चांदनी… दूधिया सफ़ेद… न सिर्फ़ उसका रंग बल्कि उसके कपड़े भी… वो हमेशा सफ़ेद रंग ही पहनती है… उस पर खूब फबता भी है… एकदम पाक… मासूम रंग जैसे सुबह-सुबह की नर्म-नाज़ुक ओस… उसकी भोली मुस्कान उसके गुलाबी होंठों पर हमेशा बिखरी रहतीहै… अभी-अभी हमारे मोहल्ले में रहने आई है और रोज़ सुबह-शाम मेरी गली से गुजरती है, उसके साथ उस वक्त एक छोटी बच्ची भीरहती है, उसकी छोटी बहन होगी, उसी को स्कूल छोड़ने-ले जाने जाती है… जब भी वो मेरे घर के सामने से गुजरती है मैं ज़ोर से वो गाना मोबाइल पे लगा देता हूं… चांद मेरा दिल, चांदनी हो तुम… और वो एकनज़र मेरी खिड़की की तरफ़ डालकर निकल जाती है. यही सिलसिला चल रहा था कि एक रोज़ उसे बस स्टॉप पर देखा. मैंने बाइकरोकी और उसके पास जाकर बात करने की कोशिश की… “आपको रोज़ देखता हूं मैं, नई आई हैं आप इस मोहल्ले में?” “जी हां.” उसकी मीठी आवाज़ आज पहली बार सुनी. खुद को खुशक़िस्मत समझ रहा था मैं उसके इतना क़रीब जाकर. “कहीं जा रही हैं? आइए मैं छोड़ दूं…” मैंने उसकी मदद करने के इरादे से पूछा, तो उसने नो, थैंक यू कहकर टाल दिया… अब अक्सर उससे यूं ही मुलाक़ात होने लगी, कभी मार्केट में, तो कभी बस स्टॉप पर, क्योंकि मैंने बाइक छोड़ बस से जाना शुरू करदिया. “एक रोज़ हमें बस में साथ बैठने का मौक़ा मिला, तो उसने सवाल किया, “आप तो बाइक से जाते थे ना?” “जी, लेकिन सोचा बाइक से पेट्रोल बर्बाद करने से बेहतर है पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज़ करूं…” “वैसे आपका नाम जान सकता हूं…?” मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया. “मैं चांदनी हूं. वैसे आपका नाम क्या है?” “मैं वियान हूं…” फिर हम दोनों चुप रहे और इतने में ही मेरा स्टॉप आ गया… अरे, ये क्या चांदनी भी यहीं उतर रही है? मैं सोच में पड़ गया. वो आगे चलरही थी, मेरे ही बैंक के गेट की ओर वो जाने लगी. मैंने सोचा कोई काम होगा. मैं भी अंदर चला गया और काम में जुट गया. वैसे मेरीनज़रें चांदनी को ही ढूंढ़ रही थीं, पर वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी. इतने में ही डेस्क पर रखा फ़ोन बजा और हमको कॉन्फ़्रेन्स रूम मेंबुलाया गया. “हेलो एवरीवन, मैं चांदनी… आपकी नई ब्रांच मैनेजर…” उसको यूं देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए थे.जिसे मैं एक घरेलू लड़की समझ रहा था, उसका एक अलग ही रूप और अंदाज़ आज मेरेसामने था. ख़ैर, मीटिंग ख़त्म हुई और मैं अपने डेस्क पर लौट आया. “वियान सर, आपको मैम ने बुलाया है…” मुझे ऑफ़िस बॉय ने आकर कहा तो मैंने केबिन में जाकर कहा- “मैम आपने बुलाया?” “हां, मैंने सोचा बैंक के सभी सीनियर पोस्ट वालों से वन ऑन वन बात करके अपडेट ले लेती हूं ताकि हम मिलकर बतौर एक टीम कामकरें और अपने बैंक को फिर से नंबर वन बनाएं.”…
शादी तय होते ही जहां एक तरफ़ मन में कई सपने पलने लगते हैं तो वहीं नए रिश्तों को लेकर अलग तरह का डर और तनाव भी होनेलगता है. शादी के बाद लड़कियां अपना घर छोड़कर अपने नए रिश्तों को सींचने पति के घर जाती हैं और भविष्य में पति के रिश्ते हीउसके रिश्ते हो जाते हैं. ऐसे में हर लड़की के मन में ये विचार ज़रूर आते हैं कि क्या पता कैसा होगा सबका स्वभाव? सास कैसी होगी, ननद और देवर कैसे बिहेव करेंगे आदि… ऐसे में ज़रूरी है कि शादी से पहले ही आप अपनी तरफ़ से प्रयास करें उनका स्वभाव जानकर उनके साथ बेस्ट बॉन्ड बनाएं. कैसे, आइएजानें… सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखें कि किसी के भी प्रति मात्र एक-दो मुलाक़ात से ही कोई धारणा न बना लें.पहली मुलाक़ात में अगर ससुरजी थोड़े ग़ुस्से वाले लगे हों तो उसको आधार बनाकर अपने मन में ये बात न बैठा लें कि ये तो बड़ेखड़ूस हैं.बेनीफ़िट ऑफ़ डाउट दें. हो सकता है उस दिन उनका मूड ठीक न हो या तबियत ठीक न लग रही हो, तो किसी को भी जज करनेसे बचें. अपने होनेवाले पति की मदद लें, क्योंकि ज़ाहिर है उनसे आपकी बातें और मुलाक़ातें बाकी सदस्यों की बजाय ज़्यादा होंगी. बातों-बातों में होनेवाले पति से सबके बेसिक नेचर की जानकारी लें. सबकी पसंद-नापसंद, खाने में टेस्ट आदि के बारे में पता करें. सबके बर्थडे पता कर लें. घर में अगर छोटी ननद या देवर हो तो उससे कर लें दोस्ती. किसी एक मेंबर को अपना बेस्ट फ़्रेंड बना लें और उसके साथ मिलकर कुछ सरप्राइज़ प्लान करें. अपने होनेवाले पति के बारे में इस सदस्य से जानें कि उनको भी क्या पसंद और नापसंद है. शादी से पहले अगर किसी का जन्मदिन आ रहा है तो अपनी तरफ़ से उनके लिए ख़ास प्लान करें या उनकी पसंद का कुछ बनाकरके जाएं. ऐसे में उनको भी आपके एफ़र्ट्स दिखेंगे और वो संतुष्ट हो जाएंगे कि उन्होंने सही लड़की को चुना है जो वाक़ई सिर्फ़ पतिको ही नहीं पूरे परिवार को अपना बनाना चाहती है.