Pehla Affair

पहला अफ़ेयर: … और फिर प्यार हो गया! (Pahla Affair… Love Story: Aur Phir Pyar Ho Gaya)

चांदनी… दूधिया सफ़ेद… न सिर्फ़ उसका रंग बल्कि उसके कपड़े भी… वो हमेशा सफ़ेद रंग ही पहनती है… उस पर खूब फबता भी है… एकदम पाक… मासूम रंग जैसे सुबह-सुबह की नर्म-नाज़ुक ओस… उसकी भोली मुस्कान उसके गुलाबी होंठों पर हमेशा बिखरी रहतीहै… अभी-अभी हमारे मोहल्ले में रहने आई है और रोज़ सुबह-शाम मेरी गली से गुजरती है, उसके साथ उस वक्त एक छोटी बच्ची भीरहती है, उसकी छोटी बहन होगी, उसी को स्कूल छोड़ने-ले जाने जाती है… जब भी वो मेरे घर के सामने से गुजरती है मैं ज़ोर से वो गाना मोबाइल पे लगा देता हूं… चांद मेरा दिल, चांदनी हो तुम… और वो एकनज़र मेरी खिड़की की तरफ़ डालकर निकल जाती है. यही सिलसिला चल रहा था कि एक रोज़ उसे बस स्टॉप पर देखा. मैंने बाइकरोकी और उसके पास जाकर बात करने की कोशिश की… “आपको रोज़ देखता हूं मैं, नई आई हैं आप इस मोहल्ले में?” “जी हां.” उसकी मीठी आवाज़  आज पहली बार सुनी. खुद को खुशक़िस्मत समझ रहा था मैं उसके इतना क़रीब जाकर. “कहीं जा रही हैं? आइए मैं छोड़ दूं…” मैंने उसकी मदद करने के इरादे से पूछा, तो उसने नो, थैंक यू कहकर टाल दिया…  अब अक्सर उससे यूं ही मुलाक़ात होने लगी, कभी मार्केट में, तो कभी बस स्टॉप पर, क्योंकि मैंने बाइक छोड़ बस से जाना शुरू करदिया.  “एक रोज़ हमें बस में साथ बैठने का मौक़ा मिला, तो उसने सवाल किया, “आप तो बाइक से जाते थे ना?” “जी, लेकिन सोचा बाइक से पेट्रोल बर्बाद करने से बेहतर है पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज़ करूं…” “वैसे आपका नाम जान सकता हूं…?” मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया.  “मैं चांदनी हूं. वैसे आपका नाम क्या है?” “मैं वियान हूं…” फिर हम दोनों चुप रहे और इतने में ही मेरा स्टॉप आ गया… अरे, ये क्या चांदनी भी यहीं उतर रही है? मैं सोच में पड़ गया. वो आगे चलरही थी, मेरे ही बैंक के गेट की ओर वो जाने लगी. मैंने सोचा कोई काम होगा. मैं भी अंदर चला गया और काम में जुट गया. वैसे मेरीनज़रें चांदनी को ही ढूंढ़ रही थीं, पर वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी. इतने में ही डेस्क पर रखा फ़ोन बजा और हमको कॉन्फ़्रेन्स रूम मेंबुलाया गया.  “हेलो एवरीवन, मैं चांदनी… आपकी नई ब्रांच मैनेजर…”  उसको यूं देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए थे.जिसे मैं एक घरेलू लड़की समझ रहा था, उसका एक अलग ही रूप और अंदाज़ आज मेरेसामने था.  ख़ैर, मीटिंग ख़त्म हुई और मैं अपने डेस्क पर लौट आया.  “वियान सर, आपको मैम ने बुलाया है…” मुझे ऑफ़िस बॉय ने आकर कहा तो मैंने केबिन में जाकर कहा- “मैम आपने बुलाया?” “हां, मैंने सोचा बैंक के सभी सीनियर पोस्ट वालों से वन ऑन वन बात करके अपडेट ले लेती हूं ताकि हम मिलकर बतौर एक टीम कामकरें और अपने बैंक को फिर से नंबर वन बनाएं.”…

January 17, 2023

पहला अफेयर: प्यार कोई खेल नहीं… (Pahla Affair… Love Story: Pyar Koi Khel Nahi)

