Relationship & Romance

क्या इंफर्टिलिटी बन सकती है तलाक़ का कारण? (Is Infertility A Ground For Divorce?)

तलाक़ (Divorce) एक संवेदनशील मुद्दा है. क़ानून में तलाक़ लेने के लिए कई कारणों को विस्तारपूर्वक दिया गया है, पर आज भी बहुत से लोगों में इंफर्टिलिटी (Infertility) और इंपोटेंसी (Impotence) को लेकर ग़लतफ़हमी है. वो इन्हें एक ही प्रॉब्लम (Problem) समझने की भूल करते हैं और बेवजह रिश्तों को तोड़ने की कोशिश की जाती है. पर ये दोनों ही दो अलग चीज़ें हैं. आइए देखें, क्या है इंफर्टिलिटी और इंपोटेंसी में फ़र्क़ और इस आधार पर तलाक़ के बारे में क्या कहता है हमारे देश का क़ानून?

रिया और रजत की शादी को 10 साल हो गए थे. रिया की ओवरीज़ में सिस्ट था, जिसके कारण वो मां नहीं बन सकती थी. रजत बच्चा गोद नहीं लेना चाहता था, जिसके कारण हर रोज़ उनके घर में प्रॉब्लम्स होने लगीं. इनसे छुटकारा पाने के लिए दोनों ने तलाक़ ले लिया. तलाक़ के बाद रजत ने दूसरी शादी की और अब उसके 2 बच्चे हैं. रजत के लिए ये सब इतना आसान नहीं होता, अगर रिया ने उसे तलाक़ नहीं दिया होता. रिया ने रोज़ की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया, लेकिन अगर वो चाहती, तो रजत को तलाक़ न देती और कोर्ट भी उसे तलाक़ नहीं दिला पाता, क्योंकि हमारे देश में इंफर्टिलिटी को तलाक़ का आधार बनाया ही नहीं जा सकता.

विविध धर्मों के विविध क़ानून

हमारा देश विविध धर्मों और संस्कृतियों का देश है. हर धर्म में तलाक़ के लिए अपने क़ानून हैं. जहां हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिख के लिए द हिंदू मैरिज एक्ट 1955 है, वहीं मुसलमानों के लिए द डिज़ोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939, ईसाइयों के लिए द इंडियन डिवोर्स एक्ट 1869 और पारसियों के लिए द पारसी मैरिज और डिवोर्स एक्ट है, तो सिविल मैरिजेस के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट है. सभी के अपने-अपने नियम हैं, पर इंफर्टिलिटी और इंपोटेंसी (नपुंसकता) पर सभी के अलग-अलग क़ानून हैं.

क्या हैं तलाक़ के आधार?

यहां हम द हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के बारे में जानने की कोशिश करेंगे. इस एक्ट के सेक्शन 13 में तलाक़ के कारणों के बारे में विस्तारपूर्वक दिया गया है, जो इस प्रकार हैं-

–     व्यभिचार, धर्मांतरण, मानसिक विकार, कुष्ठ रोग, नपुंसकता, सांसारिक कर्त्तव्यों को त्याग देना, 7 सालों से लापता, जुडीशियल सेपरेशन (कोर्ट द्वारा अलग रहने की इजाज़त), किसी भी तरह के शारीरिक संबंध नहीं और क्रूरता या निष्ठुरता. क़ानून में कहीं भी इंफर्टिलिटी को तलाक़ का कारण नहीं बताया गया है.

क्या है लोगों की सोच?

आज भी ज़्यादातर लोगों को लगता है कि इंफर्टिलिटी और इंपोटेंसी एक ही चीज़ है. नपुंसकता को बांझपन से जोड़ देते हैं, जबकि ऐसा है नहीं. अगर किसी व्यक्ति के बच्चे नहीं हो रहे, तो लोग उसे नपुंसक यानी इंपोटेंट समझने लगते हैं, जबकि बच्चे न होने का कारण इंफर्टिलिटी भी हो सकती है.

इंफर्टिलिटी और इंपोटेंसी में अंतर?

इंफर्टिलिटी यानी बांझपन, जबकि इंपोटेंसी का अर्थ नपुंसकता है. यहां आपको बता दें कि पुरुषों में भी बांझपन हो सकता है और महिलाएं भी इंपोटेंट हो सकती हैं. इंपोटेंट व्यक्ति अपने पार्टनर को सेक्सुअल संतुष्टि नहीं दे पाता, जबकि बांझपन में ऐसा नहीं है. बांझ व्यक्ति की सेक्सुअल लाइफ संतुष्टिपूर्ण हो सकती है, उन्हें समस्या स़िर्फ बच्चे पैदा करने में हो सकती है.

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इंफर्टिलिटी नहीं बन सकती तलाक़ का कारण

कोर्ट के सामने ऐसे कई मामले आते हैं, जहां कपल्स बच्चा पैदा न होने को क्रुएल्टी बताकर तलाक़ की मांग करते हैं, जबकि हमारे देश का क़ानून कहता है कि अगर पति-पत्नी के बीच सेक्सुअल रिलेशनशिप है और दोनों ही एक-दूसरे को संतुष्ट करने में समर्थ हैं, तो विवाद का कोई मुद्दा ही नहीं, क्योंकि क़ानूनन शादी का अर्थ एक-दूसरे को सेक्सुअल संतुष्टि देना है. अगर पति-पत्नी में शारीरिक संबंध बने, तो इसका अर्थ है शादी संपूर्ण हुई. लेकिन अगर उसमें कोई कमी रह जाती है, तो आप तलाक़ ले सकते हैं. वहीं बच्चे न होना किसी का दुर्भाग्य हो सकता है, लेकिन इसके लिए किसी को दोषी ठहराकर उसे उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.

