Short Stories

कहानी- असंतोष (Short Story- Asantosh)

 
इस लड़की को कभी कोई चाह क्यों नहीं होती! कभी कोई असंतोष क्यों नहीं व्यापता? मुझे तो आज भी एक चाह है… पता नहीं क्या पाने की! सुहास को पहली बार लगा कि लाली के पास बहुत कुछ न होते हुए भी शायद सब कुछ है. और उसके पास सब कुछ होते हुए भी शायद कोई कमी है, कोई असंतोष है…

बालगोपाल का विवाह है. सनत कक्का ने बहुत आग्रह से बुलाया है. सुहास सोचती है, गांव हो आए. कब से गृह-ग्राम नहीं गई. दिल्ली की व्यस्तता जाने नहीं देती. कभी समय निकाला भी तो जहां बाबूजी पदस्थ हैं, वहां जाती है. मां से गांव की सूचना मिलती रहती है. यही कि सनत कक्का की चारों लड़कियां तो किसी प्रकार ब्याह दी गईं. अब पेट पोंछना बालगोपाल बचा है, बस!
सुहास की स्मृति में गांव उतर आया. बाबूजी के बड़े प्रशासनिक पद, प्रभुत्व, पैसे का प्रभाव पूरे गांव में देखा जा सकता है. मां जब भी गांव जातीं, कमर में हाथ धरे इस बखारी से उस बखारी डोलती फिरतीं. पीछे-पीछे पैदावार का हिसाब देती काकी. काकी की लड़कियां हुकुम बजातीं, जो बोलो सोे हाज़िर- कभी बेल का शर्बत, कभी पुदीने कि, कभी कैथे की चटनी, कभी रसाज की कढ़ी.
सुहास की उतरन यहां खप जाती. काकी की लड़कियां लाली, सुमति, संखी, सरोजिया छीना-झपटी करतीं. लाली ने बचपन में सुहास की उतरन पहनी होगी, इधर तेरह-चौदह की होते ही साड़ी पहनने लगी थी. बाकी तीनों बहनें सुहास की उतरन पाकर ख़ुश हो जातीं, जबकि लाली अपनी साधारण सूती साड़ी में विभोर रहती. लाली का संतोष सुहास को त्रास देता. सुहास ख़ुद से डेढ़ वर्ष छोटी लाली को अकारण अपना प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मानने लगी थी, जबकि लाली सुहास के ठाट-बाट से निष्प्रभावी बनी रहती. सुहास उद्विग्न होती, “लाली, तू साड़ी में ख़बीस दिखती है.”
“जिज्जी, साड़ी में बहुत आराम मिलता है. लड़कों जैसे पैंट में तुम्हारा दम नहीं घुटता?” लाली अपनी नादानी में सुहास को छेड़ देती.
“तू क्या जानेगी जींस की शान. गांव से निकल, फिर देख लड़कियां कितना अद्भुत कर रही हैं. कितनी ऊंची पढ़ाई कर रही हैं.”
“तो हम भी अठमा (आठवीं) पास किए हैं. अच्छे नंबर से.”
“तेरे लिए बहुत है. तुझे घर-गृहस्थी ही तो संभालनी है.”
“लड़की जात तो घर-गृहस्थी ही देखती है जिज्जी.”
“इसीलिए दिद्दा, तुम दिनभर चौका-चूल्हा देखती हो, पहनने-ओढ़ने का सऊर नहीं सीखतीं.”

यह भी पढ़ें: ना बनाएं कोविड सिंड्रोम रिश्ते, ना करें ये गलतियां, रखें इन बातों का ख़याल (Covid syndrome relationship: How much have relationships evolved in the pandemic, Mistakes to avoid in relationships)