दिल्ली के एक कॉलेज में बेटी को इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलवा कर हॉस्टल में उसका सामान रखकर मैंने उसे मेस में खाना खाने केलिए चलने को कहा. उसका खाना खाने में मन नहीं था, उसने मना कर दिया. मैं अकेला ही मेस की ओर निकल गया. बड़ी तेज़ भूख लगरही थी. मेस में खाने की खुशबू ने भूख को और बढ़ा दिया. मैं थाली लगाकर एक टेबल पर बैठ गया और जल्दी-जल्दी खाने लगा. अचानक गले में निवाला अटक गया और मैं ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा. मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. सहसा एक मधुर आवाज़सुनाई दी-‘पानी’ मैंने नज़रें उठाकर उसे देखा, आश्चर्य चकित रह गया- “विभूति तुम…” “पहले पानी पी लो.” मेरे हाथों में ग्लास पकडाकर वह पास की कुर्सी पर बैठ गई. पानी पीते-पीते ही पुराने दिन याद आने लगे. बरसों पहले गांव से शहर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आया था. हॉस्टल में रूम नहीं मिला. कॉलेज के पास ही किराए पर कमरा लेलिया. ज़रूरत का सब सामान सेट कर लिया था. पास में ही एक टिफिन सेंटर था, वहां से टिफिन लगवा लिया. टिफिन में रोज़-रोज़दाल-सब्ज़ी खाकर बोर हो गया था. एक दिन आंटी को मेनू बदलने के लिए कहने टिफिन सेंटर पर गया. सेंटर पर टिफिन पैक करतीएक मोटी लड़की दिखाई दी. मुझे लगा यही टिफिन सेंटर वाली आंटी है. “आंटी ज़रा सुनिए…” वह जैसे ही पलटी, मैं उसे देखता ही रह गया. वह मोटी ज़रूर थी मगर उसके घुंघराले बाल, गहरी भूरी आंखें और गुलाबी होंठों पर सजीमुस्कान किसी को भी दीवाना बना सकती थी. जब मैंने उसकी आंखों को देखा तो देखता ही रह गया. मै उसके आकर्षण में गुम हो गया. उसने क्या बोला मुझे सुनाई नहीं दिया. उसने मुझे झंझोड़ते हुए पूछा-“मम्मी घर पर नहीं है आपको क्या चाहिए?” मैं जैसे-तैसे होश में आया. “आज अलसाया-सा रविवार है और रविवार को छुट्टी होती है. इस दिन आप कुछ अच्छा नहीं खिला सकतेक्या? आप लोग रोज़-रोज़ टिफिन में दाल-चावल भेज देते हो.” मैं थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा. “पहले तो आप धीरे बोलिए. दूसरी बात, यह टिफिन सेंटर है, आपकी घर का किचन नहीं, जहां आप अपनी मर्ज़ी चलाएं. वैसे भी सेहतके लिए दाल-रोटी ज़्यादा बेहतर होती है. स्वाद बदलने के लिए रेस्टोरेंट खुले हुए हैं… समझे आप.” वह अपनी बात खत्म कर अपने काममें व्यस्त हो गई और मैं मायूस होकर लौट आया. घर आकर मेरा मन किसी काम में नहीं लगा. बार-बार उसका चेहरा याद आता रहा. उसकी आंखों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. अब मैं बहानेसे उसके घर के चक्कर लगाता रहता. पहले जान-पहचान, फिर दोस्ती और उसके बाद प्यार हो गया. मैं अक्सर उससे कहता था, ‘विभूतुम्हारी आंखें बहुत सुंदर है. कहीं मैं डूब न जाऊं’ और वह कहती, ‘कभी इन आंखों में समन्दर मत रखना मुझे तैरना नहीं आता.’ अब कभी-कभी टिफिन के साथ एक और टिफिन आता, जिसमें कभी इडली-सांबर होता, तो कभी मूंग का हलवा. यह विभूति मेरे लिएस्पेशल तौर पर भेजती जिसका कभी एक्स्ट्रा चार्ज नहीं लिया. मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और मैं अपने घर लौट गया. नौकरी मिलते हीपरिवार वालों ने एक सुंदर कन्या देखकर मेरी शादी फिक्स कर दी. इन सबमें मै विभूति को भूल गया और अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होगया.  विभूति से मेरी दोबारा मुलाकात होगी यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था. विभूति अब पहले से काफी बदल चुकी थी. पतली-दुबली मगरआकर्षक लग रही थी. उसकी आंखें पहले जैसी ही थीं. “मां चाहती थी कि मैं शादी कर लूं मगर मुझे तुम्हारा इंतज़ार था और विश्वास थाकि तुम ज़रूर लौटोगे. तुम्हें न आना था, न आए मगर तुम्हारी शादी की सूचना ज़रूर मिल गई थी. बस, उस दिन के बाद तुम्हारे आने कीआस खत्म हो गई, लेकिन मेरा प्रेम नहीं. आज भी तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो. तुम्हारे बाद इन आंखों में किसी को डूबने नहींदिया. तुमने मेरी आंखों में जो समन्दर रखा था, उसमें मैंने तैरना सीख लिया है. फ़िक्र न करो, मेरे प्यार मुझ तक ही सीमित है… तुम्हें कोईपरेशानी नहीं होगी. हमारी ज़िंदगी में बदलाव की ज़रूरत होती है ना, बस वही बदला है. मां के जाने के बाद मैंने घर और टिफिन सेंटरबेच दिया और इस शहर में आकर मेस इंचार्ज बन गई. मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है. तुम तो मुझे कुछ इस तरह मिले, जैसे बरसोंपहले एक यात्रा के दौरान तुम मेरे सहयात्री रहे हो और बरसों बाद अचानक दोबारा मुलाकात हो गई… अस्थाई मुलाकात. जीवनयात्रा मेंतो यह सब चलता रहता है. प्रेम की परिणीति शादी हो… ज़रूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ गुज़रा हुआ वक्त मेरे जीवन का सुखद हिस्सा है…”  वह चली गई और मैं आत्मग्लानि में डूब गया. कुछ लोगों के लिए प्रेम कोई खेल नहीं, उनके लिए तो प्रेम इबादत है और जीने की वज़ह… मुझे अपने किए पर पछतावा होने लगा. शोभा रानी गोयल

December 12, 2022

पहला अफेयर… लव स्टोरी: अधूरी बात (Pahla Affair… Love Story: Adhoori Baat)

