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मेटाबॉलिज़्म से जुड़े 8 मिथकों की सच्चाई (8 Metabolism Myths Busted)

मेटाबॉलिज़्म (Metabolism) वज़न कम (Weight Loss) करने की कोशिश में जुटे लोगों का पसंदीदा विषय है. इस पर अक्सर चर्चा होती है. यही वजह है कि मेटाबॉलिज़्म से जुड़े बहुत-सी मिथक हैं, जिन्हें दूर करना बहुत ज़रूरी है. Metabolism Myths क्या है मेटाबॉलिज़्म? जिस तरह गाड़ी चलाने के लिए तेल की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह हमारे शरीर को कार्य करने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत होती है. मेटाबॉलिज़्म हमारे द्वारा ग्रहण की गई कैलोरीज़ को ऊर्जा में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है. मिथकः पतले लोगों का मेटाबॉलिज़्म हाई होता है. यह पूरी तरह सही नहीं है. कुछ लोग चाहे कितना भी खाना खाएं, उनके शरीर पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बेशक उनका मेटाबॉलिज़्म सामान्य लोगों की तुलना में थोड़ा तेज़ होता है, लेकिन उतना भी नहीं, जितना हम सोचते हैं. वास्तव में मसल्स का मेटाबॉलिज़्म से गहरा संबंध है. जिन लोगों का मसल मास ज़्यादा होता है, उनका मेटाबॉलिज़्म ज़्यादा होता है, क्योंकि मसल्स ज़्यादा कैलोरीज़ बर्न करती हैं. अगर दो लोगों का वज़न समान है, तो जिस व्यक्ति का मसल मास अधिक होगा, वो ज़्यादा कैलोरीज़ बर्न करेगा. यही वजह है कि वेट लॉस प्रोग्राम के अंतर्गत वेट ट्रेनिंग करना बहुत ज़रूरी है. अध्ययनों से भी यह सिद्ध हुआ है कि मसल्स डेवलप होने पर जल्दी वज़न घटता है. ये भी पढ़ेंः जानिए वज़न कम न होने के 15+ कारण (Unable To Lose Weight, Know 15+ Reasons) मिथकः खाना मिस करने पर मेटाबॉलिज़्म कम हो जाता है. यह भी एक भ्रम है. लोगों को लगता है कि दो-तीन घंटे के अंतराल पर खाते रहने से मेटाबॉलिज़्म तेज़ होता है, लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार,  बार-बार खाने का मेटाबॉलिज़्म से कोई लेना-देना नहीं है. नियमित अंतराल पर खाते रहने से पेट भरा रहता है, जिससे आप खाने पर टूटते नहीं हैं और एक साथ ज़्यादा नहीं खाते, पर इससे मेटाबॉलिज़्म पर कोई फर्क नहीं पड़ता. खाने की फ्रीक्वेंसी से ज़्यादा उसकी मात्रा और गुणवत्ता ज़रूरी है. आप 2000 कैलोरीज़ युक्त खाना एक बार में खाएं या दिनभर थोड़ा-थोड़ा करके, उसका प्रभाव एक समान ही होगा. मिथकः मेटाबॉलिज़्म आनुवांशिक होता है. यह पूरी तरह सही नहीं है. मेटाबॉलिज़्म आनुवांशिक होता है, लेकिन आप उसे अपनी जीवनशैली से सुधार सकते हैं. वेट ट्रेनिंग की मदद से मसल्स बनाकर मेटाबॉलिज़्म को बढ़ाया जा सकता है. आपको बता दें कि फैट की तुलना में मसल्स दो गुना कैलोरीज़ बर्न करती हैं. इसके लिए हफ़्ते में दो बार वेट ट्रेनिंग पर्याप्त है. इसके अलावा हफ़्ते में चार दिन एरोबिक एक्सरसाइज़ करें. हाइकिंग, दौड़ना, रस्सी कूदना जैसे एक्सरसाइज़ करें, जिससे हृदय गति तेज़ हो. अलग-अलग प्रकार के एक्सरसाइज़ करना ज़रूरी है. एक ही तरह के एक्सरसाइज़ करने से शरीर को उसकी आदत पड़ जाती है, जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है. मिथकः उम्र के साथ मेटाबॉलिज़्म धीमा हो जाता है. यह आपके हाथ में है. अगर आप अपनी ओर से कोशिश करेंगे तो बढ़ती उम्र में भी मेटाबॉलिज़्म तेज़ रख सकते हैं. 