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…क्योंकि मां पहली टीचर है (Because Mom Is Our First Teacher)

यशोदा, कुंती, जीजाबाई… भारतीय इतिहास में ऐसी कई मांएं हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को वीरता, शौर्य, न्याय और मानवता का पाठ पढ़ाया. आज भी ऐसी कई कामयाब संतानें हैं, जिनकी सफलता में उनकी मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आप अपनी संतान को कैसा इंसान बनाना चाहती हैं?

धूप में छांव जैसी मां
सुबह की आरती से लेकर, रसोई की खट-पट, छत पर कपड़े-अचार-पापड़ सुखाते हुए, कढ़ाई-बुनाई करते हुए… या फिर बालों में तेल लगाते हुए, रात में लोरी गाते हुए, कहानी सुनाते हुए… खनकती चूड़ियों से सजे हाथों से दिनभर की अपनी तमाम ज़िम्मेदारियां निभाते हुए बातों-बातों में जीवन की न जाने कितनी गूढ़ बातें सिखा जाना… ये हुनर स़िर्फ मां के पास होता है… न कोई क्लासरूम, न कोई किताब, न कोई सवाल-जवाब… वो बस अपने प्यार, अपनी बातों, अपने हाव-भाव से ही इतना कुछ सिखा जाती है कि हम बिना कोई प्रयास किए ही बहुत कुछ सीख जाते हैं, इसीलिए कहा जाता है कि मां हमारी पहली टीचर होती है. अपनी मां के साथ हम सब की ऐसी ही कई बेशक़ीमती यादें जुड़ी होती हैं, इसीलिए एक मां के रूप में स्त्री की अपनी संतान और समाज के प्रति कई ज़िम्मेदारियां होती हैं.

मां होना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है
एक मां के रूप में स्त्री के लिए इतना ही कहना काफ़ी है कि दुनिया के सबसे कामयाब इंसान को जन्म देनेवाली भी एक स्त्री ही होती है. अतः एक मां के रूप में नारी की समाज के प्रति एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है. स्त्री चाहे तो समाज की रूपरेखा बदल सकती है. वो आनेवाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर एक नए युग का निर्माण कर सकती है, क्योंकि मां ही बच्चे की पहली टीचर होती है. वो अपने बच्चे को गर्भ से ही अच्छे संस्कार देना शुरू कर देती है. ये बात वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है, तो मां की मन:स्थिति का बच्चे पर भी असर होता है. अतः मां गर्भावस्था में अच्छे वातावरण में रहकर, अच्छी किताबें पढ़कर, अच्छे विचारों से बच्चे को गर्भ में ही अच्छे संस्कार देने की शुरुआत कर सकती है.

बचपन और मां का साथ
जन्म लेने के बाद बचपन का ज़्यादातर समय बच्चा अपनी मां के साथ बिताता है और सबसे ख़ास बात, जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक इंसान का ग्रास्पिंग पावर यानी सीखने की क्षमता सबसे ज़्यादा होती है. इस उम्र में बच्चे को जो भी सिखाया जाए, उसे वो बहुत जल्दी सीख जाता है. अतः हर मां को चाहिए कि वो अपने बच्चे की परवरिश इस तरह करे, जिससे वो एक अच्छा, सच्चा और कामयाब इंसान बने, उसका सर्वांगीण विकास हो. बच्चे की परवरिश में मां की भूमिका उस किसान की तरह होती है, जो बीज को फूलने-फलने के लिए सही माहौल तैयार करता है, उसकी खाद-पानी की ज़रूरतों को पूरा करता है. ठीक उसी तरह यदि आप अपने बच्चे में अच्छे संस्कार व गुण डालना चाहती हैं, तो उसे तनावमुक्त व सकारात्मक माहौल दें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे किसी बंधन में बांधने की बजाय अपने तरी़के से आगे बढ़ने दें. बच्चे को आत्मनिर्भर बनाएं, ताकि बड़ा होकर वो अकेला ही दुनिया का सामना कर सके, उसे आपका हाथ थामने की ज़रूरत न पड़े. ये बातें कहने में जितनी आसान लगती हैं, इस पर अमल करना उतना ही मुश्किल है. बच्चों की परवरिश के मुश्किल काम को कैसे आसान बनाया जा सकता है? आइए, जानते हैं.