न छुपाएं तथ्यों को

लीगल एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ इंफर्टिलिटी तलाक़ का कारण नहीं बन सकती, लेकिन अगर कोई पति कोर्ट में यह साबित कर दे कि उसकी पत्नी शादी से पहले ही मां नहीं बन सकती थी और यह बात उससे छुपाई गई, तो तथ्यों को छुपाने के लिए पति को पत्नी से तलाक़ मिल सकता है.

बदलती लाइफस्टाइल में बदलते शादी के मायने

बहुत से लोग इंफर्टिलिटी को लेकर यह तर्क देते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें उनका वारिस या अंश नहीं दे सकता, ऐसे में शादी को बनाए रखने का क्या फ़ायदा? यहां हम एक सवाल पूछना चाहते हैं कि क्या शादी का अर्थ केवल बच्चे पैदा करना है. अगर ऐसा होता, तो आज बहुत से बेऔलाद लोग एक साथ न होते. माना कि पुराने ज़माने में शादी का एकमात्र उद्देश्य परिवार व वंश को आगे बढ़ाना हुआ करता था, पर अब ऐसा नहीं है. बदलती लाइफस्टाइल में ऐसे बहुत से शादीशुदा जोड़े हैं, जो बच्चा नहीं चाहते. डबल इन्कम नो किड्स (डिंक्स) समय के साथ लोगों की ज़रूरतें भी बदली हैं.

मुस्लिम पर्सनल लॉ और इंफर्टिलिटी

भले ही हिंदू मैरिज एक्ट में इंफर्टिलिटी को तलाक़ लेने की वजह नहीं बनाया जा सकता, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ इससे परे है. यहां इंफर्टिलिटी तलाक़ का एक बड़ा कारण बन सकती है, बशर्ते पति उस आधार पर तलाक़ लेना चाहे तो. साथ ही यह पति की दूसरी शादी के लिए भी एक बड़ा कारण बन सकता है. हालांकि दूसरी शादी के लिए उसे पहली पत्नी की इजाज़त लेनी पड़ती है, जो महज़ एक औपचारिकता होती है. लीगल एक्सपर्ट की मानें, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पति कभी भी किसी भी कारण को वजह बनाकर अपनी पत्नी से तलाक़ ले सकता है और ट्रिपल तलाक़ इसका एक जीता जागता नमूना है. हालांकि कुछ मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है, पर जब तक सभी महिलाएं अपने हक़ के लिए आवाज़ नहीं उठाएंगी, तब तक उनके अधिकारों का यूं ही उल्लंघन होता रहेगा.

इंफर्टिलिटी के लिए ताने देना है क्रूरता

साल 2013 में मुंबई के फैमिली कोर्ट ने 52 वर्षीया महिला की तलाक़ की अर्जी पर विचार करते हुए उसे उसके पति से तलाक़ दिलाया, जहां पति पत्नी को बांझ होने के ताने देता था. इस मामले में पति-पत्नी दोनों ही बच्चे न होने के लिए एक-दूसरे को दोषी मानते थे. पति पत्नी को एक छोटे से स्टोर रूम में रखता था और उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार भी किया जाता था. वह अपनी पत्नी को बच्चों के फोटोज़ दिखाकर ताने देता था, जो किसी भी महिला के लिए बहुत बड़ा मेंटल हरासमेंट है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह किसी महिला को उसकी इंफर्टिलिटी के लिए ताने देना क्रुएल्टी (क्रूरता) है और इसके लिए उसे माफ़ नहीं किया जा सकता. इस मामले में सबसे चौंकानेवाला तथ्य जो सामने आया, वो यह कि जब दोनों का फर्टिलिटी टेस्ट कराया गया, तो डॉक्टर ने सर्टिफाई किया कि दोनों ही पैरेंट्स बन सकते हैं. इसके बाद कोर्ट ने पत्नी की अर्जी को मंज़ूर करते हुए उसे तलाक़ दे दिया.

इंफर्टिलिटी को समझें एक मेडिकल कंडीशन

बच्चे पैदा न कर पाना एक मेडिकल कंडीशन है, जिसके लिए किसी के मान-सम्मान को चोट पहुंचाना ग़लत है. जैसे हर व्यक्ति की बॉडी टाइप अलग-अलग होती है, ठीक वैसे ही बच्चे पैदा करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है. महिलाओं को समझना चाहिए कि यह एक मेडिकल कंडीशन है, जिसके लिए ख़ुद को कोसना या अपने कर्मों को दोष देना ग़लत है. एक औरत के लिए मां बनना बड़े गर्व की बात है, लेकिन उस गर्व को अपने आत्मसम्मान को चोटिल न करने दें. अपने अस्तित्व को बच्चे के वजूद से जोड़कर देखना छोड़ दें.

– अनीता सिंह

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Aneeta Singh

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