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हर वर्किंग वुमन को पता होना चाहिए ये क़ानूनी अधिकार (Every Working Woman Must Know These Right)

  Working Woman Rights   आज शायद ही ऐसी कोई कंपनी, कारखाना, दफ़्तर या फिर दुकान हो, जहां महिलाएं काम न करती हों. आर्थिक मजबूरी कहें या आर्थिक आत्मनिर्भरता- महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, पर फिर भी सेक्सुअल हरासमेंट, कम सैलरी, मैटर्निटी लीव न देना या फिर देर रात तक काम करवाने जैसी कई द़िक्क़तों से महिलाओं को दो-चार होना पड़ता है. आपके साथ ऐसा न हो, इसलिए आपको भी पता होने चाहिए वर्किंग वुमन्स के ये अधिकार.

मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट में मिले अधिकार

मैटर्निटी एक्ट के बावजूद आज भी बहुत-सी महिलाएं डिलीवरी के बाद नौकरी पर वापस नहीं लौट पातीं. कारण डिलीवरी के बाद बच्चे की देखभाल के लिए क्रेच की सुविधा न होना है, जबकि द मैटर्निटी बेनीफिट अमेंडमेंट एक्ट 2017 में क्रेच की सुविधा पर ख़ास ज़ोर दिया गया है, ताकि महिलाएं नौकरी छोड़ने पर मजबूर न हों. पेशे से अध्यापिका विभिता अभिलाष ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि जब वो पहली बार मां बननेवाली थीं, तब डिलीवरी के मात्र एक महीने पहले उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी, क्योंकि उनके स्कूल ने उनके बच्चे के लिए क्रेच की कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई थी. विभिता की ही तरह बहुत-सी महिलाएं डिलीवरी से पहले ही नौकरी छोड़ देती हैं, ताकि बच्चे की देखभाल अच्छी तरह कर सकें. अगर ऐसा ही होता रहा, तो देश की आधी आबादी को आर्थिक आत्मनिर्भरता देने का सपना अधूरा ही रह जाएगा. वर्किंग वुमन होने के नाते आपको अपने मैटर्निटी बेनीफिट्स के बारे में पता होना चाहिए. -     आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में स्वीडन एक ऐसा देश है, जहां सबसे ज़्यादा मैटर्निटी लीव मिलती है. यह लीव 56 हफ़्ते की है यानी 12 महीने 3 हफ़्ते और 5 दिन. हमारे देश में भी महिलाओं को 26 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव मिलती है. आइए जानें, इस लीव से जुड़े सभी नियम-क़ायदे. -     हर उस कंपनी, फैक्टरी, प्लांटेशन, संस्थान या दुकान में जहां 10 या 10 से ज़्यादा लोग काम करते हैं, वहां की महिलाओं को मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट का फ़ायदा मिलेगा. -     अगर किसी महिला ने पिछले 12 महीनों में उस कंपनी या संस्थान में बतौर कर्मचारी 80 दिनों तक काम किया है, तो उसे मैटर्निटी लीव का फ़ायदा मिलेगा. इसका कैलकुलेशन आपकी डिलीवरी डेट के मुताबिक़ किया जाता है. आपकी डिलीवरी डेट से 12 महीने पहले तक का आपका रिकॉर्ड उस कंपनी में होना चाहिए. -     प्रेग्नेंसी के दौरान कोई भी कंपनी या संस्थान किसी भी महिला को नौकरी से निकाल नहीं सकता. अगर आपकी प्रेग्नेंसी की वजह से आप पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाया जा रहा है, तो तुरंत अपने नज़दीकी लेबर ऑफिस से संपर्क करें. लेबर ऑफिसर को मिलकर अपने मेडिकल सर्टिफिकेट और अपॉइंटमेंट लेटर की कॉपी दें. -     जहां पहले महिलाओं को डिलीवरी के 6 हफ़्ते पहले से छुट्टी मिल सकती थी, वहीं अब वो 8 हफ़्ते पहले मैटर्निटी लीव पर जा सकती हैं. -    हालांकि तीसरे बच्चे के लिए आपको स़िर्फ 12 हफ़्तों की लीव मिलेगी और प्रीनैटल लीव भी आप 6 हफ़्ते पहले से ही ले सकेंगी. -     अगर आप 3 साल से छोटे बच्चे को गोद ले रही हैं, तो भी आपको 12 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव मिलेगी. -     26 हफ़्ते की लीव के बाद अगर महिला वर्क फ्रॉम होम करना चाहती है, तो वह अपनी कंपनी से बात करके ऐसा कर सकती है. यहां आपका कॉन्ट्रैक्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. -     मैटर्निटी बेनीफिट एक्ट में यह भी अनिवार्य किया गया है कि अगर किसी कंपनी या संस्थान में 50 या 50 से अधिक कर्मचारी हैं, तो कंपनी को ऑफिस के नज़दीक ही क्रेच की सुविधा भी देनी होगी, जहां मां को 4 बार बच्चे को देखने जाने की सुविधा मिलेगी. -     बच्चे के 15 महीने होने तक मां को दूध पिलाने के लिए ऑफिस में 2 ब्रेक भी मिलेगा. -     अगर दुर्भाग्यवश किसी महिला का गर्भपात हो जाता है, तो उसे 6 हफ़्तों की लीव मिलेगी, जो उसके गर्भपातवाले दिन से शुरू होगी. -     अगर प्रेग्नेंसी के कारण या डिलीवरी के बाद महिला को कोई हेल्थ प्रॉब्लम हो जाती है या फिर उसकी प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है, तो उसे 1 महीने की छुट्टी मिलेगी. -     सरोगेट मदर्स और कमीशनिंग मदर्स (जो सरोगेसी करवा रही हैं) को भी 12 हफ़्तों की मैटर्निटी लीव का अधिकार मिला है. यह लीव उस दिन से शुरू होगी, जिस दिन उन्हें बच्चा सौंप दिया जाएगा. यह भी पढ़ेंविमेन सेफ्टीः ख़ुद करें अपनी सुरक्षा (Women Safety: Top Safety Tips Which She Needs To Follow)

