कहानी- अपनी एक छत (Short Story- Apni Ek Chhat)

कितना अच्छा हो अगर उसका अपना एक घर हो जाए, नितांत उसका अपना, जहां उसके वजूद को पूर्णता मिले और वह निर्बाध अपने निर्णय ख़ुद…

कितना अच्छा हो अगर उसका अपना एक घर हो जाए, नितांत उसका अपना, जहां उसके वजूद को पूर्णता मिले और वह निर्बाध अपने निर्णय ख़ुद ले सके. जहां उसकी अस्मिता को कदम-कदम पर समीर के अहम का खामियाज़ा न उठाना पड़े.

“समीर प्लीज़, मेरी दिली तमन्ना है कि नवेली सैक्रेड अकादमी में पढ़े. वहां की पढ़ाई एंजल्स पब्लिक स्कूल से बहुत बेहतर है.”
“नहीं, नवेली एंजल्स पब्लिक स्कूल में ही जाएगी. मैं और दीदी वहीं पढ़े हैं. बंद करो अपनी वकालत. इस घर में वही होगा, जो मैं चाहूंगा. यह मेरा घर है.”
पति की इन दो टूक बातों से अवश बेबसी से रैना की आंखें भर आईं.
यूनिवर्सिटी की टॉपर, सरकारी महकमे में क्लास वन सीनियर ऑफिसर रैना घुट कर रह गई थी. अपने ही नीड़ में बात-बात में समीर की मेरा घर… मेरा घर… की टेर उसे भीतर तक छील कर रख देती. उसकी इच्छा, उसकी ख़्वाहिश का कोई मोल नहीं है उनकी निगाहों में. वह बात-बात पर उसे यह जताने से नहीं चूकते कि यह घर उनका है, यहां उनकी मर्जी ही चलेगी.

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शादी से पहले अपने हिसाब से कुछ करना चाहती, तो मां-पापा उससे कहते, “अपने घर जाओ तो जी भर कर अपने मन की करना.”
अब शादी के बाद जब अपने घर आ गई है, तो बात-बात पर समीर की धौंस सुननी पड़ती है, “यह घर मेरा है. यहां मेरा क़ानून चलता है.”
‘तो आख़िर उसका घर है कहां?’
मन की धरती डोल रही थी. शिद्दत के तनाव से उसके स्नायु तन आए और आंखों से आंसू बह निकले.
थोड़ी देर रो कर उसका जी हल्का हुआ. बड़े बेमन से रसोई का काम निबटा कर वह अख़बार खंगाल ही रही थी कि तभी उसमें एक बिकाऊ घर के विज्ञापन को देख कर उसके मन में कुछ कौंधा.
कितना अच्छा हो अगर उसका अपना एक घर हो जाए, नितांत उसका अपना, जहां उसके वजूद को पूर्णता मिले और वह निर्बाध अपने निर्णय ख़ुद ले सके. जहां उसकी अस्मिता को कदम-कदम पर समीर के अहम का खामियाज़ा न उठाना पड़े.
अपना एक आशियाना, अपनी एक छत का ख़्याल उसके अंतर्मन में अनवरत खदबदाता रहा. इसकी परिणति हुई उसके इस निर्णय में कि वह अपना एक घोंसला बनाएगी, जहां उसके ऊपर का आसमान भी उसका होगा और पांव तले ज़मीन भी उसकी होगी.

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इस सोच ने उसे ताकत दी. एक अनोखी ऊर्जा और उत्साह से लबरेज़ होते हुए उसने कई प्रॉपर्टी एजेंट्स को फ़ोन खटखटाए. फिर पति से यह कहते हुए घर से बाहर निकल गई, “समीर, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. आज कुछ मकान देखने जा रही हूं. बहुत जल्दी ही मैं एक घर ख़रीदने जा रही हूं, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हो.”

रेणु गुप्ता

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Photo Courtesy: Freepik

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