मॉनसून मौज-मस्ती और त्योहारों के जश्न मनाने का मौसम होता है. यह ऐसा समय भी होता है, जब मौसम में…
पत्थर की मुंडेर पर बैठी मैं तालाब की ओर देख रही थी. दूर तक फैली जलराशि पर अलसाई-सी अंगड़ाइयां लेती हुई एक के बाद एकलहरें चली आ रही थीं. हवा में अजीब-सी खनक थी. शहर के कोलाहल को चुप कराता यह तालाब और इसके किनारे बना यहसांस्कृतिक भवन जहां संगीत, साहित्य और कला की त्रिवेणी का संगम होता रहता था, इसकी खुली छत पर बैठ मैं घंटों ढलती शाम केरंगों को अपने सीने में समेटते बड़े तालाब को देखती रहती. आज भी मैं लहरों संग डूब-उतरा रही थी कि अचानक एक रूमानी गीत कामुखड़ा हौले से आकर कानों में गुनगुनाने लगा. जाने उस आवाज़ में ऐसी क्या कशिश थी कि मैं उसमें भीगती गई. शाम अचानक सेसुरमई हो उठी. तालाब के उस पार बनी सड़क की स्ट्रीट लाइटों की रौशनी तालाब के पानी में झिलमिलाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसेमन के स्याह कैनवास पर किसी ने जुगनुओं को उतार दिया हो. मैं धीमे-धीमे उस आवाज़ के जादू में बंधती जा रही थी. एक-एक शब्द प्रेम जैसे तालाब की लहरों पर तैरता हुआ मुझ तक आ रहा था. सुरों में भीगी उन लहरों पर मैं जैसे बहती चली जा रही थी. बहिरंग में शायद संगीत का कोई कार्यक्रम था. जब भी दिल ने कोई दुआ मांगी, ख्यालों में तुम ही रहे छाए… जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बस तुम ही आए... जाने कब उस आवाज़ की कशिश मुझे बहिरंग की ओर खींच कर ले गई. पैर अपने आप ही चल पड़े. मुक्ताकाश के मंच पर गायक और उसके सहायक वादक बैठे थे. सामने सीढ़ियों पर श्रोताओं की भीड़ बैठी गाना सुन रही थी. मैं भी उनके बीच जगह बनाती एक कोने मेंसीढ़ियों पर बैठ गई. सिर्फ़ आवाज़ में ही नहीं, उसके चेहरे में भी ग़ज़ब की कशिश थी. कला की साधना में तपा एक परिपक्व गौरव सेदीप्त चेहरा. गर्दन तक लहराते घुंघराले बाल. गाते हुए घुंघराली लटें लापरवाह-सी माथे और गालों पर झूल रही थीं. आंखें बंद कर जब वह आलाप-ताने लेता तो ऐसा लगता मानों साक्षात कोई गन्धर्व संगीत साधना कर रहा हो. मद्धिम पीले उजास में डूबे लैम्प की छाया मेंढलती सांझ के रंग भी घुल कर उसके चेहरे पर फैल रहे थे. मेरे दिल की कश्ती सुरों के समंदर में डोल रही थी और उस रूमानी आवाज़का जादू डोर बनकर उस कश्ती को और गहराई तक खींच कर ले जा रहा था. मंत्रमुग्ध श्रोताओं पर से बेपरवाही से फिसलती उसकी दृष्टि अनायास ही मेरे चेहरे पर ठिठक गई. हमारी आंखें मिली, मेरा दिल धड़कगया. फिर तो जैसे मेरा चेहरा उसकी आंखों का स्थायी मुकाम हो गया. आते-जाते उसकी दृष्टि मुझपर ठहर जाती, जिस तरह तेज़ धूपसे त्रस्त कोई मुसाफिर किसी घने पेड़ की छांव में ठहर जाता है और मुखड़े की पंक्तियां ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बसतुम ही आए’ गाते हुए उसकी गहरी नज़र जैसे आंखों के रास्ते मेरे दिल का हाल जानने को बेताब होती रही. ढाई घंटे बाद जबऔपचारिक रूप से कार्यक्रम खत्म हो गया, तो लोगों की भीड़ उसके चारों ओर उमड़ पड़ी, लेकिन वह न जाने किसे तलाश रहा था औरवो जिसे तलाश रहा था वो तो खुद ही उसके सुरों में पूरी तरह भीग चुकी थी. आते हुए देख आई थी 'अनुराग' यही नाम था