कहानी- अजनबी (Short Story- Ajnabee)

परिमल शिवानी के प्रति एक अजब-सा खिंचाव महसूस करने लगा. उसने स्वयं पर पूरा नियंत्रण रखा. न कभी कुछ कहा, न कुछ इंगित ही किया, पर रात को बिस्तर पर लेटते ही वह जागी-मुंदी आंखों के समक्ष साकार हो उठती और बहुत चाहकर भी वह उस छवि को अपने मस्तिष्क से दूर न कर पाता…

कुछ अजब-सी उलझन में थे परिमल उन दिनों. उच्च जीवन मूल्योंवाले संस्कारयुक्त परिवार में पले-बढ़े परिमल को अपने आस-पास की दुनिया अति विचित्र लगती. अपने सहपाठियों की बातें, उनका व्यवहार अचम्भित करता था उन्हें. उस समय की पीढ़ी, जो आज पुरातनपंथी कहलाती है, वही तब उन्हें बहुत आधुनिक लगा करती थी.
मां-बाऊजी देहात छोड़ शहर आ बसे थे, ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकें. बच्चे सब होनहार निकले, माता-पिता की आकांक्षाओं पर खरे उतरे, फिर भी घर का वातावरण सीधा-सरल ही बना रहा. काम के प्रति निष्ठा, सत्य बोलना, ईमानदारी आदि संस्कारों की ही विरासत मिली थी परिमल और उसके भाई-बहन को.
ऐसे संस्कारी व्यक्ति को एक बेहद आम बीमारी हो गई. प्यार हो गया था उसे. वह भी अपनी ही छात्रा से. वह अपने मन की बात कहे भी तो किससे! यही उलझन थी.
परिमल का प्यार उस सैलाब की तरह भी तो नहीं उमड़ा था, जो सीमाएं तोड़, वर्जनाओं को नकारता हुआ, दीवानावर आगे बढ़ता है. ऐसा प्यार तो अपना ढिंढोरा स्वयं ही पीट आता है, किसी से कहने-सुनने की ज़रूरत ही कहां पड़ती है. लेकिन परिमल का प्यार तो एक सुगन्धित पुष्प की तरह था. उस फूल की ख़ुशबू स़िर्फ उसी को सम्मोहित कर रही थी. और कोई नहीं जानता था, स्वयं शिवानी भी नहीं. जान भी कैसे सकती थी, परिमल उसे बताए तब न!
हुआ यूं कि परिमल ने एमए कर लिया, तो आगे पीएचडी करने की चाह भी हुई, ताकि किसी कॉलेज में व्याख्याता का पद पा सके. परंतु वह अपने माता-पिता पर बोझ नहीं बनना चाहता था. घर में एक छोटा भाई व बहन और थे. उनके प्रति माता-पिता की ज़िम्मेदारियां अभी बाकी थीं. सो, परिमल ने तय किया कि वह नौकरी करके घर की सहायता न भी करे, पर अपना ख़र्च तो निकाल ही सकता है. अतः उसने अपनी डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के साथ-साथ सायंकाल ट्यूशन पढ़ाने की ठानी.
उसने अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया था और मध्य प्रदेश के उस छोटे से शहर में अंग्रेज़ी पढ़ानेवालों की ख़ूब मांग थी. परिमल के ही प्रो़फेसर ने उसे अपने एक परिचित की बेटी को पढ़ाने का काम दिलवा दिया.
शिवानी के महलनुमा घर में घुसते, पहली बार तो परिमल को कुछ हिचक-सी हुई. पर थोड़े ही दिनों में वह उस माहौल का आदी हो गया. घर के सभी सदस्यों का व्यवहार बहुत शालीन और स्नेहयुक्त था. किसी में भी अपने वैभव का दर्प नहीं. कारण था गृहस्वामिनी का स्वस्थ दृष्टिकोण. शिवानी से दस वर्ष ज्येष्ठ शशांक की अधिकांश शिक्षा मुंबई में हुई थी. उसका विवाह भी हो चुका था और अब वह पारिवारिक व्यवसाय संभाल रहा था.