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वर्कप्लेस पर सेक्सुअल हरासमेंट से सुरक्षा

इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा किए गए सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन ऐट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के बावजूद आज भी सेक्सुअल हरासमेंट हर इंडस्ट्री, हर सेक्टर में जारी है. सर्वे में यह बात सामने आई कि आज भी 38% महिलाएं इसका शिकार होती हैं, जिसमें सबसे ज़्यादा चौंकानेवाली बात यह है कि उनमें से 89.9% महिलाओं ने कभी इसकी शिकायत ही नहीं की. कहीं डर, कहीं संकोच, तो कहीं आत्मविश्‍वास की कमी के कारण वो अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ीं, लेकिन आप अपने साथ ऐसा न होने दें. अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें और जानें अपने अधिकार. -     किसी भी कंपनी/संस्थान में अगर 10 या 10 से ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं, तो उनके लिए इंटरनल कंप्लेंट कमिटी (आईसीसी) बनाना अनिवार्य है. -     चाहे आप पार्ट टाइम, फुल टाइम या बतौर इंटर्न ही क्यों न किसी कंपनी या संस्थान में कार्यरत हैं, आपको सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन ऐट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के तहत सुरक्षित माहौल मिलना आपका अधिकार है. -    स़िर्फ कंपनी या ऑफिस ही नहीं, बल्कि किसी ग़ैरसरकारी संस्थान, फर्म या घर/आवास में भी काम करनेवाली महिलाओं को इस एक्ट के तहत सुरक्षा का अधिकार मिला है यानी आप कहीं भी काम करती हों, कुछ भी काम करती हों, कोई आपका शारीरिक शोषण नहीं कर सकता. -     अगर आपको लगता है कि कोई शब्दों के ज़रिए या सांकेतिक भाषा में आपसे सेक्सुअल फेवर की मांग कर रहा है, तो आप उसकी लिखित शिकायत ऑफिस की आईसीसी में तुरंत करें. -     हालांकि आपको पूरा अधिकार है कि आप घटना के 3 महीने के भीतर कभी भी शिकायत दर्ज कर सकती हैं, पर जितनी जल्दी शिकायत करेंगी, उतना ही अच्छा है. -     सरकारी नौकरी करनेवाली महिलाएं जांच के दौरान अगर ऑफिस नहीं जाना चाहतीं, तो उन्हें पूरा अधिकार है कि वे तीन महीने की पेड लीव ले सकती हैं. यह छुट्टी उन्हें सालाना मिलनेवाली छुट्टी से अलग होगी. -     आप अपने एंप्लॉयर से कहकर कंपनी के किसी और ब्रांच में अपना या उस व्यक्ति का ट्रांसफर करा सकती हैं. यह भी पढ़ें: महिलाएं जानें अपने अधिकार (Every Woman Should Know These Rights)

