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जानें ‘कालीन भइया’ पंकज त्रिपाठी के जीवन से जुड़ी अनकही बातें: बिहार के गांव से मुम्बई तक काफी मुश्किल रहा एक्टर का सफर(Unknown And Interesting Facts About Pankaj Tripathi That Essay His Struggle Before Stardom)

‘गैंग ऑफ वासेपुर’, ‘मसान’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘लुकाछिपी’, ‘नील बटे सन्नाटा’, ‘न्यूटन’ जैसी फिल्में हों या वेबसीरीज़… ‘मिर्ज़ापुर’ के कालीन भइया का रोल हो, ‘सेक्रेड गेम्स’ के गुरू जी हों या वासेपुर के सुल्तान का, अगर फ्रेम में पंकज त्रिपाठी होते हैं, तो नज़र सिर्फ और सिर्फ उन पर होती है… एक्टिंग इतनी कमाल होती है उनकी कि लगता ही नहीं कि कोई काल्पनिक पात्र है, एक सच सा किरदार दिखाई देता है स्क्रीन पर, जिसके दीवाने मिडल एज ही नहीं, यंगस्टर्स भी हैं… यही कमाल है पंकज त्रिपाठी की एक्टिंग का… यही असर है उनके किरदारों का.

डॉक्टर बनते बनते एक्टर कैसे बन गए?

पंकज ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें एक्टर बनना है, न ही उनकी ऐसी कोई प्लानिंग थी. न ही आसपास कोई इंस्पीरेशन. उस वक़्त उनके गांव में न टीवी सेट थे और न ही सिनेमा हॉल मौजूद थे कि फिल्मों का प्रभाव हो. वो पढ़ाई करने के लिए पटना आए थे. माता-पिता चाहते थे कि वो डॉक्टर बनें, लेकिन पटना आकर वो एक छात्र संगठन से जुड़ गए. इस दौरान उन्हें एक छात्र आंदोलन के सिलसिले में जेल भी जाना पड़ा. एक दिन पटना में नाटक देखा तो उन्हें लगा कि काम तो दोनों (राजनीति और रंगमंच) ही हैं. पर झूठ का ये काम (रंगमंच) ज़्यादा सच्चाई से किया जाता है. तो वो नाटक करने लगे. फिर दिल्ली में ड्रामा स्कूल जॉइन कर लिया. लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि बतौर अभिनेता हिंदी रंगमंच में बिल्कुल पैसे नहीं हैं. तो वे मुम्बई आ गए. मुंबई में छोटे-छोटे, एक-एक सीन का दौर चालू हुआ. वो करते-करते आठ-दस साल गुज़र गए. फिर ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ आई और उसने उन्हें पहचान बनाई. उसके बाद उन्हें मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी. इसलिए तो पंकज कहते हैं, ‘हमें किसी ने ब्रेक नहीं दिया. हम एक-एक सीन टपकते टपकते इकट्ठा हो गए हैं.’

आसान नहीं था ये सफर

आज भले ही पंकज त्रिपाठी ने अपने अभिनय से कामयाबी हासिल कर ली हो, लेकिन ये सफर बहुत आसान भी नहीं रहा उनके लिए. बिहार के छोटे से गांव गोपालगंज में एक किसान के घर जन्में पंकज के लिए गोपालगंज से मुम्बई तक का सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा. आर्थिक तौर पर गरीब घर में जन्में पंकज ने अपनी गरीबी को कभी सपनों के आड़े नहीं आने दिया. जब एनएसडी से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद पंकज मुम्बई अपनी तकदीर आजमाने पहुंचे तो न उनके पास रहने के लिए घर था न कोई काम, बस खुद पर यकीन था और बेहद प्यार करने वाली पत्नी मृदुला थीं साथ.