“जिज्जी, तुम कपड़ा-लत्ता दे देती हो हमारा दारिद्रय छिपा रहता है, वरना…” संखी की बात सुनकर सुहास के मुख पर विजयी भाव छा जाता. दो खेमे बन जाते. लाली अकेली, सुहास की ओर सब. सुमति, संखी, सरोजिया सब सुहास को घेरकर शहर के क़िस्से पूछतीं.
“जिज्जी, शहर के क़िस्से सुनाओ.”
“शहर की लड़कियां तुम्हारी तरह सुंदर और होशियार हैं?”
“जिज्जी, तुम कार चला लेती हो? फटफटी भी?”
“सभी लड़कियां घड़ी बांधती हैं?”
“हां. मैंने नई घड़ी ख़रीदी है. पुरानी मुझे पसंद नहीं थी. तुम लोगों को दे दूंगी.” सुहास तिरछी नज़रों से लाली को टोहती, शायद आग्रह करे कि ‘इन लोगों को कपड़े मिल गए हैं जिज्जी, घड़ी मुझे देना.’
पर लाली आग्रह न करती. सुहास की कनपटी गरम होने लगती. यह अभिमानी लड़की अपनी सीमा में तुष्ट है या तुष्ट दिखने का ढोंग करती है? इसे कभी मेरे जैसी सुविधा-सम्पन्नता पाने की चाह नहीं होती? मेरे ठाट-बाट से डाह तो हो सकती है?
फिर सुहास जब लाली के ब्याह पर गांव आई, तो तुष्ट थी कि यह अप्रिय चेहरा अब नज़र नहीं आएगा. काकी हुलसकर मां से बता रही थीं, “भउजी, बड़ा अच्छा घर-परिवार मिल गया है. मां-बाप और दो भाई हैं, बस. गांव में खेती-बाड़ी है. कस्बा में पक्का मकान और निजी आटा चक्की है. लड़का कॉलेज में पढ़ता है. अच्छे नंबर से पास होता है.”
अपने दहेज के सामान को देखकर लाली लजाए भाव से सुहास से बोली, “देखो न जिज्जी, अम्मा हमारे लिए क्या-क्या सजाए बैठी हैं-पलंग, रजाई, गद्दा, रेशमी चादर, टीवी, टेबल फैन, बर्तन, गहने…”
उन क्षुद्र सामग्रियों को देख सुहास ने कहकहा लगाया था, “लाली, जब मेरा ब्याह होगा न, तब देखना दहेज किसे कहते हैं. बंगला, गाड़ी, फ़र्नीचर, गहने- और न जाने क्या-क्या?”
सुनकर लाली चौंकी तक नहीं थी, “शहर में ये सब देना पड़ता है जिज्जी, यहां गांव में नहीं चलता.”
सुहास का जी चाहा, लाली के बाल नोंच डाले. कूपमंडूक कहीं की. अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती. शहर देखा होता, तो जानती कि दुनिया कितनी बड़ी है.
सुहास अपने विवाह में लाली को दिखा देना चाहती थी कि दुनिया ऐसी रंगीन होती है और ज़िंदगी इसे कहते हैं. सुहास का शृंगार, रत्नजड़ित आभूषण, बहुमूल्य परिधान, घर की भव्य सजावट, विद्युत बल्बों की जगमगाहट, अत्याधुनिक परिधानों में अतिथि समुदाय, नयनाभिराम आईएएस दूल्हा, संगीत-लहरी, भव्य भोज, विराट दहेज- सब कुछ बेजोड़, अद्भुत था. सुहास ने पाया लाली की आंखों में अचरज और कौतूहल ख़ूब था, पर ईर्ष्या-द्वेष न था. लाली अपने पति रामानुज और दो नन्हीं बेटियों में रमी हुई, अपने स्तर पर प्रसन्न नज़र आ रही थी. सुहास के भीतर मरोड़-सी उठी, ‘मेरे विवाह की भव्यता इसे थोड़ा भी विचलित नहीं कर रही है? यह ख़ुश है? हर काम में कैसे आगे-आगे हो रही है.’

यह भी पढ़े: ख़ुद अपना ही सम्मान क्यों नहीं करतीं महिलाएं (Women Should Respect Herself)


