आज के इस आधुनिक दौर में किसी भी इंसान को सही तरीके से परख पाना सबसे मुश्किल काम है, क्योंकि…
कल अलमारी साफ करते-करते रुचिका फाइल्स भी ठीक करने में लग गई. जब से बेटे उत्सव का एडमिशन इंदौर में…
केमिस्ट्री का नीरस लेक्चर सुनते हुए नींद से आंखें बोझिल होने लगी थीं. मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठा…
प्रेम त्वरित आनंद देता है.. उसका रिसाव धमनियों का प्रवाह जीवंत बनाए रखता है. प्रेम, सृष्टि का सबसे महंगा सुख…
“नमन, बेटा ज़रा सुनो, तुम और रोली कब शादी करने वाले हो?” “ममा रोली से तो मेरा कब का बेक्रअप हो गया और अगले हफ्ते तो उसकी शादी है…” बेपरवाह स्वर में बोलकर नमन वहां से चला गया. मैं उसे देख कर हैरत में पड़ गई. आज के बच्चे इतने बिंदास… इन्हें मोहब्बत खेल लगती है. प्यार को यूं भुला देना जैसे किक्रेट के मैदान मेंछक्का लगाते वक्त बॉल गुम हो गई हो… मैं गुमसुम-सी खड़ी अपने अतीत में झांकने लगी. पापा का लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गया था. मैंने वहां पर नए स्कूल में दाखिला लिया. चूंकि मैंने बीच सेशन में एडमिशन लिया था, इसलिए मेरे लिए पूरी क्लास अपरिचित थी. शिफ्टिंग के कारण मैं काफी दिन स्कूल नहीं जा पाई, इसलिए मेरा काफी सिलेबस मिस भीहो गया था. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मेरी क्लास टीचर ने उसी क्लास में पढ़ने वाले अनमोल से मेरा परिचय करवाया औरउसको हिदायत दी- “अनमोल तुम निधि की पढ़ाई में मदद करना.” अनमोल ने मुझे अपने नोट्स दिए, जिससे मुझे स्टडी में काफी मददमिली. यह एक संयोग ही था कि मैं और अनमोल एक ही कॉलोनी में रहते थे, फिर क्या था हम स्कूल भी साथ आने-जाने लगे. एक-दूसरे के घरजाकर पढ़ाई भी करते और पढ़ाई के साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा करते थे. कभी-कभी साथ मूवी देखने जाते, तो कभी छत पर यूं हीटहलते. धीरे-धीरे हमारे मम्मी-पापा भी जान गए कि हम अच्छे दोस्त हैं. हम दोनों ने स्कूल में टॉप किया. इसके बाद हम कॉलेज में आ गए. अनमोल इंजीनियरिंग करने रुड़की चला गया और मैं दिल्ली में पासकोर्स करने लगी. कॉलेज पूरा होते-होते पापा ने मेरी शादी के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. छुट्टियों में अनमोल के घर आने पर उसेअपनी शादी की चर्चा के बारे में बताया. वह एकाएक गंभीर हो गया. मेरा हाथ पकड़कर बोला, “निधि मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं. आजसे नहीं, जब से पहली बार देखा था, तब से ही. मैंने रात-दिन तुम्हारे ख्वाब देखे हैं. प्लीज़ मेरी नौकरी लगने तक इंतज़ार कर लो. मेरेअलावा किसी से शादी की सोचना मत.” मुझे भी अनमोल पसंद था. मैंने उसे हां कह दिया. दो महीने के बाद पापा ने ऋषभ को पसंद कर लिया. उनके मान-सम्मान के आगे मै अपनी पसंद नहीं बता पाई. एक बार मां से ज़िक्रकिया था, “मां मैं अनमोल को पंसद करती हूं और उससे ही शादी…” बात पूरी होती उससे पहले ही मां ने एक चांटा मेरी गाल पर रसीदकर दिया. “बड़ों के सामने यूं मुंह खोलते हुए शर्म नहीं आती? चुपचाप