सच: ऐसा बिल्कुल नहीं है और आप ऐसा भूलकर भी मत करना, क्योंकि कोर्ट में उनके खोने का डर बना रहता है. सिविल प्रोसीज़र कोड, 1908 के अनुसार, कोर्ट में पेटीशन दाख़िल करते समय आपको उसके साथ एफीडेविट और ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स की सर्टीफाइड फोटोकॉपीज़ सबूत के तौर पर जमा करनी होती हैं. हां, सुनवाई के दौरान आपको ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स दिखाने पड़ते हैं, पर अगर उस समय भी आप ओरिजनल्स नहीं दिखा सकते, तो सर्टीफाइड फोटोकॉपीज़ भी दिखा सकते हैं. याद रखें, अटेस्टेशन किसी गैजेटेड ऑफिसर से ही करवाएं और अपनी सहूलियत के लिए हमेशा ओरिजनल्स की सर्टीफाइड फोटोकॉपीज़ के दो सेट बनाकर रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल कर सकें. ओरिजनल्स आप कभी किसी को न दें, अगर आप चाहें, तो अपने वकील को भी सर्टीफाइड कॉपीज़ दे सकते हैं. सेफ्टी के तौर पर ओरिजनल्स को हमेशा स्कैन करके कंप्यूटर में सेव करके रखें.
सच: द लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत सभी सिविल केसेज़ ‘टाइम बार्ड’ होते हैं यानी हर केस की एक तय समय सीमा होती है. किसी भी मामले को उस तय समय के भीतर ही कोर्ट में दाख़िल किया जा सकता है, वरना आप उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही का मौक़ा गंवा सकते हैं. मामले के अनुसार यह समय सीमा 3 महीने से लेकर 3 साल तक की हो सकती है. हालांकि कुछ मामलों में सहूलियत मिल जाती है, बशर्ते देरी की वजह कोर्ट को वाजिब लगे, जैसे- अगर कोई 16 साल का है, जिसे पेटीशन दाख़िल करना है और उसका कोई गार्जियन नहीं है, तो उसके केस की समय सीमा उसके 18 साल के होने के बाद से शुरू होगी.
सच: इस मिथ की हक़ीक़त को आप जितनी जल्दी समझ लें, आपके लिए उतना ही अच्छा होगा. जब आप किसी के लिए लोन के गारंटर बनते हैं, तो अगर किसी कारणवश वह लोन नहीं चुका पाता या उसकी मृत्यु हो जाती है, जिसके बाद बैंक के पास अपना पैसा वसूलने के लिए गारंटर एकमात्र ज़रिया बचता है, तो बैंक को पूरा अधिकार है कि वह बचे हुए लोन का पूरा अमाउंट आपसे वसूल कर सकता है. इतना ही नहीं, यह भविष्य में आपके लोन लेने की योग्यता को भी प्रभावित कर सकता है. इसलिए अगली बार लोन के लिए किसी के गारंटर बनने से पहले पूरी तरह से आश्वस्त हो जाएं कि वह पूरा लोन चुका पाएगा, तभी उसके गारंटर बनें.
सच: कंज़्यूमर कोर्ट में केस करने के लिए आपको वकील की ज़रूरत नहीं है, अगर आप अपने केस को ख़ुद पेश कर सकते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार आप ऐसा कर सकते हैं. दरअसल, वकील की लंबी-चा़ैडी फीस के बारे में सोचकर ही बहुत-से लोग कंज़्यूमर कोर्ट में जाने से कतराते हैं, क्योंकि कंज़्यूमर कोर्ट के छोटे-मोटे मामलों में मुआवज़ा बहुत ज़्यादा नहीं मिलता. ऐसे में वकील की फीस देना हर किसी को भारी पड़ता है. इसलिए अगर आपको भी किसी कंपनी ने कोई धोखा दिया है या आपको उनसेकोई शिकायत है, तो आप भी उसके ख़िलाफ़ कंज़्यूमर कोर्ट जा सकते हैं और आपको किसी वकील की भी ज़रूरत नहीं.
सच: ख़ानदानी प्रॉपर्टी पूरे परिवार की होती है, इसलिए किसी एक को कोई हक़ नहीं होता कि वह उसे अपनी मर्ज़ी से गिफ्ट कर सके. जब तक कि परिवार का एकलौता या आख़िरी सदस्य न हो, तब तक प्रॅापर्टी स़िर्फ बांटी जा सकती है, गिफ्ट नहीं की जा सकती. हां, अगर आपके अलावा आपके ख़ानदान में प्रॉपर्टी क्लेम करनेवाला दूसरा कोई नहीं है, तो आप प्रॉपर्टी को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक बेच या गिफ्ट कर सकते हैं. यह नियम हिंदू संयुक्त परिवार में रहनेवाले जॉइंट प्रॉपर्टीवालों के लिए है.
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सच: प्रतिनिधित्व के लिए दो डॉक्यूमेंट्स इस्तेमाल में लाए जाते हैं. एक लेटर ऑफ अथॉरिटी और दूसरा पावर ऑफ अटॉर्नी. लेटर ऑफ अथॉरिटी के ज़रिए बैंक से चेक बुक लेना, डॉक्यूमेंट्स जमा करना या लेना जैसे छोटे व आसान काम दिए जा सकते हैं, जबकि कॉम्प्लेक्स फाइनेंशियल मैटर्स, जैसे- प्रॉपर्टी बेचना, डॉक्यूमेंट्स व चेक साइन करने आदि बड़े व महत्वपूर्ण ट्रांज़ैक्शन्स के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल किया जाता है.