अगर कोई ओकेज़न नहीं भी है तो भी गिफ़्ट ले जाने में कोई बुराई नहीं. सबके लिए कुछ न कुछ ले जाएं. अगर शादी से पहले कोई फ़ेस्टिवल आ रहा है तो बेहतर होगा कि अपने होनेवाले इन लॉज़ के साथ मनाएं. ऐसे मौक़े पर बेहतर होगा कि आप ट्रेडिशनल अंदाज़ में तैयार हों, अपनी होनेवाली बहू को ऐसे सजा-धजादेखकर उनका मन खुशहो जाएगा. होनेवाले ससुराल में किस तरह के दैनिक नियमों व डिसिप्लिन का पालन होता है ये भी जानें, जैसे- हो सकता है वहां सबको सुबहजल्दी उठकर योगा या जॉगिंग की आदत हो या कुछ लोगों को बेड टी की हैबिट हो तो आप पहले से ही प्लान कर सकती हैं औरएक माइंडसेट के साथ बेहतर तरीक़े से खुद को कम्फ़र्टेबल कर सकती हैं नए घर में. आप भी जल्दी उठकर उनकी मदद कर सकती हैं. बेड टी बनाकर दे सकती हैं. ये बात सही है कि आजकल लड़का-लड़की दोनों ही कमाते हैं लेकिन वहीं ये बात भी तो सही है कि आज भी लड़कियों को हीएक घर छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ता है, तो ऐसे में उन पर दबाव और ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है. शुरुआत में तो आपको अपना रूटीन ससुराल के हिसाब से ढालना ही पड़ता है, फिर जब धीरे-धीरे सबकी सब भी आपके साथकम्फ़र्टेबल होकर आपको दिल से स्वीकार लेते हैं तो आपकी भी ज़रूरतों, पसंद-नापसंद को वो तवज्जो देने लगेंगे.एक बात का हमेशा ख़याल रखें कि अपने व्यवहार और अपने पहनावे में हमेशा शालीनता बरतें. आप भले ही शादी से पहले कुछभी पहना-ओढ़ना पसंद करती हों लेकिन शादी तय होने के बाद कोशिश करें कि सास-ससुर और पति की पसंद का भी कुछपहनें, उन्हें अच्छा लगेगा और आप पर उनका भरोसा भी बढ़ेगा. आपके व्यवहार, बात करने और उठने-बैठने के तरीक़ों पर उनकी नज़र ज़रूर होगी, इसलिए शादी से पहले भी और शादी के बादभी आपको सतर्क रहना होगा कि उनको ये महसूस न हो कि आप सिर्फ़ उनको इम्प्रेस करने के लिए दिखावा कर रही थीं. इसलिएजो भी करें दिल से करें. इस बात को स्वीकार कर लें कि शादी तय होते ही आपकी ज़िंदगी में बदलाव ज़रूर आएंगे, आपको उनको स्वीकारना ही होगाऔर ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकारें, ताकि इस बदलाव को आप सकारात्मक तरीक़े से अपना सकें. शादी जहां हसीन सपने दिखती है तो वहीं जिम्मेदारियां भी बढ़ाती है इसका ख़याल रखें और ज़िम्मेदारी को आगे बढ़कर ख़ुशी-ख़ुशी लें.कभी भी ईगो को बीच में न आने दें और ये न सोचें कि मैं ही क्यों कोशिश करूं, लेकिन आपकी ये कोशिश ही आपको बेहतरीनरिश्ते और ज़िंदगी देगी. इसके अलावा ये भी सोचें कि होनेवाले सास-ससुर आपके माता-पिता जैसे ही हैं तो अगर बड़ों को खुश करने के लिए थोड़ीमेहनत की भी जाए तो क्या बुराई है, इसके बदले उनका प्यार और आशीर्वाद जो मिलेगा वो आपको ताउम्र ख़ुशियां देगा. घर के छोटों को भी प्यार और दुलार दें. अगर सगाई के बाद कहीं घूमने या मूवी का प्लान हो तो कोशिश करें कि ससुराल केअन्य सदस्य भी साथ आएं, एक फ़ैमिली की तरह गेट-टुगेदर मनाएं और अगर कोई बड़ा साथ नहीं आता ये सोचकर कि होनेवालेकपल को अकेले मौक़े दें घूमने-फिरने का तो घर के छोटों को साथ ले जाएं. ये छोटी-छोटी कोशिशें आपके भावी रिश्तों को मज़बूत डोर से बांधेगी. बिट्टु शर्मा