शिवानी की शिक्षा चूंकि उसी शहर में आस-पास के स्कूलों में ही हो पाई थी, इसलिए उसे अब कॉलेज में अंग्रेज़ी को लेकर द़िक़्क़त आ रही थी. इसके अलावा माता-पिता को लगा कि अंग्रेज़ी का अच्छा ज्ञान न होने पर उसका रिश्ता किसी बड़े शहर के आधुनिक परिवार में संभव न हो पाएगा.
अतः परिमल को उसे पढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई.
अब तक जिन लड़कियों से भी परिमल का परिचय हुआ था, उन सब से शिवानी एकदम भिन्न थी. मासूम और निश्छल. उसका यही सरल स्वभाव उसके चेहरे को अनोखी मुग्धता प्रदान करता था, जो बरबस मन को आकर्षित करती थी.
कुछ माह पढ़ाने के पश्‍चात् ही परिमल शिवानी के प्रति एक अजब-सा खिंचाव महसूस करने लगा. उसने स्वयं पर पूरा नियंत्रण रखा. न कभी कुछ कहा, न कुछ इंगित ही किया, पर रात को बिस्तर पर लेटते ही वह जागी-मुंदी आंखों के समक्ष साकार हो उठती और बहुत चाहकर भी वह उस छवि को अपने मस्तिष्क से दूर न कर पाता…
कभी-कभी शशांक से भी मुलाक़ात हो जाती. वह परिमल से तीन-चार वर्ष ही बड़ा था और दोनों में अच्छी पटने लगी थी. तीव्र बुद्धि शशांक उसके मनोभावों को थोड़ा-बहुत समझने लगा था. परिमल की विद्वता व उसके संयमित व्यवहार से प्रभावित भी था वह. शायद इसीलिए जब उसने परिमल को बताया कि मां-पिताजी शिवानी के विवाह की सोच रहे हैं और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से रिश्ते की बात भी चल रही है, तो यह कहते हुए उसने परिमल के चेहरे की ओर एक आशाभरी नज़र से देखा भी. शायद वह परिमल की प्रतिक्रिया जानना चाह रहा था, पर मन में घुमड़ते अवसाद को परिमल चुपचाप पी गया. उसके लिए शिवानी की ख़ुशी ही सर्वोपरि थी, उसकी अपनी चाहत से भी बढ़कर.
वह जानता था कि अभी उसे अपने पैरों पर खड़ा होने और विवाह लायक धन जुटाने के लिए पांच-सात वर्ष और संघर्ष करना होगा. तब भी वह शिवानी को वह सब सुविधाएं नहीं दे पाएगा, जिनकी वह आदी है या जो एक सीए पति से उसे मिल सकती हैं. इसके अलावा वह दोनों परिवारों के आर्थिक और सामाजिक अंतर को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था.
परिमल की स्मृति में ताउम्र अंकित रही वह आख़िरी सांझ. सात बजने को थे कि शशांक आकर चुपचाप बैठ गया. उसने जैसे ही पढ़ाना समाप्त किया, तो शशांक ने बताया कि शिवानी का रिश्ता तय हो चुका है और अगले रविवार को सगाई की रस्म है, जिसके लिए उसे कुछ ख़रीददारी इत्यादि करनी होगी. अतः अब वह आगे और नहीं पढ़ पाएगी.
दरक गया था परिमल का मन. पर उसने मुबारक़बाद देते हुए भी शिवानी की तरफ़ नहीं देखा. अतः जान नहीं पाया कि वह किस कठिनाई से स्वयं को रोके खड़ी थी.
एक पूरा कालखंड ही बीत गया इस बात को. वर्षों की गिनती करें, तो चालीस वर्ष से कुछ ही कम. शिवानी की बेटी का विवाह हो चुका और वह नानी भी बन चुकी. पर कुछ चित्र स्मृति में आज भी यूं अंकित हैं, मानो पत्थर पर खुदे ऐतिहासिक शिलालेख हों. लेख नहीं, चित्र- अमिट-से शिलाचित्र.