पापा के बताए हुए रिश्ते के बंधन में बंध जाओ वरना अच्छा नहींहोगा.” मां की धमकी के आगे मै मजबूर थी. मैं चुपचाप शादी करने के लिए तैयार हो गई. उस वक्त मोबाइल नहीं होते थे. मैं अनमोल को अपनीशादी के बारे में नहीं बता पाई. शादी के बाद मै आगरा आ गई. करीब दो साल बाद मेरी मुलाकात अनमोल से हुई. हम दोनों के बीच सुनने-सुनाने को कुछ शेष नहीं था. अनमोल ने ही अपनी बात कही, “ज़रूर तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी, वरना कोई यूं बेवफा नहीं होता. तुम्हारी शादी हो गई तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुमसेमोहब्बत करना छोड़ दूं. तुम अपनी शादी निभाओ और मुझे अपने इश्क से वफ़ा करने दो…” हम दोनों के गले रूंध गए और आंखें बह गईं. तब से लेकर आज तक अनमोल ने मेरी हर तकलीफ, हर दुख और हर खुशी में बखूबी साथ दिया. मैं अनमोल जैसा सच्चा दोस्त पाकरनिहाल हो गई. ऋषभ और अनमोल की बनती भी खूब है. उसने शादी नहीं की. एक बार मेरे ज़ोर देने पर कहा- “मेरे मन में बसी मूरत केजैसी कोई मिली तो इन यादों को एक पल में ही अलविदा कह दूंगा…” वह अक्सर कहता है… “तुझे पा लेते तो यह किस्सा ही खत्म हो जाता तुझे खोकर बैठे हैं यकीनन कहानी लंबी होगी.” शोभा रानी गोयल
रिॲलिटी टीव्ही शो 'बिग बॉस'चा 17वा सीझनही संपला आहे. अंकिता लोखंडे आणि विकी जैन हे या सीझनमधील सर्वात लोकप्रिय स्पर्धकांपैकी…
20 दिसंबर 1987 को तुम मुझे अपने दोस्त, बहन और भतीजे के साथ देखने आए थे. मैं सुबह से बेचैन थी, ज़िंदगी बदल जाएगी इसएक नए रिश्ते से, सोच रही थी कि न जाने कैसा होगा वो, मुझे पसंद आएगा भी या नहीं… ज़ाहिर है हर लड़की के मन में ऐसे सवाल आनेलाज़मी हैं… इतने में ही डोर बेल बजी… मैंने सोचा अभी तो काफ़ी वक्त है तुम्हें आने में तो इस वक़्त कौन होगा? मम्मी ने कहा जाकर देख लौंड्रीवाला होगा, मैंने दरवाज़ा खोला और सामने तुम्हें पाया… हम दोनों ने सिर्फ एक-दूसरे को पल भर ही निहारा था और वो ही पल हमारापहला अफेयर बन गया था. मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि डर लग रहा था सबको सुनाई न दे जाएं. मैं नज़रें झुकाकर एक तरफ़ हो गई, तब तक मम्मी आ गई थी. ख़ैर मैं गर्दन झुकाए तुम्हारे सामने बैठी थी, कुछ नहीं पूछा तुमने बस नज़रों ही नज़रों में प्रेम की मौन स्वीकृति दे दी. उस रात मुझे नींद नहींआई. आनेवाले कल के रंगीन सपने मैं खुली आंखों से देख रही थी. न जाने क्या था तुम्हारी उन आंखों में जो एक ही पल में मैं डूब ही गई, कभी न उबरने के लिए. कितना शांत था तुम्हारी आंखों का वो गहरा समंदर, जिसमें मैं इश्क़ के गोते लगा रही थी. तुम्हारी हां थी और मेरी भी हां थी तो बस फिर क्या था, चट मंगनी पट ब्याह हो गया फागुन की फुलेरा दूज को. सहेलियां अरेंज मैरिजमानने को तैयार नहीं थीं. सभी का कहना था कि यह तो लव मैरिज है और सच भी यही था वह पल हमारा पहला अफेयर ही था. पहलीनज़र का प्यार, जिसके बारे में बस सुना ही था पर जब ख़ुद उस एहसास से गुज़री तो पता चला ऐसा सच में होता है. ऊपरवाला इशारादेता है कि हां यही है वो जो अब