तन्हाई में अक्सर दिल के दरवाज़े पर तुम्हारी यादों की दस्तक से कुछ खट्टे- मीठे और दर्द में भीगे लम्हे जीवंत होकर मानस पटल परमोतियों की तरह बिखर जाते हैं. उन्हीं में से एक खुबसूरत लम्हा है… ‘मैं, तुम और मॉनसून.’  आज भी याद है मुझे हमारे प्रणय का प्रथम मॉनसून... तुम मेरे सामने वाले घर में किरायेदार के रूप रहते थे और हमारा खुद का घर था. संयोग था हमारा कॉलेज एक ही था. साथ-साथ  कॉलेज जाते थे, एक-दूसरे के घरों में भी आना-जाना था, धीरे-धीरे कब एक-दूसरे के दिलों में उतर गए दोनों को ही खबर ना थी... बेखबर और बेपरवाह थे.  आज की तरह मोबाइल पर मैसेज आदान-प्रदान करने की सुविधा नहीं थी, लेकिन हमारी आंखों के इशारे ही हमारे मैसेज थे... चिट्ठी-पत्री में भी विश्वास नहीं था, एक-दूसरे की खामोशी को शब्दों में ढालकर पढ़ने का जबरदस्त हुनर था हम दोनों में. एक बार यूं ही प्लान बना लिया ताजमहल देखने का. शायद दोनों के मन में प्रेम के प्रतीक ताजमहल के समक्ष अपना प्रणय निवेदन करने की चाह थी. बसएक रोज़ निकल पड़े ताजमहल निहारने. घरों से अलग-अलग निकले छिपते-छिपाते... सावन का महीना था, बादल सूरज से लुका-छिपी का खेल खेल रहे थे, हल्की-फुल्की बौछारों से नहाए ताजमहल की खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे, संगमरमर से टपकती बूंदों सेउस वक्त मुहब्बत के साक्षात दर्शन हो रहे थे... उस हसीन नज़ारे को देखकर हम दोनों भावुक हो उठे... एक नज़र ताजमहल पर डाली, तोलगा जैसे प्रकृति ने बारिश की बूंदों के रूप में पुष्पों की बारिश करके उसे ढक दिया है, जिससे उसका सौष्ठव और दैदीप्यमान हो उठा है. अचानक बादलों की तेज़ गड़गड़ाहट से मैं डरकर तुम्हारे सीने से लग गई और तुमने मुझे इस तरह से थाम लिया जैसे मैं कहीं तुमसे बिछड़ना जाऊं… और फिर ज़ोर से झमाझम बारिश होने लगी. मैं तुम्हारी बाहों में लाज से दोहरी होकर सिमट गई... मैं झिझक रही थी, लजा रही थी और तुम्हारी बाहों से खुद को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रही थी. बारिश जब तक थम नहीं गई, तब तक हमारी खामोशियांरोमांचित होकर सरगोशियां करती रहीं. मौन मुखर होकर सिर्फ आंखों के रास्ते से एक-दूसरे के दिलों को अपना हाल बता रहा था. बारिश में भीगते अरमान मुहब्बत के नग़मे गुनगुना रहे थे. मॉनसून अपने शबाब पर था और हमारा प्रेम अपनी चरम पराकाष्ठा पर. मेरेलाज से आरक्त चेहरे को अपलक निहारते हुए तुमने कहा था, "अनु ,एक बात कहूं तुमसे?" "नहीं,  अभी इस वक्त कुछ भी नहीं... सिर्फऔर सिर्फ मुहब्बत" मदहोशी के आलम में मेरे अधर बुदबुदा उठे थे. एक तरफ श्वेत-धवल बारिश की बूँदों से सराबोर ताजमहल सेमुहब्बत बरसती रही, दूसरी तरफ तुम्हारी असीम चाहतों की बारिश में भीग कर मेरी रूह तृप्त होती रही. तुम्हारी बात अधूरी रह गई... सालों बाद फिर तुमसे मुलाकात हुई ताजमहल में... तुम्हारे साथ ताज के हसीन साये में मुझे याद आया... “जब हम दोनों पहली बारताजमहल में मिले थे तब तुम मुझसे कुछ कहना चाहते थे… अब वो अधूरी बात पूरी तो कीजिए जनाब, मौका भी है और दस्तूर भी है." सिगरेट के धुएं को इत्मीनान से आकाश की तरफ उड़ाते हुए तुमने दार्शनिक अंदाज़ में कहा , "जान… तुम्हारी मुहब्बत में पागल हो गया हूं मैं."  "ये क्या कह रहे हो?"   "किसी ने सच कहा है कि मुहब्बत इंसान को मार देती है या फिर पागल कर देती है, इसका जीता-जागता प्रमाण आगरा है. यहांपागलखाना और ताजमहल दोनों हैं.”कहकर तुम ज़ोर से पागलों की तरह हंसने लगे... मेरे लाख रोकने पर भी तुम लगातार हंसते ही रहे... यह नज़ारा देखकर तमाम भीड़ इकट्ठा हो गई… सचमुच मैं डर गई, कहीं तुम सच में पागल तो नहीं हो गए? तुम्हारी बात अधूरी ही रह गई... और हमारी मुहब्बत भी... डॉ. अनिता राठौर मंजरी

November 16, 2022

पहला अफेयर: मखमली आवाज़… (Pahla Affair… Love Story: Makhmali Awaaz)

