मनोचिकित्सकों की मानें, तो डिप्रेशन की बीमारी किसी को भी हो सकती है. सायकोलॉजी की प्रो़फेसर डॉ. विद्या शेट्टी के अनुसार, डिप्रेशन के लिए मुख्य रूप से बदलती जीवनशैली, बच्चों में संस्कारों की कमी और बढ़ता पढ़ाई का बोझ काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं. आज बच्चों पर हर तरफ़ से दबाव है. पैरेंट्स की उम्मीदों को पूरा करने की चिंता, प्रतिस्पर्धा में अव्वल आना, पढ़ाई में 90% लाना या टीनएजर्स में रिलेशनशिप में धोखे का डर आदि. ये सभी ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जो बच्चों के दिमाग़ में घर कर जाएं, तो उनकी जान तक की दुश्मन बन जाती हैं. हालांकि डिप्रेशन का सही इलाज मुमकिन है, बशर्ते समय रहते इलाज शुरू कर दिया जाए.
सायन हॉस्पिटल, मुंबई के सायकोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. निलेश शाह कहते हैं, “डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और यह किसी को भी हो सकती है. इंसान के दिमाग़ में न्यूरोटर्मिक नाम का केमिकल बनता है, दिमाग़ में इसकी मात्रा कम होने के कारण डिप्रेशन की बीमारी हो जाती है. कुछ ऐसे लक्षण भी हैं, जिनसे शुरुआती दौर में ही आप अपने बच्चे के दिमाग़ में पनप रहे डिप्रेशन को पहचान सकते हैं.”
* आपका हंसता-खेलता बच्चा अचानक से अलग बर्ताव करने लगे.
* बहुत ही चंचल स्वभाव का बच्चा शांत रहने लगे.
* वो चिड़चिड़ा हो जाए या छोटी से छोटी बात पर उसे ग़ुस्सा आने लगे या वह रिएक्ट करने लगे.
* खेल-कूद से कभी न थकनेवाला बच्चा बाहर जाकर दोस्तों के साथ खेलने से जी चुराने लगे.
* जो बच्चा तन्हाई में एक पल न बिताता हो, उसे अचानक अकेले रहने का मन करने लगे.
* भाई-बहन से हमेशा मिल-जुलकर रहनेवाला हंसमुख बच्चा उनसे कन्नी काटने लगे या पैरेंट्स या रिश्तेदारों से बातचीत करने में घबराए या बात ही न करना चाहे.
* दिन में काफ़ी समय टीवी के सामने बैठ अपने पसंदीदा कार्टून को देखना या वीडियो गेम को अपने से भी अधिक प्यार करनेवाला बच्चा अचानक से इन चीज़ों की तरफ़ देखे भी न.
* बच्चा बिना किसी ख़ास वजह के स्कूल जाने से बार-बार इनकार करने लगे और ज़बरदस्ती स्कूल भेजने पर कोई न कोई बीमारी का बहाना बना दे.
* भूख लगने पर भी खाने-पीने का उसका मन नहीं करे.
* भरपूर नींद न ले पाए. छोटी उम्र में जब बच्चे 8 से 10 घंटे की नींद पूरी करते हों, तब आपके बच्चे को नींद न आने जैसी शिकायत रहने लगे.
डॉ. निलेश शाह का कहना है कि जैसे ही आपको अपने बच्चे में डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दें, उसे बिल्कुल नज़रअंदाज न करें. उसे मनोचिकित्सक या मेंटल हेल्थ सेंटर लेकर जाएं, ताकि समय पर बच्चे का सही इलाज शुरू किया जा सके, क्योंकि डिप्रेशन का सही इलाज न होने पर यह बच्चे को या पीड़ित व्यक्ति को ख़ुदकुशी जैसे गंभीर क़दम उठाने पर भी मजबूर कर सकता है. डिप्रेशन का इलाज संभव है. इसके इलाज के लिए दवाइयां और काउंसलिंग दोनों की ही ज़रूरत होती है. बच्चे के दिमाग़ में चल रहे नकारात्मक विचार का कारण जानकर उसे सायको थेरेपी से या उसके लिए उपयुक्त उपचार से ठीक किया जाता है.
डिप्रेशन से मुक़ाबला कर सकनेवाली बातों को सीखने में बच्चे की मदद करें-
* कम उम्र के हो या टीनएज, आख़िर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं. आप उन्हें अपने ग़ुुस्से पर नियंत्रण रखना सिखाएं.