तक कल्पनाओं में था और अब रूबरू है. वैवाहिक जीवन के 32 वर्ष हंसी-खुशी से गुज़र गए और नवंबर की एक क्रूर रात्रि को तुम मुझसे रूठकर ऐसे सफर पर चले गए, जहां सेलौटकर आना नामुमकिन है. मैं बहुत नाराज़ हूं तुमसे… भला ऐसे भी कोई जाता है? तुम अपने सफर पर गए हो और मेरे अंदर हर रोज़ यादों का एक सफर शुरू होताहै... सुबह की चाय से… चाय की ख़ुशबू में, उसकी महकती भाप के बीच भी तुम नज़र आते हो और मुस्कराते हो... मैं बावली-सीअनायास पूछ बैठती हूं- वही रोज़वाला सवाल, ‘फीकी चाय पी कैसे लेते हो?’ ‘तेरी मीठी मुस्कान से चाय मीठी हो जाती है…’ ‘धत्त’ कहकर मैं शरमा जाती हूं… यादों का अंतहीन सिलसिला फिर रफ्तार पकड़ लेता है. तमाम खूबसूरत लम्हे जीवंत हो उठते हैं, भरपूर जी लेती हूं उन लम्हों को. चाहेवह बोलचाल बन्द होने के हों, तीखी नोकझोंक या खट्टी-मीठी तकरार के हों. शाम ढलते ही मन में खालीपन, उदासी और तन्हाई का गहरा धुंधलका छा जाता है. रात घिरते ही... अचानक कमज़ोर हो उठती हूं मैं, टूट जाती हूं… बिखर जाती हूं... फिर हिम्मत-हौसले से खुद को सम्भालती हूं. कभीतलाशती हूं तुम्हें बिस्तर की सलवटों में... लिहाफ की गर्माहट में... स्पर्श के एहसास में... अचानक तुम्हारा मौन मुखर हो उठता है... ‘पगली, मैं यहीं हूं, तेरे पास... तेरे साथ... जन्मजन्मांतर का साथ है हमारा...’ यह सुनकर बेचैन मन का समंदर शांत हो जाता है... औरआंखों के किनारों से चंद नमकीन बून्दें ढुलक जाती हैं… नींद कब अपनी आगोश में ले लेती है पता ही नहीं चलता. फिर सुबह वही यादोंका सफर शुरू हो जाता है. फिर वही चाय, वही ख़ुशबू और वही तुम्हारी यादों का जादू… सच बहुत खफा हूं तुमसे... ऐसे बिन कहे, बिनसुने अचानक कौन चला जाता हैं… शब्दों से न सही पर सिर्फ़ निगाहों से ही कम से कम कुछ कह कर तो जाते... सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी... बावली… डॉ. अनिता राठौर मंजरी
पिछले काफ़ी समय से अनुष्का और विराट को लेकर ये खबरें आ रही हैं कि कपल दोबारा पैरेंट बनने जा…
बात है तो पुरानी लेकिन पहले प्यार की महक मन में हमेशा बसी रहती है. गर्मियों की छुट्टियों में अपनी एक नज़दीकी रिश्तेदारी की शादीमें शरीक होने गया था. पहली शाम घर के आंगन में बैठ सभी लोग गपशप कर रहे थे कि तभी एक ख़ुशबू फैली… देखा एक ट्रे में पानी के ग्लास के साथ लहंगा-ओढ़नी पहने वह आई, सभी के आसपास होते हुए भी मैंने हिम्मत की और जैसे ही वो मेरे पास आई तो मैंने नज़रभर उसको निहारा… सांवला निश्छल रूप, लंबी लहराती एक चोटी और छोटी में मोगरा की वेली गुंधी हुई थी. जाने क्या हुआ पर पहली हीनज़र में मेरा मन जैसे महक उठा. समय बीता, फिर यूं ही बातचीत में पता चला कि वो हॉस्टल में रह कर पढ़ रही है. मैं भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त था. लेकिन रह-रहकरउसका ख़याल और मोगरे की ख़ुशबू मुझे तरोताज़ा कर जाती. ख़ैर, पढ़ाई पूरी हुई तो नौकरी लगी, पिता स्वर्गवासी हो चुके थे. बड़े भाई ने विवाह पर दबाव डाला, कुछ रिश्ते सुझाए, तो मैं चुप रहा. सबने पूछा कि क्या बात है? मैंने