श्रद्धा और उल्लास के साथ गणेश चतुर्थी मनाते समय क्या आपने कभी सोचा है कि हम सबके प्यारे गणेश जी प्रथम पूज्य और इतने विचित्र क्यों हैं? आइए इस बार हम गणेश जी की कुतूहल-वर्धक काया के प्रतीकार्थों को समझें. हो सकता है ये सब आपने पहले भी पढ़ा हो, पर त्योहार तो हर साल मनाते हैं न? तो एक बार ये भी दोहराएं. यकीन करिए कि ये इतना रोचक होगा कि हमेशा के लिए याद हो जाएगा.
लंबोदर – लंबे उदर वाले अर्थात् वो उदर जो विश्व की समस्त वैमनस्य और घृणा को पचाने में समर्थ हैं अर्थात् अपने भीतर धारण कर लेते हैं.
लंबकर्ण – बड़े कान हैं और मुंह सूंड के पीछे छिपा है. ये बताते हैं कि सुनना बोलने से अधिक आवश्यक है.
लंबी सूंड – सूंघने की अतुलनीय शक्ति अर्थात् भविष्य भांप लेने की प्रतिभा या कहे कि दूरदर्शिता की प्रतीक है.
छोटी आंखें – सूक्ष्म दृष्टि की महिमा बताती हैं. हर चीज़ को बारीकी से देखने की सीख देती हैं.
मूषक की सवारी – चूहा अपनी चंचलता और चातुर्य के कारण सदियों से खेती करके, निर्वहन करके सभ्यता की शुरुआत करने वाली मनुष्य जाति के लिए अनबूझ समस्या बना रहा है. इसीलिए ये फुर्तीला जीव समस्या का पर्याय हो गया है. गणेश जी इसकी सवारी अर्थात् हर व्यावहारिक समस्या पर काबू करने में सक्षम हैं.
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तो आइए गणेश चतुर्थी पर अपने प्रिय देव की घर में स्थापना करने के साथ अपने मन में उनके गुणो की भी स्थापना करें.
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