* आप बच्चे को ग़ुस्सा आने पर 1 से 10 तक उल्टी गिनती गिनने की सलाह दें. यह काफ़ी कारगर उपाय है.
* छोटी-छोटी चीज़ों या बातों पर कैसे रिएक्ट किया जाए, बच्चे को यह सिखाकर उसे आप डिप्रेशन से बचने में काफ़ी हद तक मदद कर सकते हैं.
* जितना हो सके अपने बच्चे से उसकी परेशानी के बारे में बात करें, न कि उसकी परेशानी का कारण बने.
* इसके अलावा गाने सुनकर ग़ुस्से या उदासी को कम किया जा सकता है, जिसे म्यूज़िक थेरेपी भी कहते हैं.
बच्चे को छोटे-मोटे काम में व्यस्त रखें. इससे उसका ध्यान बंटा रहेगा. उसे उसके ख़ुद के कमरे की सफ़ाई करने को कह सकते हैं या फिर होमवर्क पूरा करना या शॉवर लेने जैसे काम करके वह अपने आपको व्यस्त रख सकता है. यदि आपको ज़रा भी महसूस हो कि आपका बच्चा डिप्रेशन का शिकार हो रहा है, तो आप उसे चद्दर से मुंह ढंककर सोने की इजाज़त न दें. यह हालात को और भी गंभीर बना सकता है.
बच्चों को उनकी ज़िम्मेदारियों का एहसास कराना ठीक उतना ही ज़रूरी है, जितना कि उन्हें चलना-बोलना सिखाना. रोज़ के काम जैसे कि स्कूल का होमवर्क करने में उसकी मदद करें. उसे उसकी ज़िम्मेदारियां समझाएं, ताकि वह इसे निभा सके. उसे रोज़ नई-नई चीज़ें सिखाएं. यदि आपका बच्चा डिप्रेशन में है, तो आपको उसके साथ अच्छे टीचर या कोच जैसा बर्ताव करना पड़ेगा.
बच्चे से शोर-शराबेवाली जगह में बात करने की कोशिश न करें, यह उसे और भी चिड़चिड़ा बना सकता है. आजकल कई स्कूलों में ‘क्वाइट रूम’ बनाया जाता है, जहां बच्चा आराम से बैठकर अपने दिलो-दिमाग़ को शांत कर सके. शांत कमरे में बैठकर अपने बच्चे से उसके ख़राब मूड या परेशानी के बारे में जानने की कोशिश करें.
बढ़ते बच्चे अक्सर मूड़ी होते हैं, किसी ज़माने में आप भी रहे होंगे. यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने बच्चे के बदलते मूड़ को कैसे समझें. आप उसे समझा सकते हैं कि ठीक है तुम मूड़ी हो सकते हो, झुंझला सकते हो, दुखी भी हो सकते हो, लेकिन अपने काम और ज़िम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते.
बच्चे को यह एहसास दिलाना बहुत ही ज़रूरी होता है कि दुखी होना इंसान की प्रवृत्ति है, ठीक वैसे ही जैसे कि ख़ुुश होना. हालांकि अधिक दुखी होने का एहसास भी डिप्रेशन का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह इंसान की प्रवृत्ति का ही हिस्सा है. बच्चों को यह पता होना चाहिए कि कभी कोई काम उनके मुताबिक न हो, तो इसका मतलब यह नहीं कि वे सबसे मुंह मोड़ लें या दुखी हो जाएं. बच्चों को अपनी भावनाओं पर काबू करना पैरेंट्स ही सिखा सकते हैं. उनसे बातें करें. उन्हें समझाएं कि अलग-अलग हालात को किस प्रकार हैंडल किया जाए.
डिप्रेशन की बीमारी कई प्रकार की होती है, लेकिन घबराने की बात नहीं है. आप केवल इस बात का ख़्याल रखें कि इसका इलाज है और इसे भी अन्य बीमारियों की तरह जड़ से ठीक किया जा सकता है. डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति भी एक आम इंसान की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है. ज़रूरत है, तो बस थोड़े-से प्यार और सही इलाज की.
नेशनल रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 वर्षों में (2006 से 2010 तक) विद्यार्थियों में आत्महत्या का ट्रेंड 26% बढ़ गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 में देश में रोज़ाना 20 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है. मनोचिकित्सकों और शिक्षकों ने काफ़ी हद तक आत्महत्या का कारण मेंटल हेल्थ व डिप्रेशन को बताया है.
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