Sex without emotional intimacy may centre around at least one partner's commitment issues. But as Aruna Rathod finds out, more…
For those who can’t wait for the mush of Valentine’s Day, there’s more to making an impression than chocolates, flowers…
In today’s era of speed dating and hook-ups, the shelf life of relationships is diminishing and commitment is becoming a…
भले ही अब लैला-मजनू, शीरी-फरहाद और कच्चे घड़े पर माहिवाल से मिलने आने वाली सोहनी का ज़माना नहीं रहा, मगर प्यार-मुहब्बत अब भी है, दिल तो आज भी उसी तरह धड़कते हैं और महबूब का इंतजार भी वैसा ही है. मैं अपनी मां और तीन भाई-बहनोंके साथ रहती थी, सामने वाले घर में पहली मंजिल के एक कमरे में वो सलोना-सा किराएदार लड़का आया. कहीं नौकरी करता होगा. अक्सर ही यहां-वहां दिख जाता. कुछ अजीब-सी कशिश थी उसमें, बस आंखें मिलती ही थीं कि मेरी नजरें झुक जातीं. वो हल्का-सा मुस्करा कर निकल जाता. उसकी मुस्कान भी बड़ी मनमोहक थी. दिल तो दिल है और फिर उम्र भी ऐसी. जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी मैं इन इश्क-मुहब्बत की बातों से अपने आप को दूर ही रखती, लेकिन उसके सामने आते ही धड़कने इतनी तेज हो जाती कि सामने वाले को भी सुनाई दे जाएं. पिताजी दूसरे शहर में मुनीमगीरी करते थे, कभी-कभार ही आते. उन दिनों हालात और ट्रैफिक आज की तरह नहीं था. बच्चे गलियों में देररात तक खेला करते थे. एक दिन शाम का समय, अंधियारा-सा छा रहा था, बादल छाए हुए थे और ए दम से आंधी चलने लगी और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. मेरा छोटा दस वर्षीय भाई गली में खेल रहा था कि उसी समय किसी बच्चे की गेंद भाई की आंख पर जोरसे लगी और खून बहने लगा. भाई की चीख सुनकर सभी बाहर को भागे. डॉक्टर तक कैसे पहुंचें, हम सब के आंसू रुकने का नाम नहीं लेरहे थे. वो साईकलों का ज़माना था. वो लड़का फुर्ती से साईकल लाया और मैं भाई को लेकर पीछे कैरियर पर बैठ गई. इस जल्दबाज़ीमें मैं अपना दुपट्टा तक लेना भूल गई थी. मौसम की परवाह न करते हुए तेज़ी से साईकल चलाकर डॉक्टर तक पहुंच गए. शुक्र प्रभु काकि आखं बच गई. उसके बाद तो हम जैसे उसके कर्ज़दार ही हो गए. वो अक्सर हमारे घर आता, उसकी आंखों में मुहब्बत का पैगाम मैनें पढ़ लिया था, मगरहमारी और उसकी दुनिया में बहुत फासला था. उसके पहले खत के जवाब में ही मैंने लिख दिया- “मैं न साथ चल सकूंगी तेरे साथ दूरतलक, मुझे फ़कत अपनी ज़िंदगी में ‘किरदार’ ही रहने दे…” उसने भी मेरी मजबूरी समझी और बेहद सम्मान के साथ अपने प्यार की लाज रखने के लिए मुझसे दूरी बना ली. आज ज़िंदगी बढ़िया चल रही, मगर भाई की आंख के पास का निशान मुझे आज भी उस पहले अफेयर की याद दिलाता है. विमला गुगलानी
हॉलीवुड में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाली देसीगर्ल प्रियंका चोपड़ा पिछले कई दिनों से लगातार सुर्खियों में बनी हुई…
The best time to be a baby, is now… and how! A plethora of luxurious products and services coupled with…
Managing the relationship between your significant other and your best friend can be a major challenge if the two don’t…
पहली बार जब मिले थे तब राजी बीस बरस की जवान लड़की और बिंदा दुबला-पतला शर्मिला-सा किशोर. पंद्रह बरस की उम्र में भीवह बारह-तरह बरस का लगता. बिंदा राजी की मां की मुंहबोली बहन का बेटा था. दोनों एक ही शहर की रहने वाली थी. अक्सर अपनीमां के साथ बिंदा राजी के घर आता रहता था. दोनों की मांएं अपने शहर की गलियों की पुरानी बातों में खो जाती और बिंदा अपनी मांकी बातों की उंगली थाम कर थोड़ी देर तक तो अपरिचित गलियों में घूमता-फिरता रहता फिर उकता जाता. तब राजी उसके मन कीस्थिति समझ कर उसे पढ़ने को कहानियों की कोई किताब या कॉमिक्स देती और अपने पास बिठा लेती थी. बिंदा गर्दन झुकाए चुपचापकिताब में सिर घुसा कर बैठा रहता. उसे राजी के पास बैठना न जाने क्यों बहुत अच्छा लगता, क्यों लगता यह तक वह