उस दिन मैं क्लीनिक पर नहीं था. स्टाफ ने फोन पर बताया कि एक पेशेंट आपसे फोन पर बात करना चाहती है. “उन्हें कहिए मैं बुधवार को मिलता हूं.” जबकि मैं जानता था बुधवार आने में अभी 4 दिन बाकी हैं. शायद उसे तकलीफ ज़्यादा थी, इसलिए वह मुझसे बात करने की ज़िद कर बैठी. जैसे ही मैंने हेलो कहा, दूसरी तरफ़ से सुरीली आवाज़ उभरी- “सर मुझे पिछले 15 दिनों से…” वह बोल रही थी मैं सुन रहा था. एक सुर-ताल छेड़ती आवाज़ जैसे कोई सितार बज रहा हो और उसमें से कोई सुरीला स्वर निकल रहाहो. मैं उसकी आवाज़ के जादू में खो गया. जाने इस के आवाज़ में कैसी कशिश थी कि मैं डूबता चला गया. जब उसने बोलना बंद कियातब मुझे याद आया कि मैं एक डॉक्टर हूं. मैंने उसकी उम्र पूछी, जैसा कि अक्सर डॉक्टर लोग पूछते हैं…  “46 ईयर डॉक्टर.” मुझे यकीन ही नहीं हुआ यह आवाज़ 45 वर्ष से ऊपर की महिला की है. वह मखमली आवाज़ मुझे किसी 20-22 साल की युवती कीलग रही थी. इस उम्र में मिश्री जैसी आवाज़… मैं कुछ समझ नहीं पाया. फिर भी उसे उसकी बीमारी के हिसाब से कुछ चेकअप करवानेको कहा और व्हाट्सएप पर पांच दिन की दवाइयां लिख दीं. 5 दिन बाद उसे अपनी रिपोर्ट के साथ आने को कह दिया. यह पांच दिन मुझे सदियों जितने लम्बे लगे. बमुश्किल से एक एक पल गुज़ारा. सोते-जागते उसकी मखमली आवाज़ मेरे कानों में गूंजतीथी. मैं उसकी आवाज़ के सामने अपना दिल हार बैठा था. मैंने कल्पना में उसकी कई तस्वीर बना ली. उन तस्वीरों से मैं बात करने लगा. नकभी मुलाकात हुई, न कभी उसे देखा… सिर्फ एक फोन कॉल… उसकी आवाज़ के प्रति मेरी दीवानगी… मैं खुद ही कुछ समझ नहींपाया. मुझे जाने क्या हो गया… मैं न जाने किस रूहानी दुनिया में खो गया था. मुझे उससे मिलना था. उसकी मीठी धुन फिर से सुननी थी. जब उसकी तरफ से न कोई कॉल आया, न कोई मैसेज, तो खुद ही दिल केहाथों मजबूर होकर मैसेज किया- ‘अब कैसी तबीयत है आपकी?’ ‘ठीक नहीं है, आपकी दी हुई मेडिसन का कोई असर नहीं हुआ…’ उसने जवाब दिया. ‘आपने ठीक से खाई?’ ‘हां, जैसा आपने कहा था, वैसे ही.’ मैं उसकी बात सुनकर चुप हो गया. मेरी उम्मीद टूटने लगी. मुझे लगा वह अब वह नहीं आयेगी. उससे मिलने का सपना खत्म हो गया. थोड़ी देर बाद ही उसका मैसेज स्क्रीन पर चमका. ‘आज आपका अपॉइंटमेंट मिल सकता है?’ मुझे मन मांगी मुराद मिल गई. ठीक शाम 5:00 बजे वह मेरी क्लिनिक पर अपनी रिपोर्ट और मेडिसिन के साथ थी. उसकी वही मीठी आवाज़ मेरे कानों में टकराई,…

October 10, 2022

पहला अफ़ेयर: सुरों में ढला प्रेम… (Pahla Affair… Love Story: Suron Mein Dhala Prem)

पत्थर की मुंडेर पर बैठी मैं तालाब की ओर देख रही थी. दूर तक फैली जलराशि पर अलसाई-सी अंगड़ाइयां लेती हुई एक के बाद एकलहरें चली आ रही थीं. हवा में अजीब-सी खनक थी. शहर के कोलाहल को चुप कराता यह तालाब और इसके किनारे  बना यहसांस्कृतिक भवन जहां संगीत, साहित्य और कला की त्रिवेणी का संगम होता रहता था, इसकी खुली छत पर बैठ मैं घंटों ढलती शाम केरंगों को अपने सीने में समेटते बड़े तालाब को देखती रहती. आज भी मैं लहरों संग डूब-उतरा रही थी कि अचानक एक रूमानी गीत कामुखड़ा हौले से आकर कानों में गुनगुनाने लगा. जाने उस आवाज़ में ऐसी क्या कशिश थी कि मैं उसमें भीगती गई. शाम अचानक सेसुरमई हो उठी. तालाब के उस पार बनी सड़क की स्ट्रीट लाइटों की रौशनी तालाब के पानी में झिलमिलाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसेमन के स्याह कैनवास पर किसी ने जुगनुओं को उतार दिया हो. मैं धीमे-धीमे