उसका. तभीउसके सुरों में इतना प्रेम भरा था. अगले दो दिन भी उसका कार्यक्रम था. मैं पहले ही पीछे वाली सीढ़ियों पर भीड़ में छुपकर बैठ गई. आजफिर उसकी आंखें अपना ठिकाना तलाश रही थीं, मगर हर बार मायूस हो जातीं. कल वाली खुशगवार खुमारी आज आंखों में नहीं थी. मैंथोड़ा खुले में बैठ गई. जैसे ही उसकी नज़रें मुझपर पड़ीं, वह खिल उठा. उसके चेहरे की रंगत ने उसके दिल का हाल खुल कर कह दियाथा. दिल कर रहा था कि वो यूं ही गाता रहे और मैं रात भर उसके सुरों की कश्ती में सवार हो प्रेम के दरिया में तैरती रहूं. तीसरे दिन मन बहुत उदास था. आज उसके गाने का आखरी दिन था. कार्यक्रम के बाद मैं भीड़ में सबसे पीछे खड़ी थी. उसे घेरकर लोगबधाइयां दे रहे थे, लेकिन वह भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मेरी तरफ आया, एक भरपूर नज़र से मुझे देखा और चुपचाप अपना फोन नम्बर लिखा हुआ कागज़ मुझे थमा दिया. आज सत्रह बरस हो गए हम प्रेम की कश्ती में सवार हो इकट्ठे सुरों के दरिया में तैर रहे हैं. मेरा चेहरा उसकी आंखों का स्थाई ठिकानाबन चुका है और मुझे देखकर उसकी बेतरतीब घुंघराली लटें शरारत से गुनगुना उठती हैं- ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा…ख्वाबों में बस तुम ही आये’ वो ख्वाब जो हकीकत में बदल चुका है. विनीता राहुरीकर
समय के साथ रिश्ते (relationship) मज़बूत होने चाहिए लेकिन अक्सर होता उल्टा है, वक्त बीतने के साथ-साथ हमारे रिश्ते कमज़ोर पड़ने लगते हैं और जब तक हमें एहसास होता है तब तक देर हो चुकी होती है. बेहतर होगा समय रहते अपने रिश्तों को समय (quality time) दें ताकि वो मज़बूत बने रहें. वक्त देने का मतलब ये नहीं कि बस आप हाथों में हाथ डाले दिन-रात चिपके रहें, बल्कि जब भी ज़रूरत हो तो सामनेवाले को येभरोसा रहे कि आप उनके साथ हो. रिश्ते में अकेलापन महसूस न हो. अक्सर ऐसा होता है कि किसी के साथ रहते हुए भी हम अकेलापन महसूस करते हैं, क्योंकिरिश्तों से हम जिस सहारे की उम्मीद करते हैं वो नहीं मिलता. ऐसे में मन में यही ख़याल आता है कि ऐसे रिश्ते से तो हम अकेले हीअच्छे थे. इसलिए बेहतर होगा अपने रिश्तों में ऐसा अकेलापन और ठंडापन न आने दें.साथ-साथ होकर भी दूर-दूर न हों. हो सकता है आप शारीरिक रूप से साथ हों लेकिन अगर मन कहीं और है, ख़याल कहीं और हैतो ऐसे साथ का कोई मतलब नहीं. इसलिए जब भी साथ हों पूरी तरह से साथ हों,पास-पास बैठे होने पर भी एक-दूसरे के बीच खामोशी न पसरी हो. क्या आपका रिश्ता उस हालत में आ चुका है जहां आपकेबीच कहने-सुनने को कुछ बचा ही नहीं? ये ख़ामोशी दस्तक है कि आप अपने रिश्तों को अब समय दें और इस ख़ामोशी को तोड़ें.अपनी-अपनी अलग ही दुनिया में मशगूल न हों. आप अपने-अपने कामों और दोस्तों में व्यस्त हैं लेकिन अपनों के लिए ही अपनेसमय का एक छोटा सा हिस्सा भी न हो आपके पास तो दूरियां आनी लाज़मी है. इससे बचें. अपनी दुनिया में अपनों को भीशामिल रखें और उनके लिए हमेशा आपकी दुनिया में एक ख़ास जगह होनी ही चाहिए.अपने कामों में इतना मसरूफ न हों कि रिश्तों के लिए वक्त ही न हो.