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समान वेतन का अधिकार

ऐसा क्यों होता है कि एक ही ऑफिस में एक ही पद पर काम करनेवाले महिला-पुरुष कर्मचारियों को वेतन के मामले में अलग-अलग नज़रिए से देखा जाता है? महिलाओं को ख़ुद को साबित करने के लिए दुगुनी मेहनत करनी पड़ती है, पर बावजूद इसके जब उन्हें प्रमोशन मिलता है, तो वही पुरुष कलीग महिला के चरित्र पर उंगली उठाने से बाज़ नहीं आते. पुरुषों को प्रमोशन मिले, तो उनकी मेहनत और महिलाओं को मिले, तो महिला होने का फ़ायदा, कैसी विचित्र मानसिकता है हमारे समाज की. -     ऐसा नहीं है कि यह स़िर्फ हमारे देश की समस्या है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं यानी दुनिया के दूसरे देशों में भी वेतन के मामले में लिंग के आधार पर पक्षपात किया जाता है. -     हाल ही में चीन की एक इंटरनेशनल मीडिया हाउस की एडिटर ने स़िर्फ इसलिए अपनी नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उनके ही स्तर के पुरुष कर्मचारी को उनसे अधिक वेतन दिया जा रहा था. -     यह ऐसा एक मामला नहीं है, समय-समय पर आपको ऐसी कई ख़बरें देखने-सुनने को मिलती रहती हैं, जब ‘इक्वल पे फॉर इक्वल वर्क’ बस मज़ाक बनकर रह जाता है. -     हमारे देश में भी पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन के लिए ‘इक्वल पे फॉर इक्वल वर्क’ का अधिकार है, जो इक्वल रेम्यूनरेशन एक्ट, 1976 में दिया गया है. -     एक्ट के मुताबिक़, अगर महिला और पुरुष एक जैसा काम कर रहे हैं, तो एम्प्लॉयर को उन्हें समान वेतन देना होगा. -     नौकरी पर रखते समय भी एम्प्लॉयर महिला और पुरुष में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता. -     दरअसल, बहुत से एम्प्लॉयर जानबूझकर पुरुषों को नौकरी देते हैं, ताकि उन्हें मैटर्निटी लीव न देनी पड़े. -     हालांकि इसके लिए कई महिलाओं ने लड़ाई लड़ी और जीती भी हैं. अगर आपको भी लगता है, आपके ऑफिस में आप ही के समान काम करनेवाले पुरुष को आपसे अधिक तनख़्वाह मिल रही है, तो आप भी अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठा सकती हैं. -     पहले ऑफिस में मामला सुलझाने की कोशिश करें, अगर ऐसा न हो, तो कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने से हिचकिचाएं नहीं.

काम की अवधि/समय

-     फैक्टरीज़ एक्ट के मुताबिक़ किसी भी फैक्टरी में रात 7 बजे से सुबह 6 बजे तक महिलाओं का काम करना वर्जित है. लेकिन कमर्शियल संस्थान, जैसे- आईटी कंपनीज़, होटेल्स, मीडिया हाउस आदि के लिए इसमें छूट मिली है, जिसे रात 10 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया है. -     किसी भी महिला के लिए वर्किंग आवर्स 9 घंटे से ज़्यादा नहीं हो सकते यानी हफ़्ते में 48 घंटे से ज़्यादा आपसे काम नहीं कराया जा सकता. अगर इससे ज़्यादा काम आपको दिया जा रहा है, तो आपको ओवरटाइम के हिसाब से पैसे मिलने चाहिए. -     किसी भी महिला कर्मचारी से महीने में 15 दिन से ज़्यादा नाइट शिफ्ट नहीं कराई जा सकती. -     रात 8.30 बजे से सुबह 6 बजे तक महिला कर्मचारी को कंपनी की तरफ़ से ट्रांसपोर्ट आदि की सुविधा मिलनी चाहिए. -     साप्ताहिक छुट्टी के अलावा कुछ सालाना छुट्टियां भी मिलेंगी, जिन्हें आप अपनी सहूलियत के अनुसार ले सकती हैं. -     अगर कोई कंपनी रात में देर तक महिला कर्मचारियों से काम करवाना चाहती है, तो उन्हें सिक्योरिटी से लेकर तमाम सुविधाएं देनी पड़ेंगी.

कुछ और अधिकार

-     सभी महिलाओं को वर्कप्लेस पर साफ़-सुथरा माहौल, पीने का साफ़ पानी, सही वेंटिलेशन, लाइटिंग की सुविधा सही तरी़के  से मिलनी चाहिए. -     अगर कोई महिला ओवरटाइम करती है, तो उसे उतने घंटों की दुगुनी सैलेरी मिलेगी. -     जॉब जॉइन करने से पहले आपको अपॉइंटमेंट लेटर मिलना चाहिए, जिसमें सभी नियम-शर्ते, सैलेरी शीट सब  साफ़-साफ़ लिखे हों. -     किसी भी महिला कर्मचारी को ग्रैच्युटी और प्रॉविडेंट फंड की सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता. -     एम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट के तहत सभी कर्मचारियों के हेल्थ को कवर किया जाता है. ईएसआई के अलावा कंपनी सभी कर्मचारियों का हेल्थ इंश्योरेंस भी करवाती है, ताकि किसी मेडिकल इमर्जेंसी में उन्हें आर्थिक मदद मिल सके.

- अनीता सिंह

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