उस आवाज़ के जादू में बंधती जा रही थी. एक-एक शब्द प्रेम जैसे तालाब की लहरों पर तैरता हुआ मुझ तक आ रहा था. सुरों में भीगी उन लहरों पर मैं जैसे बहती चली जा रही थी. बहिरंग में शायद संगीत का कोई कार्यक्रम था. जब भी दिल ने कोई दुआ मांगी, ख्यालों में तुम ही रहे छाए… जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बस तुम ही आए... जाने कब उस आवाज़ की कशिश मुझे बहिरंग की ओर खींच कर ले गई. पैर अपने आप ही चल पड़े. मुक्ताकाश के मंच पर गायक और उसके सहायक वादक बैठे थे. सामने सीढ़ियों पर श्रोताओं की भीड़ बैठी गाना सुन रही थी. मैं भी उनके बीच जगह बनाती एक कोने मेंसीढ़ियों पर बैठ गई. सिर्फ़ आवाज़ में ही नहीं, उसके चेहरे में भी ग़ज़ब की कशिश थी. कला की साधना में तपा एक परिपक्व गौरव सेदीप्त चेहरा. गर्दन तक लहराते घुंघराले बाल. गाते हुए घुंघराली लटें लापरवाह-सी माथे और गालों पर झूल रही थीं. आंखें बंद कर जब वह आलाप-ताने लेता तो ऐसा लगता मानों साक्षात कोई गन्धर्व संगीत साधना कर रहा हो. मद्धिम पीले उजास में डूबे लैम्प की छाया मेंढलती सांझ के रंग भी घुल कर उसके चेहरे पर फैल रहे थे. मेरे दिल की कश्ती सुरों के समंदर में डोल रही थी और उस रूमानी आवाज़का जादू डोर बनकर उस कश्ती को और गहराई तक खींच कर ले जा रहा था. मंत्रमुग्ध श्रोताओं पर से बेपरवाही से फिसलती उसकी दृष्टि अनायास ही मेरे चेहरे पर ठिठक गई. हमारी आंखें मिली, मेरा दिल धड़कगया. फिर तो जैसे मेरा चेहरा उसकी आंखों का स्थायी मुकाम हो गया. आते-जाते उसकी दृष्टि मुझपर ठहर जाती, जिस तरह तेज़ धूपसे त्रस्त कोई मुसाफिर किसी घने पेड़ की छांव में ठहर जाता है और मुखड़े की पंक्तियां ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बसतुम ही आए’ गाते हुए उसकी गहरी नज़र जैसे आंखों के रास्ते मेरे दिल का हाल जानने को बेताब होती रही. ढाई घंटे बाद जबऔपचारिक रूप से कार्यक्रम खत्म हो गया, तो लोगों की भीड़ उसके चारों ओर उमड़ पड़ी, लेकिन वह न जाने किसे तलाश रहा था औरवो जिसे तलाश रहा था वो तो खुद ही उसके सुरों में पूरी तरह भीग चुकी थी. आते हुए देख आई थी 'अनुराग' यही नाम था उसका. तभीउसके सुरों में इतना प्रेम भरा था. अगले दो दिन भी उसका कार्यक्रम था. मैं पहले ही पीछे वाली सीढ़ियों पर भीड़ में छुपकर बैठ गई. आजफिर उसकी आंखें अपना ठिकाना तलाश रही थीं, मगर हर बार मायूस हो जातीं. कल वाली खुशगवार खुमारी आज आंखों में नहीं थी. मैंथोड़ा खुले में बैठ गई. जैसे ही उसकी नज़रें मुझपर पड़ीं, वह खिल उठा. उसके चेहरे की रंगत ने उसके दिल का हाल खुल कर कह दियाथा. दिल कर रहा था कि वो यूं ही गाता रहे और मैं रात भर उसके सुरों की कश्ती में सवार हो प्रेम के दरिया में तैरती रहूं. तीसरे दिन मन बहुत उदास था. आज उसके गाने का आखरी दिन था. कार्यक्रम के बाद मैं भीड़ में सबसे पीछे खड़ी थी. उसे घेरकर लोगबधाइयां दे रहे थे, लेकिन वह भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मेरी तरफ आया, एक भरपूर नज़र से मुझे देखा और चुपचाप अपना फोन नम्बर लिखा हुआ कागज़ मुझे थमा दिया. आज सत्रह बरस हो गए हम प्रेम की कश्ती में सवार हो इकट्ठे सुरों के दरिया में तैर रहे हैं. मेरा चेहरा उसकी आंखों  का स्थाई ठिकानाबन चुका है और मुझे देखकर उसकी बेतरतीब घुंघराली लटें शरारत से गुनगुना उठती हैं- ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा…ख्वाबों में बस तुम ही आये’ वो ख्वाब जो हकीकत में बदल चुका है. विनीता राहुरीकर

