वो मोहित के स्टेशन आने की ख़ुशी और बिछड़ने के ग़म दोनों को शब्द नहीं दे पा रही थी. मैंने…
कंप्यूटर हमेशा से ही मेरे लिए जी का जंजाल रहा है. बात उन दिनों की है जब इंटरनेट नया-नया आया…
“तुम सूखे पत्तों की तरह हो शिल्पी और मैं एक बेजान ठूंठ की तरह! नहीं संभाल पाऊंगा मैं तुम्हें... शायद…
शादी के हवन में तुम्हारी बेवफ़ाई को स्वाहा करके एक नए हमसफ़र के साथ नई दुनिया बसा ली. लेकिन उस…
सौम्य, सुसंस्कृत लडका रिया को पहली नज़र में ही भा गया. जब दोनो एक ही स्टेशन पर उतरे और एक…
राधिका ने मोबाइल चेक किया. देव का मैसेज था- आज तीन तारीख है, पेंशन लेने बैंक जा रहा हूं, समय हो तो तुम भी आ जाओ. पेंशन लेने के बाद पास ही के रेस्तरां में टमैटो सूप पीने चलेंगे. प्रेम की खुशबू से भीगे मैसेज में मुलाकात की चाह झलक रही थी. कभी-कभी कोई शख्स बिना किसी रिश्ते या नाम के जिन्दगी कोमुकम्मल बनाने की कोशिश करता है. दोस्ती में रूहानी चाहत जन्म ले लेती है. मैसेज देखकर राधिका का रोम-रोम खिल उठा. वहकिशोरी की तरह मुस्कुरा उठी. मिलने के लिए ये छोटे-छोटे पल उर्जा का काम करते थे. पिछले साल शिक्षक पद से रिटायर्ड हुई थी. रिटायर होने के बाद खालीपन कचोटने लगा. शाम काटने के उद्देश्य से कॉलोनी मे बने पार्कमें टहलने चली जाती थी. वहीं पर पहली बार देव को देखा था. ट्रैक सूट और सिर पर कैप में आकर्षक लग रहे थे. जाने क्यों मन खिंचनेलगा था. मैं अक्सर चोरी-छिपे उन्हें देख लेती थी. देव का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि नजर नहीं हटती थी. हालांकि दोस्ती और प्रेम की उम्रनहीं थी, फिर भी दिल तो बच्चा है और जिद्दी भी, मानता कैसे? उस दिन जाने क्या हुआ, देव उसी बेंच पर आ बैठे जिस पर अक्सर मैं बैठा करती थी. बेंच के आसपास अशोक के सूखे पत्ते बिखरे हुएथे, उन्हीं में से एक उठाकर मेरी ओर बढ़ाकर कहा, ‘आज मेरा जन्मदिन है, चाहो तो इसे देकर मुझे विश कर सकती हो.’ मैं देव के इस तरह के आग्रह पर अचकचा गई. ‘नजरें चुरा सकती हो, विश नहीं कर सकती?’ देव ने मेरी आंखों में झांका. उस दिन हम दोनों में दोस्ती हो गई. हम दोनों ढेर सारी बातें करने लगे. एक-दूसरे के सुख-दुख बांटने लगे. अकेलापन दूर होने लगा. हमदोनों के बच्चे विदेश रहते हैं. जीवनसाथी पहले ही साथ छोड़ गए. ऐसे में देव का मिलना मेरे सूने जीवन की नेमत था. बातचीत के सिरेपकड़ते-पकड़ते दोनों एक-दूसरे का दिल बांट चुके थे. मन का रीता कोना अब भीगने लगा था. एक दिन मैंने कहा- ‘देव, उम्र का आखिरी पड़ाव है, न जाने कब ज़िन्दगी की शाख कट जाए. मैं संशय में हूं कि इस उम्र में प्रेम करनाग़लत हो सकता है.’ ‘नहीं, प्रेम किसी भी उम्र में ग़लत नहीं होता. प्रेम तो खुद खुबसूरत शै है जिसमें हर व्यक्ति निखर जाता है. प्रेम को गलत-सही कीपरिभाषा से दूर रखना चाहिए. गलत है तो अपनी भावनाओं को रोकना और उन्हें शक की नजरों से देखना. मेरी एक बात मानोगी, जानेकब सांसें साथ छोड़ दें, क्यों न कुछ दिन इस तरह जी लें जैसे टीनएज में जीते थे. जीवन के उपापोह में जो न कर सके, अब कर लें…’ और उस दिन से सच में हम किशोर उम्र में उतर गए. चुपके-चुपके मैसेज करना, छिप-छिपकर मिलना, एक-दूसरे की पंसद का ख्याल रखना… छोटी-छोटी शरारतें कर एक-दूसरे कामनोरंजन करना… वो सब करते जो एक उम्र में करने से चूक गए थे. दोनों मंद-मंद मुस्कुराते. मैं देव की पंसद की कोई डिश बना लेती तो, वहीं देव कोई प्रेम गीत गुनगुना देते. नीरस जीवन में बहार आ गई थी. एक दिन देव साथ छोड़ गए और मैं अकेली रह गई. मैं उदास-सी खिड़की पर खड़ी होकर देव के साथ बिताए पलों को याद करती. देवमेरे जीवन के तुम वो झरोखा थे जो मेरे जीवन को महका गए. तुम मेरे स्वरों में अंकित हो, आज तुम्हारा जन्मदिन है. अशोक का यहपीला पत्ता उस दिन की याद दिला रहा है, जिस दिन हम दोनों के दिलों में चाहत का बीज पनपा था. जिस प्रेम को इस पत्ते ने संजोयाथा, वह आज भी लहलहा रहा है. मैं इस पौधे के साथ जल्द ही तुम्हारे पास आने वाली हूं… मेरे अंतस की पुकार में, तेरा अस्तित्व महफूज़ है… फिज़ा आज भी बहती है, बस मोगरे ने खुशबू बदल ली है… शोभा रानी गोयल
बात उन दिनों की है जब मैं बीए फर्स्ट ईयर में थी. इसी बीच हमारे शहर में भाभी का कज़िन किसी एग्ज़ाम की तैयारी करने आया था. जाहिर है, हमारे घर में ही रुकना था उसे. “ये क्या बात हुई मम्मी, आपने मेरा कमरा उसे क्यों दे दिया?” मम्मी ने मुझे डांट दिया था, “कुछ महीनों के लिए इतना भी एडजस्ट नहीं कर सकती? तुम्हारा कमरा छत पर है, एकांत में, आराम से बैठकर पढ़ लेगा. कल सुबह वो आ रहा है, जरूरत भर का सामान उठाओ और मेरे कमरे में आकर रख लो.” अगली सुबह नवीन का आगमन हुआ और भाभी ने प्यार से उसको गले लगाकर कहा, “तुम्हारा कितना इंतजार हो रहा था. निधि ने अपनाकमरा भी तुम्हारे लिए खाली कर दिया है.“ नवीन सच में बिल्कुल अपने नाम जैसा ही तो था. तरोताज़ा चेहरा, मनमोहक मुस्कान और बेहद विनम्र. “थैंक यू निधि. मैं तुम्हारे रूम का बहुत ध्यान रखूंगा.“ पहली मुलाकात में ही बात ‘तुम’ से शुरू हुई थी जो कि मुझे अच्छा लगा था. नवीन खूब जमकर पढ़ाई करते थे लेकिन तैयारियों के बीचजैसे ही सुस्ताने के लिए कमरे से बाहर आते, धूप में बैठी मम्मी के साथ मटर छीलने में लग जाते. कभी भाभी के साथ धुले हुए कपड़ेफैलाने लगते. मैं छुप-छुपकर किसी ना किसी बहाने से नवीन को देखती रहती. नवीन कितने अलग थे बाकी लड़कों से. मन था जो पंखलगा कर कहीं और उड़ता जा रहा था. कितनी बार ऐसा हुआ जब मैंने भाभी के हाथ से कपड़ों की बाल्टी झटक ली, “आप रहने दो भाभी, मैं फैला आती हूं कपड़े.