शादी (Marriage) से पहले की दुनिया किसी भी लड़के-लड़की के लिए किसी हसीन ख़्वाब से कम नहीं होती है. तब उनका दिल केवल सतरंगी सपने ही देखना चाहता है. हक़ीक़त का सामना करने की चाह उनके मन में होती ही नहीं. उस समय तो साथी से वे जितनी बार भी मिलते हैं, वह ख़ास ही लगता है. न तो तब उसमें कोई कमी नज़र आती है और न ही उसके असली रूप से रू-ब-रू होने का मौक़ा मिलता है, क्योंकि जब भी वे दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं, तो अच्छे होने का आवरण ओढ़े रहते हैं.
वैसे भी शादी से पहले प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे से कम समय के लिए ही मिल पाते हैं, पर शादी के बाद दोनों साथ में अधिक समय बिताते हैं, तो कुछ भी छिपा पाना असंभव हो जाता है और सारी परतें एक-एक करके खुल जाती हैं. इसलिए दोनों को लगता है कि शादी के बाद उनका साथी बदल गया है. एक-दूसरे को जानने-समझने का अवसर शादी के बाद ही उन्हें मिल पाता है. शादी से पहले की बेफ़िक्री और मौज-मस्ती पर ज़िम्मेदारियों का बोझ आ पड़ता है.
विवाह के बाद अगर बारिश में भीगने से बीमार होने का डर सताने लगता है, तो एक-दूसरे को कोर्टशिप के समान फूल, बुके, गिफ्ट आदि देना फ़िज़ूलख़र्ची लगने लगती है. शादी होते ही उन्हें अपने इस रिश्ते को संभालने का एहसास घेर लेता है, जबकि पहले तो यह ख़्याल तक नहीं आता कि संबंध टूट गया, तो क्या होगा, क्योंकि तब किसी तरह की वचनबद्धता से वे बंधे नहीं होते हैं, स़िर्फ एक रोमांचक दौर का आनंद उठा रहे होते हैं.
अपोलो हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक डॉ. संदीप वोहरा के अनुसार, डेटिंग के दौरान प्रेमी-प्रेमिका को हर चीज़ में रोमांच व एक्साइटमेंट नज़र आता है. उनके अंदर नयापन हासिल करने की चाह भी रहती है. उस समय उन्हें एक-दूसरे का व्यवहार कभी खटकता भी हो, तो भी वे प्यार में डूबे होने के कारण उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं. हालांकि हक़ीक़त तो यह है कि दोनों की कोशिश ही यह रहती है कि साथी पर उनका अच्छा प्रभाव पड़े, इसलिए जिस तरह वे अपने सजने-संवरने पर ध्यान देते हैं, वैसे ही अपनी बातों में मिठास घोले रहने का प्रयत्न करते हैं. लेकिन विवाह के बाद हमेशा ही अच्छे बने रहना संभव नहीं हो पाता है, बल्कि नज़दीकियां उन्हें अपना असली स्वभाव सामने लाने पर विवश कर देती हैं और फिर शुरू हो जाता है, तानों-उलाहनों व एक-दूसरे को बदलने व अपनी इच्छा थोपने का दौर.
प्रसिद्ध नृत्यांगना शोवाना नारायण कहती हैं, “बहुत ही कम कपल इस बात को समझते हैं कि जब प्रेमी-प्रेमिका पति-पत्नी बन जाते हैं, तो बहुत-सी चीज़ें बदल जाती हैं. यह समझना आवश्यक है कि जीवन केवल फूलों की बगिया ही नहीं है, उसमें कांटे भी होते हैं. वैसे भी हमेशा रोमांस करते रहने से बोरियत पैदा होने लगती है, इसलिए बहुत ही ईमानदारी से अपने साथी को वह जैसा है, उस रूप में उसे अपना लेना चाहिए.”
प्रेमी-प्रेमिका शादी होते ही एक-दूसरे को अपनी सुविधा व पसंद के अनुसार बदलने में जुट जाते हैं. जब साथी उनकी उम्मीदों व अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता, तो तनाव उन्हें घेर लेता है और वे एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं.
डॉ. वोहरा कहते हैं कि जब पति प्रेमिका से पत्नी बनी की तुलना करने लगता है, तो उसे लगता है कि वह ऐसी तो नहीं थी. पहले उसकी जिन बातों पर वह फ़िदा रहता था, अब उनको लेकर ही वह नाराज़ रहने लगता है. वैसे भी पति बनते ही उसके अंदर पत्नी पर अधिकार जमाने की भावना जन्म ले लेती है. वह किससे बात करती है, किससे मिलती है, सब जानने की उत्सुकता उसको एक प्रहरी बनने को उकसाती है. ऐसे में जब वह उसकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, तो मन-मुटाव उत्पन्न होते देर नहीं लगती. फिर तो सारा रोमांस केवल बीते दिनों की याद बनकर रह जाता है.