September 9, 2022

पहला अफ़ेयर: वो हम न थे, वो तुम न थे… (Pahla Affair… Love Story: Wo Hum Na Thay, Wo Tum Na Thay)

आज फिर उसे देखा… अपने हमसफ़र के साथ, उसकी बाहों में बाहें डाले झूम रही थी… बड़ी हसीन लग रही थी और उतनीही मासूम नज़र आ रही थी… वो खुश थी… कम से कम देखने वालों को तो यही लग रहा था… सब उनको आदर्श कपल, मेड फ़ॉर ईच अदर… वग़ैरह वग़ैरह कहकर बुलाते थे… अक्सर उससे यूं ही दोस्तों की पार्टीज़ में मुलाक़ात हो जाया करतीथी… आज भी कुछ ऐसा ही हुआ.  मैं और हिना कॉलेज में एक साथ ही थे. उसे जब पहली बार देखा था तो बस देखता ही रह गया था… नाज़ों से पली काफ़ीपैसे वाली थी वो और मैं एक मिडल क्लास लड़का.  ‘’हाय रौनक़, मैं हिना. कुछ रोज़ पहले ही कॉलेज जॉइन किया है, तुम्हारे बारे में काफ़ी सुना है सबसे. तुम कॉलेज में काफ़ीपॉप्युलर हो, पढ़ने में तेज़, बाक़ी एक्टिविटीज़ में भी बहुत आगे हो… मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए थी…’’ “हां, बोलिए ना.” “मेरा गणित बहुत कमजोर है, मैंने सुना है तुम काफ़ी स्टूडेंट्स की हेल्प करते हो, मुझे भी पढ़ा दिया करो… प्लीज़!” “हां, ज़रूर क्यों नहीं…” बस फिर क्या था, हिना से रोज़ बातें-मुलाक़ातें होतीं, उसकी मीठी सी हंसी की खनक, उसके सुर्ख़गाल, उसके गुलाबों से होंठ और उसके रेशम से बाल… कितनी फ़ुर्सत से गढ़ा था ऊपरवाले ने उसे… लेकिन मैं अपनी सीमाजानता था… सो मन की बात मन में ही रखना मुनासिब समझा.  “रौनक़, मुझे कुछ कहना है तुमसे.” एक दिन अचानक उसने कहा, तो मुझे लगा कहीं मेरी फ़ीलिंग्स की भनक तो नहीं लगगई इसे, कहीं दोस्ती तो नहीं तोड़ देगी मुझसे… मन में यही सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे कि अचानक उसने कहा, “मुझे अपनाहमसफ़र मिल गया है… और वो तुम हो रौनक़, मैं तुमसे प्यार करती हूं!”  मेरी हैरानी की सीमा नहीं थी, लेकिन मैंने हिना को अपनी स्थिति से परिचित कराया कि मैं एक साधारण परिवार कालड़का हूं, उसका और मेरा कोई मेल नहीं, पर वो अपनी बात पर अटल थी. बस फिर क्या था, पहले प्यार की रंगीन दुनिया में हम दोनों पूरी तरह डूब चुके थे. कॉलेज ख़त्म हुआ, मैंने अपने पापा केस्मॉल स्केल बिज़नेस से जुड़ने का निश्चय किया जबकि हिना चाहती थी कि मैं बिज़नेस की पढ़ाई के लिए उसके साथविदेश जाऊं, जो मुझे मंज़ूर नहीं था.  “रौनक़ तुम पैसों की फ़िक्र मत करो, मेरे पापा हम दिनों की पढ़ाई का खर्च उठाएंगे.”  “नहीं हिना, मैं अपने पापा का सहारा बनकर इसी बिज़नेस को ऊंचाई तक के जाना चाहता हूं, तुम्हें यक़ीन है ना मुझ पर? मैं यहीं रहकर तुम्हारा इंतज़ार करूंगा.” ख़ैर भारी मन से हिना को बाय कहा पर कहां पता था कि ये बाय गुडबाय बन जाएगा. हिना से संपर्क धीरे-धीरे कम होनेलगा था. वो फ़ोन भी कम उठाने लगी थी मेरा. मुझे लगा था कोर्स में व्यस्त होगी, लेकिन एक दिन वो लौटी तो देखा उसकीमांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र था… मेरी आंखें भर आई…  “रौनक़, मुझे ग़लत मत समझना, जय से मेरी मुलाक़ात अमेरिका में हुई, उसने मुझे काफ़ी सपोर्ट किया, ये सपोर्ट मुझेतुमसे मिलना चाहिए था पर तुम्हारी सोच अलग है. जय का स्टैंडर्ड भी मुझसे मैच करता है, बस मुझे लगा जय और मैं एकसाथ ज़्यादा बेहतर कपल बनेंगे… पर जब इंडिया आई और ये जाना कि तुम भी एक कामयाब बिज़नेसमैन बन चुके हो, तोथोड़ा अफ़सोस हुआ कि काश, मैंने जल्दबाज़ी न की होती…” वो बोलती जा रही थी और मैं हैरान होता चला जा रहा था… “रौनक़, वैसे अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है, हम मिलते रहेंगे, जय तो अक्सर टूर पर बाहर रहते हैं तो हम एक साथ अच्छाटाइम स्पेंड कर सकते हैं…”  “बस करो हिना, वर्ना मेरा हाथ उठ जाएगा… इतनी भोली सूरत के पीछा इतनी घटिया सोच… अच्छा ही हुआ जो वक़्त नेहमें अलग कर दिया वर्ना मैं एक बेहद स्वार्थी और पैसों से लोगों को तोलनेवाली लड़की के चंगुल से नहीं बच पाता… तुममेरी हिना नहीं हो… तुम वो नहीं, जिससे मैंने प्यार किया था, तुमको तो मेरी सोच, मेरी मेहनत और आदर्शों से प्यार हुआकरता था, इतनी बदल गई तुम या फिर नकाब हट गया और तुम्हारी असली सूरत मेरे सामने आ गई, जो बेहद विद्रूप है! तुम मुझे डिज़र्व करती ही नहीं हो… मुझे तो धोखा दिया, जय की तो होकर रहो! और हां, इस ग़लतफ़हमी में मत रहना किमैं तुम जैसी लड़की के प्यार में दीवाना बनकर उम्र भर घुटता रहूंगा, शुक्र है ऊपरवाले ने मुझे तुमसे बचा लिया…” “अरे रौनक़, यार पार्टी तो एंजॉय कर, कहां खोया हुआ है…?” मेरे दोस्त मार्टिन ने टोका तो मैं यादों से वर्तमान में लौटा औरफिर डान्स फ़्लोर पर चला गया, तमाम पिछली यादों को हमेशा के लिए भुलाकर, एक नई सुनहरी सुबह की उम्मीद केसाथ! गीता शर्मा 