शादी को लेकर सबके अपने सपने होते हैं. शादी तय होते ही लोग सपनों की दुनिया में खो जाते हैं और उन्हें सब कुछ हसीन और रंगीनलगने लगता है. शादी के अलावा जो बात कपल को सबसे ज़्यादा उत्साहित करती है, वो है हनीमून! शादी के बाद हनीमून पर जाना अब ट्रेंड बन चुका है. पहले इसे विदेशी कल्चर माना जाता था लेकिन अब इंडिया में भी हर वर्ग में ये एकज़रूरी रस्म बन चुका है. इसके लिए बाक़ायदा प्लानिंग होती है और अपने बजट और शौक़ के हिसाब से लोकेशंस का चुनाव किया जाता है. तो क्या हनीमून परजाना इतना ज़रूरी हो चुका है? आख़िर क्यों ज़रूरी है शादी के बाद हनीमून पर जाना? आइए जानें… शादी की रस्में काफ़ी थका देती हैं और शादी की पूरी प्रक्रिया में एक अलग तरह का तनाव भी होता है, जिसके चलते कपल कोहनीमून का ख़याल ही रिफ़्रेश कर देता है. शादी में रिश्तेदारों की भीड़भाड़ के बीच कपल को एक-दूसरे के लिए वक्त नहीं मिलता, ऐसे में हनीमून उनको वो पर्सनल स्पेसदेता है. हनीमून के दौरान दोनों एक-दूसरे को पूरा वक्त देते हैं और क़रीब आने का ये बेहतरीन मौक़ा होता है. नई जगह सिर्फ़ अपने पार्टनर के साथ अकेले में वक्त बिताना, घूमना-फिरना उनको रिफ़्रेश कर देता है. आजकल तो लोग विदेशों की सैर भी करते हैं और ख़ास नए शादीशुदा जोड़ों के लिए ट्रैवल एजेंसीज़ हनीमून स्पेशल पैकेज भीदेते हैं, जो बेहद ख़ास और स्पेशल होता है.एक वक्त के बाद दोनों अपनी ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते हैं इसलिए हनीमून में मिला ब्रेक और रोमांटिक पल ताउम्र के लिएयादगार बन जाते हैं. ये कपल का पहला वेकेशन होता है इसलिए एक तरह से ये उनके लिए स्पेशल होता है.अकेले में उनको कोई डिस्टर्ब करनेवाला भी नहीं होता तो वो इन पलों को खुलकर जीने का मज़ा ले सकते हैं.मनचाहा पहनना, मनचाहा खाना, जब मन करे सोना और उठना, जब चाहो घूमना- कोई टोका-टाकी नहीं और किसी बात कीरोक-टोक नहीं, ज़ाहिर है एक नए शादीशुदा जोड़े को और क्या चाहिए.वैसे आजकल एक और ट्रेंड ज़ोर पकड़ रहा है और वो ये कि शादी के ठीक बाद हनीमून पर न जाकर कुछ दिन रुककर हनीमून परजाना. इसके पीछे यही सोच होती है कि शादी के फ़ौरन बाद दोनों के बीच एक झिझक और संकोच होता है, इसलिए पहले कुछवक्त घर पर परिवार के लोगों के साथ रहकर दोनों कम्फ़र्टेबल होना चाहते हैं ताकि हनीमून के वक्त तक उनका बॉन्ड बेहतर होजाए और वो इस पीरियड को बेहतर तरीक़े से एंजॉय कर सकें. इसके अलावा शादी के दौरान काफ़ी खर्च हो चुका होता है तो फायनेंशली भी कपल वीक हो जाते हैं, ऐसे में हनीमून का खर्चाऔर बोझ बढ़ा सकता है. इसलिए लोग सोचते हैं कि पहले पैसा इकट्ठा कर लें ताकि वो हनीमून को पूरी तरह एंजॉय कर सकें.शादी के लिए छुट्टियां भी ज़्यादा ली जाती है इसलिए हनीमून के लिए कम वक्त मिलता है, इसलिए लोग सोचते हैं कि जल्दबाज़ीमें कुछ भी करने से बेहतर है थोड़ा रुककर प्लान करें ताकि छुट्टियां भी मिल सकें और पैसों की भी कमी न रहे, जिससे वो अपनाहनीमून एकदम ख़ास बना सकें. कितना ज़रूरी है हनीमून और क्या है अन्य विकल्प? कई लोगों का ये मानना है कि हनीमून पर जाना इतना भी ज़रूरी नहीं जितना लोग सोचते हैं. लव मैरिज हो तो वैसे ही कपल पहलेही काफ़ी घूम-फिर चुका होता है और अरेंज मैरिज में दोनों के बीच संकोच की दीवार होती है, इसलिए हनीमून पर फ़ौरन जानेकी बजाय कपल कुछ दिन छुट्टी लेकर घर पर ही एक-दूसरे के साथ वक्त बिता सकता है.परिवार के बीच रहने का अलग ही मज़ा है और सबसे नज़रें बचाकर रोमांस करना काफ़ी रोमांचित कर देता है. आप दोनों इस दौरान आसपास ही घूम-फिर सकते हैं, डिनर डेट्स पर जा सकते हैं, मूवीज़ एंजॉय कर सकते हैं और इस तरहएक-दूसरे को समझ भी सकते हैं. एक-दूसरे की पसंद-नापसंद जानने का भी ये सुनहरा मौक़ा होता है क्योंकि हनीमून पर तो आप रोमांस में डूबे होते हैं और बाक़ीका समय घूमने-फिरने में चला जाता है, इसलिए इस दौरान समझने-बूझने की तरफ़ ध्यान ही नहीं जाता.लेकिन घर पर रहकरएक-दूसरे के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक्त बिताने का मौक़ा मिलता है जिससे आप दोनों जल्दी कम्फ़र्टेबल हो सकते हैं. बाक़ी तो ये पर्सनल चॉइस होती है, आप अपना बजट और सुविधा देख कर कभी भी हनीमून प्लान कर सकते हैं और अपनीलाइफ़ को रिफ़्रेश मोड पर ला सकते हैं. भोलू शर्मा