अपनी पसंद बताई, तो पता चला किसी स्थानीय स्कूल में अध्यापिका है. विवाह नहीं हुआ है., लेकिन मन में एक सवाल था कि क्या वो भी मेरे लिए ऐसा ही महसूस करती होगीजैसा मैं? कहीं शादी के लिए मना कर दिया तो? बड़े भैया का संपर्क काम आया और पता चला उसने शादी के लिए फ़ौरन हां कह दिया. सब जाकर मेरे जीवन में असली मोगरा महका और मेरा पहला प्यार मुकम्मल हुआ. शादी के बाद एक कमरे की गृहस्थी में मुझे डर था न जाने ये एडजस्ट कर पाएगी या नहीं. घर में प्रवेश करते ही मेरे भांजे के हाथ से तेलकी बोतल थी छूट गई और तेल फैल गया. कांच की बोतल भी टूट गई. दरवाज़े से भीतर तक तेल व कांच बिखरा पड़ा था. नई-नवेली दुल्हन, मेहंदी लगे हाथों से ही उसने जल्दी से झाडू मांगी, इस बीच जल्दी से अपने कपड़े बदले और सफ़ाई में जुट गई. सबउसकी तारीफ़ करने लगे. उसने मेरा घर ऐसे सम्भाला कि हम सोच भी नहीं सकते थे. कभी माथे पर कोई शिकन नहीं और ज़ुबान पर कोई शिकायत नहीं. उससे पूछा कि आते ही तुमको सब सम्भालना पड़ा, कितने सपनेहोंगे तुम्हारे, मैं ज़रूर पूरा करूंगा. उसने कहा कि मेरा एक ही सपना था और वो पूरा हो गया. आपका साथ ज़िंदगीभर के लिए मिला है और क्या चाहिए. उसकी बातों ने मेरे दिल में उसके लिए प्यार ही नहीं सम्मान भी बढ़ा दिया था. मैने यहां-वहां नज़र घुमाई, कहीं फूल न थे, पर जीवन मेंउस पल जो मोगरा महका, आज तक महक रहा है. किरन नाथ
बिग बॉस हाउस में सबसे ज़्यादा चर्चा अंकिता लोखंडे और विक्की जैन की ही होती है. दोनों को घर में…
सालों पहले जब हमारे एम. ए का विदाई समारोह था तब हम सभी सहपाठी बेहद भावुक और उदास थे, क्योंकि सभी एक-दूसरे सेबिछड़ने वाले थे कल, कौन कहां होगा? किसी को भी पता नहीं था. मंच पर मैंने ‘मेरे ख्वाबों में जो आए, आ के मुझे छेड़ जाए...’ गीतगाया था उसके बाद लड़कों ने ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम…’ गाने पर ग्रुप डांस किया था. विदाई समारोह समाप्त होते ही भीड़ में किसी ने चुपके से मुझे एक पर्ची पकड़ा दी थी और मैंने जल्दबाज़ी में वह पर्ची अपने पर्स में डालदी थी और उस पर्ची देनेवाले की शक्ल तक नहीं देख पाई थी और फिर भूल गई वह पर्ची. वह छोटी-सी पर्ची पर्स के कोने में पड़ी रहीऔर मुझे पता ही नहीं चला. एम. ए की परीक्षाओं के बाद कुछ महीनों ही बाद मेरी शादी हो गई और वह पर्स चला गया मेरी छोटी बहनके पास और मेरे पास आ गया नया पर्स. पुराना पर्स जब मेरे पास था, तब मैं हर पल एक बेचैनी-सी महसूस करती थी… लगता था जैसे कोई मुझे शिद्दत से याद कर रहा है, मुझसे कुछ कहना चाहता है… शादी के बाद भी मेरा वही हाल था. हर पल ऐसा महसूस होता था जैसे कोई मुझे दिल से याद कर रहा है, मेरी परवाह कर रहा है, मुझसे कुछ कहना चाह रहा है… ऐसा महसूस होता जैसे कोई मेरी रूह में बसा है और मैं उसे चाह कर भी अपने सेजुदा नहीं कर पा रही हूं. एक दिन छोटी बहन की चिट्ठी आई- दीदी, आपके पर्स में यह पर्ची मिली है. माफी चाहूंगी मैंने पढ़ ली है. आप पढ़ तो लेती. पता तो चलजाता आप पर मर मिटने वाला वह पर्चीवाला दीवाना कौन था? …तेरी हर अदा पर फिदा हूं, करीब होकर भी तुझसे जुदा हूं, बस तू महसूस कर मुझे, हर वक्त हर लम्हा तेरी रूह में बसा हूं...