June 16, 2022

पहला अफेयर… लव स्टोरी: पहले प्यार का रूमानी एहसास (Pahla Affair… Love Story: Pahle Pyar Ka Roomani Ehsaas)

ऑफिस से निकलते ही मेरी नज़र सामने बैठे एक प्रेमी जोड़े पर पड़ी, जो एक-दूसरे से चिपककर बैठे थें. उस…

June 8, 2022

पहला अफेयर… लव स्टोरी: छोटी-सी मुलाक़ात! (Pahla Affair… Love Story: Chhoti-Si Mulaqat)

“आप मेरी सीट पर बैठे हैं मिस्टर… “  “जी शशिकांत… यही नाम है मेरा और हां, सॉरी आपकी विंडो सीट है आप यहां बैठ जाइए , मैं अपनी साइड सीट पर बैठजाता हूं!” “शुक्रिया” “वेल्कम मिस…?” “जी नेहा नाम है मेरा…” पता नहीं क्यों उस मनचले टाइप के लड़के से मैं भी फ़्रेंडली हो गई थी. मैं बस के रास्ते से मसूरी जारही थी और उसकी सीट भी मेरी बग़ल में ही थी, रास्तेभर उसकी कमेंट्री चल रही थी…  “प्रकृति भी कितनी ख़ूबसूरत होती है, सब कुछ कितना नपा-तुला होता है… और एक हम इंसान हैं जो इस नाप-तोल को, प्रकृति के संतुलन को बस बिगाड़ने में लगे रहते हैं… है ना नेहा… जी” मैं बस मुस्कुराकर उसकी बातों का जवाब दे देती… मन ही मन सोच रही थी कब ये सफ़र ख़त्म होगा और इससे पीछाछूटेगा… इतने में ही बस अचानक रुक गई, पता चला कुछ तकनीकी ख़राबी आ गई और अब ये आगे नहीं जा सकेगी… शाम ढल रही थी और मैं अकेली घबरा रही थी…  “नेहा, आप घबराओ मत, मैं हूं न आपके साथ…” शशि मेरी मनोदशा समझ रहा था लेकिन था तो वो भी अनजान ही, आख़िर इस पर कैसे इतना भरोसा कर सकती हूं… ऊपर से फ़ोन चार्ज नहीं था…  “नेहा आप मेरे फ़ोन से अपने घरवालों को कॉल कर सकती हैं, वर्ना वो भी घबरा जाएंगे…” शशि ने एक बार फिर मेरे मनको भांप लिया था…  मैंने घर पर बात की और शशि ने भी उनको तसल्ली दी, शशि फ़ौज में था… तभी शायद इतना ज़िंदादिल था. किसी तरहशशि ने पास के छोटे से लॉज में हमारे ठहरने का इंतज़ाम किया.  मैं शांति से सोई और सुबह होते ही शशि ने कार हायर करके मुझे मेरी मंज़िल तक पहुंचाया…  “शुक्रिया दोस्त, आपने मेरी बहुत मदद की, अब आप अंदर चलिए, चाय पीकर ही जाना…” मैंने आग्रह किया तो शशि नेकहा कि उनको भी अपने घर जल्द पहुंचना है क्योंकि शाम को ही उनको एक लड़की को देखने जाना है रिश्ते के लिए…  “कमाल है, आपने पहले नहीं बताया, मुबारक हो और हां जल्दी घर पहुंचिए…” मैंने ख़ुशी-ख़ुशी शशि को विदा किया.  “नेहा, बेटा जल्दी-जल्दी फ्रेश होकर अब आराम कर ले, शाम को तुझे लड़केवाले देखने आनेवाले हैं…” मम्मी की आवाज़सुनते ही मैं भी जल्दी से फ्रेश होकर आराम करने चली गई. शाम को जब उठी तो देखा घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था…  “मम्मी-पापा क्या हुआ? आप लोग ऐसे उदास क्यों बैठे हो?” “नेहा, पता नहीं बेटा वो लड़केवाले अब तक नहीं आए और उनके घर पर कोई फ़ोन भी नहीं उठा रहा…” पापा ने कहा तोमैंने उनको समझाया, “इतनी सी बात के लिए परेशान क्यों हो रहे हो, नेटवर्क प्रॉब्लम होगा और हो सकता है किसी वजहसे वो न आ पाए हों… कल या परसों का तय कर लेंगे…” ये कहकर मैं अपने रूम में आ गई तो देखा फ़ोन चार्ज हो चुकाथा. ढेर सारे मैसेज के बीच कुछ तस्वीरें भी थीं जो पापा ने मुझे भेजी थीं… ओपन किया तो मैं हैरान थी… ये तो शशि कीपिक्स हैं… तो इसका मतलब शशि ही मुझे देखने आनेवाले थे… मैं मन ही मन बड़ी खुश हुई लेकिन थोड़ी देर बाद ही येख़ुशी मातम में बदल गई जब शशि के घर से फ़ोन आया कि रास्ते में शशि की कैब पर आतंकी हमला हुआ था जिसमें वोशहीद हो गए थे…  मेरी ख़ुशियां मुझे मिलने से पहले ही बिछड़ गई थीं… मैंने शशि के घर जाने का फ़ैसला किया, पता…

May 11, 2022

पहला अफेयर… लव स्टोरी: ये मेघ सदा हमारे प्रेम के साक्षी होंगे (Pahla Affair… Love Story: Ye Megh Hamare Prem Ke Sakshi Honge)

इतने वर्षों बाद आज फ़ेसबुक पर तुम्हारी तस्वीर देख हृदय में अजीब सी बेचैनी होनी लगी. उम्र के साठवें बसंत में भी चेहरे पर वही मासूमियत, वही कशिश, वही ख़ूबसूरती और वही कज़रारी आंखें जिसने वर्षों पहले मुझे तुम्हारी ओर तरह खींच लिया था. तुम्हारी फूल सी मासूमियत का कब मैं भंवरा बन बैठा मुझे पता ही नहीं चला था. आज जीवन में भले ही हम अपने-अपने परिवारों में व्यस्त हैं, ख़ुश है और संतुष्ट भी हैं, पर कुछ ख़लिश भी है… मेरे अधूरे प्रेम की ख़लिश. मैंने तुम्हारे प्रेम की लौ को कभी बुझने नहीं दिया. वो आज भी मेरे हृदय के एक कोने में अलौकिक है. मैं बार-बार एक अल्हड़ से प्रेमी की तरह फ़ेसबुक पर तुम्हारी तस्वीर निहार रहा था. उस दिन की तरह आज भी बाहर आकाश काले मदमस्त बादलों से घिर गया था. ठंडी-ठंडी बयार चल रही थी, जिसके झोंके मुझे अतीत की तरफ़ खींच रहे थे, जब मैंने पहले बार तुम्हें स्कूल के रास्ते में अपनी साइकल की चेन ठीक करते देखा था. बार-बार की कोशिशों के बावजूद तुम साइकल की चेन ठीक करने में असफल हो रहीं थीं. जब तुमसे मदद करने के लिए पूछा तो तुमने मना करने के लिए जैसे ही निगाहें ऊपर उठाई, मेरी निगाहें तुम्हारे चेहरे पर टिक गयी थीं. गुलाब के फूल की तरह एकदम कोमल चेहरा, आंखों में गहरा काजल और लाल रिब्बन से बंधी दो लम्बी चोटियां. उसी क्षण मेरा दिल तुम्हारे लिए कुछ महसूस करने लगा था. पता नहीं क्या कशिश थी तुम्हारे मासूम चेहरे में कि तुम्हारे बार-बार मना करने के बाद भी मैं वहीं खड़ा रहा.  आसमान को अचानक काले-काले बादलों ने अपने आग़ोश में ले लिया था. ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बरखा पूरे ज़ोर-शोर से बरसने को आतुर है. अचानक करवट लिए मौसम और स्कूल लेट होने की परेशानी तुम्हारे चेहरे पर साफ़ झलक रही थी, लेकिन फिर भी तुमने मेरी मदद लेने को साफ़ इनकार कर दिया. तभी बादलों ने गरजना शुरू कर दिया और हार कर तुमने मेरी मदद ले ही ली. हम दोनों ने अपनी-अपनी साइकल घसीटते हुए, बातें करते हुए कब स्कूल का सफ़र तय कर लिया पता ही नहीं चला. बातों-बातों मे पता चला कि तुम मुझसे एक साल बड़ी हो. मैं ग्यराहवीं में था और तुम बारहवीं में.तुम्हारा स्कूल में ये अंतिम वर्ष था, ये सोचकर मैं बेचैन हो जाता था. बस फिर मैं अकसर तुम्हारी कक्षा और तुम्हारे आस-पास मंडराने के बहाने खोजने लगा. मैं किसी भी क़ीमत पर ये एक साल व्यर्थ नहीं करना चाहता था. हमारी दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होने लगी. मेरे दिल की हालत से बेख़बर तुम मुझे सिर्फ़ एक अच्छा दोस्त समझती थी, पर मैं तो तुम्हारे प्रेम के अथाह सागर में गोते लगा रहा था. उस ज़माने में लड़कियों और लड़कों की दोस्ती का चलन नहीं था, इसलिए हमारी मित्रता सिर्फ़ स्कूल तक ही सीमित थी. उस दिन बारहवीं क्लास के स्टूडेंट्स का स्कूल में अंतिम दिन था. सभी स्टूडेंट्स…