यह भी पढ़े: स्त्रियों की 10 बातें, जिन्हें पुरुष कभी समझ नहीं पाते (10 Things Men Don’t Understand About Women)

वयःसंधि पर खड़ी थी तब वह. पहली बार मन में प्यार की कोपल फूटी थी. परिचित नहीं थी वह इस विचित्र-से एहसास से. लगा था, जैसे एक सुवासित बयार सहलाने लगी हो तन-मन को. शिवानी जब भी उदास होती है, हताश होती है, ऊर्जा पाने उसी बीते कल में पहुंच जाती है. बेटी के ब्याह के बाद से तो और भी अकेली पड़ गई है वह. प्रायः स्वयं से बातें करती रहती है.
‘ज़माना कितना बदल गया है. कितनी समझदार है आज की पीढ़ी. अपने फैसले लेने में सक्षम, अपने हक़ों के बारे में सचेत. और एक मैं थी, कितनी नादान. सच कहूं तो मैं बेवकूफ़ ही थी. उस समय के मापदंड से भी. विवाह होने तक भी यही समझती रही कि विवाहित स्त्रियां बहुत से जेवर पहन लेती हैं, तभी उनके बच्चे हो जाते हैं. सरल हृदया मां ने कुछ बताया नहीं था. तब ऐसा प्रचलन भी नहीं था. इसी सादगी में एकदम आदशर्र् जीवन जीने का ही प्रयत्न किया.
‘वह मुझे पढ़ाने आते थे. झा अंकल के परिचित थे, सो पिताजी ने बिना झिझक उन्हें मुझे पढ़ाने के लिए हामी भर दी. बहुत उसूलों वाले थे परिमल सर. अन्य युवकों से एकदम भिन्न. नैतिकता की साक्षात् प्रतिमूर्ति. दो वर्षों में बहुत क़रीब से जाना उन्हें और वह मन को भाने लगे. उनके कारण पढ़ने में रुचि आने लगी. जाने क्यों मन को विश्‍वास था कि मैं भी उन्हें अच्छी लगती हूं. नहीं! कहा किसी ने भी कुछ नहीं. एक बार भी नहीं. पर बिना शब्दों में बांधे भी तो बहुत कुछ सुन-समझ और कह लिया जाता है न?
‘मां-पिताजी ने यहां विवाह तय कर दिया. कुछ नहीं कह पाई. हिम्मत ही नहीं जुटा पाई. कहती भी तो मानते क्या? पिताजी को अपने वैभव पर गर्व भले ही कभी नहीं रहा, पर मेरे सुखद भविष्य की उन्हें चिंता थी, सीए दामाद को छोड़कर मात्र एमए पढ़े एक बेरोज़गार युवक से अपनी बेटी का विवाह करने की बात पर राज़ी हो जाते क्या?
‘विवाह के उपरांत जीवनसाथी स़िर्फ अपने ही हित की सोचे, केवल अपनी ही इच्छाओं, ज़रूरतों व सुविधाओं का ख़याल हो उसे, तो कैसा होगा जीवन? पुरुष रूप में पैदा होने के कारण शक्ति और अधिकार, सब तो जन्म से ही मिले हैं उन्हें. मन की उलझन और परेशानी को वे क्या बांट सकेंगे? बुख़ार से तप रही होऊं तो पलभर पास खड़े होकर हालचाल ही पूछ लें, इतनी भी उम्मीद नहीं.
दुख-तकलीफ़ में नितान्त अकेली पड़ जाती हूं. ख़ासकर बिटिया के ब्याह के बाद से. ख़ैर, ज़िंदगी तो गुज़र ही रही है, गुज़र ही गई समझ लो, अगर ज़िंदा रहना भर काफ़ी मान लिया जाए तो. कभी मन उदास होता है, तो सोचती हूं कि क्या स़िर्फ पैसा ही ख़ुशियों की गारंटी हो सकता है? हीरे-मोती पहनने की चाह नहीं की थी, एक संवेदनशील साथी मिल गया होता, बस.’
भूल नहीं पाई परिमल को शिवानी. पति जब भी कोई कड़वी बात कह देते, जब कभी वह स्वयं को अवांछित-सा महसूस करती, तो परिमल को याद कर अपना मनोबल बढ़ा लेती. कल्पनाओं में जाने कितनी बार परिमल के कंधों पर सिर रखकर ढेर-से आंसू बहाए हैं उसने, अपनी हर तकलीफ़ उससे बांटकर अपना जी हल्का किया है.
समय तो स्वचलित क्रिया है, सो चलता ही रहता है. शिवानी के भैया-भाभी के विवाह की पचासवीं वर्षगांठ आने को है- गोल्डन एनिवर्सरी, जिसे उनके बेटे ने धूमधाम से मनाने की योजना बनाई है.
पिता तो बेव़क़्त चल बसे थे और मां का भी देहांत हो चुका, पर भाई-भाभी ने कभी शिवानी को मां-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी. भैया के लिए आज भी वह प्यारी-सी छोटी बहना है. उसे भी इंतज़ार है आगामी उत्सव में सम्मिलित होने का. पति काम के बहाने जाना टाल गए और बिटिया-दामाद भी दूर की पोस्टिंग पर हैं, अतः वह अकेली ही पहुंची भाई के घर.