दिल्ली के एक कॉलेज में बेटी को इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलवा कर हॉस्टल में उसका सामान रखकर मैंने उसे मेस में खाना खाने केलिए चलने को कहा. उसका खाना खाने में मन नहीं था, उसने मना कर दिया. मैं अकेला ही मेस की ओर निकल गया. बड़ी तेज़ भूख लगरही थी. मेस में खाने की खुशबू ने भूख को और बढ़ा दिया. मैं थाली लगाकर एक टेबल पर बैठ गया और जल्दी-जल्दी खाने लगा. अचानक गले में निवाला अटक गया और मैं ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा. मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. सहसा एक मधुर आवाज़सुनाई दी-‘पानी’ मैंने नज़रें उठाकर उसे देखा, आश्चर्य चकित रह गया- “विभूति तुम…” “पहले पानी पी लो.” मेरे हाथों में ग्लास पकडाकर वह पास की कुर्सी पर बैठ गई. पानी पीते-पीते ही पुराने दिन याद आने लगे. बरसों पहले गांव से शहर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आया था. हॉस्टल में रूम नहीं मिला. कॉलेज के पास ही किराए पर कमरा लेलिया. ज़रूरत का सब सामान सेट कर लिया था. पास में ही एक टिफिन सेंटर था, वहां से टिफिन लगवा लिया. टिफिन में रोज़-रोज़दाल-सब्ज़ी खाकर बोर हो गया था. एक दिन आंटी को मेनू बदलने के लिए कहने टिफिन सेंटर पर गया. सेंटर पर टिफिन पैक करतीएक मोटी लड़की दिखाई दी. मुझे लगा यही टिफिन सेंटर वाली आंटी है. “आंटी ज़रा सुनिए…” वह जैसे ही पलटी, मैं उसे देखता ही रह गया. वह मोटी ज़रूर थी मगर उसके घुंघराले बाल, गहरी भूरी आंखें और गुलाबी होंठों पर सजीमुस्कान किसी को भी दीवाना बना सकती थी. जब मैंने उसकी आंखों को देखा तो देखता ही रह गया. मै उसके आकर्षण में गुम हो गया. उसने क्या बोला मुझे सुनाई नहीं दिया. उसने मुझे झंझोड़ते हुए पूछा-“मम्मी घर पर नहीं है आपको क्या चाहिए?” मैं जैसे-तैसे होश में आया. “आज अलसाया-सा रविवार है और रविवार को छुट्टी होती है. इस दिन आप कुछ अच्छा नहीं खिला सकतेक्या? आप लोग रोज़-रोज़ टिफिन में दाल-चावल भेज देते हो.” मैं थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा. “पहले तो आप धीरे बोलिए. दूसरी बात, यह टिफिन सेंटर है, आपकी घर का किचन नहीं, जहां आप अपनी मर्ज़ी चलाएं. वैसे भी सेहतके लिए दाल-रोटी ज़्यादा बेहतर होती है. स्वाद बदलने के लिए रेस्टोरेंट खुले हुए हैं… समझे आप.” वह अपनी बात खत्म कर अपने काममें व्यस्त हो गई और मैं मायूस होकर लौट आया. घर आकर मेरा मन किसी काम में नहीं लगा. बार-बार उसका चेहरा याद आता रहा. उसकी आंखों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. अब मैं बहानेसे उसके घर के चक्कर लगाता रहता. पहले जान-पहचान, फिर दोस्ती और उसके बाद प्यार हो गया. मैं अक्सर उससे कहता था, ‘विभूतुम्हारी आंखें बहुत सुंदर है. कहीं मैं डूब न जाऊं’ और वह कहती, ‘कभी इन आंखों में समन्दर मत रखना मुझे तैरना नहीं आता.’ अब कभी-कभी टिफिन के साथ एक और टिफिन आता, जिसमें कभी इडली-सांबर होता, तो कभी मूंग का हलवा. यह विभूति मेरे लिएस्पेशल तौर पर भेजती जिसका कभी एक्स्ट्रा चार्ज नहीं लिया. मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और मैं अपने घर लौट गया. नौकरी मिलते हीपरिवार वालों ने एक सुंदर कन्या देखकर मेरी शादी फिक्स कर दी. इन सबमें मै विभूति को भूल गया और अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होगया. विभूति से मेरी दोबारा मुलाकात होगी यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था. विभूति अब पहले से काफी बदल चुकी थी. पतली-दुबली मगरआकर्षक लग रही थी. उसकी आंखें पहले जैसी ही थीं. “मां चाहती थी कि मैं शादी कर लूं मगर मुझे तुम्हारा इंतज़ार था और विश्वास थाकि तुम ज़रूर लौटोगे. तुम्हें न आना था, न आए मगर तुम्हारी शादी की सूचना ज़रूर मिल गई थी. बस, उस दिन के बाद तुम्हारे आने कीआस खत्म हो गई, लेकिन मेरा प्रेम नहीं. आज भी तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो. तुम्हारे बाद इन आंखों में किसी को डूबने नहींदिया. तुमने मेरी आंखों में जो समन्दर रखा था, उसमें मैंने तैरना सीख लिया है. फ़िक्र न करो, मेरे प्यार मुझ तक ही सीमित है… तुम्हें कोईपरेशानी नहीं होगी. हमारी ज़िंदगी में बदलाव की ज़रूरत होती है ना, बस वही बदला है. मां के जाने के बाद मैंने घर और टिफिन सेंटरबेच दिया और इस शहर में आकर मेस इंचार्ज बन गई. मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है. तुम तो मुझे कुछ इस तरह मिले, जैसे बरसोंपहले एक यात्रा के दौरान तुम मेरे सहयात्री रहे हो और बरसों बाद अचानक दोबारा मुलाकात हो गई… अस्थाई मुलाकात. जीवनयात्रा मेंतो यह सब चलता रहता है. प्रेम की परिणीति शादी हो… ज़रूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ गुज़रा हुआ वक्त मेरे जीवन का सुखद हिस्सा है…” वह चली गई और मैं आत्मग्लानि में डूब गया. कुछ लोगों के लिए प्रेम कोई खेल नहीं, उनके लिए तो प्रेम इबादत है और जीने की वज़ह… मुझे अपने किए पर पछतावा होने लगा. शोभा रानी गोयल
