माफ़ी मांगने से क्यों कतराते हैं पुरुष? (Why Do Guys Never Say Sorry?)

“आई एम सॉरी” आप जितनी आसानी से ये शब्द अपने पार्टनर को कह देती हैं, क्या वो भी उतनी ही सजहता से आपसे माफ़ी मांग लेते हैं? शायद नहीं. कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो आमतौर पर पुरुष अपनी ग़लती के लिए माफ़ी मांगना ख़ासकर पार्टनर से, अपनी तौहीन समझते हैं. उनके लिए ‘सॉरी’ शब्द बेहद मुश्किल होता है. आख़िर इसकी क्या वजह है? आइए, जानते हैं.

मेल ईगो
पुरुषों के माफ़ी मांगने से कतराने की सबसे बड़ी वजह है मेल ईगो यानी उनका अहंकार. इसी अहंकार की वजह से ये जानते हुए भी कि वो ग़लत हैं, पार्टनर से माफ़ी नहीं मांगतें. ऐसे लोगों के लिए उनका ग़ुरूर हमसफ़र की भावनाओं से ज़्यादा अहमियत रखता है. वो अपने पार्टनर का दिल तो दुखा सकते हैं लेकिन सॉरी बोलकर अपने मेल ईगो को हर्ट नहीं कर सकते. ज़्यादातर महिलाएं भी इस बात से सहमत हैं. एक मीडिया ग्रुप से जुड़ी मीनाक्षी कहती हैं “पुरुषों के माफ़ी न मांगने की एकमात्र वजह मेल ईगो ही है, उन्हें लगता है पत्नी से माफ़ी मांगने से उनका क़द छोटा हो जाएगा.” विशेषज्ञों की भी कुछ ऐसी ही राय है उनके मुताबिक “पुरुषों को लगता है माफ़ी मांगने से उनकी शान घट जाएगी.”

कमज़ोरी की निशानी
साइकोलॉजिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी के मुताबिक “पुरुष माफ़ी मांगने को कमज़ोरी की निशानी समझते हैं. उन्हें लगता है कि अगर वो पत्नी से माफ़ी मांगेगे तो वो उन्हें कमज़ोर समझने लगेगी, उसे लगेगा कि पति परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के क़ाबिल नहीं है.” इसलिए माफ़ी मांगकर वो ख़ुद को पार्टनर की नज़रों में गिराना नहीं चाहतें.

मैं ग़लत नहीं हो सकता
पुरुषों का अपनी ग़लती न मानने वाला रवैया भी उन्हें माफ़ी मांगने से रोकता है. दरअसल, माफ़ी मांगने से उनकी ग़लती साबित हो जाएगी और पुरुष ख़ासतौर से किसी महिला के सामने कभी ग़लत साबित होना नहीं चाहतें. डॉ. शेट्टी भी इस बात से सहमत हैं, उनका कहना है “पुरुषों को लगता है कि वो जो कर रहे हैं वही सही है और उन्हें किसी को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है.” एक प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप से जुड़ी शिवानी का कहना है कि “पढ़े-लिखे होने के बावजूद मेरे पति बहुत डॉमिनेटिंग हैं, अगर कभी उनसे कोई ग़लती हो जाए, तो सॉरी बोलना दो दूर की बात है, वो अपनी ग़लती मानते तक नहीं हैं.”

सॉरी बोलने की बजाय जताना
कुछ पुरुष सॉरी कहने की बजाय माफ़ी मांगने का दूसरा तरीक़ा अख़्तियार करते हैं, जैसे- पार्टनर को फूल, ज्वेलरी, चॉकलेट या कोई और गिफ़्ट देकर अपनी माफ़ी मांगने की भावना व्यक्त करते हैं. इतना ही नहीं, कई बार वो पार्टनर का ज़्यादा ख़्याल रखकर भी अपनी ये भावना ज़ाहिर करते हैं. दिलचस्प बात तो ये है कि महिलाओं को भी पुरुषों का बिना बोले माफ़ी मांगने का ये अंदाज़ पसंद आता है, बिना कहे ही वो उनकी भावनाओं को समझ जाती है.

