यह ज़रूरी नहीं कि एब्यूज़ यानी शोषण स़िर्फ शारीरिक ही होता है. यह कई स्तर पर हो सकता है, मौखिक, भावनात्मक, मानसिक, आर्थिक आदि. यदि आपको यह महसूस हो रहा है कि रिश्ते में आपका शोषण हो रहा है, पार्टनर या कोई भी आपको भावनात्मक स्तर पर सपोर्ट नहीं कर रहा, मानसिक यातनाएं दी जा रही हैं, बेवजह गाली-गलौज की जा रही है या आर्थिक स्तर पर परेशान किया जा रहा है, तो बर्दाश्त करने से बेहतर होगा बात करें. अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाएं और सामनेवाले को समझाएं कि वो जाने-अंजाने ग़लत कर रहा है.
डोमेस्टिक वॉयलेंस वैसे भी अपराध है, फिर भी महिलाएं रिश्ते को बचाए रखने के लिए इसे बर्दाश्त करती हैं. लोगों से इसे छिपाती भी हैं, लेकिन एक स्तर पर जाकर यह सामनेवाली की आदत हो जाती है कि हर छोटी-बड़ी बात पर वो आप पर हाथ उठाना अपना हक़ समझने लगता है. बेहतर होगा देर होने से पहले सतर्क और सजग हो जाएं. हिंसा की किसी भी रिश्ते में कोई जगह नहीं है. यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है, क्योंकि कई पुरुष भी रिश्ते में हिंसा व प्रताड़ना के शिकार होते हैं, उन्हें भी यह डर लगता है कि समाज उनकी बात पर भरोसा नहीं करेगा, लेकिन बेहतर होगा आप भी अपने हक़ के लिए लड़ें और ग़लत बातों को बर्दाश्त न करें.
आपसे उम्मीद की जाती है कि आप अपने पार्टनर को इज़्ज़त दें, लेकिन बदले में आपको सम्मान व समान दर्जा नहीं मिलता, तो तकलीफ़ होना लाज़िमी है. हो सकता है, अंजाने में ऐसा हो रहा हो, तो सही रास्ता यही है कि अपने पार्टनर से इस बारे में बात करें, ताकि वो आपके पक्ष को समझ सके और आपको कैज़ुअली न ले. लोगों व रिश्तेदारों के सामने उल्टा-सीधा न कहे. आपको सम्मान व समान दर्जा दे.
भले ही यह छोटी-सी बात लग रही हो, लेकिन इसके परिणाम रिश्ते के लिए भी गंभीर हो सकते हैं. यदि एक पार्टनर भी ग़ैरज़िम्मेदार है, तो इसकी सज़ा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ती है. ग़ैरज़िम्मेदाराना व्यवहार हर जगह तकलीफ़ देता है और दूसरों का वर्कलोड भी बढ़ा देता है. धीरे-धीरे दूसरे पार्टनर को इस व्यवहार से खीझ होने लगती है और रिश्तों में दूरियां आने लगती हैं. कोशिश करें अपने पार्टनर को समझाने की. बेहतर होगा काम व ज़िम्मेदारियां बांट लें, ताकि वो टाल न सके. बीच-बीच में ड्यूटीज़ बदल लें, जिससे बोरियत भी न हो.
आपकी बातों को तवज्जो न देना, महत्वपूर्ण निर्णयों में आपकी राय ही न लेना, आपके कुछ भी कहने पर बात को इग्नोर कर देना या यह कह देना कि तुमको क्या पता इस बारे में… यदि आप यह शुरू से ही बर्दाश्त करते आ रहे हैं, तो संभल जाइए, क्योंकि आगे चलकर आपको अपना अस्तित्व ही रिश्ते में महत्वहीन लगने लगेगा. आपको पार्टनर से बात करनी होगी कि आप इग्नोर्ड फील करते/करती हैं. न स़िर्फ बातें, बल्कि आपकी प्रेज़ेंस को भी यदि इग्नोर किया जाता है, आपको समय नहीं दिया जाता, आपके सुख-दुख के बारे में जानने की कोई ज़रूरत नहीं समझता, तो बर्दाश्त करने की बजाय बात करें.