पार्टनर, साथी, हमसफ़र… हमराज़… अपने एक ही रिश्ते में कितना कुछ तलाश लेते हैं हम. शादी का रिश्ता होता ही है ऐसा औरइसीलिए इसे जन्म-जन्मांतर का रिश्ता कहा जाता है. अपने पार्टनर के साथ हम सुख-दुःख और उतार-चढ़ाव देखते हैं लेकिन जब हमअपने ही पार्टनर को अपना प्रतिस्पर्धी समझने लगते हैं तब रिश्ते में दरार की आशंका पैदा होने लगती है. क्या आप भी अपने पार्टनर कोअपना कॉम्पेटिटर समझते हैं? अगर ऐसा है तो संभल जाइए और अपने रिश्ते को मज़बूत बनाइए. अक्सर देखा गया है कि लोग अपने साथी को अपने ही रंग में ढालने की कोशिश में जुट जाते हैं.वो ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि वो परफेक्ट और बेस्ट हैं. अधिकतर ऐसा होता है कि अगर आपका साथी आपके किसी काम में मदद करवाता है तो दूसरा पार्टनर बजाय उसकी सराहनाके उसमें मीन-मेख निकालने लगता है. …अरे ये क्या किया तुमने, तुमसे नहीं हो पाएगा… तुम मदद न ही करो तो अच्छा है… तुम मेरी तरह नहीं कर सकते इस काम को… तुमसे अच्छा तो मैं ही कर लेता/लेती हूं… क्या आप ऐसे जुमले अक्सर इस्तेमाल करते हैं? आपके दोस्त या रिश्तेदार अगर आपके पार्टनर के गुणों को सराहते हैं तो आपको ख़ुशी होती है या ईर्ष्या? आपके पार्टनर की तरक़्क़ी से आपके अभिमान को तो ठेस नहीं पहुंचती? क्या आपके मन में ऐसा ख़याल अक्सर पनपता है कि जिसे देखो मेरी पत्नी/पति की ही तारीफ़ में लगा रहता है जैसे मुझमें तोकोई गुण है ही नहीं… इस तरह के तमाम नकारात्मक ख़याल ही मन में ईर्ष्या को जन्म देते हैं और आपको भी ईगोइस्ट बनाते चले जाते हैं, ऐसे में आपये समझ ही नहीं पाते कि आप जिससे ईर्ष्या करने जा रहे हैं वो आपका साथी है, न कि प्रतिस्पर्धी.कॉम्पेटिशन करना बुरी बात नहीं, लेकिन वो कॉम्पेटिशन हेल्दी होना ज़रूरी है. कोशिश करें कि अपने मन में नकारात्मक विचारों को न आने दें और अपने हमसफ़र को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा समझें न किअपना प्रतियोगी.दरअसल होता ये है कि साथ रहते-रहते कब ये छोटे-छोटे मीन-मेख निकालने की आदत आपके मन में प्रतियोगिता की भावना भरदेती है इसका एहसास ही नहीं हो पाता.पति-पत्नी दोनों में ही ये भावना घर करने लगती है कि मैं अपने पार्टनर से बेहतर व ज़्यादा गुणी हूं. ऐसे में छींटाकशी से शुरू होते होते कब वो ताने देने लगते हैं और कब वो साथी से एक-दूसरे के कॉम्पेटिटर बनने लगते हैं उनकोभी पता नहीं चलता. इसीलिए बेहतर होगा कि आप अपने रिश्ते की गंभीरता को समझें और अपने रिश्ते को भी गंभीरता से लें और उसे प्यार वअपनेपन की भावना से सींचें. इसके लिए सबसे पहले ये बात मन से निकाल दें कि मैं आपने पार्टनर से ज़्यादा स्मार्ट और इंटेलिजेंट हूं.आप दोनों ही अपने-अपने स्तर पर बेस्ट हैं और एक-दूसरे का संबल व सहारा हैं. ज़ाहिर है जो एक के लिए अच्छा होगा वो उसी के दूसरे व पूरे परिवार की भलाई होगी. दूसरों के सामने एक-दूसरे को नीचा दिखाने से बचें और अपने साथी के गुणों को सराहें. सबको ये बताएं कि आपको बेस्ट पार्टनर मिला है और आप लकी हैं. अपने पार्टनर को भी अपना प्यार जताएं और उसके गुणों को सच्चे दिल से सराहें. उसे आगे बढ़ाएं, न कि उसकी कमियों को गिनाएं. अक्सर कपल एक-दूसरे को बेहतर साबित करने के लिए अपने पार्टनर की कमज़ोरियों को गिनाने लगता है… यहां तक कि उनकेरूप-रंग व क़द-काठी पर भी ताने देने से नहीं चूकता.पत्नियों को अक्सर वाद-विवाद या झगड़े में कहते सुना जाता है कि मुझे तो डॉक्टर और तुमसे ज़्यादा हैंडसम लड़के मिल रहे थेपर नसीब देखो… वहीं पति भी पत्नियों के फ़िगर व रंग को लेकर कहते हैं कि वर्माजी की लकड़ी का रिश्ता आया था जो तुमसेज़्यादा गोरी और सुंदर थी लेकिन मां को पता नहीं तुममें क्या दिखा… ये भले ही छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन दिल पर बड़ी चोटकरती हैं. इनसे बचें. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अगर पत्नी को प्रमोशन मिलता है तो पति ताने देने लगते हैं कि बॉस तुम पर कुछ ज़्यादा हीमेहरबान है… या वो अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए पत्नी के बनाए खाने में या उनके किसी न किसी काम में कमियां निकालनेलगते हैं. वक्त रहते सम्भालने अपने रिश्ते को… सबसे पहले तो इस बात को समझ लें कि आपकी मुसीबत में या बुरे वक्त में जब सब साथ छोड़ देंगे तब सिर्फ़ आप दोनों हीएक-दूसरे के साथ और एक-दूजे का सहारा रहोगे. इसलिए आपके पार्टनर की तरक़्क़ी में ही आपकी भी तरक़्क़ी है… उसकी तारीफ़ में भी आपकी ही तारीफ़ है. पार्टनर को नज़रअन्दाज़ न करें, उनका व उनकी सलाह का सम्मान करें. दूसरों से तुलना न करें और न ही दूसरों की बातों में आएं. लोगों के सामने अपने पार्टनर की रेस्पेक्ट बनाए रखना आपकी ज़िम्मेदारी है. आप दोनों जीवनसाथी हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं.आपको ज़िंदगी एक साथ और एक-दूसरे के सहयोग से बितानी है, न कि एक-दूसरे के विरोध में.आप आमने-सामने नहीं, साथ-साथ हैं. प्यार के रिश्ते में प्यार बढ़ाएं. अगर पार्टनर आपकी किसी कमज़ोरीया कमी को ठीक करने को कहता भी है तो इस दिशा के प्रयास करके उन्हें विश्वास दिलाएंकि उनकी सलाह को आपने ग़लत तरीक़े से नहीं लिया. इसी तरह एक-दूजे को हेल्दी तरीक़े से चुनौती दें, चाहे ज़्यादा सेविंग्स करने की बात हो या ज़्यादा फ़िट रहने की.शर्त लगाएं कि इस महीने आप पार्टनर से ज़्यादा सेव करके दिखाएंगे या आप ज़्यादा व जल्दी फ़िट होकर दिखाएंगे… इसी तरह अन्य कामों में भी फ़न ऐड करें इससे आपका रिश्ता पॉज़िटिव दिशा में बूस्ट होकर आगे बढ़ेगा और नकारात्मकभावनाएं दूर होंगी.एक बात का ध्यान रखें कि मन-मुटाव और वाद-विवाद हर रिश्ते में होता है लेकिन ये वहीं होता है जहां प्यार होता है. किसी भी छोटी सी बात का बतंगड़ बनाने से बचें. न ही अपने मन में उसे घर करने दें और न ही पार्टनर के प्रति बदले की भावनारखें. कुछ बातों को नज़र अन्दाज़ करना ही रिश्ते के लिए बेहतर होता है.. कुछ चीज़ों को बस जाने देना ही ठीक होता है, इसलिए आपभी ऐसी बातों को जाने दें. राजा शर्मा
तन्हाई में अक्सर दिल के दरवाज़े पर तुम्हारी यादों की दस्तक से कुछ खट्टे- मीठे और दर्द में भीगे लम्हे जीवंत होकर मानस पटल परमोतियों की तरह बिखर जाते हैं. उन्हीं में से एक खुबसूरत लम्हा है… ‘मैं, तुम और मॉनसून.’ आज भी याद है मुझे हमारे प्रणय का प्रथम मॉनसून... तुम मेरे सामने वाले घर में किरायेदार के रूप रहते थे और हमारा खुद का घर था. संयोग था हमारा कॉलेज एक ही था. साथ-साथ कॉलेज जाते थे, एक-दूसरे के घरों में भी आना-जाना था, धीरे-धीरे कब एक-दूसरे के दिलों में उतर गए दोनों को ही खबर ना थी... बेखबर और बेपरवाह थे. आज की तरह मोबाइल पर मैसेज आदान-प्रदान करने की सुविधा नहीं थी, लेकिन हमारी आंखों के इशारे ही हमारे मैसेज थे... चिट्ठी-पत्री में भी विश्वास नहीं था, एक-दूसरे की खामोशी को शब्दों में ढालकर पढ़ने का जबरदस्त हुनर था हम दोनों में. एक बार यूं ही प्लान बना लिया ताजमहल देखने का. शायद दोनों के मन में प्रेम के प्रतीक ताजमहल के समक्ष अपना प्रणय निवेदन करने की चाह थी. बसएक रोज़ निकल पड़े ताजमहल निहारने. घरों से अलग-अलग निकले छिपते-छिपाते... सावन का महीना था, बादल सूरज से लुका-छिपी का खेल खेल रहे थे, हल्की-फुल्की बौछारों से नहाए ताजमहल की खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे, संगमरमर से टपकती बूंदों सेउस वक्त मुहब्बत के साक्षात दर्शन हो रहे थे... उस हसीन नज़ारे को देखकर हम दोनों भावुक हो उठे... एक नज़र ताजमहल पर डाली, तोलगा जैसे प्रकृति ने बारिश की बूंदों के रूप में पुष्पों की बारिश करके उसे ढक दिया है, जिससे उसका सौष्ठव और दैदीप्यमान हो उठा है. अचानक बादलों की तेज़ गड़गड़ाहट से मैं डरकर तुम्हारे सीने से लग गई और तुमने मुझे इस तरह से थाम लिया जैसे मैं कहीं तुमसे बिछड़ना जाऊं… और फिर ज़ोर से झमाझम बारिश होने लगी. मैं तुम्हारी बाहों में लाज से दोहरी होकर सिमट गई... मैं झिझक रही थी, लजा रही थी और तुम्हारी बाहों से खुद को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रही थी. बारिश जब तक थम नहीं गई, तब तक हमारी खामोशियांरोमांचित होकर सरगोशियां करती रहीं. मौन मुखर होकर सिर्फ आंखों के रास्ते से एक-दूसरे के दिलों को अपना हाल बता रहा था. बारिश में भीगते अरमान मुहब्बत के नग़मे