मैं शपथ लेता हूं कि आज जो भी कहूंगा सच कहूंगा, सच के अलावा किसी के घर में नहीं झांकूंगा!.. कहते हैं कि सच ही आख़िरकार जीतता है (हिंदी फिल्मों में आज तक यही देखा है). सारे स्क्रिप्ट राइटर झूठ के मौसम में सच को जिताने पर उतारू हैं. कड़वे सच को अवॉइड किया जा रहा है और मीठे झूठ को लोग सच साबित करने में लगे हैं. सौ मीटर की दौड़ भी सच हार रहा है, मगर चारण उसे मैराथन विजेता घोषित करने में लगे हैं. काहे को झूठ की अफीम चटाते हो. थाने का मुंशी गांधीजी की तस्वीर के नीचे बैठकर रिश्वत लेता है. बहुत कठिन है डगर पनघट की. सत्यमेव जयते वाली मुगली घुट्टी हम लोग भी बचपन से पीते आए हैं, मगर हक़ीक़त में हर तरफ़ झूठ पसरा हुआ है.
हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी- कछुआ और खरगोश की कहानी.
मासाब ने कछुए की जीत पर कहा था, “देखा बच्चों, लगातार मेहनत करने से ही सफलता मिलती है और रास्ते में कभी सोना नहीं चाहिए.” (हालांकि वो क्लास में कुर्सी पर बैठे-बैठे सो जाते थे) वो मेरा बचपन था. फिर भी कछुए का जीतना मेरे गले नहीं उतरा था. गांव में मैंने कछुए को रेंगते और खरगोश को दौड़ते देखा था! मुझे कहानी में झोल लगा. पता नही क्यों मासाब कछुए से रिश्तेदारी निभा रहे थे. यही नहीं उन्होंने सारे बच्चों को चेतावनी भी दे दी थी, “बच्चों, परीक्षा में ये सवाल आ सकता है कि रेस में कौन जीता. जवाब है कि कछुआ जीता. ख़बरदार अगर तुम लोगों में से किसी ने भी दिमाग़ लगाने की ग़लती की, रट लो.” (सच को धुंधला करने के लिए ये मेरा पहला ब्रेन वॉश था).
मैंने अपने बच्चों को कभी नहीं सिखाया कि उस दौड़ में कछुआ जीत गया था, फिर भी बच्चे स्कूल से वही सीख कर आए. कमाल है, गुफा युग से गजोधर युग तक कछुआ ही जीत रहा है और खरगोश हर बार चिलम पीकर सो जाता है. कछुए की जीत में मंद बुद्धि छात्रों को अपना भविष्य उज्ज्वल नज़र आ रहा है और होनहार स्टूडेंट ये सोचकर सदमे में हैं कि जीतेगा तो अपना कछुआ ही. मैं हैरान हूं कि आज तक किसी खरगोश ने एनसीईआरटी के इस कहानी पर आपत्ति भी नही दर्ज कराई. देश में काफ़ी समय से इतिहास पर आरोप लगाया जा रहा है. स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण के नायकों को लेकर भी विवाद है (आरोप है कि इतिहास में नायक की जगह खलनायकों के नाम वाली लिस्ट चली गई थी). हो सकता है कि खरगोश के साथ भी ऐसा ही साहित्यिक भ्रष्टाचार हुआ हो.
मुझे पूरा यक़ीन है कि जंगल मैराथन में हुई वो दौड़ पहले से ही फिक्स थी. सवाल उठता है कि हार जाने के लिए बुकी ने खरगोश को क्या ऑफर दिया होगा. कछुए की जीत पर पब्लिक की कितनी बड़ी रकम डूबी और बुकी ने कितना कमाया. खरगोश आराम से मान गया या बाहर से फोन आया था. जीतने वाले कछुए को पॉपुलैरिटी के अलावा भी कुछ मिला या नहीं? और दस करोड़ अशर्फी वाला सवाल, “ये चमत्कारी दौड़ आज तक दोबारा क्यों नहीं हुई. शायद इन सारे सवालों का जवाब मेरे पास है. मेरा अनुमान है कि इस ऐतिहासिक दौड़ की पृष्ठभूमि और हार-जीत का ताना-बाना कुछ यूं बुना गया होगा.
रंग तरंग- कोरोना, बदनाम करो न… (Rang Tarang- Corona, Badnaam Karo Na…)
कटते पेड़, घटते शिकार और सूखते तालाब से चिंतित उस जंगल के राजा शेर ने अपने महामंत्री लोमड़ से कहा होगा, “नदी ने दो साल से अपना रास्ता बदल लिया है. अब हमारा इलाका सूख रहा है और उत्तर दिशावाला जंगल हरियाली से भरपूर है. हमारे शिकार भी उधर ही जा रहे हैं. कुछ सोचो, वरना अगले माॅनसून तक हम सब को सुसाइड करना होगा.”