साथ हीदिल के आकार में लिखा था- तुझे देखा तो ये जाना सनम, प्यार होता है दीवाना सनम...पर्ची पढ़कर यह तो पता चल गया कि लड़कोंके ग्रुप डांस में से ही कोई होगा. उस पर्ची को दिल से लगाया और सच्चे दिल से दुआ की… …तू जहां भी हो, खुश और आबाद हो, बेहद शिद्दत से मैं भी हर वक्त और हर लम्हा तुझे महसूस करती हूं... और दोस्तों, आज भी मैं उसे महसूस कर रही हूं. जब अपने सहपाठियों से मुझे एल्यूमिनाई मीटिंग का निमंत्रण मिला तो फेसबुक कोदिल से सलाम किया, जिसकी वजह से आज यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है. आज मैं यहां वही विदाई समारोह वाला गाना- मेरेख्वाबों में जो आए आ के मुझे छेड़ जाए... गाऊंगी क्योंकि मुझे पूरा यकीन है वह पर्चीवाला यहां ज़रूर मौजूद होगा. गीत सुनाते वक्त मेरी नज़रें उसी पर्चीवाले को खोजती रहीं. गीत खत्म हो जाने के बाद संचालिका ने मुझे एक पर्ची थमाते हुए कहा, "संगीता, अपने बैच के सहपाठी संजीव ने दी है, जो इसी शहर में हैं. जब हम उसे निमंत्रित करने गए, तो उसने एक पर्ची देते हुए कहाहमारे बैच की संगीता इस कार्यक्रम में ज़रूर आएंगी और वही विदाई समारोह वाला गाना भी गाएंगी, आप उन्हें यह पर्ची दे देना. मैंअस्वस्थ होने की वजह से कार्यक्रम में शरीक नहीं हो पाऊंगा." उस पर्ची को मैंने अपनी मुट्ठी में ऐसे पकड़ लिया, जैसे मुझे कोई अनमोल ख़ज़ाना मिल गया हो. "इस वक्त संजीव कहां है?" "सिटी हॉस्पिटल में." बेतहाशा दौड़ पड़ी मैं हॉस्पिटल की ओर. रिसेप्शन पर संजीव का कमरा नंबर पता कर बदहवास-सी पहुंची तो वहां हंसता-मुस्कुराताज़िंदादिल संजीव सूखकर सिर्फ हड्डी का ढांचा मात्र रह गया था. उसे मैंने सिर्फ उसकी नीली आंखों से ही पहचाना, क्योंकि उसकी नीलीआंखों में वही सालों पुरानी कशिश और आकर्षण था, जिसकी वजह से क्लास की हर लड़की उस पर मिटती थी. "मुझे यकीन था संगीता, तुम ज़रूर आओगी.” फिर एकटक निहारते हुए बोला, "सच-सच बताना बीते सालों में तुमने मुझे कभी एक पलको भी महसूस किया ?” यह सुनकर रो पड़ी मैं और उसके सीने से लग सालों से जो महसूस करने का मौन सिलसिला था, वह पल भर में खत्म हो गया और साथही उसकी सांसों का सफर भी खत्म हो गया, जैसे ही डॉक्टर ने कहा "ही इज़ नो मोर" यह सुनकर बदहवास-सी चीख पड़ी मैं "संजीव, आई लव यू. हमारा पर्चीवाला इश्क हमेशा अमर रहेगा. तुम हमेशा मेरे साथ और पासरहोगे," कहते हुए मैंने उस पर्ची को अपने दिल से लगा लिया. डॉ. अनिता राठौर मंजरी --
राधिका ने मोबाइल चेक किया. देव का मैसेज था- आज तीन तारीख है, पेंशन लेने बैंक जा रहा हूं, समय हो तो तुम भी आ जाओ. पेंशन लेने के बाद पास ही के रेस्तरां में टमैटो सूप पीने चलेंगे. प्रेम की खुशबू से भीगे मैसेज में मुलाकात की चाह झलक रही थी. कभी-कभी कोई शख्स बिना किसी रिश्ते या नाम के जिन्दगी कोमुकम्मल बनाने की कोशिश करता है. दोस्ती में रूहानी चाहत जन्म ले लेती है. मैसेज देखकर राधिका का रोम-रोम खिल उठा. वहकिशोरी