मैंने सूरज को कैद किया था आंखों में, मैंने चांद उगाया था हथेली पर… स्याह रातें जब अंधेरा बिखेर रही थीं, मैंने उम्मीद का चिराग़ जलाया था अपनी पलकों पर… थककर रुक जाता, तो वहीं टूट जाता… रास्ता बदल देता, तो हर ख़्वाब पीछे छूट जाता… चलता रहा मैं कांटों पर भी, रुक न सका मैं उलझी हुई राहों पर भी… अपने पैरों की बेड़ियों को तोड़ दिया जब मैंने, सारी दुनिया ने कहा, हर नाउम्मीदी को बड़े जिगर से पीछे छोड़ दिया मैंने… लोग कहते थे लड़ना छोड़ दे, यही तेरी नियति है प्यारे… मैंने कहा, जो लड़ने से डर जाए, वो इंसान नहीं, जो नियति से हार जाए, वो संग्राम नहीं… क्या कोई सोच सकता है कि बचपन के आठ साल व्हील चेयर पर गुज़ारने के बाद कोई बंदा पहलवानी की दुनिया को अपने दम पर इस क़दर जीत सकता है कि आज बड़े अदब और सम्मान से उसका नाम लिया जाता है. उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पहलवान कहा जाता है… जी हां, हम बात कर रहें हैं रेसलर संग्राम सिंह (Wrestler Sangram Singh) की. क्या था उनका संघर्ष और कैसे लड़े वो अपनी नियति से, आइए उन्हीं से पूछते हैं…
आपको बचपन में आर्थराइटिस था लेकिन वहाँ से लेकर वर्ल्ड के बेस्ट रेस्लर बनने तक की जर्नी कैसी रही आपकी?
बचपन में मुझे रूमैटॉइड आर्थराइटिस हुआ था. जब मैं 3 साल का था, तो पैरों में दर्द हुआ और फिर पैरों में गांठ-सी बन गई. चूंकि मैं हरियाणा के रोहतक डिस्ट्रिक्ट के मदीना गांव से हूं, तो मेरे पैरेंट्स भी बहुत ही सिंपल हैं और उस समय इतनी जानकारी नहीं थी, सुविधाएं नहीं थीं और न ही इतने पैसे थे, सो मुझे कभी इस डॉक्टर को दिखाया, तो कभी किसी दूसरे को. इसी में इतना समय निकल गया कि जब बड़े हॉस्पिटल में डॉक्टर्स को दिखाया गया, तो उन्होंने सीधेतौर पर कह दिया कि यह बीमारी तो मेरी मौत के साथ ही ख़त्म होगी. लेकिन मेरी मां ने हिम्मत नहीं हारी और कुछ मेरी भी इच्छाशक्ति थी कि 8 साल तक व्हील चेयर पर रहने के बाद आज मैं रेसलर हूं.
दरसअल मेरे बड़े भाई स्टेट लेवल के रेसलर थे, तो मैंने भी टूर्नामेंट यानी दंगल के बारे में सुना कि उन्हें घी-दूध सब मिलता है, तो मैं उसके साथ दंगल देखने गया. दंगल देखकर मुझे न जाने क्यों यह महसूस हुआ कि काश मैं भी रेसलर बन सकता. फिर अपने दोस्त को कहा कि मुझे अखाड़े में लेकर चल. वहां गया, तो सब मुझे देखकर मेरा मज़ाक उड़ाने लगे. अखाड़े के उस्ताद ने भी मुझसे पूछा कि आप क्या करना चाहते हो, तो मैंने अपने मन की बात कही कि मैं भी रेसलर बनना चाहता हूं. मेरी बात सुनकर उन्होंने भी यही कहा कि अगर भी आप बन गए, तो सब बन जाएंगे… खंडहर देखकर इमारत का पता चल जाता है… इत्यादि बातें… न जाने क्या कुछ नहीं कहा उन्होंने मुझे.