“हम तो ख़ूब नाचेंगे-गाएंगे, जिज्जी का ब्याह क्या मामूली बात है?”
“बड़ी अम्मा, जिज्जी के ससुराल भेजा जानेवाला ‘बइना’ तो हम ही बनाएंगे. खाजा, गुझिया, मठुलिया, सोहारी (थाली के बराबर बड़े आकार की पूरियांं). तुम्हारे ये शहरी हलवाई सोहारी बनाना क्या जानें?”
“जिज्जी, उबटन लगवाने में मुंह न सिकोड़ो, बड़े भाग से देह में हल्दी चढ़ती है. चलो बैठो. तुमने बहुत पुन्न किए हैं, तभी तुम्हें भी इतना अच्छा घर-वर मिल रहा है, जैसे कि हमें मिला है. घर धन-धान्य से भरा रहता है, अच्छा परिवार है और हमारे चक्की वाले (रामानुज) तो साच्छात् श्री रामचंद्रजी हैं.”
“लाली, तू भी. जिस घर में तू रहती है,  उसमें मैं दो दिन नहीं रह सकती. बंगला-गाड़ी की आदत है.”
“हमारे घर में भी कमी नहीं है जिज्जी. ख़ूब बड़ा हवादार घर है. पनिहारिन-कहारिन लगी हैं, ख़ूब आराम है.”
सुहास विक्षुब्ध हुई. ‘मेरे ठाट-बाट देखकर भी इस बड़बोली का सुख-समृद्धि मापने का मापदण्ड नहीं बदला. ये अपने स्तर पर ख़ुश है या मेरे ऐश्‍वर्य को अनदेखा कर मुझे तंग करती है? मुझसे प्रभावित नहीं होती. क्या मेरी बराबरी करना चाहती है? मैं इससे कुछ लेना नहीं चाहती, बल्कि देना चाहती हूं. बस, ये भी अपनी बहनों की तरह मेरी चाकरी-चाटुकारी करे, मेरे अभिमान को तुष्ट करे, ख़ुद को छोटा समझे, पर ये बेवकूफ़…’
फिर तमाम व्यस्तताओं के बीच एक लंबा वक़्त सरक गया. सुहास दो बेटों की मां बन गई. लंबे समय से किसी से मिलना नहीं हुआ. अब बालगोपाल के ब्याह में जाकर देखना चाहिए कि लाली अब भी चहकती फिरती है या अभावों ने उसकी रीढ़ तोड़ दी है? बेवकूफ़ी में गिरावट आई या अब भी वैसी ही गंवार है?
सुहास अपने पति श्रीकांत को बड़े प्रयास के बाद गृह-ग्राम चलने के लिए सहमत कर सकी. वे विमान में बैठने तक झल्लाते रहे, “गांव की सड़ी गर्मी सहन नहीं होगी. प्रदूषित पानी से बच्चों को संक्रमण हो सकता है, सुहास. और तुम्हारे गांव में ढंग का एक डॉक्टर तक नहीं मिलेगा.”
दिल्ली से खजुराहो विमान से, फिर खजुराहो से गांव तक की यात्रा सुहास के बाबूजी की कार में पूरी हुई.
सुहास के पहुंचते ही घर में अफ़रा-तफ़री मच गई. श्रीकांत इतने बड़े अफसर, पूरा घर स्वागत में तत्पर हो उठा. सीलिंग फैन वाले कमरे में श्रीकांत को ले जाया गया. सुहास दूसरे कमरे में बैठी. बालगोपाल ने टेबल फैन चला दिया. मां, काकी, लाली, सुमति, संखी, सरोजिया- सब घेरकर बैठ गए. सुहास ने बहुत सारे रिजेक्टेड कपड़े निकाले.