“हुकुम! हम भी उसी जंगल में चलते हैं.”
“मूर्ख! नाले की तरह तेरा दिमाग़ भी सूख रहा है. उस जंगल के शेर से हमारा एग्रीमेंट है कि हम एक-दूसरे की सीमा में घुसपैठ नहीं करेंगे; कुछ और सोचो.”
“सोच लिया. हम एक रेस कराते हैं. एक ज़बर्दस्त रेस. उस जंगल के शेर और सारे जानवरों को जंगल मैराथन में बुलाते हैं. “
“रेस! कैसी रेस?”
“कछुआ और खारगोश की रेस. जो जीतेगा, वो दोनों जंगल का मालिक होगा!”
“नॉनसेंस.” शेर गरजा.
“इसमें सस्पेंस नहीं है, वो तो खरगोश ही जीतेगा.”
नाॅर्मल धूर्तता के साथ लोमड़ मुस्कुराया, “नहीं हुकुम. हमारा कछुआ जीतेगा और उनका खरगोश हार जाएगा.”
“कैसे! आख़िर कैसे?”
“सिर्फ़ सौ मीटर की रेस होगी. कछुआ और खारगोश में पहला ऑप्शन वो चुने. ज़ाहिर है कि वो लोग खरगोश ही चुनेंगे. मैं भी यही चाहता हूं.”
“लोमड़ तेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है. अगर कहीं मैं हारा, तो तुझे वहीं खा जाऊंगा.”
“मेरी प्लानिंग सुनो हुकुम, आप सिर्फ़ एक शर्त रखना कि रेस का मैदान मैं वहां जाकर चुनूंगा. बस, समझो जीत पक्की!”
“अपने खुराफाती दिमाग़ का एक्स रे तो दिखा.”
“मैं रेस का रास्ता ऐसा चुनूंगा, जो लंबी घास से गुज़रकर तालाब पर ख़त्म होगा. रेस से दो दिन पहले हम अपने कछुए को तालाब से निकाल कर भूखा रखेंगे, जिससे रेस के दिन तालाब में कूदने से पहले कछुआ कहीं न रुके. अब बारी आती है खरगोश की, जो दस सेकंड में सौ मीटर दौड़ सकता है. रेस के रास्ते में बड़ी-बड़ी घास के बीच में मारीजुआना (गांजा) के रस से भरी गाजर छुपाकर रख दूंगा. खरगोश ख़ुद को गाजर खाने से नहीं रोक पाएगा और गाजर खाने के बाद वो कुंभकरण के जगाने पर भी नहीं उठेगा. उधर भूखा-प्यासा कछुआ तालाब की ख़ुशबू पाकर मिल्खा सिंह की तरह दौड़ेगा.”
शेर ने लोमड़ को गले से लगा लिया, “मेरी हो गई उनकी कोठी हबेली! मैं हूं राजा भोज, तू मेरा गंगू तेली! जियो मेरे चाणक्य.”
आगे कहने को कुछ बचा ही नहीं. कछुआ जीत गया, खरगोश हार गया! हारनेवाले शेर को बनवास पर जाते वक़्त भी ये सदमा खाए जा रहा था कि खरगोश सोया क्यों. इस कहानी से हमें एक सबक मिलता है!
रास्ते में मुफ़्त का गांजा भी नहीं पीना चहिए!
– सुलतान भारती
यह भी पढ़ें: रंग-तरंग- हाय मेरा पहला अफेयर (Satire Story- Haye Mera Pahla Affair)
Photo Courtesy: Freepik
छोट्या पडद्यावरील सर्वात लोकप्रिय शो 'तारक मेहता का उल्टा चष्मा'चे दिग्दर्शक असित मोदी यांनी नुकतेच…
गणेशोत्सवाच्या काळात आपले सण हे पर्यावरणपूरक असावेत यासाठी देशातील नावाजलेले रेडियो नेटवर्क बिग एफएम सातत्याने…
Go metallic this NYE with a sparkle copper-bronze eyeshadow. To make your eyes look brighter,…
मराठी सिनेमेदेखील थिएटरमध्ये उत्तम चालतात याचं आणखी एक उदाहरण म्हणजे झिम्मा २ हा सिनेमा. सध्या…
एक्टर रणबीर कपूर की ब्लॉक बस्टर फिल्म एनिमल एक बार फिर से चर्चा में है.…
अकेले में तो खैर अब भी जब कभी मौक़ा मिलता है, तो कुलदीप आशा को…