लेकिन मेरी मां ने गिवअप नहीं किया और न मैंने हिम्मत हारी. आप सोच सकते हैं कि गांव में नेचर कॉल के लिए भी बाहर जाना पड़ता था, हमारे पास व्हील चेयर तक के पैसे नहीं होते थे… मैं सुबह उठ तो जाता था, आंखें खुल जाती थीं, लेकिन मेरी बॉडी मूव नहीं होती थी. 8 साल तक बिस्तर पर पड़े रहना आसान नहीं था, क्योंकि यह बीमारी मेरे शरीर में फैलती जा रही थी. हर जॉइंट में आ गई थी. यहां तक कि मैं अपना मुंह भी खोलता था, तो मुझे दर्द होता था. मैं हर रोज़ जीने की एक नई कोशिश करता था, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए संघर्ष करता था… मेरा यही मानना है कि यदि इंसान हिम्मत न हारे, तो नामुमकिन कुछ भी नहीं… मुझे प्रोफेशनल रेसलिंग में वर्ल्ड के बेस्ट रेसलर का टाइटल मिला, तो मैं यही कहूंगा कि जग जिस पर हंसता है, इतिहास वही रचता है.
यही वजह है कि अपने इस संघर्ष को मैं भूलता नहीं और मैं उन बच्चों की हर तरह से मदद करने की कोशिश करता हूं, जो इस बीमारी से पीड़ित हैं. उनकी पढ़ाई-लिखाई, रोज़ी-रोटी के लिए मुझसे जो बन पड़ता है, मैं ज़रूर करने की कोशिश करता हूं. दरअसल, हम स़िर्फ एक ज़रिया हैं, भगवान ही सब कुछ करता है.
आज की बिज़ी लाइफस्टाइल में फिटनेस कितनी महत्वपूर्ण है? और आप अपनी फ़िट्नेस के लिए क्या कुछ ख़ास करते हैं?
फिटनेस के लिए आप कहीं भी समझौता नहीं कर सकते और न करना चाहिए. ख़ासतौर से आज की बिज़ी लाइफस्टाइल में. यह एक ऐसा इंवेस्टमेंट है कि कोई भी मुझसे पूछे, तो यही कहूंगा कि अपने शरीर में इंवेस्ट करो रोज़ाना, चाहे एक घंटा, दो घंटा या जब भी, जितना भी टाइम मिले, आपको अपने शरीर में इंवेस्टमेंट करना चाहिए, क्योंकि शेयर मार्केट हो या आपका बिज़नेस हो, वो आपको धोखा दे सकता है, लेकिन यह शरीर धोखा नहीं देगा. मैं फिटनेस के लिए हर रोज़ 3 घंटे वर्कआउट करता ही हूं, चाहे कितना ही बिज़ी क्यों न होऊं. कोशिश करता हूं अलग-अलग चीज़ें करने की, जो मैं 15 साल की उम्र में नहीं कर पाता था, वो वर्कआउट मैं आज करता हूं. रेसलिंग भी करता हूं. युवाओं को मोटिवेशनल स्पीच भी देता हूं, टीवी शोज़ करता हूं, फिल्म भी कर रहा हूं. तो हर चीज़ बैलेंस करने की कोशिश करता हूं. 5-6 घंटे सोता हूं.
अपने डाइयट कि बारे में बताइए…
मैं प्योर वेजीटेरियन हूं. मेरा यही मानना है कि यदि ज़िंदगी में आपको सच में स्ट्रॉन्ग बनना है, आगे बढ़ना है, तो खाओ कम, काम ज़्यादा करो. एक और दिलचस्प बात ज़रूर करना चाहूंगा, हालांकि मैं किसी की बुराई नहीं करना चाहूंगा, लेकिन जैसे हम जिम में जाते हैं, तो ट्रेनर डरा देते हैं कि अरे, आपका वज़न इतना है, तो आपको तो इतने ग्राम प्रोटीन खाना है… आप 70 किलो के हैं, तो और ज़्यादा प्रोटीन खाओ… सब वहम की बातें हैं. आप ख़ुद अपने डायट का ध्यान रखो, हेल्दी खाओ. पानी पीओ. सूखी रोटी और प्याज़ में भी इतनी ताकत और विटामिन होते हैं, जितना किसी बड़े होटल के खाने में भी नहीं होंगे. हर रोज़ वर्कआउट करो, ख़ुश रहो. अच्छी हेल्थ का यही फॉर्मूला है कि खाना भूख से कम, पानी डबल, वर्कआउट ट्रिप्पल और हंसना चार गुना.
