इन दिनों एक्ट्रेस छवि मित्तल ट्रोल्स के निशाने पर हैं. वो आजकल अपनी अधिकांश पोस्ट को लेकर ट्रोल होती रहती हैं. छवि सोशल मीडिया पर काफ़ी एक्टिव हैं और उन्होंने एक पिक्चर पोस्ट की है जिसमें वो अपने चार साल के बेटे के सामने बिकिनी पहनकर खड़ी हैं और उनका बेटा उन्हें निहार रहा है.
इस तस्वीर में एक्ट्रेस का फेस कैमरे की तरफ़ है और बेटे का बैक नज़र आ रहा है. छवि बेटे को प्यार से देख रही हैं. इस तस्वीर को देखकर जहां कुछ लोग उनकी तारीफ़ कर रहे हैं तो वहीं काफ़ी लोग उनको जमकर ट्रोल भी कर रहे हैं.
ये पिक्चर उनकी बेटी अरीजा ने क्लिक की है. एक्ट्रेस ने कैप्शन में लिखा है- ये क्यूट फोटो बॉम्बर अरजा मुझसे दूर जाने से इंकार कर रही है. और यक़ीन मानो इस ज़िद ने इस पूरी अलीबाग की जर्नी को और भी मज़ेदार बना दिया. साथ ही छोटी वाक़ई बेस्ट पिक्चर्स क्लिक कर रही है.
यूज़र्स छवि को काफ़ी ट्रोल कर रहे हैं. एक ने लिखा- आप अपने बच्चे को क्या दिखाना चाहती हैं. मां एक बालक के लिए उसकी गुरु और भगवान होती है और आप अपने बच्चे को नग्नता और अश्लीलता सिखा रही हैं.
अन्य यूजर ने लिखा- बच्चे के सामने नंगे खड़े होना ठीक नहीं… इसी तरह कई यूज़र्स उन्हें काफ़ी सुना रहे हैं, लेकिन वहीं काफ़ी लोग उनकी तारीफ़ कर रहे हैं कि जिस तरह वो चीज़ों को नॉर्मलाइज कर रही हैं वो काबिले तारीफ़ है. एक्ट्रेस ने कहा कि वो हर चीज़ को नॉर्मलाइज करने की कोशिश कर रही हैं ताकि बच्चों को नॉन जजमेंटल बना सकें.
कई फ़ैन्स उनकी फ़िटनेस और हिम्मत की तारीफ़ कर रहे हैं.
वहीं लोग एक्ट्रेस के जवाब पर कह रहे हैं कि ये सब सोशल मीडिया और पॉपुलैरिटी के लिए है, महिलाओं को कम कपड़ों में स्वीकारना उनका सम्मान करना नहीं है. वेस्टर्न कल्चर अब भी हावी है और ये लोग उसके ग़ुलाम…
अमृतला विसरणं तिच्यासाठी शक्य नव्हतं…पण आई-वडिलांच्या आग्रहापुढे तिचं काहीच चाललं नाही. खुशी आता पंधरा वर्षांची…
अशा अनेक टीव्ही अभिनेत्री आहेत ज्यांनी आपल्या दमदार अभिनयाने प्रत्येक घराघरात लोकप्रियता मिळवली आहे आणि…
स्टार प्रवाहवर ११ ऑक्टोबरपासून सुरु होणाऱ्या ‘उदे गं अंबे… कथा साडे तीन शक्तिपीठांची’ या पौराणिक…
हिंदी चित्रपटसृष्टीतील अनेक दिग्गज तारे आहेत जे आपल्या मुलांशी मैत्रीपूर्ण संबंध ठेवतात, तर काही सेलिब्रिटी…
ख़ुद की तलाश में निकलती हूंमानो हर रोज़ अपने ही वजूद को तराशती हूं मैं समेट…
मैंने भीतर कमरे में झांका. प्रोफेसर अपने हाथों का सहारा देकर दादी को तकिए पर सुलाने का प्रयास कर रहे थे. कुछ पल वहीं रुक कर वह तेज़ी से बाहर निकले और द्वार पर मेरे पास से गुज़रे. उनकी छलकती आंखें बता रही थीं कि कहानी का अंत हो चुका है.क्या इसी को इच्छा मृत्यु कहते हैं? इस बारे में विचार फिर कभी. द्वार प्रोफ़ेसर नीलमणि ने ही खोला था. सीधा तना शरीर, गंभीर चेहरा और मेरी कल्पना के विपरीत एकदम भावशून्य. सोचा जाए तो एक अजनबी युवक को सामने देखकर किसी के चेहरे पर कोई भाव आ ही क्या सकता है? मैंने कहा, “क्या मैं प्रोफ़ेसर नीलमणि से मिल सकता हूं?”मेरा अंदाज़ा सही था. वे बोले, “मैं ही हूं नीलमणि.” मैंने फिर हिम्मत बटोर कर कहा, “क्या मैं भीतर आकर दो मिनट बात कर सकता हूं?” वह बिना कुछ बोले चुपचाप भीतर की ओर मुड़ गए. उनके ठीक पीछे चलता मैं उनके ड्रॉइंगरूम तक पहुंच गया. उन्होंने हाथों से ही मुझे बैठने का इशारा किया और स्वयंभी बैठ गए और प्रश्नवाचक मुद्रा में मेरी ओर देखा.मैं सोच में पड़ गया.इतने चुप्पे व्यक्ति के साथ कैसे बात हो सकती है और वह भी इतनी अंतरंग! पर कहना तो था ही मुझे. दो सौ किलोमीटर दूर मैं इसीलिए तो आया था.“मुझे दादी ने भेजा है..!" “दादी कौन?” उन्होंने मेरी बात पूरी होने से पहले ही पूछा.…