माना आज की लाइफ़ स्टाइल आपको बिज़ी रखती हैलेकिन क्या आप इतने बिज़ी हैं कि अपने रिश्तों तक के लिए समय नहीं बचता आपके पास? जी नहीं, ऐसा नहीं होता बस हमारीप्राथमिकताएं बदल गई होती हैं. लेकिन ध्यान रखें कि अपने रिश्तों को अपनी प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर की जगह दें वरना हर तरफ़ से अकेले हो जाएंगे.अपनी डिजिटल दुनिया में अलग सी अपनी दुनिया न बसा लें. सोशल मीडिया पर आपके दोस्त होंगे, उनसे चैटिंग भी होती होगीलेकिन ध्यान रखें कि ये दुनिया एक छलावा है और हक़ीक़त से कोसों दूर. यहां धोखा खाने की गुंजाइश सबसे ज़्यादा होती है. आपको जब ज़रूरत होगी या जब आप मुसीबत में होंगे तो आपके अपने रियल लाइफ़ के रिश्ते ही आपके साथ होंगे न किडिजिटल दुनिया के रिश्ते. इसलिए एक सीमित तक ही डिजिटल दुनिया से जुड़ें.रिश्तों को क्वांटिटी की बजाय क्वालिटी टाइम दें. दिन-रात साथ रहने को साथ होना नहीं कहा जा सकता बल्कि जब भी साथ होंतो पूरी तरह से साथ हों. एक-दूसरे को स्पेशल फ़ील कराएं. कुछ स्पेशल करें. यूं ही बैठकर कभी पुरानी बातें याद करें, कभीएक-दूसरे को रोमांटिक गाना गाकर सुनाएं या कभी कोई अपनी सीक्रेट फैंटसीज़ के बारे में बताएं. साथी की फ़िक्र हो, ज़िम्मेदारीका एहसास हो, दूर रहने पर भी कनेक्शन फ़ील हो, हाल-चाल जानों- यही मतलब है क्वालिटी का.दूर होकर भी पास होने का एहसास जगाएं. ऑफ़िस में हों या टूर पर रोमांस और कम्यूनिकेशन कम न हो. आप कैसे और कितनाएक-दूसरे को मिस करते हो ये बताएं. आपकी दोनों एक-दूसरे की लाइफ़ में कितना महत्व रखते हैं ये फ़ील कराएं.फ़ोन पर बात करें या मैसेज करें. माना आप काम में बिज़ी हैं पर फ़ोन करके तो हाई-हेलो कर ही सकते हैं. लंच टाइम में तो कॉलकर ही सकते हैं. फ़ोन नहीं तो मैसेज ही करें पर कनेक्टेड रहें.रात को साथ बैठकर खाना खाएं. दिनभर तो वक्त नहीं मिलता लेकिन रात का खाना तो साथ खाया ही जा सकता है. और खानाखाते वक्त मूड हल्का रखें, पॉज़िटिव मूड के साथ पॉज़िटिव बातें करें. दिनभर की बातें बताएं, शेयर करें. सोने से पहले रोज़ दस-पंद्रह मिनट का वक्त दिनभर की बातें करने, बताने और शेयरिंग के लिए रखें.केयरिंग की भावना जगाएं. प्यार और रोमांस अपनी जगह है लेकिन केयर की अपनी अलग ही जगह होती है रिश्तों में. बीमारी मेंडॉक्टर के पास खुद ले जाना, घर का काम करना, अपने हाथों से खाना खिलाना- ये तमाम छोटी-छोटी चीजें रिश्तों को मज़बूतबनाती हैं.तबीयत का हाल पूछें, कोई परेशानी हो तो उसका सबब जानें. ज़रूरी नहीं कि बीमारी में ही हाल पूछा जाए, कभी यूं ही हल्कासिर दर्द होने पर भी पूछा जा सकता है कि आराम आया या नहीं… फ़िक्रमंद होना ठीक है पर इस फ़िक्र को दर्शाना भी ज़रूरी है.काम और ज़िम्मेदारियां बांटें. रिश्तों में एक-दूसरे का बोझ हल्का करना बेहद ज़रूरी है. वीकेंड को स्पेशल बनाएं. बाहर से खाना मंगावाएं या डिनर पर जाएं. मूवी प्लान करें या यूं ही वॉक पर जाएं. फैमिली हॉलिडेज़ प्लान करें. ये आपको ही नहीं आपके रिश्तों को भी रिफ़्रेश कर देती हैं. ज़रूरी नहीं किसी बड़ी या महंगी जगहपर ही जाया जाए. आसपास के किसी रिज़ॉर्ट या हॉलिडे होम में भी क्वालिटी वक्त बिताया जा सकता है.बात करें, परेशनियां बांटें, राय लें. सामनेवाला परेशान लग रहा है तो खुद अंदाज़ा लगाने से बेहतर है बात करें और उनकी परेशानीया मन में क्या चल रहा है ये जानें और उसे दूर करने में मदद करें.