“संखी ले भई, ये साड़ी तू रख. मैं नहीं पहनती, दिल्ली में रोज़ फैशन बदलता है.”
“सुमति, ये साड़ी पकड़. बड़ी गफ है. सालों तक पहन सकती है. सरोजिया, इधर आ. और हां, ये मेरे सोनू-मोनू के कपड़े हैं, ये लोग अब नहीं पहनते. जिसके बच्चे को जो कपड़ा फिट आ जाए, ले लो.”
इस लेन-देन को देखती लाली बोल पड़ी, “सोनू-मोनू तो ख़ूब नए फैशन वाले कपड़े पहनते होंगे, है न. हमारी लड़कियां भी ख़ूब फैशन समझने लगी हैं. हमारी देवरानी शहर की है, तो उसी ने इन लोगों को भी फैशनदार बना दिया है.”
सुनकर लाली को साड़ी थमाने जा रहे सुहास के हाथ ठिठक गए. इस अभिमानी को साड़ी देना व्यर्थ है. दूर से देखे और ललकती रहे. इधर सरोजिया सुहास के वेनिटी बैग को कौतुक से सहला रही थी.
सुहास ने झिड़का, “क्या समझ रही है सरोजिया? इसमें मिठाई नहीं, मेकअप का सामान है. तुम सब को क्रीम, पाउडर, परफ़्यूम लगा दूंगी.”
संखी थिरक उठी, “जिज्जी, तुम आ गई हो, तो हमारा भी रंग जम जाएगा.”
बालगोपाल पूछने लगा, “जिज्जी, तुम्हें हवाई जहाज में बैठने में डर नहीं लगता?”
“नहीं. सोनू-मोनू तक नहीं डरते. ख़ूब मज़े लेते हैं.”
“हां जिज्जी, आजकल के बच्चे बहुत हुसियार हो गए हैं, हमारी लड़कियां जब बाबूजी की कार में बैठकर यहां आईं, तब इतनी ख़ुश थीं कि पूछो मत.”
लाली का ब्यौरा सुन सुहास को लगा लाली उसके बराबर खड़ी होने का प्रयास कर रही है. इसे किस तरह समझाया जाए, सौ जन्म ले लेगी, तब भी मेरी बराबरी नहीं कर सकेगी. सुहास का जी चाहा कि चीखे, ‘लाली तुझे मेरा वैभव थोड़ा भी संत्रास नहीं देता? तू कभी असंतोष व्यक्त कर देगी, तो क्या तेरी मानहानि हो जाएगी? तू क्या मुर्दा है, जो तुझे मेरे अच्छे कपड़े-गहने लुभाते नहीं? तेरी कोई इच्छा, कामना, आकांक्षा नहीं है? तू इतनी संतुष्ट रह कैसे पाती है रे?’ सुहास के भीतर अकुलाहट भरती गई.
लाली को पुकारते हुए सनत कक्का वहां आ पहुंचे, “लाली, तुम यहां डटी हो? काम पड़ा है. चलो देखो.”
“जिज्जी, तुम सुस्ता लो, मैं काम देख लूं.” कहकर लाली चली गई. सुहास ने राहत की सांस ली.
सुहास को बड़ी देर बाद श्रीकांत का ध्यान आया, बेचारे बोर हो रहे होंगे. उनके कमरे में पहुंची तो देखा, वहां दरबार लगा हुआ है. श्रीकांत हंस रहे हैं.
कोई पूछ रहा है, “कुतुबमीनार कैसी है, जीजाजी? लाल किला और संसद भवन?”
“पूछते क्या हो? दिल्ली आओ, सब दिखा देंगे.” श्रीकांत बोले.
बालगोपाल बोला, “जीजाजी, आप इतने बड़े अफसर हैं, हमें भी दिल्ली में काम दिलाइए न.”