पार्टी अपने पूरे ज़ोरों पर है. वह सारे नाते-रिश्तेदारों से मिल चुकी. भाई के मित्र भी बारी-बारी से अभिवादन कर गए. उनमें ज़्यादातर नए थे, जिनसे वह नाममात्र को ही परिचित है. बहुत बोलनेवाली तो वह वैसे भी कभी नहीं रही, अतः सब से मिल-मिलाकर वह एक कोनेवाली मेज़ पर आ बैठी.
भैया से उसे पता चला है कि आज के उत्सव में सम्मिलित होने परिमल भी आनेवाले हैं और वह उनसे मिलने की अनुभूति को पूर्णतः महसूस करने के लिए पूरा एकांत चाहती है.
उसकी दृष्टि मुख्य द्वार पर टिकी है, ताकि वह परिमल के भीतर आते ही उन्हें देख सके और एक पल भी व्यर्थ न जाए. वह जानती है कि वह बहुत बदल चुके होंगे, पर कुछ भी हो, वह उन्हें पहचान लेगी. यादों में सदैव ही तो उसके साथ रहे हैं वह…
स्टेज पर कुछ कलाकार पुरानी फ़िल्मों के गीत हल्के स्वरों में गा रहे हैं, जो माहौल को उसी 40-50 वर्ष पूर्व के काल में ले गए हैं और शिवानी भी अपनी तमाम बीमारियां और दर्द भूलकर अपने ख़यालों में उसी यौवन के द्वार पर आकर जैसे ठिठक गई है.
आज वह अपनी यादों के साथ अकेली ही रहना चाह रही है. उस विगत काल में पहुंच चुकी है वह, जब यौवन ने नई-नई दस्तक दी थी. दुनिया एकाएक ख़ूबसूरत लगने लगी थी. पूरे परिवार का स्नेह पाती थी वह, पर उसे शाम का वह एक घंटा ही अज़ीज़ लगने लगा था, जब ‘सर’ उसे पढ़ाने आते थे.
धीरे-धीरे उस के मुख से ‘सर’ कहना भी छूटता जा रहा था. उनसे बात करते व़क़्त बिना सम्बोधन के ही काम चलाती. मन ही मन वह उन्हें चाहने लगी थी, पर शर्मीली और मितभाषी शिवानी किसी को नहीं बता पाई थी अपने मन की बात.
मुख्य द्वार से भीतर आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को वह बड़े ध्यान से देख रही है. अधिकांश पुरुष गंजे अथवा सफ़ेद बालों वाले हैं. हां, स्त्रियां अनेकरूपा हैं. कुछ अपनी उम्र छिपाने के लोभ में सौन्दर्य प्रसाधनों से रंगी-पुती व गहनों से लदी-फंदी होने पर भी फूहड़ ही लगती हैं और कुछ बिना साज-शृंगार व सामान्य कपड़ों में भी शालीन.
कुल मिलाकर माहौल कुछ ऐसा है, जैसा विवाह के अवसरों पर होता है, सिवाय इसके कि अधिकतर अतिथि बड़ी उम्र के हैं. विवाह के अवसर पर चढ़ती उम्र की रौनक होती है. वर-वधू के संगी-साथी, चचेरे-ममेरे भाई-बहन धमाचौकड़ी मचाए रखते हैं, पर आज तो दूल्हा-दुल्हन स्वयं ही सत्तर पार कर चुके हैं और उनके मित्र-परिचित भी. रिश्तेदारों में जो बहुत नजदीकी हैं और परिवार समेत आए हैं, उन्हीं में से कुछ उभरती पीढ़ी के भी हैं.
भैया-भाभी अपने शुभचिंतकों से घिरे खड़े हैं. कुछ लोग हटते हैं तो दूसरे घेर लेते हैं. सबसे मिलना है उन्हें, सब की मुबारक़बाद स्वीकार करनी है. ऐसा क्यों न हो, दोनों ने कितना अच्छा समय एक संग गुज़ारा है. सहपाठी थे दोनों और विवाह भी जल्दी ही कर लिया था. भाभी स्नेहमयी और सहृदया. भैया भी सदैव ख़ुद से पहले दूसरों की प्रसन्नता की सोचनेवाले, भाभी की हर ख़ुशी पूरी करने की कोशिश करनेवाले. जीवन ऐसा बीते, तभी इस जश्‍न का औचित्य है.
शिवानी अपने ही ख़यालों में खोई है. दृष्टि उसकी द्वार पर ही है. उसने देखा ही नहीं कि भैया किसी को साथ लिए उसी की तरफ़ आ रहे हैं. जब उन्होंने पास पहुंच कर शिवानी को पुकारा, तभी जाना उसने. पर जब तक वह अपने साथी का परिचय करा पाते, उन्हें कोई अन्य अतिथि दिख गया और वह उसका स्वागत करने आगे बढ़ गए.
शिवानी ने एक सरसरी निगाह आगंतुक पर डाली और फिर से अपनी दृष्टि द्वार पर टिका दी. एक पल भी नहीं खोना चाहती वह परिमल को देखने के लिए. पर उसका ध्यान फिर भंग हुआ, जब आगंतुक ने उसे नाम लेकर पुकारा. शिवानी ने निगाहें उस ओर उठाईं, तो उस व्यक्ति के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट तैर गई और उसका चेहरा स्वतः ही ज़रा-सा बायीं ओर झुक गया. पहचान गई शिवानी और हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई.
सब कुछ वैसा ही तो हो रहा है, जैसा शिवानी ने चाहा था, जैसी उसने कल्पना की थी. वह परिमल के सान्निध्य में बैठी है और कोई भी नहीं है उनके आस-पास.