पहले ख़ुद को बदलें
यदि आप अपने बच्चे को अच्छे संस्कार देना चाहती हैं, तो इसके लिए पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें, क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है. यदि वो अपने पैरेंट्स को हमेशा लड़ते-झगड़ते देखता है, तो उसका व्यवहार भी झगड़ालू और नकारात्मक होने लगता है. अगर आप अपने बच्चे को सच्चा, ईमानदार, आत्मनिर्भर, दयालु, दूसरों से प्रेम करनेवाला, अपने आप पर विश्‍वास करने वाला और बदलावों के अनुरूप ख़ुद को ढालने में सक्षम बनाना चाहती हैं, तो पहले आपको ख़ुद में ये गुण विकसित करने होंगे.

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प्यार ज़रूरी है
बच्चे के बात न मानने या किसी चीज़ के लिए ज़िद करने पर आमतौर पर हम उसे डांटते-फटकारते हैं, लेकिन इसका बच्चे पर उल्टा असर होता है. जब हम ज़ोर से चिल्लाते हैं, तो बच्चा भी तेज़ आवाज़ में रोने व चीखने-चिल्लाने लगता है. ऐसे में ज़ाहिर है आपका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, लेकिन इस स्थिति में ग़ुस्से से काम बिगड़ सकता है. अतः शांत दिमाग़ से उसे समझाने की कोशिश करें कि वो जो कर रहा है वो ग़लत है. यदि फिर भी वो आपकी बात नहीं सुनता, तो कुछ देर के लिए शांत हो जाएं और उससे कुछ बात न करें. आपको चुप देखकर वो भी चुप हो जाएगा.

ना कहना भी ज़रूरी है
बच्चे से प्यार करने का ये मतलब कतई नहीं है कि आप उसकी हर ग़ैरज़रूरी मांग पूरी करें. यदि आप चाहती हैं कि आगे चलकर आपका बच्चा अनुशासित बने, तो अभी से उसकी ग़लत मांगों को मानना छोड़ दें.
रोने-धोने पर अक्सर हम बच्चे को वो सब दे देते हैं, जिसकी वो डिमांड करता है, लेकिन ऐसा करके हम उसका भविष्य बिगाड़ते हैं. ऐसा करने से बड़ा होने पर भी उसे अपनी मांगें मनवाने की आदत पड़ जाएगी और वो कभी भी अनुशासन का पालन करना नहीं सीख पाएगा. अतः बच्चे की ग़ैरज़रूरी डिमांड के लिए ना कहना सीखें, लेकिन डांटकर नहीं, बल्कि प्यार से. प्यार से समझाने पर वो आपकी हर बात सुनेगा और आपके सही मार्गदर्शन से उसे सही-ग़लत की समझ भी हो जाएगी.

बच्चे के गुणों को पहचानें
हर बच्चा अपने आप में यूनीक होता है. हो सकता है, आपके पड़ोसी का बच्चा पढ़ाई में अव्वल हो और आपका बच्चा स्पोर्ट्स में. ऐसे में कम मार्क्स लाने पर उसकी तुलना दूसरे बच्चों से करके उसका आत्मविश्‍वास कमज़ोर न करें, बल्कि स्पोर्ट्स में मेडल जीतकर लाने पर उसकी प्रशंसा करें. आप उसे पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कह सकती हैं, लेकिन ग़लती सेभी ये न कहें कि फलां लड़का तुमसे इंटेलिजेंट है. ऐसा करने से बच्चे का आत्मविश्‍वास डगमगा सकता है और उसमें हीनभावना भी आ सकती है.

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निर्णय लेना सिखाएं
माना बच्चे को सही-ग़लत का फ़र्क़ समझाना ज़रूरी है, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आप उसे अपनी मर्ज़ी से कोई ़फैसला लेने ही न दें. ऐसा करके आप उसकी निर्णय लेने की क्षमता को कमज़ोर कर सकती हैं. यदि आप चाहती हैं कि भविष्य में आपका बच्चा अपने फैसले ख़ुद लेने में सक्षम बने, तो अभी से उसे अपने छोटे-मोटे फैसले ख़ुद करने दें, जैसे- दोस्तों का चुनाव, छुट्टी के दिन की प्लानिंग आदि. बच्चे को अपने तरी़के से आगे बढ़ने दें, इससे न स़िर्फ वो आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि उसकी क्रिएटिविटी भी बढ़ेगी.