गुनगुना रहे थे. मॉनसून अपने शबाब पर था और हमारा प्रेम अपनी चरम पराकाष्ठा पर. मेरेलाज से आरक्त चेहरे को अपलक निहारते हुए तुमने कहा था, "अनु ,एक बात कहूं तुमसे?" "नहीं, अभी इस वक्त कुछ भी नहीं... सिर्फऔर सिर्फ मुहब्बत" मदहोशी के आलम में मेरे अधर बुदबुदा उठे थे. एक तरफ श्वेत-धवल बारिश की बूँदों से सराबोर ताजमहल सेमुहब्बत बरसती रही, दूसरी तरफ तुम्हारी असीम चाहतों की बारिश में भीग कर मेरी रूह तृप्त होती रही. तुम्हारी बात अधूरी रह गई... सालों बाद फिर तुमसे मुलाकात हुई ताजमहल में... तुम्हारे साथ ताज के हसीन साये में मुझे याद आया... “जब हम दोनों पहली बारताजमहल में मिले थे तब तुम मुझसे कुछ कहना चाहते थे… अब वो अधूरी बात पूरी तो कीजिए जनाब, मौका भी है और दस्तूर भी है." सिगरेट के धुएं को इत्मीनान से आकाश की तरफ उड़ाते हुए तुमने दार्शनिक अंदाज़ में कहा , "जान… तुम्हारी मुहब्बत में पागल हो गया हूं मैं." "ये क्या कह रहे हो?" "किसी ने सच कहा है कि मुहब्बत इंसान को मार देती है या फिर पागल कर देती है, इसका जीता-जागता प्रमाण आगरा है. यहांपागलखाना और ताजमहल दोनों हैं.”कहकर तुम ज़ोर से पागलों की तरह हंसने लगे... मेरे लाख रोकने पर भी तुम लगातार हंसते ही रहे... यह नज़ारा देखकर तमाम भीड़ इकट्ठा हो गई… सचमुच मैं डर गई, कहीं तुम सच में पागल तो नहीं हो गए? तुम्हारी बात अधूरी ही रह गई... और हमारी मुहब्बत भी... डॉ. अनिता राठौर मंजरी
चेहरा कंवल है, बातें ग़ज़ल हैं, ख़ुशबू जैसी तू चंचल है…तेरा बदन है संगेमरमर, तू एक ज़िंदा ताजमहल है… किसी…
ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाने के लिए ज़रूरी है पति-पत्नी का एक-दूसरे को समझना, एक-दूसरी का ख़्याल रखना आदि,…
उत्सव अपने आप में उत्साह, उमंग और जोश पैदा करनेवाला शब्द है, वहीं रिश्ते कई ताने-बानो में बुने होते हैं, जिनमें ज़िम्मेदारी होती है, प्यार, विश्वास के साथ-साथ विवाद और कुछ तनाव भी होते हैं… लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्यों हम रिश्तों को उत्सव की तरह हीउत्साह, उमंग और जोश से नहीं जीते? क्यों हम उन्हें सहजता से नहीं जीते…? क्यों हम उनमें इतनी उलझनें पैदा कर लेते हैं? तो चलिएत्योहारों के इस मौसम में हम अपने रिश्तों का भी जश्न मनाएं… उन्हें किसी उत्सव की तरह जीएं ताकि उनमें भी हमेशा उत्साह, जोश औरगर्माहट बनी रहे… जिस तरह हम त्योहारों के आने पर मूड में आ जाते हैं और एक्स्ट्रा एफ़र्ट लेकर उसको और भी बेहतर व मज़ेदार बनाने में जुट जातेहैं बस ऐसे ही अपने रिश्तों के लिए भी करें. रिश्तों में जोश कम न होने दें, एक्स्ट्रा एफ़र्ट भी ज़रूर लें. रोज़ सुबह एक नई और पॉज़िटिव सोच के साथ उठें कि आज अपनों के लिए क्या कुछ ऐसा स्पेशल किया जाए कि वो ख़ुश होजाएं. स्पेशल का ये मतलब बिल्कुल नहीं कि आपको पैसे ही खर्च करने हैं या गिफ़्ट देना है, बल्कि कोई एक कॉम्प्लिमेंट ये कामगिफ़्ट्स से बेहतर कर सकता है. रिश्तों को महसूस करें, उन्हें बोझ न समझें. रिश्तों में उलझनें तब पैदा होती हैं जब हम अपनों के साथ रहते-रहते अपनों को अपना सहयोगी या साथी न मानकर प्रतिद्वंदीसमझने की गलती करते हैं. चाहे सास-बहू-ननद हों या फिर पति-पत्नी… आपका आपसी टकराव क्यों और किन बातों को लेकरहोता है, सोचा है कभी? अगर नहीं, तो अब सोचें और उन्हें सुलझाएं. रिश्तों में मिठास घोलने की कोशिश करें और उनको उसी शिद्दत से जीने व निभाने का प्रयास करें जैसा आप किसी ख़ास उत्सवके आने पर करते हैं. सरल रहें, सहजता से जीएं और रिश्तों में झूठ-ईर्ष्या व चीट करने से बचें.भरोसा करें और भरोसा जीतें भी. रोज़ाना जोश के साथ अपनों के लिए सजें-संवरें, फ़िट रहें और रिश्तों को भी फ़िट रखें. जिस तरह आप या हम सभी त्योहारों के दिनों में आपस में ये वादा करते हैं कि ख़ुशी के मौक़े पर हम न तो लड़ेंगे-झगड़ेंगे और नही ग़ुस्सा या नाराज़ होंगे, ठीक इसी तरह आप रोज़ ये वादा करें कि आज से हर दिन यही कोशिश होगी कि विवाद कम होते जाएंऔर ख़ुशियां डबल. एक टाइम टेबल बनाएं और वीकेंड में हर किसी की बारी-बारी से ड्यूटी लगाएं कि वो सभी घरवालों के लिए कुछ ख़ास करेगा, जैसे- डिनर प्लान या मूवी या फिर अपने हाथों से कुछ स्पेशल बनाकर खिलाएगा. छुट्टी वाले दिन सब मिल-बैठकर पुरानी बातें करें, हंसी-मज़ाक़-मस्ती करें. रोज़ एक मील सब लोग साथ मिलकर एंजॉय करें, जैसाकि हम फ़ेस्टिवल में करते हैं- सब मिल-जुलकर एक साथ खाना खातेहैं, उसी तरह या तो ब्रेकफ़ास्ट या फिर डिनर रोज़ साथ करें और अपनी दिनचर्या बताएं, अपनी ख़ुशियां बताएं और अपनीसमस्याएं भी बांटें.