सच: यह सच नहीं है. ज़्यादातर लोग कोर्ट की लंबी कार्यवाही से बचने के लिए आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट यानी कोर्ट के बाहर ही मामले को निपटाना, को तवज्जो देते हैं. पर अगर आपको लगता है कि इस सेटलमेंट में आपके साथ धोखाधड़ी हुई है या आपके ऊपर दबाव डालकर ज़बर्दस्ती सेटलमेंट करवाया गया है, तो आप उसके ख़िलाफ़ कोर्ट में जा सकते हैं. कोर्ट एग्रीमेंट के नियम व शर्तों को देखकर अपना ़फैसला सुनाते हैं. इसके अलावा आर्बिट्रेशन (किसी और की मध्यस्थता) के ज़रिए सुलझाए गए मामले को भी लेकर आप कोर्ट जा सकते हैं. इसलिए इस ग़लतफ़हमी में बिल्कुल न रहें कि अगर कोर्ट के बाहर समझौता कर लिया है, तो उसके ख़िलाफ़ कोर्ट में नहीं जा सकते.
सच: जब भी आप सेकंड हैंड गाड़ी ख़रीदते हैं, तो स़िर्फ गाड़ी की कंडीशन पर ही नहीं, बल्कि पेपरवर्क पर भी पूरा ध्यान दें. वेहिकल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, रोड टैक्स रसीद के साथ-साथ वेहिकल इश्योरेंस भी अपने नाम पर ट्रांसफर करवा लें. अगर इंश्योरेंस पेपर पर आप नाम ट्रांसफर नहीं करवाते और गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है या गाड़ी चोरी हो जाती है, तो इंश्योरेंस कंपनी आपका क्लेम पास नहीं करेगी, क्योंकि पेपर्स पर आपका नाम नहीं है. इसलिए नियमानुसार गाड़ी ख़रीदने के 14 दिनों के भीतर ही इश्योरेंस पेपर्स पर अपना नाम ट्रांसफर करवा लेने में ही आपका फ़ायदा है.
सच: यह ख़ासतौर पर उनके लिए है, जो शेयर्स आदि में इंवेस्ट करते रहते हैं. अगर आपने वसीयत में लिख दिया है कि मेरे बाद मेरा सब कुछ मेरी पत्नी या बच्चों को मिलेगा, लेकिन शेयर्स के लिए किसी और को नामांकित (नॉमिनी) किया है, तो नियमानुसार आपके बाद आपके शेयर्स नॉमिनी को मिलेंगे ना कि क़ानूनी वारिस को. द कंपनीज़ एक्ट के सेक्शन 109ए के अनुसार, अकाउंट होल्डर के बाद उसके शेयर्स क़ानूनी तौर पर नॉमिनी को मिलेंगे.एक्सपर्ट्स के अनुसार भविष्य में किसी भी तरह की परेशानी से बचने के लिए नॉमिनी का ही नाम वसीयत में भी शेयर्स के लिए लिखें.
सच: डिजिटली साइन किए हुए ऑनलाइन वसीयत को हमारे देश में मान्यता नहीं मिलती. ऑनलाइन वसीयत का प्रिंटआउट लेकर आपको दो गवाहों की मौजूदगी में उसे साइन करना होता है. उसके बाद उन दोनों गवाहों को भी उस वसीयत को अटेस्ट करना पड़ता है, जिसके बिना वह वसीयत मान्य नहीं होती. हालांकि ज़रूरी नहीं फिर भी अगर आप चाहें, तो वसीयत को रजिस्टर करा सकते हैं. आजकल ऑनलाइन बहुत-सी वेबसाइट्स हैं, जैसे- ुुु.ट-थळश्रश्र और ुुु.ङशसरलूुीळींशी.लेा जिनकी मदद से कुछ अमाउंट देकर आप अपनी वसीयत बनवा सकते हैं, पर यह काफ़ी नहीं. उस वसीयत का प्रिंटआउट लेकर, साइन और अटेस्ट कराना बहुत ज़रूरी है. बॉक्स अगर ओरिजनल पेपर्स खो जाएं, तो डुप्लीकेट के लिए क्या करें?यहां हम जनरल प्रोसेस के बारे में बता रहे हैं, जो ज़्यादतर मामलों मेंे इस्तेमाल किया जाता है. – पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएं.- एक इंग्लिश और स्थानीय भाषा के न्यूज़पेपर में पब्लिक नोटिस जारी करें.- ओरिजनल इश्यूअर को डुप्लीकेट बनाने के लिए अप्लाई करें.- एफआईआर और प्रेस क्लिपिंग की कॉपी सबूत के तौर पर रखें.
आप जिन लोगों को अपनी प्रॉपर्टी देना चाहते हैं, उनके नाम साफ़-साफ़ लिखें. उनके निकनेम या आधे-अधूरे नाम न लिखें.- अगर आप किसी को कुछ ऐसा देना चाहते हैं, जिसकी रक़म लिखी जा सकती है, तो वह रक़म ज़रूर लिखें.- जिन चीज़ों के लिए रक़म लिखना मुमकिन नहीं, उनके लिए प्रॉपर्टी का सही-सही डिस्क्रिप्शन लिखें.- जो दो लोग वसीयत को अटेस्ट करेंगे, उनको या उनकी पत्नी को इस वसीयत से कोई फ़ायदा नहीं मिलना चाहिए यानी वसीयत ऐसे लोगों से अटेस्ट कराएं, जिन्हें उस वसीयत से कोई लाभ नहीं मिलनेवाला. – अपनी वसीयत के लिए एक एक्ज़ीक्यूटर अपॉइंट करें, जिसकी यह ज़िम्मेदारी होगी कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि सभी बातों का वैसा ही पालन किया गया, जैसा कि वसीयत में लिखा गया था.
– अनीता सिंह
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