“ कितनी आवाज़ करके झिटक-झिटककर कपड़े फैलाती कि शायद आवाज़ सुनकर ही नवीन कमरे से बाहर आ जाएं, लेकिन हर बारकोशिश बेकार रहती. फिर थक-हारकर मैंने कुछ गमले छत पर रखवा दिए थे, उनमें पानी देने के बहाने छत पर एक चक्कर और लगजाता था, लेकिन मेरी सारी कोशिशें बेकार थीं. नवीन को तो बस अपनी पढ़ाई, अपने लक्ष्य के आगे और कुछ सूझता ही नहीं था. उस समय मोबाइल फोन नहीं होता था, बल्कि एक लैंडलाइन होता था. इसी बीच घर में एक घटना और होनी शुरू हो गई थी, जब देखोतब लैंडलाइन पर फोन आता था. मम्मी या भाभी उठाती थीं तो कोई उधर से कुछ बोलता ही नहीं था. उस दिन मैंने भैया की बात सुन लीथी, जब वो भाभी को डांट रहे थे, “इसीलिए मैं नहीं चाहता था कि कोई लड़का घर में आकर रहे. देख रही हो ना जब से नवीन आया है, तब से ही ऐसी ब्लैंक कॉल आ रही हैं, पूछ लो उससे कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड है क्या जो उसको फोन करती रहती है? इससे पहले तोअपने यहां इस तरह की ब्लैंक कॉल नहीं आईं.” यह बात सच थी. नवीन के आने के तीन-चार दिनों बाद ही इन कॉल्स का सिलसिला शुरू हुआ था और जो शुरू हुआ तो रुकने का नामही नहीं ले रहा था. उस दिन घर पर सिर्फ भाभी और मैं ही थे. थोड़ी देर बाद आकर नवीन ने भाभी से कहा, “आप कह रही थीं मार्केट काकुछ काम है, अभी मैं फ्री हूं, चलना हो तो चलिए.” दो मिनट के अंदर ही भाभी और नवीन मार्केट के लिए निकल गए थे और अगले दस मिनट के अंदर फिर लैंडलाइन फोन बजने लगा था. ऐसा मौका कम ही होता था कि घर में कोई ना हो और मैं फोन उठाऊं, मैंने लपक कर फोन जैसे ही उठाया और हेलो कहा, उधर से किसीलड़के की आवाज़ सुनाई दी, “हेलो! मैं नवीन बोल रहा हूं.” “अरे! क्या हुआ? भाभी ठीक हैं ?अभी अभी तो आप लोग यहां से गए हैं.” नवीन ने जल्दी से कहा, “मैंने तुमसे बात करने के लिए फोन किया है. मैं अक्सर तुमको फोन करता हूं, कोई और फोन उठा लेता है.” मेरीहैरानी की तो कोई सीमा नहीं रह गई थी. जो लड़का सामने बात करता नहीं है, वो बाहर से जाकर मुझे घर पर फोन कर रहा है.…
इतने वर्षों बाद आज फ़ेसबुक पर तुम्हारी तस्वीर देख हृदय में अजीब सी बेचैनी होनी लगी. उम्र के साठवें बसंत में भी चेहरे पर वही मासूमियत, वही कशिश, वही ख़ूबसूरती और वही कज़रारी आंखें जिसने वर्षों पहले मुझे तुम्हारी ओर तरह खींच लिया था. तुम्हारी फूल सी मासूमियत का कब मैं भंवरा बन बैठा मुझे पता ही नहीं चला था. आज जीवन में भले ही हम अपने-अपने परिवारों में व्यस्त हैं, ख़ुश है और संतुष्ट भी हैं, पर कुछ ख़लिश भी है… मेरे अधूरे प्रेम की ख़लिश. मैंने तुम्हारे प्रेम की लौ को कभी बुझने नहीं दिया. वो आज भी मेरे हृदय के एक कोने में अलौकिक है. मैं बार-बार एक अल्हड़ से प्रेमी की तरह फ़ेसबुक पर तुम्हारी तस्वीर निहार रहा था. उस दिन की तरह आज भी