“बिल्कुल. कहो तो वहीं सैटिल करा दूं.” कहते हुए श्रीकांत की दृष्टि दरवाज़े पर खड़ी सुहास पर पड़ी.
“तुम अब तक कहां छिपी बैठी थी सुहास? देखो, कैसी शीर्ष-वार्ता चल रही है. लालीजी ने बड़ा बढ़िया पुदीने का शर्बत पिलाया. मज़ा आ गया.”
सुहास चौंकी, पहले तो यहां आना ही नहीं चाहते थे और अब ऐसे ठठा रहे हैं, जैसे पूरा जीवन यहीं बीता हो. और ये लाली हवा-बयार है क्या? अभी वहां, तो अभी यहां. लाली कहने लगी, “शर्बत अच्छा कैसे न होता जीजाजी, आपके लिए स्पेशल बनाया है. एक ग्लास और लाएं?”
सुहास ने भृकुटि तानी, “कृपा कर शर्बत पिलाकर भूख मत बिगाड़. ऐसा कर, इसी कमरे में टेबल लगवा दे तो इन्हें और सोनू-मोनू को यहीं खिला देती हूं. ये लोग भीड़- भाड़ में नहीं खाएंगे.”
“आज तो भाईसाहब, पंगत का आनंद लीजिए.” रामानुज ने आग्रह किया.
“यह ठीक होगा. कभी बचपन में खाया था. आज बचपन की यादें ताज़ा की जाएं.” श्रीकांत तत्क्षण सहमत हो गए.
लाली ने हर्ष व्यक्त किया, “ये हुई न बात. पंगत की व्यवस्था हो रही है.”
पंगत की छटा देखकर सुहास मूर्च्छित हो रही थी. बता-बताकर थक गई, हम लोग डायनिंग टेबल पर कांटे-चम्मच से खाते हैं और यहां श्रीकांत पंगत में बैठकर दोना भर कढ़ी सरपोट रहे हैं. स्नैक्स प्रेमी सोनू-मोनू सोहारी और पिसी शक्कर हज़म कर नाक काटे डाल रहे हैं. लाली ख़ूब आग्रह कर-करके श्रीकांत को खिला-परोस रही है. सुहास को लगा, वह अपने परिवार पर से अपना नियंत्रण खो रही है. तभी लाली मानो उसको उकसाती हुई बोल पड़ी, “जिज्जी, तुम कहती हो, सोनू-मोनू खाते नहीं. देखो, कितने प्रेम से खा रहे हैं.”
सुहास को लगा कि लाली कटाक्ष कर रही है, ‘तुम भी तो यही अन्न खाती हो, जिज्जी. फिर बात-व्यवहार में अहंकार क्यों? बनावटीपन क्यों? पढ़-लिखकर आदमी क्या यही सीखता है?’
उत्तर श्रीकांत ने दिया, “लालीजी, दिल्ली में यह चटपटी कढ़ी नहीं मिलती, इसलिए भूख नहीं लगती.”
लाली बोली, “हम तो डर रहे थे जीजाजी कि आपको यहां का खाना पसंद भी आएगा या नहीं.”
“हां, खाया तब पता चला कि जो स्वाद और सोंधापन इस खाने में है, वो निराला है. चलो, खाना तो बहुत खा लिया, अब एक अच्छा-सा पान खिलाओ.”
“अभी आपके लिए स्पेशल बीड़ा बनाकर लाते हैं.”
सुहास को एकाएक लगने लगा, श्रीकांत लाली में रुचि ले रहे हैं. वह सोचती थी कि श्रीकांत अगले ही दिन ऊबकर वापस चल देने की बात कहेंगे और यह तो यहां ऐसे रम गए हैं कि विश्‍वास नहीं होता.