20 और 30 के पायदान पर मसल मास को बनाए रखने से काफ़ी मदद मिलती है, क्योंकि 40 के बाद टेस्टोस्टेरॉन लेवल कम होने लगता है और यह हार्मोन मसल्स बनाने के लिए ज़रूरी है. विशेषज्ञों के अनुसार, वेट ट्रेनिंग के साथ-साथ हाई इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग (हिट) से मेटाबॉलिज़्म पर काफ़ी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हफ़्ते में दो से तीन दिन आधे घंटे हिट एक्सरसाइज़ करने से काफ़ी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मिथकः डायट की मदद से मेटाबॉलिज़्म बढ़ाया जा सकता है. इस दिशा में बहुत कम शोध हुए हैं, जो इस तथ्य की पुष्टि करें. कुछ खाद्य पदार्थ, जैसे- कैफीन, एप्पल साइडर विनेगर इत्यादि मेटाबॉलिज़्म बढ़ाते हैं, पर उनका प्रभाव बहुत कम समय के लिए होता है. मिथकः खाने के समय का मेटाबॉलिज़्म पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. कुछ लोगों को लगता है कि खाने का समय महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यह सोच ग़लत है. रात के समय कार्बोहाइड्रेट का सेवन करने से मेटाबॉलिक प्रॉब्लम्स हो सकते हैं, क्योंकि उस दौरान हमारा शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंट हो जाता है, जिससे शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है. ज़्यादा समय तक ब्लड शुगर लेवल अधिक रहने से वज़न बढ़ने व हृदय रोगों के चपेट में आने का ख़तरा बढ़ जाता है. प्रोटीन फूड्स लेने से भी कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता. फ़र्क स़िर्फ इतना है कि जहां हाई कार्ब युक्त फूड्स तुरंत ब्लड शुगर बढ़ा देते हैं और फैट में परिवर्तित हो जाते हैं, वहीं प्रोटीन फूड्स को लिवर कार्ब और फैट में बदल देता है. कहने का अर्थ यह है कि रात में ज़्यादा कैलोरीज़ चाहे वो कार्बोहाइड्रेट हो या प्रोटीन, फैट में ही परिवर्तित हो जाएगी, इसलिए रात में हल्का खाना खाएं. मिथकः इंटरमिडिएंट फास्टिंग से मेटाबॉलिज़्म बढ़ता है. इंटरमिडिएंट फास्टिंग एक नया शगूफा है, जिसके अनुसार यदि आप 24 घंटों में से 15 से 16 घंटे उपवास करते हैं तो वज़न कम होता है और मेटाबॉलिज़्म बढ़ता है, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है. इसके उलट इतने घंटों तक कुछ नहीं खाने से बाद में ओवरईटिंग या बिंजईटिंग की संभावना बढ़ जाती है. मिथकः मेटाबॉलिज़्म पर हमारा नियंत्रण नहीं होता. वज़न बढ़ने पर मेटाबॉलिज़्म को दोष देना आसान है. जबकि वास्तविकता यह है कि मेटाबॉलिज़्म को नियंत्रण में रखना आपके हाथ में है. जैसे हमने पहले ही बताया है कि मसल्स डेवलप करके आप अपना मेटाबॉलिज़्म बढ़ा सकते हैं. ये भी पढ़ेंः वज़न घटाने पर होनेवाले शारीरिक व मानसिक बदलाव (Changes In Body Because Of Weight Loss)

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