बाहर आकाश काले मदमस्त बादलों से घिर गया था. ठंडी-ठंडी बयार चल रही थी, जिसके झोंके मुझे अतीत की तरफ़ खींच रहे थे, जब मैंने पहले बार तुम्हें स्कूल के रास्ते में अपनी साइकल की चेन ठीक करते देखा था. बार-बार की कोशिशों के बावजूद तुम साइकल की चेन ठीक करने में असफल हो रहीं थीं. जब तुमसे मदद करने के लिए पूछा तो तुमने मना करने के लिए जैसे ही निगाहें ऊपर उठाई, मेरी निगाहें तुम्हारे चेहरे पर टिक गयी थीं. गुलाब के फूल की तरह एकदम कोमल चेहरा, आंखों में गहरा काजल और लाल रिब्बन से बंधी दो लम्बी चोटियां. उसी क्षण मेरा दिल तुम्हारे लिए कुछ महसूस करने लगा था. पता नहीं क्या कशिश थी तुम्हारे मासूम चेहरे में कि तुम्हारे बार-बार मना करने के बाद भी मैं वहीं खड़ा रहा. आसमान को अचानक काले-काले बादलों ने अपने आग़ोश में ले लिया था. ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बरखा पूरे ज़ोर-शोर से बरसने को आतुर है. अचानक करवट लिए मौसम और स्कूल लेट होने की परेशानी तुम्हारे चेहरे पर साफ़ झलक रही थी, लेकिन फिर भी तुमने मेरी मदद लेने को साफ़ इनकार कर दिया. तभी बादलों ने गरजना शुरू कर दिया और हार कर तुमने मेरी मदद ले ही ली. हम दोनों ने अपनी-अपनी साइकल घसीटते हुए, बातें करते हुए कब स्कूल का सफ़र तय कर लिया पता ही नहीं चला. बातों-बातों मे पता चला कि तुम मुझसे एक साल बड़ी हो. मैं ग्यराहवीं में था और तुम बारहवीं में.तुम्हारा स्कूल में ये अंतिम वर्ष था, ये सोचकर मैं बेचैन हो जाता था. बस फिर मैं अकसर तुम्हारी कक्षा और तुम्हारे आस-पास मंडराने के बहाने खोजने लगा. मैं किसी भी क़ीमत पर ये एक साल व्यर्थ नहीं करना चाहता था. हमारी दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होने लगी. मेरे दिल की हालत से बेख़बर तुम मुझे सिर्फ़ एक अच्छा दोस्त समझती थी, पर मैं तो तुम्हारे प्रेम के अथाह सागर में गोते लगा रहा था. उस ज़माने में लड़कियों और लड़कों की दोस्ती का चलन नहीं था, इसलिए हमारी मित्रता सिर्फ़ स्कूल तक ही सीमित थी. उस दिन बारहवीं क्लास के स्टूडेंट्स का स्कूल में अंतिम दिन था. सभी स्टूडेंट्स…
आज उसकी शादी है… वो वाक़ई आगे बढ़ चुका है अपनी ज़िंदगी में… और मैं? कहने को तो मैं भी मूव ऑन कर चुकी हैं, लेकिन मेरा दिल जानता है कि ये सच नहीं है. एक कॉमन फ्रेंड के ज़रिए हमारी पहली मुलाक़ात हुई थी और तभी लग गया था कि ये मुलाक़ातें और बढ़ेंगी और हमारा रिश्ता भी… उसको यू एस में जॉब मिला था और मैं अभी स्टूडेंट थी, मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. हमने फ़ोन नम्बर्स लिए एक-दूसरे के और कब थोड़े ही समय में दोस्त से हमसफ़र बनने का फ़ैसला हमने ले लिया उसका एहसास ही नहीं हुआ. वो जब भी इंडिया आता तो सबसे पहले मेरे घर जयपुर आता, मेरी फ़ैमिली