मैं सुबह दलिया खाता हूं. आंवला-एलोवीरा का जूस लेता हूं. अश्वगंधा, शहद, गुड़, दूध, रोटी, दाल-सब्ज़ी और घी. यह सभी चीज़ें संतुलित रूप से खाता हूं. आजकल एक मूवी के लिए वज़न कम कर रहा हूं. 20 किलो वज़न कम किया है, इसलिए संतुलन ज़रूरी है.
रेसलिंग को आज इंडिया में किस मुक़ाम पर देखते हैं?
रेसलिंग आज इंडिया में क्रिकेट बाद नंबर 2 स्पोर्ट है, जबकि क्रिकेट में तो प्रोफेशनलिज़्म बहुत पहले से था, लेकिन अब यह अन्य स्पोर्ट्स में भी आ रहा है. इसी तरह रेसलिंग भी आगे बढ़ रहा है, लोग भी काफ़ी जागरूक हुए हैं. सुविधाएं भी बढ़ी हैं. एक समय था, जब इतनी जागरूकता और फैसिलीटीज़ नहीं थीं, लेकिन अब वैसा नहीं है. हमें मेडल्स भी मिलते रहे हैं. जब किसी और स्पोर्ट्स में ऑलिंपिक्स या अन्य टूर्नामेंट में हमें मेडल्स नहीं मिल रहे थे, तब रेसलिंग ही थी, जहां हमें मेडल्स मिले. इसके बाद अब तो बहुत-से स्पार्ट्स हैं, जो आगे बढ़ रहे हैं. कुल मिलाकर रेसलिंग को आज बेहद सम्मान मिलने लगा है और यह आगे और बढ़ेगा.
आपने हाल ही में के डी जाधव चैंपियनशिप शुरुआत की उसके विषय में बताइए?
के डी जाधव जी जैसा कोई दूसरा नहीं हुआ देश में. वे बेहद सम्मानित हैं और उनका दर्जा बहुत ऊंचा है. वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने कुश्ती में हमें ओलिंपिक मेडल दिलाया था. मैं चाहता हूं कि लोग उनके बारे में और जानें, ताकि युवाओं को प्रेरणा मिले, इसलिए मैं दिल से चाहता था कि उनके लिए कुछ कर सकूं, तो यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन्हें.
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इंडियन रेसलर्स कितने प्रोफेशनल हैं अगर विदेशी प्लेयर्स से कम्पेयर करें तो…
हम काफ़ी प्रोफेशनल हैं और अब तो हम किसी भी तरह से विदेशी प्लेयर्स से पीछे नहीं हैं. चाहे टेकनीक हो या फिटनेस- हर स्तर पर हम उन्हें तगड़ा कॉम्पटीशन दे रहे हैं और भारतीय पहलवान तो अब दुनियाभर में नाम कमा रहे हैं, सारा जग उनका लोहा मान चुका है.
यहां सुविधाएं कैसी हैं? क्या बदलाव आने चाहिए?
सुविधाएं बहुत अच्छी हैं. प्रशासन की तरफ़ से भी बहुत गंभीरता से लिया जाता है हर चीज़ को, इसलिए पहले जो द़िक्क़तें हुआ करती थीं, वा अब नहीं हैं. बदलाव तो यही है कि हम और बेहतर करें, आगे बढ़ें. जो ग़रीब बच्चे हैं, जिनमें हुनर है, उन्हें ज़रूर बेहतर सुविधाएं दी जानी चाहिए, ताकि वे बेहतर स्पोर्ट्समैन बन सकें. अब तो महिलाएं भी ख़ूब नाम कमा रही हैं रेसलिंग में भी और अन्य खेलों में भी. तो बस, उन्हें बढ़ावा मिलना चाहिए. हम भी अपने स्तर पर प्रयास करते ही हैं.
