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10+ अस्थमा से जुड़े मिथकों की सच्चाई (10+ Asthma Myths Busted)

विश्‍वभर में तक़रीबन 30 करोड़ लोग अस्थमा यानी दमा पीड़ित हैं. भारत में इनकी संख्या लगभग 3 करोड़ है. अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में आम लोगों के मन में बहुत-सी ग़लतफहमियां हैं. जो लोग इन ग़लतफहमियों के चक्कर में फंस जाते हैं, वे दमा का सही तरी़के से इलाज़ नहीं कराते, जिसके कारण वे जीवनभर इस बीमारी से त्रस्त रहते हैं. हम आपको अस्थमा से जुड़े कुछ ऐसे ही मिथकों की सच्चाई बता रहे हैं.

मिथकः दमा का पता लगाना आसान होता है.
सचः कुछ केसेज़ में यह सच होता है, जैसे-अगर माता-पिता में से कोई एक अस्थमा पेशेंट हो तो बच्चे में इसके लक्षण दिखते ही इस बात का अंदाज़ा लग जाता है कि वो अस्थमा ग्रसित है, लेकिन बहुत-से केसेज़ में अस्थमा का पता लगाना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनके लक्षण अस्थमा से मिलते-जुलते हैं, इसलिए अस्थमा के संकेत मिलते ही डॉक्टर से जांच करवाकर बीमारी का पता कर लें.

मिथकः अस्थमा से ग्रसित लोगों को एक्सरसाइज़ नहीं करना चाहिए.
सचः यह तथ्य सही नहीं है. अन्य लोगों की तरह ही अस्थमा से ग्रसित व्यक्ति भी एक्सरसाइज़ कर सकता है. जी हां, कुछ बातों का ख़्याल रखकर दमा का मरीज़ भी कठिन से कठिन एक्सरसाइज़ कर सकता है. अस्थमा पीड़ित लोगों को खुली जगह या बिना एसी वाले कमरे में एक्सरसाइज़ करना चाहिए. इसके अलावा इस दौरान सांस फूलने से बचने के लिए एक्सरसाइज़ शुरू होने से पहले स्ट्रेचिंग व अंत में कूल डाउन एक्सरसाइज़ अवश्य करना चाहिए.

मिथकः बढ़ती उम्र के साथ अस्थमा अपनेआप ठीक हो जाता है.
सचः यह बात पूरी तरह ग़लत नहीं है. 10 वर्ष की आयु के बाद बहुत से बच्चों में दमा के लक्षण कम होने लगते हैं और उनकी स्थिति में सुधार आता है. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. 30 वर्ष का होने या धूम्रपान शुरू करने पर या अन्य कई कारणों से यह बीमारी लौट भी सकती है.

मिथकः अस्थमा पीड़ितों की आयु अपेक्षाकृत कम होती है.
सचः यह कथन पूरी तरह ग़लत है. अस्थमा से पीड़ित व्यक्तियों का जीवनकाल सामान्य लोगों के जितना ही होता है. अंतर स़िर्फ इतना ही है कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना होता है, ताकि बीमारी उभरे नहीं.

मिथकः अस्थमा जानलेवा बीमारी है.
सचः यह कथन आंशिक रूप से सत्य है. जब अस्थमा पीड़ित व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिज़न नहीं मिल पाता तो उसकी स्थिति खराब हो जाती है. इसके अलावा जो लोग सही तरी़के से दवा नहीं लेते या ज़रूरत से ज़्यादा दवाइयां लेते हैं, उनकी स्थिति भी कई बार बहुत नाज़ुक हो जाती है, इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि घरेलू उपायों की मदद से फेफड़ों को साफ़ रखा जाए, ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके.

मिथकः अस्थमा पीड़ितों को ड्राय क्लायमेट में रहना चाहिए.
सचः यह पूरी तरह सच नहीं है. चाहे आप कहीं भी चले जाएं, अस्थमा आपके साथ ही जाएगा. नई जगह जाने पर आपको थोड़े समय के लिए आराम ज़रूर मिल जाएगा, लेकिन धूल-मिट्टी तो हर जगह होती है. नई जगह शिफ्ट होने से अच्छा है कि अपने शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं, ताकि अस्थमा अटैक न आए.

मिथकः अस्थमा की दवाइयों का लंबे समय तक सेवन करने से वे काम करना बंद कर देती हैं.
सचः अगर दवाइयां सही समय पर और नियम से ली जाएं तो इनका असर कभी कम नहीं होता. सही नतीज़े पाने के लिए सही डोज़ लेना बहुत ज़रूरी है. माइल्ड अस्थमा अटैक आने पर इनहेलर से आराम पाया जा सकता है. अस्थमा के गंभीर केसेज़ में दवाइयां लेना ज़रूरी है ताकि श्‍वासग्रंथि में सूजन न हो. अस्थमा का अत्यधिक गंभीर केस होने पर ही दवा असर नहीं दिखाती, क्योंकि उस दौरान दवा से श्‍वासनली का सूजन कम नहीं होता. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि क्विक रिलीफ इनहेलर का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने या बहुत ज़्यादा दवाइयों का सेवन करने से भी इनका असर कम हो
जाता है.

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मिथकः अस्थमा की दवाओं में स्टेरायड होने की वजह से वो सुरक्षित नहीं होतीं.
सचः अस्थमा की दवाओं में स्टेरायड की बहुत कम मात्रा इस्तेमाल की जाती है. यह स्टेरायड बिलकुल भी नुक़सानदायक नहीं होती. इसकी मात्रा बस उतनी ही होती है, जितनी की त्वचा पर लगाए जाने वाले क्रीम में होती है.

मिथकः अगर मरीज़ अच्छा महसूस करता है तो इसका मतलब है कि उसका अस्थमा ठीक हो गया है.
सचः अगर मरीज़ में अस्थमा के लक्षण नहीं दिख रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका अस्थमा ठीक हो गया है.

मिथक : इनहेलर तभी लेना चाहिए, जब दमा बहुत बढ़ जाए.
सच: ऐसा नहीं है. फिलहाल इनहेलर दवा लेने का सबसे सुरक्षित तरीक़ा है. इनहेलर बहुत कम दवा शरीर में भेजता है. यह सामान्य तरी़के से 40 गुना तक कम दवा शरीर में भेजता है.

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मिथक : दमा रोगी सामान्य जीवन नहीं जी सकते.
सच: ऐसा नहीं है. सौरभ गांगुली व इयान बॉथम जैसे क्रिकेटर हों या फिर अमिताभ बच्चन जैसे फिल्मी सितारे, ये सभी अस्थमा से लड़ते हुए सामान्य लोगों से अधिक सक्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं. ध्यान रखें, दमा पूरी तरह ठीक नहीं होता, लेकिन इसे नियंत्रित रखा जा सकता है.

मिथक : गर्भवती महिलाओं को इनहेलर नहीं लेना चाहिए.
सचः यह सोच सही नहीं है. इनहेलर से बहुत कम मात्रा में दवा शरीर में जाती है इसलिए इससे गर्भस्थ शिशु को कोई नुकसान नहीं होता. हां, अगर गर्भवती महिला को दमा का अटैक आ जाए तो इससे शिशु को काफ़ी नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए गर्भावस्था की शुरुआत से ही डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए.

मिथक: दमा में सांस फूलती है.
सच: हर सांस फूलने की बीमारी दमा नहीं होती और न ही दमा में सांस फूलना ज़रूरी होता है. सांस फूलना इस बीमारी का एक लक्षण है, एकमात्र लक्षण नह

Shilpi Sharma

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