समझ नहीं पाताथा, लेकिन बस इतना ही उसे समझ आता कि राजी के आसपास रहना उसे अच्छा लगता है. एक खुशबू सी मन को मोहती रहती. वहबहुत कम बात करता. बस यदा-कदा गर्दन उठाकर पलभर कमरे में नजर फिराता हुआ राजी को भी देख लेता और फिर सिर नीचा करकेकिताब में खो जाता. फिर साल भर बाद बिंदा के पिता का तबादला दूसरे शहर हो गया और वह लखनऊ चला गया. जाने के पहले उसकी मां बिंदा को लेकरराजी की मां से मिलने आई. राजी की मां ने सामान लाने के लिए उसे पास की दुकानों तक भेजा. राजी अपनी काइनेटिक उठाकर बाजारजाने लगी तो बिंदा से बोली, "चल बिंदे तुझे भी घुमा लाऊं." और बिंदा कुछ सकुचाता हुआ उसके पीछे बैठ गया. गाड़ी जब चली तो राजी का दुपट्टा उड़ता हुआ बिंदा के कंधे और चेहरे को छूते हुएउसके मासूम मन को भी सहला गया. राजी की यही छवि बिंदा के मन पर छप गई तस्वीर बनकर. सालों बीत गए पर बिंदे के मन पर छपीऔरत की यह तस्वीर धुंधली नहीं हो पाई बल्कि उसके रंग और गहरे ही होते गए. उस रोज बिंदा राजी के साथ बाजार से घर लौटा तोउसके हाथ राजी की दी हुई चॉकलेट, बिस्किट, टॉफीओं की सौगात से भरे हुए थे और उसका दिल राजी के दुपट्टे की छुअन की सौगातसे. फिर तेरह साल बाद जब बिंदा राजी से मिला तब वह अट्ठाइस बरस का लंबा-चौड़ा, गोरा-चिट्टा जवान था जो फौज में भर्ती हो चुका थाऔर तैतीस बरस की राजी दो बच्चों की मां थी. राजी अपनी मां के ही घर थी जब बिंदा भरी दोपहरी में उसके दरवाजे पर आ खड़ा हुआ. "हाय रब्बा बिंदा तू...?" राजी बित्ता भर के बिंदे की जगह छह फुट ऊंचे फौजी मेजर बलविंदर को देखकर देखती रह गई. "क्या कद निकाला है रे तूने, वारी जाऊं. पता नहीं होता कि तू आने वाला है तो मैं तो कभी पहचान ही नहीं पाती तुझे." बिंदा मुस्कुरा दिया. उसकी आंखों मे राजी का तेरह बरस पुराना दुपट्टा लहरा गया. बिंदे ने देखा बरामदे में राजी की वही पुरानीकाइनेटिक अब भी खड़ी थी. थोड़ी देर सबसे बातें करने के बाद बिंदा अचानक उठ खड़ा हुआ. "चलो मुझे काइनेटिक पर घुमा लाओ." "चल हट बिंदे मजाक करता है? भला अब तू क्या बच्चा रह गया है? गाड़ी उठा और खुद ही घूम आ. रास्ते तो तेरे पहचाने हुए हैं ही." राजी को हंसी आ गई "फौज में तो तू बड़ी-बड़ी गाड़ियां चलाता होगा. भला अब मैं क्या तुझे अपने पीछे बिठाऊंगी." "पर मुझे तो तुम्हारे ही पीछे बैठना है. चलो न." बलविंदर ने बहुत जिद की तो राजी गाड़ी निकाल लायी. अब उसे चार पहियों वाली गाड़ी में आगे की सीट पर बैठने की आदत हो गईथी. वह डर रही थी कि पता नहीं चला भी पाएगी की नहीं काइनेटिक, लेकिन हिम्मत करके चला ही ली. बिंदा एक बार फिर उसके पीछेबैठा था. एक अनजानी खुशबू से महकता हुआ. आज बिंदे के गालों को फिर से राजी का नारंगी दुपट्टा सहला रहा था. वही दुपट्टा जोफौज की कठिन ट्रेनिंग के बीच जब तब उसे पिछले सालों में नरमाइ से सहलाता रहा है. जो रातों को खुशबू बन ख्वाबों में महकता रहा हैऔर जिसकी खुशबू के बारे में उसके सिवा कोई नहीं जानता, खुद राजी भी नहीं. वह चाहता भी नहीं कि कोई जाने. वह तो बस इसखुशबू में अकेले ही भीगना चाहता है और कुछ नहीं. बिंदे के मुंह पर आज वही किशोरों वाली झिझकी सी मासूम खुशी है और राजी के चेहरे पर वही बीस बरस की उम्र वाली लुनाई औरचमक थी. एक आजाद खुशी. जाने बिंदे ने राजी को उसका अल्हड़ और आजाद कुंवारापन एक बार फिर कुछ पलों के लिए लौटा दियाथा या राजी ने आज बिंदे के दोनों हाथ उसके मासूम किशोरपन की प्यार भरी सौगात से भर दिए थे… नहीं जानता था मेजर बलविंदर. जानना चाहता भी नहीं था. वह तो बस कुछ पलों के लिए राजी के आसपास रहना चाहता था. उसके दुपट्टे की छुवन को महसूस करनाचाहता था जो उसके दिल को छू जाती थी. न जाने क्यों. यह पहले प्यार का अहसास था या कुछ और, नहीं जानता था बलविंदर. जानना चाहता भी नहीं था.…
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A large number of modern day couples now prefer to sleep in separate beds, while living under the same roof.…
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