यह भी पढ़ें: लाइफस्टाइल ने कितने बदले रिश्ते? (How Lifestyle Has Changed Your Relationships?)


श्रीकांत सचमुच रम गए थे. पिकनिक सा आनंद आ रहा था. रामानुज के साथ खेत-खलिहान, अमराई देखने गए. दुलदुल घोड़ी के नाच पर विभोर होते रहे. लाली और अन्य स्त्रियों के गीतों पर वाह-वाह करते रहे. सुहास को न जाने क्यों, अपनी माया-काया फीकी लगने लगी. सारा अभिमान, दबदबा इस दो टके की लाली के समक्ष व्यर्थ हो रहा है. बिना किसी विशिष्टता व उपलब्धि के यह लड़की उसे पराजित किए जा रही है और वह तमाम माया-काया के बावजूद पूरे परिवेश से अलग-थलग पड़ गई है.
वापसी का दिन. श्रीकांत बीच आंगन में रखी खटिया पर बैठे हैं. घर की स्त्रियां नए रुमाल में दस, बीस, पच्चीस रुपए बांधकर श्रीकांत को दे रही हैं. श्रीकांत के मुख पर तरावट का भाव है, मानो कह रहे हों, परंपरा और संस्कृति गांवों में आज भी जीवित है.
सुहास तनाव में है, ‘श्रीकांत कैसे हाथ बढ़ा-बढ़ाकर रुपए लिए जा रहे हैं. मालूम होता है, कभी रुपए देखे ही न हों. श्रीकांत को समझना चाहिए कि पसरे हुए हाथों को देखने में जो आनंद है, वो हाथ पसारने में नहीं. छिः कितना भोंडा प्रदर्शन कर रहे हैं ये. और यह लाली, श्रीकांत को स्त्रियों का परिचय इस तरह दे रही है, जैसे सबकी मंत्राणी यही हो. चलते समय इसके मुंह पर कुछ रुपए मारने होंगे, तभी इसका घमंड दूर होगा.’
सुहास बैग से रुपए निकालकर आई तो देखा, लाली सोनू-मोनू के हाथ में सौ-सौ रुपए रख चुकी है.
“ये क्या कर रही है, लाली?” सुहास ने आपत्ति की.
“बच्चों को कुछ देना मेरा हक़ है जिज्जी. चार दिन में ये दोनों ऐसे घुल-मिल गए हैं कि इन्हें छोड़ने को जी नहीं करता. कहते हैं न, मूलधन से सूद अधिक प्यारा होता है.”
लाली की बात पर श्रीकांत हंस दिए, “लालीजी, मैं मूलधन हूं या सूद?”
“आप तो दोनों से बढ़कर हैं, जीजाजी. आपको देखकर जाना कि शहरवाले भी हम गांववालों जैसे सीधे-सरल हो सकते हैं.” लाली की आंखें भर आईं.
तो यह लड़की श्रीकांत को अपने स्तर का समझ बैठी है? यह सुखी-सम्पन्न, संतृप्त दिखने का दंभ छोड़ती क्यों नहीं? सुहास का जी चाहा कि सोनू-मोनू के हाथ से रुपए छीनकर लाली के मुंह पर मारे, रख अपने रुपए. जानती हूं तेरी औकात.
श्रीकांत ने सुहास को स्मरण कराया, “सुहास बच्चों को कुछ दो.”
“ओह…. हां. लाली, तेरी लड़कियों का नाप मालूम नहीं था, इसलिए कपड़े नहीं लाई. ख़रीद लेना.” सुहास की उंगलियों में पांच-पांच सौ के दो नोट दबे थे.
“नहीं जिज्जी, तुम लोगों ने आने का समय निकाला, हमारे लिए यही बहुत है.” कहते हुए लाली की डब-डब आंखें बरस पड़ने को हो आईं.
“लालीजी, रख लीजिए. मुझे अपना मानती हैं न? देखा, मैंने भी तो रुपए रखे न. मैं मानता हूं कि ये रुपए नहीं, बल्कि देनेवाले के स्नेह होते हैं. ले लो, मीठी याद लेकर जा रहा हूं, उत्साह बना रहने दो.” श्रीकांत के आग्रह में अपनत्व है, स्नेह है. ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरे को निकृष्ट सिद्ध करने का अहंकार नहीं है.
“आपने जीजाजी, ऐसी बात कह दी है कि… लाओ जिज्जी.” कहते हुए लाली ने रुपए ले लिए.
सुहास को लगा, लाली ने उसके कहने पर रुपए न लेकर उसको ख़ारिज कर देने की कोशिश की है. इस लड़की को कभी कोई चाह क्यों नहीं होती! कभी कोई असंतोष क्यों नहीं व्यापता? मुझे तो आज भी एक चाह है… पता नहीं क्या पाने की! सुहास को पहली बार लगा कि लाली के पास बहुत कुछ न होते हुए भी शायद सब कुछ है. और उसके पास सब कुछ होते हुए भी शायद कोई कमी है, कोई असंतोष है… हां, शायद लाली के संतोष का असंतोष.
“आते रहिए जीजाजी-जिज्जी…” लाली की आंखों से आंसू कपोलों पर बह आए.
धूल उड़ाती गाड़ी चल पड़ी. लाली काले-धुंधलाते धुएं को देखती खड़ी थी. उसे अब भी मालूम न था कि उसकी सर्वश्रेष्ठ, सर्वसम्पन्न सुहास जिज्जी को कोई असंतोष है.
 

सुषमा मुनीन्द्र

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

व्यंग्य- संबोधन सूचक नया शब्द…  (Satire- Sambodhan Suchak Naya Shabd…)

“अंकल, अपना बैग हटा लीजिए, मुझे बैठना है.”जनाब अंकल शब्द के महात्म से परिचित नहीं…

May 21, 2024

कतरिना कैफ गरोदर ?विकी कौशलसोबतच्या त्या व्हिडिओमुळे रंगल्या चर्चा  (Katrina Kaif Is Pregnant, Her Viral Video From London With Vicky Kaushal Sparks Pregnancy Rumours)

बॉलिवूडच्या प्रेमळ जोडप्यांपैकी एक असलेल्या विकी कौशल आणि कतरिना कैफ यांच्या लग्नाला तिसरे वर्ष पूर्ण…

May 21, 2024
© Merisaheli