भी उसको पसंद करती थी और उसकी फ़ैमिलीभी खुले विचारों की थी. वो अक्सर अमेरिका में मेरे लिए चॉकलेट्स और गिफ़्ट्स कलेक्ट करके रखता था. हमने साथ मेंबहुत अच्छा वक़्त गुज़ारा, गोवा से लेकर मुंबई तक हॉलिडे मनाई. लेकिन कहते हैं ना जब सब कुछ इतना परफेक्ट लगे तो समझ जाना चाहिए कि कहीं न कहीं कुछ सही नहीं है. विकास को लेकर मैं ज़्यादा ही पज़ेसिव होती जा रही थी. अगर मेरा फ़ोन नहीं उठाता या मैसेज का जवाब नहीं देता तो मैंलड़ पड़ती. धीरे-धीरे हमारे झगड़े बढ़ने लगे. मैं हर बात पर उससे सवाल करती और वो यही कहता कि रितु काम में बिज़ी रहता हूं तो ज़रूरी नहीं कि हमेशा जिस वक़्त तुम फ़ोन करो मैं कॉल ले सकूं, इतना तो समझो इंडिया और अमेरिका काटाइम अलग-अलग है! लेकिन मैं समझने को ही तैयार नहीं थी, हम जितने क़रीब थे अब उतने ही दूर होते जा रहे थे. मेरे इस तरह के बर्ताव से विकास भी मुझसे उखड़ा-उखड़ा रहने लगा था. उसका मानना था कि मेरे और उसके मैच्योरिटी लेवल में बहुत फ़र्क़ है, मैं स्टूडेंट वाली टीन एज की सोच और व्यवहार से बाहर ही नहीं आ रही थी, तो ऐसे में वो मानसिक रूप से डिस्टर्ब रहने लगाथा और खुद इसका असर उसके नेचर और बर्ताव पर पड़ने लगा था. विकास और मैंने यही निर्णय लिया कि हमको ब्रेकअप कर लेना चाहिए. हालांकि मैं नहीं चाहती थी कि हम अलग हों, लेकिन वो निर्णय ले चुका था. मैंने कहा कि हम दोस्त तो रह सकते हैं ना, उसने भी हामी भर ली, लेकिन मैं खुद को सम्भाल नहीं पा रही थी, दोस्ती का रिश्ता मुझे दर्द दे रहा था और इसीलिए विकास ने मुझे सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया ये कहकर कि इस तरह हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे और न ही इस रिश्ते में भी रह पाएंगे! उसके निर्णय का मैं सम्मान करती हूं और आज जब एक कॉमन फ्रेंड ने उसकी शादी की खबर दी तो मैं टूट गई, लगा कोई अपना अब हमेशा के लिए किसी और का हो गया है… मैं भी अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ रही हूं, लेकिन दिल के किसी कोने में उसका प्यार आज भी दबा हुआ है जो वक़्त-वक़्त पर दस्तक दे ही देता है… विकास और मुझे लगा था कि हमारी लॉन्ग डिसटेंस रिलेशनशिप एक बड़ा कारण था हमारे बीच मनमुटाव और ग़लतफहमियों का, लेकिन आज सोचती हूं कि मेरी ज़्यादा क़रीब रहने की कोशिश ही हमारी दूरियों का कारण बन गई थी. मैं अपने दिल और प्यार को सम्भाल ही नहीं…
पिछले कुछ दिनों से टीवी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा अलग ही वजह से सुर्खियों में था. शो में…
ओस से भीगा वह कमरा, लगा हवा ने मुट्ठी में मनहूसियत को दबोच लिया है. मौसम की वह नमी अचानक…
पहला अफेयर: तुम कभी तो मिलोगे (Pahla Affair: Tum Kabhi To Miloge) आज फिर मेघों से रिमझिम वर्षा रूपी नेह…