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#TheKashmirFiles अनुपम खेर- अगर कोई शांतिप्रिय बिरादरी है, तो मेरे ख़्याल से ये बिरादरी (कश्मीरी पंडित) से ज़्यादा शांतिप्रिय कोई नहीं हो सकता… (Anupam Kher- Agar Koi Shantipriy Biradari Hai, To Mere Khayal Se Yeh Biradari (Kashmiri Pandit) Se Jyada Shantipriy Koi Nahi Ho Sakta…)

फिल्में कैसे अतीत की कड़वी सच्चाई का आईना बन जाती है, इसका बेहतरीन उदाहरण है ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म. कश्मीरी पंडितों का दर्द 32 साल तक अतीत के गर्भ में छिपा रहा, लेकिन सराहना करनी पड़ेगी निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की, जिन्होंने कई सालों तक गहरे अध्ययन विस्तृत जानकारियों को जुटाकर ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाई और कश्मीरी पंडितों के दर्द को सारी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया.

यह ऐसा दर्द है, जो हर किसी के दिल को छू गया, आंखें भर आईं.. और अफ़सोस के साथ एक शिकायत भी रही कि आख़िर क्यों इस हक़ीक़त को वर्षों तक छिपाया गया, दुनिया के सामने नहीं लाया गया… वैसे कितना सच कहा था अनुपम खेर ने कि अगर कोई शांतिप्रिय बिरादरी है, तो यह बिरादरी यानी कश्मीरी पंडित से ज़्यादा शांतिप्रिय कोई नहीं हो सकता… यह बात अनुपम खेर ने साल 1993 में यानी कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार, नरसंहार के तीन साल बाद दिल्ली में कश्मीरी पंडितों द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में कही थी.

अनुपम खेर ने सोशल मीडिया के अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपना एक पुराना वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्हें कश्मीरी पंडितों द्वारा सम्मानित किया गया था. साथ ही उनसे कुछ कहने के लिए कहा गया. तब उन्होंने अपने मन की बात कही और अपने परिवार से जुड़ी मार्मिक बातों का भी ज़िक्र किया. उन्हें सम्मानित किए जाने को लेकर उन्होंने कश्मीरी भाषा में हल्का-सा मज़ाक करने के साथ अपने दिल की बात की शुरुआत की.

उन्होंने कहा कि मैं यहां पर किसी फिल्म अभिनेता या महत्वपूर्ण व्यक्ति के हैसियत से नहीं आया हूं. मैं एक भाई की हैसियत से, एक भतीजे की हैसियत से, एक बेटे की हैसियत से यहां आज खड़ा हूं.
उस भाई की, उस भतीजे की, उस बेटे की जिसके घरवालों को मजबूरन वो जगह छोड़नी पड़ी, जहां वो बचपन से रहें. इन चेहरों की चमक में, इन चेहरों की झुर्रियों में, इन चेहरों की आंखों के सूनेपन में, इनकी मुस्कुराहट की ख़ुशियों में मेरा टैलेंट है… मैं जो भी हूं इन चेहरों का मिश्रण हूं. कभी-कभी हैरानी होती है कि यह सब हो कैसे गया. दुख होता है कि यह सब कैसे हो गया.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं- मेरे दादाजी का एक छोटा -सा कमरा था नई सड़क (कश्मीर) पर. जब भी मैं वहां जाता था छुट्टियों में, मैं सोचता था कि इस कमरे की जितने भी किताबें हैं वह मेरे दादाजी के बाद मैं ले जाऊंगा. वह छोटी से उनकी आलमारी और उसमें उनके बहुमूल्य किताबें, जी हां उन किताबों का कोई मूल्य नहीं था. उन्हें कितने भी पैसों से ख़रीदा नहीं जा सकता था. मगर सख़्त अफ़सोस हुआ जब पता लगा कि मेरे दादाजी के बाद मेरे घरवालों को, तायाजी को, चाचाजी को वो जगह छोड़कर एक टूटे-फूटे ट्रक में अपना ही घर छोड़कर डरे हुए शरणार्थी की तरह वहां से 500-1000 किलोमीटर दूर जाकर रहना पड़ा. जब हमारा अपना घर है, तो हम अपने घर जाएंगे और कोई ताक़त हमें अपने घर जाने से नहीं रोक सकती, क्योंकि अगर कोई शांतिप्रिय बिरादरी है, तो आई थिंक यह बिरादरी (कश्मीरी पंडित) से ज़्यादा शांतिप्रिय कोई नहीं हो सकता…

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अपना घर होते हुए भी बेघर हो गए कश्मीरी पंडित. यह देश की त्रासदी नहीं तो और क्या है कि अपने ही देश में कश्मीरी पंडित शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं. अनुपम खेर हमेशा ही कश्मीरी पंडितों की आवाज़ बनते रहे हैं. उन्होंने तमाम भाषण, डॉक्यूमेंट्री फिल्में, गोष्ठियों, टीवी चैनल के वाद-विवाद में हिस्सा लिया है. वे हमेशा ही कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार-ज़ुल्मों की बातों को दुनिया के सामने लाते रहे हैं. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्म कश्मीरी पंडितों को इंसाफ़ दिलाने का ज़रिया बन रही है.

अनुपम खेर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर फिनलैंड देश में दिखाए गए ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर लोगों की प्रतिक्रिया का भी एक वीडियो शेयर किया. जिसमें हर कोई फिल्म को देखकर बेहद इमोशनल हो गए हैं. कोई स्पीचलेस है, तो किसी ने निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की तारीफ़ की, किसी ने कहा आख़िर ऐसा क्यों हुआ? क्यों सच्चाई छुपाई गई?.. दुनियाभर में इस फिल्म को लेकर लोगों की प्रतिक्रियाओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. हर कोई अपनी तरफ़ से अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहा है और अपने जज़्बातों को ज़ाहिर कर रहा है. पर कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस मुद्दे पर मज़ाक उड़ाने से भी बाज नहीं आते जैसा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया था. जिस पर अनुपम खेर ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि उन्हें कोई अधिकार नहीं कि जिन पर यह आपबीती हुई है उनका मज़ाक उड़ाएं. आख़िर हम कब अपनी ज़िम्मेदारियों को समझेंगे? अपनों के प्रति, देश के प्रति, इंसानियत के प्रति अपने कर्तव्य को निभाएंगे. और यह फिल्म इन सब के प्रति हमें जागरूक करने का आह्वान कर ही रही है.

Photo Courtesy: Instagram

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Usha Gupta

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