अधिकार भावना के आते ही पति पार्टनर को अपने हिसाब से चलने के लिए बाध्य करने लगता है. डेटिंग के समय साथी को प्रभावित करने की कोशिश भी लगभग समाप्त हो जाती है. पहले उनके अंदर स़िर्फ प्रेमी या प्रेमिका को अपना बनाने की चाह होती है और वे अपने मन में गढ़ी साथी की कल्पनाओं के आधार पर ही व्यवहार करते हैं. अपनी अपेक्षाओं के अनुसार वह साथी की छवि बना लेते हैं, लेकिन शादी होते ही वह छवि जब टूटती है, तो वे मानने लगते हैं कि उनका पार्टनर बदल गया है.
असल में विवाह होते ही वे एक टेलर मेड भूमिका निभाने को मजबूर हो जाते हैं. प्रेमिका पत्नी बनते ही एक गृहिणी का रूप ले लेती है, जिसकी वजह से उसके पूरे व्यक्तित्व में बदलाव आ जाता है. कामकाजी महिलाओं को घर के
साथ-साथ नौकरी के दायित्वों को पूरा करना होता है. ऐसे में हाथों में हाथ डाले देर रात घूमना तो संभव नहीं हो पाता है, न ही ज़िम्मेदारियां उन्हें ऐसा करने देती हैं. उन्हें एक रूटीन के साथ जीना ही होता है, फिर शादी से पहले के रोमांस के पल या घंटों एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाले बैठे रहना बचकाना लगने लगता है.
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कई बार जिस प्रेमी को पहले प्रेमिका का अलग अंदाज़ आकर्षित करता था, वही अंदाज़ नज़दीकियों के बढ़ने के साथ अखरने लगता है. ‘तुम ऐसी होगी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था…’ जैसे जुमले पति की ज़ुबान से फिसलने लगते हैं. फिर वह साथी पर हावी होने, अपनी मनमानी जताने की कोशिश करता है. पत्नी किसी से हंसकर बात कर लेती है या घर आने में उसे देर हो जाती है, तो सवालों के साथ-साथ उस पर शक करने में भी पति को हिचकिचाहट नहीं होती. यह बदला व्यवहार शादी को युद्ध क्षेत्र में बदल देता है और उन्हें एक-दूसरे से शादी करने का अफ़सोस होने लगता है.
धीरे-धीरे ये छोटी-छोटी बातें उनके जीवन में ज़हर घोलने लगती हैं. विवाह से पहले, जो प्रेमी अपनी प्रेमिका को सिवाय मॉडर्न ड्रेसेस, स्कर्ट आदि के अलावा अन्य किसी ड्रेस में देखना पसंद तक नहीं करता था, वही पति बनते ही उसे साड़ी में एक आदर्श बहू के रूप में जब देखना चाहता है, तो प्रेमिका के लिए इस बदलाव को सहज अपनाना आसान नहीं होता है. वह सोचती है कि शादी से पहले तो कितने सपने दिखाए थे, पर अब तो वह उस पर केवल अधिकार ही जमाना चाहता है.
– बेहतर तो यही होगा कि पति-पत्नी के रिश्ते में बंधते ही दोनों नई स्थितियों व ज़िम्मेदारियों को परिपक्वता से संभाल लें.
– इस तरह न अपेक्षाएं रहेंगी और न ही नियंत्रण करने की चाह जन्मेगी.
– यह सोचना कि अब उनके बीच प्यार नहीं रहा है, ग़लत है. प्यार उनके बीच तब भी बरक़रार होता है, केवल अभिव्यक्ति के तरी़के व अवसर कम हो जाते हैं.
– परिवार बनने के साथ सोच और माहौल में बदलाव आना स्वाभाविक ही है. यह बदलाव व्यावहारिकता का प्रतीक होता है और जो कपल ऐसा नहीं करते, उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
– आवश्यकता है कि प्यार को बरक़रार रखते हुए अपने साथी की भावनाओं का सम्मान करें.
– पहले अगर वह आपकी बात मान लेता था, तो कोई वजह नहीं कि शादी के बाद न माने.
– पति-पत्नी के रिश्ते में ताज़गी व रूमानियत बनाए रखनी हो, तो ज़रूरी है कि दोनों अपने संबंधोंं में ईगो न आने दें.
– पहले की तरह हफ़्ते में दो दिन न सही, महीने में एक बार तो खाना बाहर खाया ही जा सकता है.
– यह सच है कि कोर्टशिप के दिनों की मस्ती बनी रहे, यह संभव नहीं है, लेकिन एक-दूसरे को बदलने या नियंत्रित करने की कोशिश करने की बजाय पति-पत्नी की भूमिका में भी भरपूर लगाव व रूमानियत को तो बनाए ही रखा जा सकता है.
– सुमन बाजपेयी
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