काम की ही तरह अपने रिश्तों को भी अहमियत दें और उनके लिए भी अलग से समय निकालें. धोखा न दें और रिश्तों में झूठ न बोलें. सम्मान दें और ईर्ष्या व ईगो से दूर रहें. सेक्स लाइफ़ को इग्नोर न करें. इसे स्पाइसी बनाए रखने के लिए कुछ नया ज़रूर ट्राई करते रहें. लेकिन सेक्स मशीनी क्रिया नहो, उसमें प्यार और भावनाओं का होना सबसे ज़रूरी है. भोलू शर्मा
पैसा ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर इससे जुड़े मसलों को यदि सही तरी़के से हैंडल न किया जाए,…
एक वक्त था जब भाई-बहन का रिश्ता लिहाज़, संकोच और शर्म और हल्के से डर के दायरे में रहा करता…
आजकल हर रिश्ते में एक शब्द ज़रूरत ज़्यादा ही ऐड हो गया है और वो है स्पेस. पैरेंट्स कुछ पूछें…
पैसों, गाड़ी या अच्छी जॉब से ही ख़ुशियां मिलें, ये ज़रूरी नहीं. सोशल मीडिया या फिल्मों में भले ही दिखाया…
भीगते मौसम में रिश्तों की गर्माहट और सुहानी लगती है लेकिन वक़्त के साथ-साथ रिश्ते ठंडे पड़ते जाते हैं और उनकी गर्माहट खोने लगती है. तो क्यों न इस बारिश में अपने रिश्तों की खोई गर्माहट वापस पाने की कोशिश करें और बनाएं उनको लीक प्रूफ ताकि वो बने रहें मज़बूत और टिकाऊ. रिश्तों को बचाएं इन दरारों और दीमकों से और प्यार से सींचें अपने रिश्तों को ईगो में न डूबने दें अपने रिश्तों को: रिश्तों में हमेशा प्यार और अपनापन ज़रूरी होता है, लेकिन हम अपने अहम के चलते उनको कमज़ोर और खोखला बना देते हैं. रिश्ते लीकप्रूफ तभी होंगे जब हम झुककर चलेंगे. अपनों की ख़ातिर झुकने में आख़िर बुराई ही क्या है? गलती न होने पर भी अगर एक सॉरी कह देने से काम बनता है तो हर्ज़ ही क्या है? अपनों को कभी-कभार थैंक यू कह देने से उनके चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है तो कह देने में भी भलाई है. ईगो आपको सिर्फ़ अहंकारी और तनहा ही करेगा. बेहतर होगा इसे रिश्तों में पनपने न दें. क्या करें: अपनों की ख़ुशी में खुद भी खुश होकर देखें. ज़िंदगी हल्की और आसान लगेगी. खुद को सबसे श्रेष्ठ और दूसरों को कम आंकने का भ्रम मन में न पालें. इंसानी कमज़ोरियां सभी में होती हैं और आप व आपके अपने भी इससे अछूते नहीं. हर बार आपकी ही बात सही है और वो ही फ़ाइनल है इस सोच से उबरें. दूसरों की सोच, उनके सुझाव व निर्णयों को भी महत्व दें. क्रोध की आंधी से बचाएं अपने रिलेशनशिप को: ग़ुस्सा इंसानी स्वभाव का हिस्सा है और ये स्वाभाविक है लेकिन ग़ुस्से मेंअपने रिश्तों को नुक़सान पहुंचाने से हमेशा बचें. कभी वाद-विवाद में ऐसी कोई बात न कह दें जिससे सामने वाला हर्ट हो जाए और ग़ुस्से में कही कोई छोटी सी बात हमेशा के लिए मन में घर कर जाए. वक़्त के साथ यही छोटी सी बात रिश्तों में सुराख़ कर सकती है, इसलिए बेहतर होगा कि उसे लीकेज से बचाया जाए. क्या करें: जब कभी झगड़ा या विवाद हो तो दिमाग़ ठंडा रखने की कोशिश करें और अपना आपा न खोएं. बेहतर होगा किउस वक़्त कम बोलें और अपना ध्यान अन्य बात या काम पर लगाएं. जब मन शांत हो जाए तब अपने विवादों को सुलझाएं. क्योंकि क्रोध में चीज़ें अलग दिखती हैं और सच्चाई