आप मोटिवेशनल स्पीकर और स्पोर्ट्स सायकोलॉजिस्ट भी हैं, तो फैंस और आम लोगों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
मैं यही कहना चाहूंगा कि जीवन में कभी भी निराश मत होना. उम्मीद का दामन कभी मत छोड़ना. अपने प्रयास हमेशा जारी रखना. मंज़िल ज़रूर मिलेगी. मैं भी अगर अपनी कोशिशें छोड़ देता, मेरी मां भी थक-हरकर नाउम्मीद हो जाती, तो कभी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंचता. बाकी तो ऊपरवाले का साथ और चाहनेवालों की दुआएं तो हौसला देती ही हैं. फैंस ने मुझे काफ़ी प्यार दिया, मैं भी अपनी तरफ़ से जितना संभव हो सके, करने की कोशिश हमेशा करता रहा हूं और करता रहूंगा.
स्ट्रेस दूर करने के लिए क्या करते हैं?
स्ट्रेस को दूर करने का सबसे बेहतरीन ज़रिया है वर्कआउट. मैं दुखी होता हूं, तो वर्कआउट करता हूं, ख़ुश होता हूं, तो भी वर्कआउट करता हूं. स्ट्रेस को दूर करने का सिंपल सा उपाय है, यहां सब कुछ टेम्प्रेरी है. चाहे दुख हो, तकलीफ़ हो, स्ट्रेस हो… यहां तक कि ख़ुशियां भी टेम्प्रेरी ही हैं. तो जब सब कुछ टेम्प्रेरी है, तो यहां किस चीज़ के लिए दुखी होना, उदास होना. मैं स़िर्फ 500 लेकर मुंबई आया था और आज भगवान की दया से इतना कुछ कर रहा हूं, लेकिन मैं अगर आज भी वापस जाता हूं, तो भी बहुत ख़ुश रहूंगा, क्योंकि इतने लोगों का प्यार मिला, सब कुछ मिला, तो दुख किस बात का. मैं अब यहां हूं, तो ढेर सारे बच्चों की मदद का ज़रिया बन रहा हूं, क्योंकि मैं भी तो उस जगह से आया हूं, जहां रनिंग करते समय पैरों में जूते नहीं होते थे, बस का किराया नहीं होता था, 20 कि.मी. पैदल चलता था नंगे पैर. क्योंकि एक जोड़ा जूते-चप्पल होते थे, जो टूट जाते थे. आज मालिक का दिया हुआ सब है, तो किस बात की शिकायत और किस बात का स्ट्रेस. मैं तो आप सबसे भी यही कहूंगा कि जो नहीं है, उसका स्ट्रेस न लो, जो है, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद कहो और ख़ुश रहो.
आज की लाइफस्टाइल में कैसे पॉज़िटिव और फ़िट रहा जाए उसके लिए आपके स्पेशल टिप्स?
आज की लाइफस्टाइल में फिट और पॉज़िटिव रहने के लिए थोड़ा-सा अपनी लाइफ में डिसिप्लिन लाओ. शेड्यूल बनाओ, घर का खाना खाओ. फैमिली के साथ समय बिताओ. अपने पैरेंट्स के साथ, भाई-बहन, दोस्तों के साथ, पार्टनर के साथ हंसों, खेलो, शेयर करो. माता-पिता का आशीर्वाद लो. छोटी-सी ये ज़िंदगी है, पता नहीं कल क्या हो, कल किसने देखा और ज़िंदगी में किसी को भी कम मत आंको. कहते हैं न कि बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है. एक प्यारी-सी तितली को देखा है आपने कभी, कितनी रंग-बिरंगी, कितनी चमक होती है उसमें, जबकि उसकी ज़िंदगी बहुत छोटी होती है, फिर भी वो अपने रंगों से लोगों को आकर्षित करते ख़ुशियां देती है. तो हमें ज़िंदगी में किस बात का तनाव? हमें तो इतना कुछ मिला है, बस उसकी कद्र करने का हुनर आना चाहिए. हमेशा ख़ुश रहो, नए-नए अवसरों को क्रिएट करने का प्रयास करो. अगर आज नहीं हुआ, तो कल होगा, कल नहीं, तो परसों हो जाएगा… कहां जाएगा यार, सारी चीज़ें यहीं तो हैं. कई बार आख़िरी चाभी ताला खोल देती है. तो प्रयास जारी रखो.
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