यह भी पढ़े: नाम के पहले अक्षर से जानें अपनी लव लाइफ (Check Your Love Life By 1st Letter Of Your Name)

नहीं, परिमल उसे भूला नहीं है. पिछली अनेक बातें याद हैं उसे. अरसे बाद मिले किसी पुराने स्नेही मित्र की ही तरह वह उससे बातें कर रहा है, उसका और उसके घर-परिवार का हालचाल जानना चाह रहा है. वह ही क्यों उसके हर प्रश्‍न का उत्तर बहुत औपचारिक और संक्षिप्त रूप में दे रही है? क्यों खुलकर बात नहीं कर पा रही वह?
मन ही मन ख़ुद से बातें करने लगी है शिवानी, ‘कल्पना में तुम मेरे संग ही रहे इन तमाम वर्षों में. तुम्हारी उपस्थिति मैं सदैव अपने आस-पास महसूस करती रही. अपने मन की हर बात, हर उलझन और परेशानी तुमसे बांटती रही, पर सच तो यह है कि कुछ भी नहीं जानते तुम मेरे बारे में, सिवाय भैया से सुनी कुछ मुख्य बातों के… और मैं ही क्या जानती हूं तुम्हारे बारे में, सिवा इसके कि गत वर्ष तुम्हारी पत्नी की मृत्यु हो गई और दोनों बेटे विदेश जा बसे हैं. अलग-अलग राहों पर चलते हुए इतिहास अलग हो चुके हैं हमारे. विवाह के समय भूल ही गई थी तुम्हें अपने जीवन से अलग करना.
भीतर से सदैव ही जुड़ी रही तुम्हारे संग. आज जाना, कितना बेमानी था वह सब.’
कंधे पर सिर रख कर रोने की बात तो उठी ही नहीं शिवानी के मन में. सामने बैठा व्यक्ति तो नितांत अजनबी था.

उषा वधवा 

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

उषा वधवा
Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

बॉडी को डिटॉक्स करने के लिए होम रेमेडीज़ (Home remedies to detox the body)

बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन का मतलब है कि बॉडी की अंदर से सफाई करना और अंदर जमा…

March 12, 2025

जन्नत आणि फैजूने इन्स्टाग्रामवर एकमेकांना केले अनफॉलो, चाहत्यांच्या या आवडत्या जोडीचे ब्रेकअप झाले की काय? (Jannat Zubair And Faisal Shaikh Break Up? Former Unfollows Mr Faisu On Social Media)

प्रसिद्ध टीव्ही अभिनेत्री आणि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जन्नत झुबेर आणि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर फैजल खान…

March 12, 2025

कर्नाटकच्या मंदिरात दर्शनाला गेली कतरीना कैफ (Katrina Kaif Spotted Worshiping Karnataka’s Kukke Shree Subramanya Temple)

महाकुंभ २०२५ मध्ये शाही स्नान केल्यानंतर, बॉलिवूड अभिनेत्री कतरिना कैफ अलीकडेच कर्नाटकातील कुक्के श्री सुब्रमण्य…

March 12, 2025

कहानी- रणनीति (Short Story- Ranneeti)

"वो मैं पूछ लूंगा." अपनी जीत पर उछलता सुशांत नीरा के आगे गर्व से इठलाया,…

March 12, 2025

डिजिटल पेमेंट्स अवेअरनेस वीक: डिजिटल पेमेंट्स करण्‍यासाठी व्हिसाच्‍या महत्त्‍वपूर्ण टिप्‍स (Digital Payments Awareness Week: Visa’s important tips for making digital payments)

आज, स्‍टोअरमध्‍ये असो, ऑनलाइन किंवा चालता-फिरता आर्थिक व्‍यवहार करायचा असो #IndiaPaysDigitall ला अधिक प्राधान्‍य दिले…

March 12, 2025
© Merisaheli