कोसों दूर. जब दिमाग़ ठंडा हो जाता है तब पता चलता है कि ये तो ज़रा सी बात थी जिस पर हम बेवजह आग-बबूला हो रहे थे. अविश्वास के झोंकों को हावी न होने दें: किसी भी बात को लेकर अविश्वास पैदा हो तो उसे फ़ौरन बातचीत से दूर कर लें क्योंकि एक बार ये मन में घर कर जाए तो यही अविश्वास धीरे-धीरे शक बन जाता है और जैसाकि कहते हैं शक का तोकोई इलाज होता ही नहीं है. बेहतर होगा समय रहते इस अविश्वास को दूर करें और भरोसा करना सीखें. क्या करें: बात करें, अपने मन की शंकाओं को डिसकस करें और एक ही दिशा में अपनी सोच के घोड़े न दौड़ाएं. शेयर करें क्योंकि शेयरिंग से ही केयरिंग बढ़ती है और शक-शंकाएं दूर होती हैं. धोखे के तूफ़ान से रिश्तों को ख़राब न करें: धोखा किसी भी तरह का हो सकता है. ज़रूरी नहीं कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर ही हो, पैसों को लेकर या झूठ बोलना भी एक तरह का धोखा ही है. रिश्तों में चीटिंग की कोई जगह नहीं होती. क्या करें: बस धोखा न दें. झूठ और फ़रेब न करें. रिश्तों की बुनियाद सच्चाई पर ही टिकी होती है. सच चाहे जितना कड़वा हो कभी रिश्तों में उसे छिपाएं नहीं. पैसों को भी कभी अपने रिश्तों व उनकी सच्चाई पर हावी न होने दें. अपनी समस्या और अपना मन अपनों के साथ बांटें इससे रिश्ते मज़बूत होंगे. किसी बाहरवाले से कोई बात पता चले और आप झूठे साबित हों उससे बेहतर है खुद ही सच का सामना करें. ईर्ष्या के सैलाब को समय रहते पहचानें: अपनों से भला कैसी जलन? लेकिन अक्सर साथ रहते-रहते ये भावना खुद ब खुद पैदा हो जाती है और हमें नकारात्मक बनाने लगती है. अपनों की ही तारीफ़ और उनकी कामयाबी हमसे बर्दाश्त नहीं होती और हम कुढ़ने लगते हैं. क्या करें: अपनों में अपनी झलक देखें. उनके हुनर को सराहें और कामयाबी में खुद की कामयाबी को देखें. रिश्तों का तोमतलब ही यही होता है. कभी किसी और के सामने अपनों को नीचा दिखाने, ताने देने या उनको कमतर दर्शाने की कोशिशन करें. उनकी कमज़ोरियों को बाहर लाकर खुद को बेहतर साबित करना आपके रिश्ते की नींव को खोखला ही करेगा. इस मॉनसून ऐसा क्या करें कि रिश्ते लीकप्रूफ़ हो जाएं? सबसे पहले इस रोमांटिक मौसम में अपने रिश्तों में रोमांच और रोमांस वापस लाकर उस पर प्यार की सील लगाएं.अपनी सेक्स लाइफ़ रिवाइव करें. अपनी ज़िंदगी से बोरियत हटाएं और ताज़गी लाएं.छोटे-छोटे एफ़र्ट्स लें. बारिश में एक साथ भीगने का आनंद उठाएं.साथ बेठकर चाय-पकौड़े खाएं. जोक्स सुनाएं. पुरानी यादों को ताज़ा करें.ड्राइव पर भी जा सकते हैं.डिजिटल लाइफ़ से थोड़ा ब्रेक लें और रियल वर्ल्ड में ज़्यादा वक़्त बिताएं.बारिश के गाने सुनें और सुनाएं. बरसात के गानों पर अंताक्षरी भी खेली जा सकती है.अपने अन्य रिश्तों में भी केयरिंग का डोज़ बढ़ाएं और उन्हें लीकप्रूफ़ बनाएं. बस इतना ही काफ़ी है बरसात के इस प्यारे मौसम को और भी प्यारा और प्यार भरा बनाने के लिए. गीता शर्मा
पिछले दो-ढाई साल हमने अपने रिश्तों के बिना बिताए, अगर ऐसा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा. कोविड 19 के…
शादी के कुछ समय बाद ही हम अपने रिश्ते को लेकर काफ़ी ढीला रवैया अपनाने लगते हैं, जिससे धीर-धीरे रिश्ता…