्षण कहकर मेरा दिल तोड़ दिया था. मुझे आज भी शब्दश: याद है आपकी वो बड़ी-बड़ी बातें, जिन्हें मेरा मासूम प्यार न तब समझने को तैयार था, न अब...!

ङ्गदेखो छुटकी, तुम अभी बच्ची हो. ये प्यार-व्यार क़िताबों में ठीक है, तुम फ़िलहाल इन चीज़ों से दूर रहो. यह महज़ कच्ची उम्र का आकर्षण है, दो-चार साल बाद तुम्हें ख़ुद अपने इस प्यार पर हंसी आएगी. प्यार का मतलब भी जानती हो?फ मैंने स़िर्फ इतना कहा था, “प्यार और आकर्षण के फ़र्क़ को समझने लायक़ समझ है मुझमें. दो-चार साल बाद तो क्या, सारी उम्र भी आपका इंतज़ार करना पड़ा तो करूंगी.”

इसके बाद आप हमारे गांव से चले गए. आपने शादी कर ली, घर बसा लिया और शहर में हमेशा के लिए बस गए. आज मैं एक क़ामयाब डॉक्टर हूं. आप मेरे मरीज़ बनकर मेरे क्लिनिक में आए. आपके शरीर के ज़ख़्म जल्द ही भर जाएंगे, लेकिन मेरे दिल का ज़ख़्म शायद कभी न भर पाता अगर आज आप यह नहीं कहते कि कच्ची उम्र का प्यार भी सच्चा हो सकता है, यह तुमने साबित कर दिया छुटकी. तुम मेरी शिष्या हो, क़ामयाबी का यह मुक़ामहासिल करके मेरी गुरुदक्षिणा तो तुमने दे दी, लेकिन तुम आज भी मेरा इंतज़ार कर रही हो, मेरे ही कारण घर नहीं बसा सकीं, मैं इस अपराधबोध से कैसे मुक्त हो पाऊंगा? काश, तुम्हारे प्यार की गहराई को मैं समझ पाता. प्यार के मामले में तो तुम मेरी गुरु निकली, लेकिन मैं ही अच्छा शिष्य नहीं बन पाया...!

- गीता शर्मा

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