हर बात हो सकारात्मक
माता-पिता जो भी कहते हैं, उसका बच्चों पर गहरा असर होता है. अतः बच्चे से कुछ भी कहते समय ये ध्यान रखें कि आपकी बातों का उस पर सकारात्मक असर हो. उसका ख़ुद पर विश्‍वास बढ़े, उसके मन में दूसरों के प्रति दया का भाव रहे, वो निडर होकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हो और सोच-समझकर किसी भी चीज़ का चुनाव करे.

ये बातें हैं काम की
बच्चे को अच्छा इंसान बनाने के लिए इन बातों पर अमल करना बहुत ज़रूरी है-
* यदि आप चाहती हैं कि बच्चा आपका और दूसरों का सम्मान करे, तो पहले बच्चे को सम्मान दें.
* अपने बच्चे पर विश्‍वास करें, ताकि वो भी दूसरों पर विश्‍वास करे.
* बच्चे को अनुशासित बनाने के लिए कुछ नियम ज़रूर बनाएं, लेकिन वो नियम ऐसे न हों जिन्हें बदलने की गुंजाइश न हो.
* बच्चे के आत्मविश्‍वास की रक्षा करें. उसे हर वो काम करने की स्वीकृति दें, जिससे उसका आत्मविश्‍वास बढ़े.
* बड़े होकर उसे क्या बनना है. ये उसे ख़ुद तय करने दें, उस पर अपने सपने और उम्मीदें न थोपें.
* बच्चे को प्यार की अहमियत सिखाएं. जब भी मौक़ा मिले उसे गले लगाएं और बताएं कि आप उसे कितना प्यार करती हैं. इससे बच्चा दूसरों से प्यार करना सीखता है.
* जब भी बच्चा आपके सामने आए, तो आपकी आंखों में ख़ुशी दिखाई दे, परेशानी या उदासी नहीं.
* यदि आप चाहती हैं कि आपका बच्चा चीज़ों की कद्र करे, तो उसे सिखाएं कि जीवन में जो भी मिलता है, उसके लिए हमें ईश्‍वर का शुक्रगुज़ार होना चाहिए.

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कैसी परवरिश का क्या असर होता है बच्चे पर?
बच्चे के व्यवहार और सोच पर उसकी परवरिश का बहुत असर पड़ता है. बच्चे की परवरिश जिस माहौल में होती है उसका असर भविष्य पर भी पड़ता है-
* अगर बचपन से ही उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, तो वो दूसरों की निंदा करना ही सीखता है.
* यदि वो बचपन से ही घर में लड़ाई-झगड़े देखता है, तो वो भी लड़ना सीख जाता है.
* अगर छोटी उम्र से ही उसे किसी तरह के डर का सामना करना पड़ता है, तो बड़े होने पर वो हमेशा आशंकित या चिंतित रहता है.
* यदि घर और बाहर हमेशा उसका मज़ाक उड़ाया जाता है, तो वो शर्मीला या संकोची बन जाता है.
* अगर बच्चे की परवरिश ऐसे माहौल में हुई हो जहां उसे जलन की भावना का सामना करना पड़ा हो, तो बड़ा होने पर वो दुश्मनी सीखता है.
* अगर शुरुआत से ही बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है, तो वह आत्मविश्‍वासी बनता है.
* यदि बच्चा अपने माता-पिता को बहुत कुछ सहते हुए देखता है, तो वह धैर्य और सहनशीलता सीखता है.
* अगर शुरू से बच्चा तारी़फें पाता है, तो बड़ा होकर वो भी दूसरों की प्रशंसा करना सीखता है.
* यदि बच्चा अपने घर व आसपास ईमानदारी देखता है, तो वो सच्चाई सीखता है.
* अगर बच्चा सुरक्षित माहौल में रहता है, तो वो ख़ुद पर और दूसरों पर भरोसा करना सीखता है.

– कमला बडोनी

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Usha Gupta

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