पत्नी के पैसों से चलता था घर

पंकज जब पत्नी के साथ मुम्बई आये, तो रहने का कोई ठिकाना तो था नहीं, तो दो महीने तक एक दोस्त के घर रहे. फिर रेंट पर छोटा सा घर लेकर स्ट्रगल शुरू किया. पंकज बताते हैं,”ये तय करके मैं मुम्बई तो आ गया था कि एक्टर बनना है, पर ये भी पता था मुझे कि लड़ाई लंबी होगी. मैंने अपनी पत्नी को बीएड करा दिया था, ताकि कम से कम वो कहीं टीचर की नौकरी कर सकें और खर्च चलता रहे. तो यहां आकर हमने सबसे पहले उनके लिए नौकरी की तलाश शुरू की, पर नौकरी हमें घर से बहुत दूर नहीं चाहिए थी. तो मैंने मृदुला से कहा आसपास के सारे स्कूलों में एप्लीकेशन दे देते हैं. हमने गोरेगांव, मुम्बई के एक स्कूल में एप्लीकेशन दिया और अगले दिन उनको बुला लिया, इस तरह पत्नी को नौकरी मिल गई और जीवन थोड़ा आसान हो गया. इसलिए अगर आप मेरे संघर्ष के बारे में पूछेंगे तो मेरा ऐसा कोई ऐसा इतिहास नहीं है कि मैं फुटपाथ पर सोया या कई दिनों तक भूखा रहा. यह इसलिए संभव हो सका, क्योंकि मेरी पत्नी मृदुला ने घर की सारी जिम्मेदारियां उठा ली थीं. मैं तो सबसे यही कहता हूं कि वह घर की पुरुष हैं.’

बचपन में ही तय कर लिया था कि लव मैरिज करेंगे

पंकज जब दसवीं क्लास में थे तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि वे दहेज नहीं लेंगे और लव मैरिज करेंगे, क्योंकि उनके गांव में किसी ने भी लव मैरिज नहीं की थी. और उनकी लव मैरिज ही हुई. उनकी लव स्टोरी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.


उनकी पत्नी बताती हैं,” दरअसल पंकज की बहन की शादी मेरे भाई से हुई है. जब भाई का तिलक था, तब मैंने उन्हें पहली बार देखा था. पूरे फंक्शन में उनकी नजरें मुझ पर ही थीं. बाद में मुझे पता चला कि वह दुल्हन के छोटे भाई हैं. पहली ही नज़र में हम दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे थे. लेकिन उस समय स्मार्ट फोन्स तो थे नहीं. मैं कोलकाता रहती थी और पंकज पटना, तो हमारी बातचीत ही नहीं हो पाती थी. वो साल में दो बार दीदी से मिलने के बहाने आया करते थे, लेकिन मिलना मुझसे होता था. हम लोग अकसर लिटरेचर पर ढेर सारी बातें किया करते थे और कई बार बात करते-करते सुबह हो जाती थी. ये सिलसिला चलता रहा. मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और पंकज ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर लिया. इस बीच मेरी शादी तय हो गई. मेरे भैया और भाभी के साथ पंकज भी मेरे होने वाले दूल्हे के घर गए थे और लौटने पर उन्होंने मुझे बताया कि यह जोड़ी मेरे लिए अच्छी रहेगी. मटीरियलिस्टिक वर्ल्ड में तुम अच्छा जीवन जिओगी, लेकिन मेरे जैसा इंसान नहीं मिलेगा. मेरे लिए भी सबसे अहम थी ईमानदारी. पंकज की ईमानदारी मुझे हमेशा पसंद आई और आज भी मुझे बहुत अपील करती है. खैर हमने बड़े जतन से हमने वो शादी तुड़वाई और एनएसडी के थर्ड इयर में हमने सोचा कि शादी कर लेते हैं.”

मनोज बाजपेयी के हैं बहुत बडे फैन

जब पंकज पटना के होटल ‘मौर्या’ में किचन सुपरवाइज़र के तौर पर काम करते थे, तब मनोज बाजपेयी ने एक दिन के लिए उस होटल में स्टे किया था. तब पंकज होटल में नौकरी के साथ ही थिएटर भी करते थे. जैसे ही उन्हें पता चला मनोज होटल में रुके हुए हैं, तो वो तुरन्त उनसे मिलने गए, ”मैं उनके कमरे में ऑर्डर देने गया. हाथ मिलाया और बताया कि मैं भी थियेटर वगैरह करता हूं. जब वह होटल के कमरे से बाहर निकले तो मुझे किसी ने बताया कि मनोज ने अपनी चप्पल कमरे में ही छोड़ दी है. मैंने कहा कि इसे लॉस्ट एंड फाउंड पर वापस मत करो. मैं इसे आशीर्वाद और यादगार के रूप में अपने पास रखूंगा. अगर एकलव्य की तरह मैं इनकी खड़ाऊ में पैर डाल सकूं.”