की तरह मुस्कुरा उठी. मिलने के लिए ये छोटे-छोटे पल उर्जा का काम करते थे. पिछले साल शिक्षक पद से रिटायर्ड हुई थी. रिटायर होने के बाद खालीपन कचोटने लगा. शाम काटने के उद्देश्य से कॉलोनी मे बने पार्कमें टहलने चली जाती थी. वहीं पर पहली बार देव को देखा था. ट्रैक सूट और सिर पर कैप में आकर्षक लग रहे थे. जाने क्यों मन खिंचनेलगा था. मैं अक्सर चोरी-छिपे उन्हें देख लेती थी. देव का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि नजर नहीं हटती थी. हालांकि दोस्ती और प्रेम की उम्रनहीं थी, फिर भी दिल तो बच्चा है और जिद्दी भी, मानता कैसे? उस दिन जाने क्या हुआ, देव उसी बेंच पर आ बैठे जिस पर अक्सर मैं बैठा करती थी. बेंच के आसपास अशोक के सूखे पत्ते बिखरे हुएथे, उन्हीं में से एक उठाकर मेरी ओर बढ़ाकर कहा, ‘आज मेरा जन्मदिन है, चाहो तो इसे देकर मुझे विश कर सकती हो.’ मैं देव के इस तरह के आग्रह पर अचकचा गई. ‘नजरें चुरा सकती हो, विश नहीं कर सकती?’ देव ने मेरी आंखों में झांका. उस दिन हम दोनों में दोस्ती हो गई. हम दोनों ढेर सारी बातें करने लगे. एक-दूसरे के सुख-दुख बांटने लगे. अकेलापन दूर होने लगा. हमदोनों के बच्चे विदेश रहते हैं. जीवनसाथी पहले ही साथ छोड़ गए. ऐसे में देव का मिलना मेरे सूने जीवन की नेमत था. बातचीत के सिरेपकड़ते-पकड़ते दोनों एक-दूसरे का दिल बांट चुके थे. मन का रीता कोना अब भीगने लगा था. एक दिन मैंने कहा- ‘देव, उम्र का आखिरी पड़ाव है, न जाने कब ज़िन्दगी की शाख कट जाए. मैं संशय में हूं कि इस उम्र में प्रेम करनाग़लत हो सकता है.’ ‘नहीं, प्रेम किसी भी उम्र में ग़लत नहीं होता. प्रेम तो खुद खुबसूरत शै है जिसमें हर व्यक्ति निखर जाता है. प्रेम को गलत-सही कीपरिभाषा से दूर रखना चाहिए. गलत है तो अपनी भावनाओं को रोकना और उन्हें शक की नजरों से देखना. मेरी एक बात मानोगी, जानेकब सांसें साथ छोड़ दें, क्यों न कुछ दिन इस तरह जी लें जैसे टीनएज में जीते थे. जीवन के उपापोह में जो न कर सके, अब कर लें…’ और उस दिन से सच में हम किशोर उम्र में उतर गए. चुपके-चुपके मैसेज करना, छिप-छिपकर मिलना, एक-दूसरे की पंसद का ख्याल रखना… छोटी-छोटी शरारतें कर एक-दूसरे कामनोरंजन करना… वो सब करते जो एक उम्र में करने से चूक गए थे. दोनों मंद-मंद मुस्कुराते. मैं देव की पंसद की कोई डिश बना लेती तो, वहीं देव कोई प्रेम गीत गुनगुना देते. नीरस जीवन में बहार आ गई थी. एक दिन देव साथ छोड़ गए और मैं अकेली रह गई. मैं उदास-सी खिड़की पर खड़ी होकर देव के साथ बिताए पलों को याद करती. देवमेरे जीवन के तुम वो झरोखा थे जो मेरे जीवन को महका गए. तुम मेरे स्वरों में अंकित हो, आज तुम्हारा जन्मदिन है. अशोक का यहपीला पत्ता उस दिन की याद दिला रहा है, जिस दिन हम दोनों के दिलों में चाहत का बीज पनपा था. जिस प्रेम को इस पत्ते ने संजोयाथा, वह आज भी लहलहा रहा है. मैं इस पौधे के साथ जल्द ही तुम्हारे पास आने वाली हूं… मेरे अंतस की पुकार में, तेरा अस्तित्व महफूज़ है… फिज़ा आज भी बहती है, बस मोगरे ने खुशबू बदल ली है… शोभा रानी गोयल