एक-दूसरे से सलाह लें और सहयोग करें. जिस प्रकार उत्सव की तैयारी में पूरा परिवार एकजुट होकर घर के काम करता है और सहयोग देता है, बस इसी भावना को अपनेडेली रूटीन में भी शामिल करें. एकसाथ मिल-जुलकर काम करें, जिम्मेदारियां बांटें, जिससे एक-दो लोगों पर पूरा बोझ न पड़करसबका काम हल्का हो जाएगा.अगर किसी को किसी की कोई भी बात हर्ट करे तो उसे मन में पालकर बदला लेने की सोचने की बजाय उसका समाधान करें. यातो अकेले में बात करके ग़लतफ़हमी सुलझा लें या जब आप सब साथ बैठें तो बड़ों के सामने अपने मन का बोझ हल्का कर लें, उनकी राय लें. ज़िंदगी को बहुत ज़्यादा गंभीरता से न जीएं. हां, अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति ज़रूर गंभीरता बरतें लेकिन अपनी रोज़मर्रा कीज़िंदगी को तनावपूर्ण न बनाएं. कुछ बातें, कुछ चीजें जाने दें… कुछ चीजों के प्रति- चलता है, कोई नहीं… या फिर ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं… वाला रवैया अपनाकर विवादों को टालदें. अपना दिल बड़ा रखें, माफ़ करना और माफ़ी मांगना सीखें. एक साथ हॉबी क्लासेस जॉइन करें या फिर योगा, जॉगिंग, वॉक पर जाएं. डिनर के बाद कभी-कभार पूरा परिवार एक साथ आइसक्रीम खाने बाहर जाए या फिर घर पर ही मंगाएं. बस इसी तरह छोटी-छोटी चीजों में ख़ुशियां ढूंढ़ें और ज़िंदगी को एक उत्सव की तरह जीएं. अपने रिश्तों का जश्न मनाएं.इस अंदाज़ से अगर रिश्तों को जीएंगे तो यकीनन उनकी रौनक़ ताउम्र बनी रहेगी. सिल्की शर्मा
उस दिन मैं क्लीनिक पर नहीं था. स्टाफ ने फोन पर बताया कि एक पेशेंट आपसे फोन पर बात करना चाहती है. “उन्हें कहिए मैं बुधवार को मिलता हूं.” जबकि मैं जानता था बुधवार आने में अभी 4 दिन बाकी हैं. शायद उसे तकलीफ ज़्यादा थी, इसलिए वह मुझसे बात करने की ज़िद कर बैठी. जैसे ही मैंने हेलो कहा, दूसरी तरफ़ से सुरीली आवाज़ उभरी- “सर मुझे पिछले 15 दिनों से…” वह बोल रही थी मैं सुन रहा था. एक सुर-ताल छेड़ती आवाज़ जैसे कोई सितार बज रहा हो और उसमें से कोई सुरीला स्वर निकल रहाहो. मैं उसकी आवाज़ के जादू में खो गया. जाने इस के आवाज़ में कैसी कशिश थी कि मैं डूबता चला गया. जब उसने बोलना बंद कियातब मुझे याद आया कि मैं एक डॉक्टर हूं. मैंने उसकी उम्र पूछी, जैसा कि अक्सर डॉक्टर लोग पूछते हैं… “46 ईयर डॉक्टर.” मुझे यकीन ही नहीं हुआ यह आवाज़ 45 वर्ष से ऊपर की महिला की है. वह मखमली आवाज़ मुझे किसी 20-22 साल की युवती कीलग रही थी. इस उम्र में मिश्री जैसी आवाज़… मैं कुछ समझ नहीं पाया. फिर भी उसे उसकी बीमारी के हिसाब से कुछ चेकअप करवानेको कहा और व्हाट्सएप पर पांच दिन की दवाइयां लिख दीं. 5 दिन बाद उसे अपनी रिपोर्ट के साथ आने को कह दिया. यह पांच दिन मुझे सदियों जितने लम्बे लगे. बमुश्किल से एक एक पल गुज़ारा. सोते-जागते उसकी मखमली आवाज़ मेरे कानों में गूंजतीथी. मैं उसकी आवाज़ के सामने अपना दिल हार बैठा था. मैंने कल्पना में उसकी कई तस्वीर बना ली. उन तस्वीरों से मैं बात करने लगा. नकभी मुलाकात हुई, न कभी उसे देखा… सिर्फ एक फोन कॉल… उसकी आवाज़ के प्रति मेरी दीवानगी… मैं खुद ही कुछ समझ नहींपाया. मुझे जाने क्या हो गया… मैं न जाने किस रूहानी दुनिया में खो गया था. मुझे उससे मिलना था. उसकी मीठी धुन फिर से सुननी थी. जब उसकी तरफ से न कोई कॉल आया, न कोई मैसेज, तो खुद ही दिल केहाथों मजबूर होकर मैसेज किया- ‘अब कैसी तबीयत है आपकी?’ ‘ठीक नहीं है, आपकी दी हुई मेडिसन का कोई असर नहीं हुआ…’ उसने जवाब दिया. ‘आपने ठीक से खाई?’ ‘हां, जैसा आपने कहा था, वैसे ही.’ मैं उसकी बात सुनकर चुप हो गया. मेरी उम्मीद टूटने लगी. मुझे लगा वह अब वह नहीं आयेगी. उससे मिलने का सपना खत्म हो गया. थोड़ी देर बाद ही उसका मैसेज स्क्रीन पर चमका. ‘आज आपका अपॉइंटमेंट मिल सकता है?’ मुझे मन मांगी मुराद मिल गई. ठीक शाम 5:00 बजे वह मेरी क्लिनिक पर अपनी रिपोर्ट और मेडिसिन के साथ थी. उसकी वही मीठी आवाज़ मेरे कानों में टकराई,…