गांव के घर में आज भी नहीं है टीवी

पंकज बिहार के गोपालगंज ज़िले के बेलसंड गांव के रहने वाले हैं. पिताजी किसान हैं और पंडिताई करते हैं. उनके दो भाई और दो बहनें हैं. उनके घर में किसी का कला के क्षेत्र से कुछ लेना-देना नहीं है. बिजली अभी कुछ साल पहले ही उनके गांव पहुंची है. उनके गांव के कुछ ही घरों में टीवी है. और उनके अपने घर में तो अब भी टीवी नहीं है, क्योंकि उनके माता-पिता को आज भी टीवी देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

आज भी हैं वही आम इंसान


उनकी पत्नी बताती हैं कि उन्हें नहीं पता था कि पंकज बहुत बड़े स्टार बनेंगे. ”मैंने ना कभी उम्मीद की थी, ना ही मेरी कोई इच्छा की थी. मैंने कामयाब होते हुए इंसान से शादी नहीं की थी. मैंने सिर्फ उस इंसान को चाहा, जो मुझे बहुत प्यार करता था. मेरी उतनी ही पूंजी है. मुझे अब भी महसूस नहीं होता है कि पंकज एक बहुत बड़े सेलेब्रिटी स्टार बन गए हैं. वे भले ही कितने भी बड़े बन गए हों, लेकिन मेरे लिए वह आज भी वैसे ही हैं, जैसे पहले थे. वो अभी भी बिना किसी तामझाम के बाहर जाते हैं. आज भी वह सब्जी खरीदने जा सकते हैं. वह बहुत सरल हैं. लेकिन जब लोग उन्हें वीआईपी ट्रीटमेंट देने लगता है, तो उन्हें इरिटेशन होती है. पैर छूना, हाथ मिलाना, सेल्फी लेना ये सब कुछ उन्हें अखरता है. वो अक्सर अपने प्रशंसकों से कहते हैं कि मैं भी तो तुम्हारी इंसान हूं.’

बच्चियों के साथ रेप सीन करना मंज़ूर नहीं था, इसलिए हॉलीवुड की फ़िल्म ठुकरा दिया

कुछ मामलों में पंकज बिल्कुल स्पष्ट हैं और कोई समझौता नहीं करते. इसी चक्कर में उन्होंने हॉलीवुड की फ़िल्म भी ठुकरा दी. दरअसल हॉलीवुड अभिनेत्री लूसी ल्यू 20 मिनट की एक फिल्म बना रही थीं और ये फ़िल्म पंकज को ऑफर की गई थी, ”लेकिन उसमें छोटी बच्चियों के साथ रेप सीन थे तो मैंने मना कर दिया. उन्होंने बताया कि ये फिल्म बाल वेश्यावृत्ति के ख़िलाफ़ है. लूसी भारत आई थीं तो मुझसे मिली थीं, लेकिन मैंने बोला मेरे से नहीं हो पाएगा. मेरी अपनी कुछ सीमाएं हैं. मैं कला के नाम पर कुछ भी नहीं कर सकता. वो सीन प्रोफेशनल कलाकारों के साथ नहीं बच्चियों के साथ करना था. उन पर क्या असर होता? मुझे ये क्रूरता लगी, जो मुझे पसंद नहीं, इसलिए मैंने साफ मना कर दिया.”

अब जबकि पंकज सक्सेसफुल एक्टर बन गए हैं और बहुत बिजी भी हो गए हैं तो उनकी पत्नी ने टीचर की जॉब छोड़ दी है और फिलहाल उनकी प्रोफेशनल मैनेजर बन गई हैं. पंकज की फिल्मों के प्रमोशन से लेकर उनका पूरा शेड्यूल बनाने तक, हर छोटा-बड़ा काम मृदुला खुद हैंडल करती हैं. उनकी एक 13 साल की बेटी है, जिसे अपने पेरेंट्स की तरह लिटरेचर पढ़ना पसंद है. कभी एक ही कमरे के मकान में रहने वाले पंकज त्रिपाठी ने पिछले साल ही मुंबई के एक पॉश इलाके में अपना ख्वाबों का आशियाना बनाया, जिसके गृहप्रवेश की तस्वीरें भी उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर की थीं.

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