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अस्वीकृति का डर
कुछ पुरुष पार्टनर द्वारा अस्वीकार किए जाने के डर से माफ़ी नहीं मांगते. उन्हें लगता है कि माफ़ी मांगने से कहीं कोई नकारात्मक स्थिति न उत्पन्न हो जाए, इसी डर से वो भावनाओं की उधेड़बुन में उलझे रहते हैं और तय नहीं कर पाते कि माफ़ी मांगू या नहीं? माफ़ी मांगने के बाद शायद हालात उनके पक्ष में न रहें. इसी डर से वो ये निश्चित नहीं कर पाते कि कब और कैसे पार्टनर को सॉरी कहें. डॉ. शेट्टी के मुताबिक “पुरुषों को इस बात का भी डर रहता है कि कहीं माफ़ी मांगने के बाद पत्नी उन्हें एक्सप्लॉइट न करे.”

सामना करने से बचना
कुछ पुरुषों के माफ़ी न मांगने की एक वजह उनकी पार्टनर भी होती है. कई बार महिलाएं पार्टनर के माफ़ी मांगने पर उन्हें माफ़ करने की बजाय सबक सिखाने के इरादे से बहस या लड़ाई-झगड़ा करने लगती है, ऐसे में पार्टनर अगली बार माफ़ी मांगने से पहले सौ बार सोचता है. उसे डर रहता है कि सॉरी बोलने पर फिर कहीं कोई बहस न शुरु हो जाए.

रूढ़ीवादी विचारधारा
साइकोलॉजिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी के मुताबिक “पुरुष अपने जिस ईगो या अहंकार की वजह से महिलाओं से माफ़ी मांगने से झिझकते हैं, उसकी एक वजह पुरुष प्रधान समाज वाली विधारधारा है. जिस वजह से उन्हें लगता है कि माफ़ी मांगना उनकी मर्यादा के ख़िलाफ़ है.” हालांकि अब हालात बदलने लगे हैं, बावजूद इसके कहीं न कहीं मेल डोमिनेटिंग वाली सोच उभर ही आती है. अगर लड़के परेशान या दुखी होकर रोते हैं, तो माता-पिता तुरंत कह देते हैं ‘क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो’, इस तरह कहने से उनके ज़ेहन में ये बात बैठ जाती है कि लड़कियां कमज़ोर होती हैं और किसी कमज़ोर से भला वो माफ़ी कैसे मांग सकते हैं.

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बदल रही है मानसिकता
वक़्त के साथ-साथ समाज और पुरुषों की मानसिकता में भी बदलाव आया है. आज के युवाओं को अपनी पार्टनर से माफ़ी मांगने में कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं होती. एक रिक्रूटमेंट एजेंसी चलाने वाले धीरज सिंह का कहना है “मैं तो हर छोटी ग़लती के लिए अपनी पत्नी से सॉरी बोल देता हूं, कभी-कभी तो वो मेरे सॉरी से ही परेशान हो जाती है. मुझे लगता है अगर आप अपने पार्टनर से प्यार करते हो, तो सॉरी बोलने में भला कैसी शर्म.” धीरज की ही तरह एक न्यूज़ एजेंसी से जुड़े शैलेंद्र को भी लगता है कि पार्टनर से बेझिझक सॉरी बोल देना चाहिए. कुछ ऐसी ही राय एक प्रतिष्ठित कंपनी में बतौर बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर काम कर रहे सुशील सिंह की भी है, लेकिन वो साथ ही ये भी मानते हैं कि सॉरी बोलने में कहीं न कहीं पुरुषों का मेल ईगो आड़े आता है.

Kamla Badoni

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