May 3, 2022

पहला अफेयर: गुडबाय अप्रतिम (Pahla Affair… Love Story: Goodbye Apratim)

रंगों और ख़ुशियों से सराबोर होली का दिन सबके लिए बेहद रंगीन होता है, लेकिन मेरे लिए ये रंग मेरे पुराने ज़ख्मों कोहरा करने के सिवा और कुछ नहीं… मुझे याद है जब अप्रतिम ने होली के रोज़ ही मुझे आकर गुलाबी रंग से  रंग डाला था. मैं बस देखती ही रह गई थी, न उसे रोका, न टोका.  अगले दिन कॉलेज में मुलाक़ात हुई तो अप्रतिम ने पूछा, “आरोही, तुमको बुरा तो नहीं लगा मेरा इस तरह अचानक आकरतुमको रंग लगाना?” “नहीं, ख़ुशी का दिन था, होली में तो वैसे भी गिले-शिकवे दूर हो जाते हैं…” मैंने जवाब दिया.  अप्रतिम ने फिर मेरी आंखों में झांका और कहा, “अगर मैं ये कहूं कि इसी तरह मैं तुम्हें अपने प्यार के रंग में रंगना चाहता हूं, ताउम्र, तब?” मैं उसकी तरफ़ देखती रह गई, आख़िर कॉलेज की कई लड़कियां उसकी दीवानी थीं. बेहद आकर्षक और सुलझा हुआ थाअप्रतिम.  “तुम्हारी चुप्पी को हां समझूं?” अप्रतिम ने टोका तो मैं भी मुस्कुराकर चली गई वहां से. पहले प्यार ने मुझे छू लिया था, मेरीज़िंदगी में इस होली ने वाक़ई मुहब्बत के रंग भर दिए थे.  कॉलेज पूरा हुआ, अप्रतिम को अच्छी सरकारी नौकरी मिल गई थी और मैं भी अपना पैशन पूरा करने में जुट गई. कमर्शियल पायलेट बनने का बचपन से ही सपना था मेरा. इसी बीच अप्रतिम ने बताया उसकी बहन की शादी तय हो गई है और उसके बाद वो हमारी शादी की बात करेगा घर में.  एक रोज़ मैंने अप्रतिम से कहा कि चलो आज दीदी के ऑफ़िस चलकर उनको सर्प्राइज़ देते हैं, तब अप्रतिम ने बताया किदीदी ने जॉब छोड दिया. वजह पूछने पर उसने बताया कि शादी के बाद वो घर सम्भालेंगी, क्योंकि उनके होनेवाले सास-ससुर व पति भी यही चाहते हैं.  “लेकिन तुमने या दीदी ने उनको समझाया क्यों नहीं, दीदी इतनी टैलेंटेड हैं. हाइली क्वालिफ़ाइड हैं…”  अप्रतिम ने मुझे बीच में ही चुप कराकर कहा कि ये उनका मैटर है और शादी के लिए तो लड़कियों को एडजेस्ट करना हीपड़ता है, इसमें ग़लत क्या है? आगे चलकर उनको ग्रहस्थी ही तो सम्भालनी है.  मुझे बेहद अजीब लगा कि इतनी खुली व सुलझी हुई सोच का लड़का ऐसी बात कैसे कर सकता है? ख़ैर, मुझे भी जॉब मिल गया था और अब मैं आसमान से बातें करने लगी थी. तभी घर में मेरी भी शादी की बात चलने लगीऔर मम्मी-पापा ने अप्रतिम से कहा कि वो भी अपने घरवालों को बुलाकर हमसे मिलवा दे. “अप्रतिम, क्या बात है? तुम संडे को आ रहे हो न मॉम-डैड के साथ? इतने परेशान क्यों हो? उनको भी तो हमारे बारे में सबपता है, फिर तुम उलझे हुए से क्यों लग रहे हो?” मैंने सवाल किया तो अप्रतिम ने कहा कि उसकी उलझन की वजह मेराजॉब और करियर है. वो बोला, “आरोही,  मैं समझता हूं कि ये तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक जॉब नहीं, बल्कि तुम्हारा सपना है, लेकिन मेरे पेरेंट्स इसे नहीं समझेंगे. उनका कहना है कि इतना टफ़ काम तुम क्यों करती हो? लकड़ी होकर इसमें करियरबनाने की बजाय तुम कोई दफ़्तर की पार्ट टाइम नौकरी कर लो, ताकि मेरा भी ख़याल रख सको और घर भी सम्भालसको…”  मैंने उसे बीच में टोका, “तुम्हारा ख़याल? तुम कोई बच्चे नहीं हो और न मैं तुम्हारी आया. हम पार्टनर्स हैं, तुमने अपने पेरेंट्सको समझाया नहीं?” “आरोही मैं क्या समझाता, वो भी तो ग़लत नहीं हैं. मैं अच्छा-ख़ासा कमाता हूं. पैसों को वैसे भी कमी नहीं…”…

April 5, 2022
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