यह ज़बर्दस्ती किसी भी मामले में हो सकती है और अगर यह सेक्स में है, तब तो आपको और भी सतर्क हो जाना चाहिए. रिश्ते में दोनों की भावनाओं और इच्छाओं का सम्मान बेहद ज़रूरी है. यदि आप अपने पार्टनर का सम्मान करते हैं, तो पार्टनर से भी उम्मीद करते होंगे, वो भी उतना ही सम्मान आपको दे. लेकिन जब ऐसा नहीं होता और एक ही पार्टनर हमेशा अपनी इच्छाएं थोपता चला जाता है, तो यह ज़बर्दस्ती घुटन पैदा करती है. घुटने से बेहतर है कम्यूनिकेट करें.
सेक्स हर शादी का अहम् अंग होता है, लेकिन कुछ पुरुष अपने पार्टनर पर अननेचुरल सेक्स के लिए दबाव डालते हैं. दरअसल, वो पोर्न फिल्मों को अपना आदर्श मानते हैं और अपने पार्टनर से उसी तरह के प्रदर्शन की चाह रखते हैं. भारत में एनल सेक्स और ओरल सेक्स ग़ैरक़ानूनी है और अगर आपका पार्टनर कंफर्टेबल नहीं है, तो उस पर दबाव न डालना ही बेहतर होगा. सेक्स में दोनों का सहज रहना ज़रूरी है. यदि कोई समस्या है, तो विशेषज्ञ की राय ली जा सकती है, आप काउंसलर के पास भी जाकर अपनी सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने के तरी़के जान सकते हैं.
कई महिलाओं की आदत होती है कि वो अपनी बात मनवाने के लिए इमोशनल ब्लैक मेलिंग का सहारा लेती हैं. वो या तो बच्चों को हथियार बनाती हैं या फिर सेक्स के समय पति पर दबाव डालती हैं. पति न माने, तो सेक्स से मना कर देती हैं. इस तरह की बातें आपको थोड़े समय के लिए भले ही फ़ायदा पहुंचाती हों, पर आगे चलकर आपके रिश्ते को कमज़ोर बनाती हैं.
अक्सर ऐसा होता है कि हम अपने पार्टनर पर भरोसा न करके कई बार दूसरों पर ज़्यादा भरोसा करते हैं. उनसे सलाह-मशविरा लेते हैं और अपने सीक्रेट्स और पर्सनल बातें भी उनसे शेयर कर लेते हैं. जबकि कई बार दूसरे भी बेवजह अपनी राय देने चले आते हैं. बेहतर होगा कि अपनी निजी बातों को निजी ही रहने दिया जाए. दूसरों का हस्तक्षेप कई बार परिस्थितियों को और भी जटिल कर देता है. अगर कोई समस्या है या आपसी मतभेद है, तो ख़ुद ही आगे बढ़कर पार्टनर से बात करें, न कि किसी अन्य व्यक्ति के पास अपनी समस्या लेकर जाएं.
रिश्ते का दूसरा नाम ही लॉयल्टी है. ऐसे में बेईमानी बर्दाश्त कैसे की जा सकती है. हां, कभी कोई भूल हो जाए या इंसान भटक जाए, तो माफ़ कर देना ही एकमात्र रास्ता होता है, लेकिन यदि कोई आपके भरोसे का नाजायज़ फ़ायदा उठाता रहे और आप आंखें मूंद लें यह सोचकर कि रिश्ता टूट जाएगा, तो यह ख़ुद के साथ बेईमानी होगी. बेहतर होगा किसी निर्णय पर पहुंचे. बात करें, समस्या का हल निकालें, लेकिन ख़ुद को न ठगें. वरना पार्टनर आपको हल्के में लेगा. उसकी यह सोच बन जाएगी कि मैं चाहे जो भी करूं, उसे बर्दाश्त कर लिया जाएगा, क्योंकि मेरे बिना उसका गुज़ारा नहीं हो सकेगा. बेहतर होगा, पार्टनर के इस भ्रम को तोड़ें और ख़ुद को भी भ्रमित होने से रोकें. इसी तरह से शक्की पार्टनर के साथ रहना भी बेहद तकलीफ़देह होता है. हर बात पर शक, टोका-टाकी करना रिश्ते में चिड़चिड़ापन पैदा कर देता है. शक करने से बेहतर है कि अपने मन के वहम को बात करके दूर कर लें.
– विजयलक्ष्मी
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